गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

हिंदी तिमाही बैठक में चर्चा करने हेतु विषयों की सूची

1. रबर-स्टैंप, फाईल कवर, रजिस्टरों के नाम, नामपट्ट आदि में हिंदी-अंग्रेजी का प्रयोग।
2. ग्राहकों के साथ मराठी/ हिंदी पत्राचार ।
3. हिंदी पत्रों का उत्तर हिंदी में देना ।
4. हिंदी पत्राचार का प्रतिशत बढाना ।
5. तिमाही हिंदी कार्यशाला का आयोजन ।
6. हिंदी पुस्तकें, शब्दकोश, हिंदी समाचार पत्र की खरीद ।
7. मराठी-हिंदी फॉर्म का प्रयोग ।
8. राज्य सरकार के साथ हिंदी पत्राचार करना ।
9. मा. संसद सदस्य, मा. विधायक, मा. दूरसंचार सल्लागार समिति सदस्य आदि महत्वपूर्ण व्यक्तियों के साथ
हिंदी पत्राचार करना ।
10. हिंदी पत्राचार के आकडों के लिए आवक-जावक रजिस्टर रखना ।
11. पूराने कंप्यूटर के विंडो 98 पर सुशा, एस.एल.भारती, बरह आदि मुफ्त हिंदी सॉफ्टवेअर का प्रयोग करना ।
12. नए कंप्यूटर ( विंडो 2000, विंडो विस्टा , एक्स-पी आदि में हिंदी यूनिकोड सक्रिय करना
13. तिमाही राजभाषा प्रगति रिपोर्ट भाग I भेजना ।
14. हिंदी प्रोत्साहन योजना पुरस्कार में सहभाग हेतु प्रोत्साहित करना ।
15. हर वर्ष सितंबर में हिंदी पखवाडा एवं 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाना ।
16. कार्यालय के सभी फॉर्म द्विभाषी बनाना ।
17. राजभाषा कार्यान्वयन हेतु जाँच-बिंदु निश्चित करना ।
18. उपस्थिति रजिस्टर हिंदी में बनाना ।
19. हिंदी में हस्ताक्षर करना ।
20 अग्रेषण पत्र, स्मरण पत्र, पृष्ठांकन, छुट्टी का आवेदन पत्र, अग्रिम राशि ( यात्रा, एल.टी.सी, जी.पी.एफ
आदि ) में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य करना ।
21. राजभाषा वार्षिक कार्यक्रम पर चर्चा करना ।
22. राजभाषा निरीक्षण हेतु रिकार्ड रखना ।

संसदीय राजभाषा समिति द्वारा केंद्र सरकार के कार्यालयों का निरीक्षण




       संसदीय राजभाषा समिति समय-समय पर देश के विभिन्न भागों में अवस्थित केंद्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों/ निगमों / उपक्रमों / फ़ैक्टरियों तथा प्रशासनिक कार्यालयों का निरीक्षण करती रहती है।  समिति के निरीक्षण कार्यक्रम की जानकारी प्राय: संबंधित कार्यालयों को 2-3 सप्ताह पहले उपलब करवायी जाती है तथा इसकी सूचना सभी कार्यालयों को फ़ोन तथा फ़ैक्स पर भी दी जाती है।
II.        अभी हाल में संसदीय राजभाषा समिति द्वारा कुछ कार्यालयों का निरीक्षण करते समय यह देखा गया है कि संबंधित कार्यालय के मुख्यालय से संबंधित प्रश्नावली पर हस्ताक्षर करनेवाले अधिकारी निरीक्षण बैठक में उपस्थित नहीं थें , समिति ने उनके इस आचरण को गंभीरता से लिया है और इसके लिए संबंधित कार्यालय की कडे शब्दों में निंदा की है।
III.       इन परिस्थितियों में संबंधित कार्यालयों से यह अपेक्षित है कि वे समिति की  मर्यादा को देखते हुए उनके कार्यालयों के निरीक्षण प्रश्नावली पर हस्ताक्षर  करनेवाले अधिकारी  स्वयं इन बैठकों में उपस्थित रहें और यह सुनिश्चित करें की  उनके कार्यालय में राजभाषा नीति संबंधी कार्यान्वयन का कार्य देखने वाले अधिकारी भी मुख्यालय के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हैं।  संबंधित कार्यालय को यह भी निर्देश दिए जाते हैं कि निरीक्षण के समय संबंधित कार्यालयों के प्रधान तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी एवं उनके मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारी तथा  विभाग के प्रतिनिधि जिनका स्तर उप सचिव से कम न हो तथा जो अपने- अपने कार्यालयों में राजभाषा नीति का कार्यान्वयन संबंधी कार्य देखते हों, बैठक में उपस्थित रहें जिससे कि समिति की मर्यादा के अनुकूल निरीक्षण कार्यक्रम सुचारु रूप से चल सके।  प्रत्येक कार्यालय से यह अपेक्षा की जाती है कि निरीक्षण कार्य के लिए वह अपना संपर्क अधिकारी नामित करे तथा उसका पूरा नाम, पद नाम, निवास तथा कार्यालय दोनों का फ़ोन नंबर संपर्क के लिए  मुख्यालय एवं समिति कार्यालय को सूचित करें।  यह संपर्क अधिकारी भारत सरकार के उपसचिव के स्तर से कम नहीं होना चाहिए।  संबंधित  कार्यालय से यह अपेक्षा भी की जाती है कि वह यह सुनिश्चित करें कि समिति कार्यालय को प्रश्नावली के मायम से दी जाने वाली जानकारी अपने आप में पूर्ण हैतथ्यात्मक है तथा सही है।  इन कार्यालयों से यह भी अपेक्षित है कि वे कृपया यह भी सुनिश्चित कर लें कि उनके कार्यालय में राजभाषा कार्यान्वयन समिति की तिमाही बैठकें नियमित रूप से आयोजित हो रही हैं और इन बैठकों में सरकारी काम-काज में हिंदी  के प्रयोग की समय-समय पर समीक्षा की जाती है।
    IV.       संसदीय राजभाषा समिति द्वारा निरीक्षण किए जाने वाले कार्यालयों के प्रमुख/प्रशासनिक    
 प्रावधनों के लिए ध्यान देने योग्य बातों का उल्लेख इसके साथ संलग्न परिशिष्ट में दिया गया                     है ।  अत:  विभाग के सभी संबंधित कार्यालयों निगमों/ उपक्रमों / फैक्ट्रियों के
अध्यक्षों एवं प्रधानों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे संसदीय राजभाषा समिति के                         निरीक्षण के दौरान उक्त बातों पर यान दें और समिति की मर्यादा  के अनुकूल अपेक्षित                       कार्रवाई  करें।
संसदीय राजभाषा समिति द्वारा विभाग के उपक्रमो /निगमों/फैक्ट्रियों के निरीक्षण के दौरान कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान द्वारा यान देने योग्य बातें :
1.    संसदीय राजभाषा समिति द्वारा निर्धारित निरीक्षण प्रश्नावली को मुख्यत: 4 भागों में बांटा जा सकता है:- (1)  सामान्य सूचना (2)  राजभाषा नियमों के अनुपालन की स्थिति (3)  सरकार द्वारा हिंदी के प्रयोग संबंधी आदेशों पर कार्यालय द्वारा की गयी अनुवर्ती कार्रवाई (4)  विविध जानकारी  आदि में बांटा जा सकता है।  प्रश्नावली को भरते समय कार्यालय में कार्यरत अधिकारियों/ कर्मचारियों के हिंदी ज्ञान की जानकारी देते समय हिंदी में प्रवीणता प्राप्त / कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले/ प्रशिक्षण पा रहे अधिकारियों / कर्मचारियों की सूचना स्पष्टत: दी जानी चाहिए।  कोष्टक में यदि पहले निरीक्षण हुआ है तो पिछले आंकडे भी प्रस्तुत किए जाए ।
2.    यह सुनिश्चित किया जाए कि हिंदी में प्रवीणता/ कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले
अधिकारी/ कर्मचारी अपना अधिकांश काम हिंदी में कर रहे हैं।  हिंदी में दक्ष आशुलिपिकों की सेवाओं का समुचित उपयोग हो रहा है।
3.राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3 (3) के अंतर्गत जारी किए  जाने वाले   कागजात बिना किसी अपवाद के हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में जारी किए  जाएं।
4. राजभाषा नियम, 1976 के नियम 5 के अंतर्गत हिंदी में प्राप्त सभी पत्रों का उत्तर हिंदी में दिया जा रहा है।  इस कार्य की जांच के लिए आवश्यक जांच बिंदु  बनाए गए हैं।  कार्यालय का नाम राजभाषा नियम 10 (4) के अंतर्गत भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया जा चुका है और नियम 8(4)  के अंतर्गत हिंदी में प्रवीणता प्राप्त सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को अपना सरकारी काम-काज हिंदी में करने के लिए व्यक्तिश: आदेश जारी किए जा चुके हैं।  कार्यालय    के प्रयोग में लाए जानेवाले सभी कोड मैनुअल आदि नियम 11 में की गयी व्यवस्था के अनुसार द्विभाषी रूप में प्रकाशित या उपलब होने चाहिए। सभी प्रकार के रजिस्टरों में प्रविष्टियां हिंदी में की जा रही हैं और रबर की मोहरे, साईन बोर्ड, सील आदि भी द्विभाषी रूप में तैयार किए जा चुके हैं।
5. राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए आदेशानुसार अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों का उत्तर             भी हिंदी में दिया जा रहा है।  मूल पत्राचार के संदर्भ में निर्धारित सीमा तक हिंदी              का प्रयोग हो रहा है।
6.    राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए जाने वाले वार्षिक कार्यक्रम के अनुरूप              कार्यालय में अपेक्षित मात्रा में राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए आदेशानुसार  अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों का उत्तर भी हिंदी में दिया जा रहा है।  मूल पत्राचार के संदर्भ  में निर्धारित सीमा तक हिंदी का प्रयोग हो रहा है।  हिंदी के टाइपराइटर अथवा  कंप्यूटरों की व्यवस्था की जा चुकी है तथा इन सुविधाओं का सही उपयोग किया  जा रहा है।
7.  जिन्हें हिंदी  कार्य  की  योग्य जानकारी नहीं है अथवा जो अभी हिंदी टाइप/       आशुलिपि में प्रशिक्षित नहीं है उन्हें योजनाबद तरीके से प्रशिक्षण के लिए नामित         किया गया है।                                            
8. विभागीय प्रशिक्षण संस्थानों में हिंदी मायम से अधिकारियों/ कर्मचारियों को          प्रशिक्षण दिया जा रहा है एवं पाठयक्रम संबंधी साहित्य हिंदी में उपलब है।         
9. राजभाषा नीति के कार्यान्वयन एवं अनुवाद कार्य के लिए प्रत्येक कार्यालय में अपेक्षित मात्रा में अधिकारियों/कर्मचारियों की व्यवस्था है तथा इस कार्य के लिए स्वीकृत सभी पद नियमानुसार भरे गये हैं।
10. वार्षिक कार्यक्रम में निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार पुस्तकों की खरीद पर 50             प्रतिशत बजट अनुदान हिंदी पुस्तकों पर खर्च किया जा रहा है।
11. कार्यालय द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली सभी प्रकार के स्टेण्डर्ड फार्म आदि द्विभाषी रूप में तैयार किए जा रहे हैं।     
12.   यदि कार्यालय द्वारा भर्ती और पदोन्नति संबंधी कोई लिखित और मौखिक परीक्षा  आयोजित की जा रही है तो उम्मीदवारों को परीक्षा में हिंदी का विकल्प उपलब है।
13.   सभी अधिकारियों / कर्मचारियों की सेवा पुस्तिकाओं / सेवा अभिलेखों में की जाने  वाली प्रविष्टियां हिंदी में की जा रही हैं।
14.   कार्यालय की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकें प्रत्येक तिमाही में नियमित रूप से आयोजित हो रही हैं और इन बैठकों की कार्य सूची और कार्यवृत्त हिंदी में जारी किए जा रहे हैं।ं   
15.   फाइलों पर टिप्पणी और आलेखन को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न प्रकार की पुरस्कार योजनाएं  चलायी जा रही हैं।
16.   हिंदी में कार्य करने में पायी जाने वाली झिझक को दूर करने के लिए समय-समय पर हिंदी कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं।
17.   कार्यालय द्वारा आयोजित समारोह और सम्मेलनों के निमंत्रण पत्रों और अन्य कार्यवाही हिंदी में की जा रही है।
18.   कार्यालय की गृह पत्रिकाओं और अन्य सूचना पत्रों में हिंदी का समुचित प्रयोग हो रहा है।
19.   निरीक्षण कार्यक्रम संबंधी कार्यालय ज्ञापन में दी गई हिदायतों के अनुसार निर्धारित प्रश्नावली की  प्रतियां हिंदी और अंग्रेजी में भरकर समिति सचिवालय को निर्धारित तिथि तक भेज दी जानी चाहिए ।
20.   यथासंभव बैठक की व्यवस्था कार्यालय के किसी सम्मेलन कक्ष या समिति कक्ष में की जानी चाहिए।
21.   कार्यालय की ओर से बैठक में भाग लेने वाले अधिकारियों के नामों और पद नामों की द्विभाषी पट्टियां मेज पर लगी होनी चाहिए।
22.   जिस कार्यालय का निरीक्षण किया जाना हो उसके एक प्रतिनिधि को, यथास्थिति
गेस्ट हाउस से या उस कार्यालय से जहां उप समिति की पहली बैठक हुई हो,
उपसमिति के साथ होना चाहिए।
 23. यह सुनिश्चित कर लिया जाना चाहिए कि बैठक में निरीक्षित कार्यालय के  प्रशासनिक प्रधान तथा उनके वरिष्ठ सहयोगी उपस्थित रहें।                        
24. सभी संबंधित सामग्री एवं सांख्यिकी सूचनाएं आदि निरीक्षण के लिए तैयार रखी  जाए।  हिंदी के प्रगामी प्रयोग संबंधी आदेशों, त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट, राजभाषा  कार्यान्वयन समिति के गठन एवं बैठकों संबंधी फाइल तथा कर्मचारियों को हिंदी के सेवाकालीन प्रशिक्षण हेतु भेजने के लिए रजिस्टर आदि बैठक कक्ष में तैयार रख जाए ।
25.   जिस कार्यालय का निरीक्षण किया जाना हो उसके प्रशासनिक प्रधान का राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के संबंध में अपने कार्यालय द्वारा किए गए प्रयासों, इस दिशा में उपलबियों तथा आगामी योजनाओं को दर्शाते हुए संक्षिप्त विवरण की प्रतियां पर्याप्त संख्या में समिति के अधिकारियों को बैठक से पहले दे दें।
26.  यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उपसमिति के सदस्यों को दी जाने वाली                        जानकारी सभी प्रकार से सही और पूरी हो।
27. संबंधित कार्यालयों के अधिकारी बैठक के मुख्य मुद्दें नोट कर सकते हैं।  बैठक की
 निजी वीडियो रिकार्डिग नहीं की जा सकती है।
28  यह भी यान रखा जाना चाहिए कि निम्नलिखित बातों से समिति / उपसमिति की            मर्यादा भंग होती है और उसका अपमान होता है:-
  ( क )  उत्तर देने से इन्कार करना ।
  ( ख )   असल बात को घुमा- फिराकर कहना, झूठी गवाही देना, गलत दस्तावेज प्रस्तुत करना, सत्य को छिपाना अथवा समिति/ उप-समिति को  गुमराह   करना।
   (ग )     समिति/ उपसमिति का अवमानना करना या अपमानजनक उत्तर देना ।





शनिवार, 3 अप्रैल 2010

गोवा ट्रेक के संस्मरण




अपनी मर्ज़ी से कहां हम अपने सफर के हम है
रुख हवाओं का जिधर का है , उधर के हम है।
मेरे मोबाईल पर सुप्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंग की आवाज़ गुंज रही थी। तभी सोलापुर से मेरे साडु निलेश भंडारी से फोन आया - विजय हमें गोवा ट्रेक के लिए निकलना है । मैं सोचने लगा यह ट्रेक क्या बला है? उम्र के मध्यम पडाव में क्या मैं ट्रेक कर सकता हूँ । क्या मैं जंगल, पहाड से गुजर सकता हूँ। निलेश भंडारी ने अब तक पाँच ट्रेक पुरे किए थे। निलेश ने मुझे आश्वस्त किया । मुझे ज्ञात हुआ कि इस ट्रेक में 10 साल के बच्चों को लेकर 70 साल के बुजुर्ग लोग भी हिस्सा ले सकते है। शर्त यह है कि आप तंदरुस्त हो और रोज़ाना 15/20 कि.मी. पैदल चलने की क्षमता हो। चलते समय आपके पीठ पर रॅक सॅक का कम से कम 5 कि.ग्रम/ 10 कि.ग्रम का वजन उठाना पडता है।
दि. 15 दिसंबर 07 से 02 जनवरी 08 के बीच यूथ होस्टल्स एसोशिएशन ऑफ इंडिया तथा स्पोर्ट एथॉरिटी ऑफ गोवा के संयुक्त तत्वावाधन में यह ट्रेक आयोजित किया गया था । यूवा तथा खेल मंत्रालय, भारत सरकार के आीन यूथ होस्टेल्स ऑफ एसोशिएशन पूरे भारत में विभिन्न राज्यों में राष्ट्रीय ट्रेक आयोजित करते है। इस संबंध में पूरी जानकारी आप www.yhaindia.org पर प्राप्त कर सकते है। ट्रेक का ऑन लाइन पंजीकरण किया जा सकता है। आपको स्वास्थ्य संबंधित वैद्यकिय प्रमाण पत्र तथा ट्रेक शुल्क भेजना है। आप किसी नज़दीकी युथ होस्टेल एसोशिएशन कार्यालय से संपर्क कर सकते है।
इस बार गोवा स्टेट ब्रँच द्वारा इस ट्रेक का आयोजन किया गया था । गोवा राज्य प्राकृतिक सौंदर्य, विस्तीर्ण सुंदर बीच, गिरीजा घरों और मंदिरों के लिए सुप्रसिद्ध है। अरबी समुद्र के विस्तीर्ण तट पर गोवा के अनेक मशहुर बीच फैले हुए है। गोवा की बेहतरिन वादियाँ, आकर्षक पहाडों का मन लुभावने आमंत्रण, लैंड स्केप, पाम वृक्षों का घना जंगल सागर की लहरों को चुमनेवाला सुरज , सुनहरी रुपेरी रेत के बीच कर्नाटक और गोवा की सीमा पर स्थित दूधसागर वॉटर फॉल हमारा मन मोह ले रही थीं। पश्चिम घाट की यह पहाड़ी हिमालयीन पहाड़ी से कुछ कम नहीं है। ट्रेकिंग मार्ग में वही रोमांच है जो हिमालय की पहाड़ियों में नजर आ जाता है। आठ दिनों के इस ट्रेक की शुरुआत स्पोर्ट एथारिटी ग्राउंड, कंपाल, पणजी स्थित बेस कैंप से शुरु हुई। सोलापूर यूनिट के 11 तथा अहमदनगर के 2 सदस्य इस ट्रेक में शामिल हुए। इस के अलावा पुणे, मुंबई, जोधपुर, अहमदाबाद, गुवाहाटी के कुल 49 सदस्यों की ब्ॉच क्रं. 9 में शामिल हो गई । बेस कैंप पणजी पहूँचने पर हमारा हार्दिक स्वागत वहॉं के कैंप लीडर श्री मनोज जोशी, रोहिदास नाईक, रुपा म्ॉडम, श्री.रोहिदास नाईक आदि लोगों ने किया। बेस कैंप में 30 तंबू लगाएँ गए थे। हर तंबू में 10 से 15 लोग आराम से रह सकते थे। युथ होस्टल असोसिएशन ने सहभागी ट्रेक करने वालों के लिए आवास भोजन, नाश्ता चाय-पानी आदि बेहतरीन सुविधा प्रदान की। बेस कैंप का माहौल मिल्ट्री अथवा पुलिस विभाग जैसा लगा । निश्चित समय पर नाश्ता, भोजन, चाय लेने के लिए कतार में खडा होना पडता था। रात को 9 बजे कैंप फायर याने मनोरंजन का कार्यक्रम होता है। इसमें सहभागी सदस्य अपनी कला का प्रदर्शन कर सकते है। कोई गीता गाता है, कोई जोक सुनाता है तो कोई शेरोशायरी करता है। कैंप फायर यह एक आकर्षक बिंदु है। विभिन्न प्रांतों से पधारे हुए विभिन्न भारतीय भाषा भाषी मित्रगण मौजमस्ती करते है। यहाँ एक संपूर्ण हिंदुस्तान का छोटा रुप देखने को मिलता है।
दुसरे दिन ट्रेक की जानकारी दी गई। गोवा के जंगल और बीच की भौगोलिक स्थिति तथा उस परिसर में रहनेवाले पशुपक्षियों की भी जानकारी दी गई। हमें विभिन्न साँपों की प्रजातियाँ उनके लक्षण और ठिकानों की जानकारी प्रत्यक्ष साँपों को प्रदर्शित करके दी । हमें यह हिदायत दी गई कि ट्रेक के दौरान धुम्रपान तथा मद्यपान करना पूरी तरह निषिद्ध है। गोवा के बीच पर अनेक विदेशी महिलाएँ कही अर्ध नग्न तो कही पर पूरी तरह स्थिति में सनबाथ लेती रहती है। उनके फोटो निकालना या उन्हें कॅमेरे से शुट करना मना है। अगर कोई पकडा गया तो विदेशी लोग मार पिटाई करते है और स्थानिक गोवा के लोग भी उनका सहयोग करते है। गोवा पर्यटन के कारण विदेशी धन भारत में आ जाता है। गोवा का कारोबार विदेशी पर्यटकों पर पर ज्यादा निर्भर है। इसलिए गोवा के स्थानिक लोग विदेशी पर्यटकों का ध्यान रखते है। उन्हें कोई परेशानी न हो इसलिए हमेशा सतर्क रहते है।
भोजन के उपरांत सागर के बीच स्टीमर नाव के जरीए हमें डॉल्फिन मछलियाँ दिखाने के लिए चक्कर लगाया गया । डॉल्फिन मछलियाँ बहुत शर्मिली और संवेदनशील होती है। स्टीमर का आवाज सुनकर पानी में दूर-दूर भागती थी। कभी-कभी कुछ डॉल्फिन मछलियाँ नजदीक से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । हमारे अनेक सदस्यों ने फोटो लिए , तो कुछ सदस्यों ने हैन्डी कॅम से शुट किया । तीसरे दिन हम वेलिसावो बीच की ओर चल पडे। ट्रेक पर निकलने से पहले हमारे कैंप लीडर तथा उनके वरिष्ठ सहयोगियों ने हमारे बैग से कुछ जरुरी चीजें निकालकर रॅक सॅक में डाल दी। ट्रेक करते समय रॅक सॅक का वजन बहुत कम होना चाहिए क्योंकि जंगल पहाड से गुजरते समय भारी बस्ता मुसीबत बन जाता है। हमारे रॅक सॅक में दो कॉटन शर्ट, दो कॉटन पैंट, सन कैप, हंटर शुज, कॉटन साक्स की दो जोडियाँ, टॉर्च , वॉटर बॉटल , लंच बॉक्स स्टील मग अथवा टंबलर प्लेट, चम्मच, पेन, चक्कू , सुई धागा, गॉगल, कोल्ड क्रीम, साबुन, टॉईलेट पेपर, कॅमेरा तथा आपकी दैनिक दवाइयाँ (अगर आप ले ते हो तो ) आदि चीजों को रॅक सॅक में पॅक किया गया था ।
वेलसावो बीच पहूँचने के लिए हमें बोगमालो बीच तक लोकल बस द्वारा जाना पडा।यह ट्रेक पूरी तरह सागर की तट से लहरों का सुखद स्पर्श और थंडी हवा से भरा था। वेलसावो बीच पहूँचने तक शाम के पाँच बज चुके थे। वेलसावो बीच के कैंप लीडर ने हमें वेलकम ड्रींक (शरबत ) पिलाया । शाम को 6 बजे हम सब बीच की रेत पर बैठ गए, क्योंकि सागर में सुरज डुबने का लुभावना दृश्य हमें देखना था। रात के भोजन के बाद फायर कैंप हुआ । इस बेहतरीन मनोरंजन के बाद मन हल्का और शरीर में चुस्ती आ गई। हम सब थकावट भुलकर घनघोर निद्रा में प्रवेश कर गए।
चौथे दिन सुबह कैंप लीडर ने 6 बजे सी.टी बजाई। उसके बाद बेड टी हर एक कैंप में प्राप्त हुआ । नहा धोकर हम सब नाश्ता लेकर तथा लंच बॉक्स पॅक करके बेनॉलियम बीच की ओर चल पडे। यह रास्ता सागर किनारे से सुनहरी रेती से गुजर रहा था । नंगे पैरों को छुनेवाली सागर की लहरें , सागर की लहरों पर तैरते किंग फिशर और अन्य समुद्री पक्षियों के झुंड, सागर किनारों की लहरों से खेलते बच्चे, युवक और बुजुर्ग लोग यह नजारा अविस्मरणीय था। इतना विस्तीर्ण सागर तट हमने पहली बार देखा। वेलसावो बीच के पास झुआरी केमिकल फर्टिलाइजर फैक्टरी से यह विस्तीर्ण सोलह कि. मी. का बीच बेनॉलियम तक फैला हुआ है। दिनभर सागर का साथ रहा। सागर के तट पर आनेवाली नटखट आवाज करती लहरें मनमोह ले रही थी। शाम को 5 बजे हम बेनॉलियम कैंप पहूँच गए। फ्रेश होकर हमने चाय-नाश्ता लिया। फिर एक बार कैंप फायर हुआ ।
पाँचवें दिन हम बेनॉलियम बीच से सागर की ओर चल पडे। दुध सागर जाने के लिए हमने मडगांव से कोलेम का रास्ता ट्रेन से पार किया। कोलेम से दूध सागर यह एक अनोखा जंगल ट्रेक है। दूध सागर वॉटर फॉल गोवा और कर्नाटक के बॉर्डर पर बसा हुआ है।दुध सागर वॉटर फॉल देखने के लिए यहाँ अनेक विदेशी सैलानियों की भीड इकट्ठा होती है। बेनॉलियम कोलेम गांव से सीधे दूध सागर वॉटर फॉल तक जीप द्वारा अनेक विदेश सैलानी सफर करते हुए दिखाई पडे। लेकिन हमें तो पैदल जंगल पार करना था। गोवा फॉरेस्ट कार्यालय का टोलनाका दिखाई पडा। यहाँ पर प्रवेश शुल्क तथा कैमरा शुल्क अदा करने पर आगे जंगल जाने की इजाजत मिलती है। जंगल से गुजरते हुए धुम्रपान करना सक्त मना है। पूरे ट्रेक में धुम्रपान या नशापानी करना सक्त मना था। पीनेवाले बेहाल हो गए थे। उन्हें डर था अगर पकडे गए तो बीच रास्ते से ही हमें वापिस घर लौटना पउेगा। इसलिए पीनेवाले भी पुरे ट्रेक के दौरान नशा पानी से अनचाहे मन से दूर रहे। ऊपर की पहाडियों से नीचे की ओर दौडता हुआ पानी का प्रचंड जलप्रपात (वाटरफॉल) बहुत ही आकर्षक एवमं मनोहरी था । तीन स्टेप्स से गुजरता हुआ यह पानी गोवा के घने जंगल से पार होकर सागर में जाकर मिलता है। दूधसागर वॉटर फॉल के नीचे पानी के तालाब में विदेशी युवक-युवतियाँ तैरने का आनंद ले रहे थे। हमारे गाईड ने बताया कि इस रुके हुए पानी के अंदर शक्तिशाली करंट होता है। जो अच्छे अच्छे तैराइयों को खीचकर पानी में बहाकर ले जाता है। पिछले वर्ष ट्रेक करनेवाले एक हिमाचली युवक की मृत्यू उसकी बेपरवाई के कारण हो गई थी। दूधसागर वॉटरफॉल के ऊपर की पहाडी की चढाई करना हमें बहुत कठीन लग रहा था। साँस फुल रही थी। पैर काँप रहे थे। लेकिन हम सब ने इस पहाड को पार किया। दूधसागर कैंप पहूँचने में हमें काफी समय लगा। रात का अंधेरा होने से पहले जंगल पार करना बहुत जरुरी होता है। रात को जंगली जानवर बाहर निकल पडते है। हमारे दो युवा सहयोगी जंगल में रास्ता भूल गए। इसमें सुबोध प्रभु जो अमेरिका में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहा है। हर रास्ते पर कही पेड तो कही पत्थरों पर ट्रेक का निशाण लगाया होता है। लेकिन कभी कभी ट्रेक करते समय यह निशाण देखना हम भूल जाते है। दूधसागर कैंप पहूँचने पर पीछे रास्ता भटके हुए हमारे साथियों की तलाश में हमारे ब्ॉच के लिडर तथा गाइड उन्हें ढुंढने निकले पडे। अंधेरे हो गया था लेकिन बैटरी की प्रकाश और आवाज देकर उनको ढुंढ लिया गया। दूधसागर कैंप पहूँचने पर सबने राहत की साँस ली। कैंप फायर के बाद हम सभी घोडे बेचकर सो गए।
छटे दिन हम दूधसागर से कुवेशी की ओर चल पडे। यह इलाका कर्नाटक के कारवार जिले का हिस्सा है। दस कि.मी का यह रास्ता पूरी तरह जंगली रास्ता है। रास्ते में अनेक प्रकार के पेड पौधे, फूल नजर आए। यह जंगल पूरी तरह सुरक्षित रखा गया है। गिरे हुए पेड भी अपनी जगह पर सुखकर मिट्टी मे नष्ट होते जा रहे थें। पेड की शाखाओं पर बौठे हुए सजग प्रहरी पंछी अलग प्रकार की आवाज निकाल रहे थे। हमारे कुछ अनुभवी ट्रेक करनेवालों ने बताया कि जंगल के पशुपक्षी और जानवरों के लिए यह एक विशिष्ट संकेत है कि जंगल में मनुष्य आ रहा है। जंगल की यह प्राकृतिक रक्षा और प्रतिरक्षा की सृष्टी देखकर हम चकित हो गए। कुवेशी का कैंप एक नदी के झरने के तट पर बसा हुआ था। रातभर मेंढक की आवाज के साथ सुर मिलाकर हमारे कुछ सहयोगी खराटे लेते हुए सुर मिला रहे थे।
सातवें दिन हम अनमोड की तरफ चल पडे। यह हमारे ट्रेक का सबसे लंबा रास्ता रहा। जो करीब 22 कि.मी का फासला रहा। कर्नाटक राज्य के अनमोड गांव के नजदीक एक राष्ट्रीय महामार्ग पर हमारा कैंप लगाया गया था। सुबह हम तैयार हो रहे थे तब बेस कैंप पणजी के कैंप लीडर श्री मनोज जोशी अपने साथीदार के साथ हमारा हालचाल पुछने के लिए पहुँच गए थे। उन्होंने हमारी कुछ समस्याओं को बडी ध्यान से सुना। हमने कुछ सुझाव भी दिए। अनमोड से तांबडी सुरला आठ कि.मी. का रास्ता हम पैदल पार कर गए। यह हमारा आखरी पडाव था। घर की याद आ रही थी। तांबडी सुरला पहूँचने पर हमने प्राचीन महादेव मंदिर का दर्शन किया। तांबडी सुरला के नदी में हम नहा धोकर बेस कैंप जाने के लिए तैयार हो गए। दुपहर 3 बजे वहां गोवा कदंब ट्रान्सपोर्ट की बस हमें मिल गई । हम बस में सवार होकर शाम 5 बजे पणजी कैंप में पहूँच गए। बेस कैंप के फायर कैंप कार्यक्रम के दौरान हमें प्रमाणपत्र वितरीत किए गए। गोवा दूरसंचार के रोहिदास नाईक वहाँ फिल्ड अधिकारी के रुप में काम कर रहे थे। उनके करकमलों द्वारा प्रमाणपत्र वितरित किए गए। वर्ष का आखरी दिवस 31 दिसंबर हम सबने गोवा घुमकर बिताया। 31 दिसंबर की रात सागर पर गोवा पर्यटन की क्रुझ पर हम सवार हो गए। एक घंटे के इस सफर में क्रुझ पर रातभर संगीत नृत्य करते हुए युवा-युवती बच्चे तथा बुजुर्ग लोग भी अपनी आयु भुलकर नाच रहे थे। नए साल के प्रथम दिवस पर हम श्री शांता दूर्गा, श्री मंगेशी, पुराना चर्च देखने गए। राष्ट्रीय सागर विज्ञान अनुसंधान केंद्र देखने गए। यहाँ सागर के विभिन्न पहलुओं की डॉक्युमेंटरी फिल्म देखी। सागर विज्ञान संबंधी अनेक प्रोजेक्ट और अनुसंधान का कार्य वहाँ चल रहा है। अंडमान निकोबार सुनामी के बाद भारत सरकार ने विशेष ध्यान दिया हुआ है।
इसी तरह हमारा यह गोवा ट्रेक ईश्वर की कृपा से सफल रहा । इस ट्रेक के कुछ फायदे भी है। तंदरुस्त जीवन के लिए चलना बहुत जरुरी है। प्रकृति के साथ ताल मिलाकर उससे एकरुप होकर जंगल पहाड, सागर, पानी से गुजरते हुए साथीदार ट्रेक भाई-भाई बन जाते है।




गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

1857 का संग्राम प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का प्रामाणिक दस्तावेज


मैंने इ.स. 2000 में नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया के लिए 1857 का संग्राम (मूल मराठी पुस्तक 1857 चा संग्राम लेखक- वि.स.वाळींबे ) का हिंदी अनुवाद किया था। इस पुस्तक को भारत सरकार के प्रौढ साक्षरता अभियान के तहत स्वीकृत किया गया है। इस पुस्तक की अब तक चार आवृत्ति प्रकाशित हो चुकी है। हिंदी अनुवाद प्रकाशित करने का यह मेरा पहला प्रयास रहा जिसका हिंदी जगत में स्वागत किया गया। हिंदी अनुवाद के क्षेत्र में मेरी रुचि बढ गयी। केंद्रीय हिंदी अनुवाद ब्यूरो ,नई दिल्ली के भूतपुर्व निदेशक डॉ.विचार दास जी ने इस पुस्तक पर समीक्षा लिखी जो भारतीय अनुवाद परिषद, नई दिल्ली की पत्रिका अनुवाद अंक- 111 अप्रैल-जुन 2002 के अनवाद मुल्याकंन विशेषांक में प्रकाशित की गई थी।
संबंधित समीक्षा निम्नानुसार है-
नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया देश की एकमात्र ऐसी प्रकाशन संस्था है जो भारतीय भाषाओं में उचित मूल्य पर पुस्तकें पाठकों तक उपलब्ध कराती है। ‘1857 का संग्राम’ वि.स.वालिंबे द्वारा लिखित तथा विजय प्रभाकर द्वारा अनूदित ग्रामीण पाठकों के लिए प्रकाशित उसी संस्था की ऐसी पुस्तक है जो हिंदी भाषा के अल्प आय वाले पाठकों की पहुँच से दूर नहीं हैं।
1857 का संग्राम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली कडी है जिसे देश के अनेक रणबांकुरों ने अपने जीवन की आहुति देकर शुरु किया था। इस कडी को ‘1857 का संग्राम’ शीर्षक पुस्तक के रुप में लेखक ने रोचक शैली तथा सरल भाषा में लिखा है। पुस्तक कुल सात अध्यायों में विभाजित है। प्रथम अध्याय में 10 मई, 1857 के दिन का वर्णन किया गया है जिसमें दिल्ली के पास मेरठ छावनी में असंतोष की भडकी आग ने किस प्रकार गंगा-यमुना के सारे इलाके को अपनी लपेट में ले लेने का चित्रण किया गया है। लेखक 10 मई, 1857 की घटना को अचानक घटी घटना नहीं मानते बल्कि अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचार और एनफिल्ड बंदूकों में भरी जाने वाली कारतूस का पूरा विवरण देते हैं जिससे अंग्रेजों द्वारा देशी सिपाहियों का धर्म-भ्रष्ट होने का खतरा था। इसी अध्याय में मंगल पांडे द्वारा सुलगाई गई चिंगारी और उनके फाँसी पर लटकाए जाने का विवरण दिया है।
दूसरे अध्याय में लेखक ने बैरकपुर के पश्चात अंबाला छावनी में विद्रोह की चिंगारी का इतिहास रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। उन्होंने इस अध्याय में देशी सिपाहियों की मनोदशा का विवरण यूँ व्यक्त किया है:
‘मेरठ छावनी में भी अब अन्य जगहों की तरह एनफिल्ड बंदूकों की आपूर्ति होने लगी थी। पहले अंग्रेजी सिपाहियों को ये बंदूकें चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद देशी सिपाहियों को प्रशिक्षण देने की योजना तय हुई थी। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 24 अप्रैल से शुरु होने वाला था। इसकी बिल्कुल पहली रात को हिंदू सिपाहियों ने गंगाजल की तथा मुसलमान सिपाहियों ने कुरान की कसम खाई – “ हम उसी बंदूक को हाथ लगाएंगे जिस पर चरबी नहीं लगाई गई होगी ।“
इस अध्याय में मेरठ छावनी के विद्रोही सिपाहियों के कोर्ट मार्शल का विवरण दिया है तथा उन सिपाहियों को नंगे पाँवों, बिना पगडी तथा हाथों में बेडी लटकाए मेरठ शहर में जुलूस के रुप में निकालकर जेल की तरफ ले जाते हुए तथा मेरठ शहरवासियों की आँखों में क्रोध की चिंगारी को निकलते हुए दिखाया गया है। यहीं से स्वतंत्रता संग्राम की शुरुवात हुई और देखते ही देखते दिल्ली भी बागी सिपाहियों के कब्जे में आ गई। उन्होंने सौ साल पहले प्लासी में हुई पराजय का बदला अंग्रेजों से चुकता कर लिया।
दिल्ली मे विद्रोही सिपाहियों के कब्जे की सूचना जब देश के अन्य छोटे-बडे कस्बों, गाँवों में फैली तो चारों तरफ विद्रोह की लहर दौड गई। देश का हर कोना विद्रोह की चिंगारी से जलने लगा। विद्रोह का समाचार जब नाना साहब पेशवा को मिला तो उनमें भी आजादी की ल‍हरें हिंडोले मारने लगीं। विद्रोहियों के आमंत्रण पर नाना साहब भी इस जंग में कूद पडे। तीसरे अध्याय को ‘बिठूर के महाराज’ शीर्षक दिया गया है जिसमें नाना साहब पेशवा और कानपुर में विद्रोही सैनिकों का पूरा विवरण है।
‘अवध की स्थिति’ में लखनऊ में अंग्रेजी सिपाहियों और विद्रोही सिपाहियों के घमासान तथा कूटनीति आदि का पूरा विवरण दिया है।
पाँचवें अध्याय में दिल्ली में उपद्रवियों तथा विद्रोहियों के हाथों से दिल्ली वापस अंग्रेजों के हाथ लौटने और बूढे बादशाह बहादुरशाह जुफर के पतन का खुलासा है।
छठे अध्याय में लखनऊ के पुन: अंग्रेजों के हाथ में आने और विद्रोहियों के पराजय का विवरण है। सातवें और अंतिम अध्याय में बुंदेलखंड और वीरांगना झाँसी की रानी के शौर्य का वर्णन, तात्या टोपे की कूटनीति और देश की आजादी में किया गया आत्मोत्सर्ग का उल्लेख किया गया है।
74 पृष्ठों में संकलित यह पुस्तक सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा प्रामाणिक दस्तावेज है जिसे लेखक ने आम पाठकों के लिए सहज, सरल भाषा और रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। पुस्तक खोलने के बाद पुस्तक को समाप्त किए बिना पाठक का मन नहीं मानेगा। पुस्तक के हिंदी अनुवाद हिंदी भाषी पाठकों के लिए एक उपहार है। इसमें कहीं भी शब्दों की क्लिष्ठता नहीं है यानि पुस्तक ग्रामीण पाठकों के लिए मानक है।
इस पुस्तक में जहाँ प्रथम संग्राम स्वतंत्रता संग्राम में देशी सिपाहियों की आजादी के प्रति जज्बात का दर्शन होता है वहीं अंग्रेजों की क्रूरता, कुटिलता और बदले की भावना से किए गए वध एवं मासूम जनता के प्रति उनके अत्याचार भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। आजादी मिलने के इतने वर्षों के उपरांत देश में फैली अराजकता, हिंसा आदि को ध्यान में रखते हुए यदि उक्त पुस्तक पाठको तक पहुँचेगी तो निश्चित रुप से हमारे पूर्वजों द्वारा आजादी के लिए दिया गया बलिदान हमें सही ढंग से सोचने तथा देश में आजादी स्थापित रखने में मददगार साबित होगा ।
डिमाई आकार की पुस्तक में अक्षरो का आकार भी सही है। बीच-बीच में चित्र दिए गए हैं जोकि पुस्तक की गुणवता में वृध्दि करते है किंतु यह और उत्तम होता यदि 1857 के ऐतिहासिक स्थलों का चित्र दिया जाता तो पुस्तक की प्रामाणिकता और बढ जाती । कुल मिलाकर पुस्तक न केवल ग्रामीण पाठकों के लिए बल्कि बाल पाठकों के लिए भी पठनीय है।

(*1857 का संग्राम, वि.स.वालिंबे (अनु.विजय प्रभाकर), नेशनल बल ट्रस्ट, इंडिया, प्र.सं.2000,)

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

सूचना प्रौद्योगिकी व्याख्या एवं परिचय

भाषा अभिव्यक्ती का सशक्त माध्यम है। भाषा मानव जीवन का अभिन्न अंग है। संप्रेषण के द्वारा ही मनुष्य सूचनाओं का आदान प्रदान एवं उसे संग्रहीत करता है। सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक अथवा राजनीतिक कारणों से विभिन्न मानवी समूहाओं का आपस में संपर्क बन जाता है। गत शताब्दी में सूचना और संपर्क के क्षेत्र में अद्भुत प्रगति हुई है। इलेक्ट्रानिक माध्यम के फ़लस्वरूप विश्व का अधिकांश भाग जुड गया है। सूचना प्रौद्योगिकी क्रांती ने ज्ञान के द्वार खोल दिये है। बुद्धी एवं भाषा के मिलाप से सूचना प्रौद्योगिकी के सहारे आर्थिक संपन्नता की ओर भारत अग्रेसर हो रहा है। इलेक्ट्रानिक वाणिज्य के रूप में ई-कॉमर्स, इंटरनेट द्वारा डाक भेजना ई-मेल द्वारा संभव हुआ है। ऑनलाईन सरकारी कामकाज विषयक ई-प्रशासन, ई-बैंकींग द्वारा बैंक व्यवहार ऑनलाईन , शिक्षा सामग्री के लिए ई-एज्यूकेशन आदि माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के बहु आयामी उपयोग के कारण विकास के नये द्वार खुल रहे है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी का क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रयागों का अनुसंधान करके विकास की गति को बढाया गया है। सूचना प्रौद्योगिकी में सूचना, आँकडें (डेटा ) तथा ज्ञान का आदान प्रदान मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र में फ़ैल गया है। हमारी आर्थिक, राजनितिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, व्यावसायिक तथ अन्य बहुत से क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का विकास दिखाई पड़ता है। इलेक्ट्रानिक तथा डिजीटल उपकरणों की सहायता से इस क्षेत्र में निरंतर प्रयोग हो रहे है। आर्थिक उदारतावाद के इस दौर के वैश्विक ग्राम (ग्लोबल व्हिलेज) की संकल्पना संचार प्रौद्योगिकी के कारण सफ़ल हुई है। इस नये युग में ई-कॉमर्स, ई-मेडीसीन, ई-एज्यूकेशन, ई-गवर्नंस, ई-बैंकींग, ई-शॉपिंग आदि इलेक्ट्रानिक माध्यमों का विकास हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी आज शक्ति एवं विकास का प्रतिक बनी है। कंप्यूटर युग के संचार साधनों में सूचना प्रौद्योगिकी के आगमन से हम सूचना समाज में प्रवेश कर रहे है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के इस अधीकतम देन के ज्ञान एवं इनका सार्थक उपयोग करते हुए, उनसे लाभान्वित होने की सभी को आवश्यकता है।

सूचना प्रौद्योगिकी व्याख्या: -

1. सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित संक्षिप्त विश्वकोश में: -
सूचना प्रौद्योगिकी को सूचना से संबद्ध माना गया है। इस प्रकार के विचार डिक्शनरी ऑफ़ कंप्यूटिंग में भी व्यक्त किए गए है। मैकमिलन डिक्शनरी ऑफ़ इनफ़ोर्मेशन टेक्नोलोजी में सूचना प्रौद्योगिकी को परिभाषित करते हुए यह विचार व्यक्त किया गया है कि कंप्यूटिंग और दूरसंचार के संमिश्रण पर आधारीत माईक्रो-इलेक्ट्रानिक्स द्वारा मौखिक, चित्रात्मक, मूलपाठ विषयक और संख्या संबंधी सूचना का अर्जन, संसाधन (प्रोसेसिंग) भंडारण और प्रसार है।

2. अमेरिका रिपोर्ट के अनुसार सूचना प्रौद्योगिकी को इन शब्दों मे परिभाषित किया गया है: -
सूचना प्रौद्योगिकी का अर्थ है, सूचना का एकत्रिकरण, भंडारण, प्रोसेसिंग, प्रसार और प्रयोग। यह केवल हार्डवेअर अथवा सॉफ़्टवेअर तक ही सीमित नहीं है। बल्की इस प्रौद्योगिकी के लिए मनुष्य की महता और उसके द्वारा निर्धारीत लक्ष्य को प्राप्त करना, इन विकल्पों के निर्माण में निहीत मुल्य, यह निर्णय लेने के लिए प्रयुक्त मानदंड है कि क्या मानव इस प्रौद्योगिकी को नियंत्रित कर रहा है। और इससे उसका ज्ञान संवर्धन रहा है।


3. युनेस्को के अनुसार सूचना प्रौद्योगिकी की परिभाषा: -
सूचना प्रौद्योगिकी, "वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीय और इंजीनियरिंग विषय है। और सूचना की प्रोसेसिंग, उनके अनुप्रयोग की प्रबंध तकनीकें है। कंप्यूटर और उनकी मानव तथा मशीन के साथ अंत:क्रिया एवं संबद्ध सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विषय।'

4. डॉ जगदिश्वर चतुर्वेदी ने सूचना प्रौद्योगिकी के सूचना तकनिकी शब्द को परिभाषित करते हुए लिखा है: -
सूचना तकनिकी (प्रौद्योगिकी) का किसी भी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाए वह वस्तुत: उपकरण तकनिक है। यह सुचनाओं को अमूर्त संसाधन के रूप में मथती है। यह 'हार्डवेअर और सॉफ़्टवेअर' दोनों पर आश्रित है। इसमें उन तत्वों का सवावेश भी है जो "हार्डवेअर और सॉफ़्टवेअर' से स्वतंत्र है।

5. सूचना प्रौद्योगिकी के अंतर्गत वे सब उपकरण एवं पद्धतियाँ सम्मिलित है, जो "सूचना' के संचालन में काम आते है।
यदि इसकी एक संक्षिप्त परिभाषा देनी हो, तो कहेंगे -
"सूचना प्रौद्योगिकी एक ऐसा अनुशासन है जिसमें सूचना का संचार अथवा आदान प्रदान त्वरित गति से दूरस्थ समाजों में, विभिन्न तरह के साधनों तथा संसाधनों के माध्यम से सफ़लता पुर्वक किया जाता है।'

6. सूचना प्रौद्योगिकी के संदर्भ में हम जब सूचना शब्द का प्रयोग करते है, तब यह एक तकनीकी पारीभाषीक शब्द होता है। वहाँ सूचना के संदर्भ मे "आँकडा (data) और "प्रज्ञा' "विवेक' "बुद्धिमत्ता' (intelligence) आदि शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। प्रौद्योगिकी ज्ञान कि एक ऐसी शाखा है, जिसका सरोकार यांत्रिकीय कला अथवा प्रयोजन परक विज्ञान अथवा इन दोनों के समन्वित रूप से है।

रविवार, 17 जनवरी 2010

आदिवासियों के लिए गुँजते रहेंगे - नगाड़े की तरह बजते शब्द

अभी हाल ही में संथाली भाषा को संविधान में प्रमुख भारतीय भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ है। भारतीय ज्ञानपीठ ने संथाली भाषा की सशक्त कवयित्रि निर्मला पुतुल का काव्य संग्रह ' नगाडे की तरह बजते शब्द' का प्रकाशन किया है। झारखंड के दुमका की निर्मला पुतुल संथाल आदिवासी की नई सुशिक्षित पीढी का प्रतिनिधित्व करती है।
उनकी कविताओं में आदिवासी समाज की पीडा, अत्याचार शोषण के खिलाफ बेचैन आवाज निकलती है।
इस संग्रह के अलावा उनका दिल्ली के रमणिका फाउंडेशन द्वारा 'अपने घर की तलाश में ' संग्रह प्रकाशित हुआ है।
निर्मला पुतुल की रचनाएँ भारत की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही है। साहित्य अकादमी नई दिल्ली ने उन्हें आदिवासी युवा कवियित्रि के रुप में पुरस्कृत किया है। यह पुरस्कार संथाली भाषा की सशक्त
रचनाकार होने के नाते उन्हें प्राप्त हुआ है। इनकी कविताओं का सशक्त हिंदी अनुवाद झारखंड के दुमका के हिंदी के सुपरिचित कवि श्री अशोक सिंह ने किया है।
हिंदी प्रदेश से संबंधित होने के कारण यह हिंदी साहित्य की नविन पहचान है। सुप्रसिध्द बांग्ला साहित्यकार महाश्वेता देवीजी ने उन्हें सम्मानित किया है।
हिमाचल प्रदेश के एक साहित्यिक संगोष्ठी में हिंदी समीक्षा के महापुरुष मा. श्री नामवर सिंह ने नवलेखकों कहां था कि निर्मला पुतुल की रचनाओं को पढो। आदिवासी होकर भी उनकी कविता में समाज के प्रति गंभीर चिंतन है।
हमारे समाज में दलित, हरिजन गांव के बाहर रहते है। उनकी पीडा दु:ख को उजागर किया जा रहा है।लेकिन गांव से दूर जंगल में रहनेवाले आदिवासियों की सुद लेने की जरुरत हमने कभी महसूस नहीं की ।
हमने अपने स्वार्थ के लिए पेड कटवाये, जंगल का घोर विनाश किया । मनुष्यता की अबोध निर्मल जीवन प्रणाली को नागर संस्कृति ने भ्रष्ट किया । उनकी कविताओं में निरीहता, भोलापन, निश्छलता, पवित्रता और निर्दोषता है।
' नगाडे़ की तरह बजते शब्द यह घोषित करता है कि जंगल में शहरी आदमी घुंस कर आया है। आदिवासियों में किसी घटना या सतर्कता के लिए विशिष्ट आवाज नगाडे से निकाली जाती है। इसी आवाज से संपर्क बनता है। आदिवासी सजग हो जाता है।
निर्मला कहती है -
' देखो अपनी बस्ती के सीमांत पर
जहाँ धराशायी हो रहे हैं पेड कुल्हाडियों के सामने असहाय
रोज नंगी होती बस्तियाँ ।
एक रोज माँगेगी तुमसे तुम्हारी खामोशी का जवाब।
सोचो- तुम्हारे पसीने से पुष्ट हुए दाने एक दिन लौटते है
तुम्हारा मुँह चिढाते हुए तुम्हारी ही बस्ती की दूकानों पर
कैसा लगता है तुम्हे ? जब तुम्हारी ही चीजें
तुम्हारी पहुँच से दूर होती दिखती है।
निर्मला का आरोप है कि वे लोग दबे पांव आते है आदिवासी संस्कृति में और उनके नृत्य की प्रशंसा करके हमारी हर कला को धरोहर बताते है। लेकिन वे सब सौदागर है जो जंगल की लकडी और आदिवासी कला संस्कृति नृत्य का कारोबार चलाते है।
किताबों से दूर रहकर जंगल पर निर्भर रहनेवाला आदिवासी आज रोजी रोटी के लिए बेहाल है। उनके बच्चे शहरों में, गाँव में दूकान पर मजदूरी करते है और उनकी लडकियाँ गाडी में लादकर कोलकोता, नेपाल, दिल्ली की बाजार में बिक्री के लिए खडी कर दी जाती है।
संताल परगाना में आदिवासी संस्कृति अब धीरे धीरे नष्ट होती जा रही है। अब आदिवासी के तीर-धनुष, मांदल, नगाडा , पंछी, बाँसुरी संग्राहलय में प्रदर्शन के लिए रखी जा रही है। अब उनके हजारों किस्से बच गए है जो आदिवासी संगोष्ठी में शहरी लोग बयान करते है।
कवयित्री निर्मला का विद्रोह अपनी कविता में लावा रस की तरह उबाल रहा है। आदिवासी का सवाल यह है कि हमारे बिस्तर पर हमारी बस्ती का बलात्कार करके हमारी जमीन पर खडे होकर
हमारी औकात पुछनेवाले आप शहरी, गांववाले कौन हैं ?
कवयित्री ने 'संताली लडकियों के बारे में कहा गया है ' इस कविता में आदिवासी नारी का सहज, अबोध सौंदर्य का मनोहारी रुप प्रकट किया है। आदिवासी नारी देह का वर्णन करनेवाले को वह कहती है
कि वह निश्यच ही हमारी जमात का खाया पीया आदमी होगा जो सच्चाई को एक धुंध में लपेटता निर्लज्ज सौदागर है।
कवयित्री अपने भोले आदिवासी समाज को सचेत करती है। अपनी जमीन, जंगल और संस्कृती को बचाये रखने का आवाहन करती है। ' चुडका सोरेन ' कविता में आदिवासी बंधु को पुछती है तुमको वे लोग प्रजातंत्र के दिवस पर दिल्ली के कार्यक्रम में प्रदर्शित करते है। लेकिन क्या आपको मालूम है प्रजातंत्र किस चिडिया का नाम हैं?
' जीवन रेखा' ट्रस्ट के माध्यम से संथाल आदिवासियों की समाज सेवा करते हुए कवियित्री का संपर्क अनेक आदिवासियों के जनजाति से हो रहा है। संथाल आदिवासी की इस सुशिक्षित कवयित्री ने समाज
शास्त्र का गंभीर अध्ययन किया है। आदिवासियों का आर्थिक एवं सामाजिक विकास करते समय उसने यह जाना है कि साहित्य की निर्मिति केवल स्वातं सुखाय नहीं है। अपने आदिवासी समाज पर चिंतन करते हुए उनकी कविताएँ मानवीय संवेदना, नारी पीडा और असवसरवादी मानसिकता पर प्रकाश डालती है।
संथाली भाषा की एक उमदा यूवा कवयित्री के पास हिंदी साहित्य की उंचाई छूने की ताकद है। उनकी कविताएँ सहज सरल और सीधे हदय को भिडनेवाली है। इन कविताओं में वर्तमान आदिवासी, समाज की संवेदना गंभीर चिंतन के साथ उभर कर आयी है। उनका भविष्य उज्जवल है।

अनाथ गरीबों के हितों के लिए कोई मशाल जलाओ

अहमदनगर शहर के सुपरिचित युवा कवि अनिल कुडिया 'नगरी' का 'मशाल उठाओ' यह प्रथम काव्य संग्रह अगस्त 2004 में प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह का प्रकाशन सुप्रसिध्द कवि उर्मिल ने किया है। दिल्ली के कल्पतरु प्रकाशन ने आकर्षक मुखपृष्ठ एवं सुंदर कलेवर के साथ इसे छापा है।
अहमदनगर शहर के रक्षा लेखा कार्यालय में बहुत दिनों से कार्यरत अनिल कुडिया जी अब पुणे स्थित कार्यालय में हिंदी अधिकारी पद पर कार्यरत है। प्रयोजन मूलक हिंदी और साहित्य में स्नातकोत्तर इस कवि ने बी.एड कोर्स भी पूरा किया है। कार्यालय में अनुवाद और प्रशासकिय हिंदी कार्य करते हुए अनिल कुडिया हिंदी कविता के साथ अनेक वर्षों से जुडे रहे। अहमदनगर में यदाकदा आयोजित हर किसी हिंदी कवि सम्मेलन में भाग लेते रहे है । नौकरी और साहित्य प्रेम के अलावा इन्होंने समाजसेवा के क्षेत्र में भी अपना नाम रोशन किया है। वेश्याओं और उनके बच्चों के पूनर्वास के लिए समर्पित समाजसेवी संस्था 'स्नेहालय' के संस्थापक सदस्य होने के नाते आपने निराधार बालक और शोषित नारी के उत्थान में मानवीय संवेदना के साथ प्रामाणिक कार्य किया है। अपने जीवन में भोगे हुए यथार्थ को कविता के माध्यम से प्रकट किया है। अनिल कुडिया की कविताएँ सोफे पर बैठकर कल्पना की प्रतिभा से नहीं बल्कि जीवन के दाहक अनुभवों से गुजर कर लिखी हुई है।
छोटे शहर से अनिल महानगरी पुणे और मुंबई के साहित्यिक गुट में शामिल हुए । प्रतिभावान और सच्चे अनुभवों के बोल अनेकों को भा गए । कवि उर्मिल ने इस प्रथम काव्य संग्रह प्रकाशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अनिल कुडिया को अभीष्ट पद प्राप्त होने का आशिर्वाद देते हुए कवि उर्मिल कहते है -
अहमदनगर शहर के यूवा कवि अनिल कुडिया 'नगरी' द्वारा लिखित 'मशाल उठाओ ' काव्य संग्रह की रचनाएँ मानवीय संवेदनाओ के साथ जुडी हुई है। आपकी कविता में सच्चाई है, धरती की खुशबू है और संवेदनाओं से भरी अनुभूति का आविर्भाव है। मान्यताओं को चुनौती देते हुए शोषण का प्रतिकार करनेवाले कवि अनिल ने अपनी सर्जन यात्रा में जाने-पहचाने संदर्भों के स्पर्श के साथ साथ चिंतन का आधार लेते हुए समीक्षकों के अनुत्तरित प्रश्नों का हल दिखाया है। एक ऐसा प्रस्थान दिखाया है कि आगे की लंबी यात्रा में बिछुडे हुए सभी को जुडने का मौका मिले।
इस संग्रह की भूमिका पुणे विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य एवं हिंदी विभाग अध्यक्ष डॉ. केशव प्रथमवीर जी ने लिखी है। उनके अनुसार दलित, पीडित, शोषित और उपेक्षित आम जनता को त्रस्त करनेवाले समाज के दरिंदों, धार्मिक ठेकेदारों, राजनेताओं तथा विभिन्न प्रकार से आर्थिक शोषण करनेवालो के रक्तरंजित दांतो को पहचान लेनेवाला यह कवि संघर्ष और जागृति की मशाल उठाकर कहता है-
रोज की चर्चाओं को विराम लगाओं
अपने बिलों से बाहर आओ
न्याय हथौडा हाथ में उठाओ
बिगडे सांडो को नकेल पहनाओं
जागो और जगाओ
मशाल उठाओ ।

आओ हम कविता संग्रह के अंदर झांक कर देखें ।
निराधार नाबालीग बच्चों को फूटपाथ पर बुट पॉलिश करते हुए या किसी होटल में टेबल साफ करते हुए बच्चों को देखकर कवि अपनी ' नाबालिग बुढे ' कविता में कहता है -
' जिंदगी के स्कूल में पढते है
जिंदा रहने के लिए जिंदगी से लडते हैं।
ये हालाती बुढे
एक पूरा परिवार चलाते है।
हर बाल दिवस पर इन बुढों को
बच्चा बनाने की कई योजनाएँ बनाई जाती है ।
जिनके लागु होने से पहले ही
नाबालिग बुढों की नई फौज पैदा हो जाती है।

कवि कहता है कि
' इस जालिम जिंदगी में
सिर की धूप और पेट की भूख ने
मेरे मन को दर दर भटकाया है।'
इस दर-दर भटकने की यात्रा में कवि ने दाहक संवेदनाहिन अनुभवों को झेला है। इस मानवीय विसंगतियों को चिंतन के सहारे शब्दों में ढाला है।
महापुरुषों के आदर्श हमारे सामने रखें जाते है। उनके आदर्श नि:संशय महान है। लेकिन नीजी प्रयासों के सिवाय कोई भी यात्रा निरर्थक हो जाती है। कवि विद्रोही बनकर अपनी आत्म शक्ति को ढुंढने की सलाह देता है।
संजीवनी कविता में वह कहता है -
कब तक कहां तक कोई
फूले गांधी अंबेडकर
हमें बैसाखियाँ थमाएंगें
और कंधे पर बैठकर
हम कैसे नदी पार कर पाएँगें।
हमारे देश की आबादी बाढ की तरह बढ रही है। अनेक योजनाएँ जनसंख्या की आबादी में बह जाती है। बिन बच्चे वाले अमीर परिवार के लिए विज्ञान ने टेस्ट टयूब बेबी का सफल अविष्कार किया है।
इस पर व्यंग्य कसते हुए कवि कहता है -
नारियों को प्रसव पीडा से बचाया है,
अब कोई दूसरों का पाप नहीं अपनाएंगा ।
हर बांझ के घर कांच का बच्चा आएगा
वाह रे विज्ञान तेरा दान
लाखों अनाथों के दु:ख से रहा तू अनजान !
इस कविता संग्रह में चार लाईनवाले चौके भी कवि ने लगाए है। जो एक सुविचार की तरह मार्गदर्शक है।
शहर की बनावटी जिंदगी को शब्दों में उजागर करते हुए कवि लिखता है -
' चेहरा संभालते है शहरी
संबंध संभालते है देहाती
अपनी अपनी जिम्मेदारियाँ है
शहर गांव में यही दूरियाँ हैं।
अनाथालय के बच्चों के प्रति कवि के मन में दया भाव है। जो बचपन भूख प्यास में गुजर जाता है उसकी जवानी क्या हो सकती है ?





इस प्रश्न का उत्तर खोजते हुए कवि कहता है -
कोई भी बच्चा अनाथालय में न पले
फूल अन्याय, अत्याचार, तिरस्कार
सहते हुए न खिलें
जिन बच्चों की माँ नहीं है।
उनके लिए हमें कुछ करना चाहिए !
धर्म के नाम पर हर कोई इंसानियत की हत्या करें और उसे धर्म के पालन करनेवाला मानकर धर्मप्रेमी माना जाए तो गुलशन उजाडने में कोई समय नहीं लगेगा । हमें इस धर्म की बंदूक को दूर करके भाईचारे की रोटी हमनिवाला लेकर इंसानियत को रोशन करना चाहिए।
बेतुका बवाल कविता में बेटी ने पुछे हुए बेतुके सवाल पर कवि अकल की बात कहता है -
बच्ची ने मुझसे पूछा -
सडकों पर सन्नाटा और अस्पताल में शोर क्यों है,
पापा सडकें तो कैजुअल लीव पर है बेटी
अस्पताल में रंगाई का काम चल रहा है।
हर सफेद चादर लाल की जा रही है।
ये होली के दीवानों की टोली
उसी की ओर जा रही है।
मत देख इन्हें वरना तुझे भी रंग देंगे।
आसुंओं से रंग नहीं धुलता है।
नन्हीं लाशें देखकर दिल बहुत जलता है
और बच्चों का तो मुआवजा भी
कम मिलता है।
कवि ने जीवन के दु:ख, वेदना को करीब से देखा है। घायल मन ही घायल की गति जानता है। खाली विद्रोह प्रकट करने से प्रश्नों के उत्तर मिलते नहीं । कुछ चिंतन और कुछ हल ढुंढ निकला जाए यही दृष्टी
लेकर कवि आगे बढ रहा है।

मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

राष्ट्रभाषा से राजभाषा की यात्रा में हिंदी

भारतीय संविधान सभा के तत्कालीन अध्यक्ष एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने लोकसभा में राज भाषा हिंदी पर हुई चर्चा के उपरांत दिनांक 14.9.1949 को सभा को संबोधित किया। राज भाषा हिंदी को स्वीकार करने पर उन्होंने हिंदीतर सदस्यों का विशेष आभार व्यक्त किया क्योंकि राष्ट्रीय एकता एवं स्वाभिमान के लिए किसी एक भारतीय भाषा को राज भाषा के रुप में स्वीकार करना आवश्यक था। इस भाषण में उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया है कि राज भाषा हिंदी को बहुमत से स्वीकार किया गया है। वर्तमान राजनीति में हिंदी को राष्ट्र भाषा न मानने की होड़ लगी है जो देश की एकता के लिए घातक है। हमें भारतीय भाषा भगिनी परिवार में एकता एवं समन्वय रखना चाहिए क्योंकि इस राष्ट्र की संस्कृति एक है। जिस तरह एक देश, एक ध्वज,एक राष्ट्र गीत एवं एक राष्ट्र भाषा की संकल्प ना को विश्व में स्वीकार किया जाता है उसी तरह हमारे देश में राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीकों का सम्मान करना चाहिए जो अनिवार्य भी और हितकारी भी होगा। भारतीय संविधान के कलम ३०१ के अनुसार हिंदी राज भाषा है जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। हिंदी के विकास के लिए जो विशेष निर्देश जारी किए गए है उसके अनुसार हिंदी भाषा किसी एक प्रांत की विशेष भाषा नहीं है बल्कि उसका स्वरूप संपूर्ण राष्ट्र के सभी भाषाओं के प्रचलित शब्दों के आधार पर किया जाना सुनिश्चित किया गया है। संस्कृत को मूल आधार बना दिया गया है और हिंदी में विश्व के सभी भाषाओं के शब्दों को स्वीकार करने में कोई परहेज नहीं है जब वे शब्द देश-विदेश में प्रचलित है।
इस पुस्तक के लेखक डॉ.विमलेश कांति वर्मा ने अपनी भूमिका में यह स्पष्ट कर दिया है कि १९४९ से १९५० तक के दस्तावेज़ के आधार पर लिखी है। भारत की स्वाधीनता के बाद से संविधान बनने और पारित होने तक के चार वर्षों में देश के महान नेताओं के बीच हिंदी को संवैधानिक मान्यता दिए जाने के संबंध में हुई बहस का विवरण इस पुस्तक में उपलब्ध है।

हिंदी भाषा के विवाद में तत्कालीन भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी उस भाषण को फिर एक बार सभी ने पढना चाहिए। संबंधित भाषण भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित राष्ट्र भाषा से राज भाषा तक पुस्तक से साभार प्रस्तुत है।

“ अब आज की कार्यवाही समाप्त होती है, किंतु सदन को स्थगित करने से पूर्व मैं बधाई के रुप में कुछ शब्द कहना चाहता हूँ । मेरे विचार में हमने अपने संविधान में एक अध्याय स्वीकार किया है जिसका देश के निर्माण पर बहुत प्रभाव पडेगा। हमारे इतिहास में अब तक कभी भी एक भाषा को शासन और प्रशासन की भाषा के रुप में मान्यता नहीं मिली थी। हमारा धार्मिक साहित्य और प्रकाशन संस्कृत में सन् निहित था। निस्संदेह उसका समस्त देश में
अध्ययन किया जाता था, किंतु वह भाषा भी कभी समूचे देश के प्रशासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होती थी। आज पहली ही बार ऐसा संविधान बना है जब कि हमने अपने संविधान में एक भाषा लिखी है जो संघ के प्रशासन की भाषा होगी और उस भाषा का विकास समय की परिस्थितियों के अनुसार ही करना होगा ।
मैं हिंदी का या किसी अन्य भाषा का विद्वान होने का दावा नहीं करता । मेरा यह भी दावा नहीं है कि किसी भाषा में मेरा कुछ अंश दान है, किंतु सामान्य व्यक्ति में हमारा उस भाषा का क्या रुप होगा जिसे हमने आज संघ के प्रशासन की भाषा स्वीकार की है। हिंदी में विगत में कई-कई बार परिवर्तन हुए हैं और आज उसकी कई शैलियाँ हैं, पहले हमारा बहुत-सा साहित्य ब्रजभाषा में लिखा गया था। अब हिंदी में खड़ी बोली का प्रचलन है। मेरे विचार में देश की अन्य भाषाओं के संपर्क से उसका और भी विकास होगा। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदी देश की अन्य भाषाओं से अच्छी-अच्छी बातें ग्रहण करेगी तो उससे उन्नति ही होगी, अवनति नहीं होगी।
हमने अब देश का राजनैतिक एकीकरण कर लिया है। अब हम एक दूसरा जोड़ लगा रहे हैं जिससे हम सब एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक हो जाएंगे। मुझे आशा है कि सब सदस्य संतोष की भावना लेकर घर जाएंगे और जो मतदान में हार भी गए हैं, वे भी इस पर बुरा नहीं मानेंगे तथा उस कार्य में सहायता देंगे जो संविधान के कारण संघ को भाषा के विषय में अब करना पड़ेगा ।
मैं दक्षिण भारत के विषय में एक शब्द कहना चाहता हूँ । 1917 में जब महात्मा गांधी चंपारण में थे और मुझे उनके साथ कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था तब उन्होंने दक्षिण में हिंदी प्रचार का कार्य आरंभ करने का विचार किया और उनके कहने पर स्वामी सत्य देव और गांधी जी के प्रिय पुत्र देव दास गांधी ने वहां जाकर यह कार्य आरंभ किया। बाद में 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में इस प्रचार कार्य को सम्मेलन का मुख्य कार्य
स्वीकार किया गया और वहां कार्य चलता रहा। मेरा सौभाग्य है कि मैं गत 32 वर्षो में इस कार्य से संबंध रहा हूँ, यद्यपि मैं इसे घनिष्ट संबंध का दावा नहीं कर सकता । मैं दक्षिण में एक सिरे से दूसरे सिरे को गया और मेरे हृदय में बहुत प्रसन्नता हुई कि दक्षिण के लोगों ने भाषा के संबंध में महात्मा गांधी के अनुरोध के अनुसार कैसा अच्छा कार्य किया है। मैं जानता हूँ कि उन्हें कितनी ही कठिनाइयों का सामना करना पडा किंतु उनमें इस मामले में जो जोश था वह बहुत सराहनीय था। मैंने कई बार पारितोषिक-वितरण भी किया है और सदस्यों को यह सुन कर मनोरंजन होगा कि मैंने एक ही समय पर दो पीढ़ियों को पारितोषिक दिए हैं, शायद तीन को ही दिए हों-अर्थात दादा, पिता और पुत्र हिंदी पढ कर, परीक्षा पास करके एक ही वर्ष पारितोषिकों तथा प्रमाण पत्रों के लिए आए थे। यह कार्य चलता रहा है और दक्षिण के लोगों ने इसे अपनाया है। आज मैं कह नहीं सकता कि वे इस हिंदी कार्य के लिए कितने लाख व्यय कर रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि इस भाषा को दक्षिण के बहुत से लोगों ने अखिल भारतीय भाषा मान लिया है और इसमें उन्होंने जिस जोश का प्रदर्शन किया है उसके लिए उत्तर भारतीयों को उन्हें बधाई देनी चाहिए, मान्यता देनी चाहिए और धन्यवाद देना चाहिए।
यदि आज उन्होंने किसी विशेष बात पर हठ किया है तो हमें याद रखना चाहिए कि आखिर यदि हिंदी को उन्हें स्वीकार करना है तो वे ही करेंगे, उनकी ओर से हम तो नहीं करेंगे, और आखिर यह क्या बात है जिस पर इतना वाद-विवाद हो गया है? मैं आश्चर्य कर रहा था कि हमें छोटे-से मामले पर इतनी बहस करने की, इतना समय बर्बाद करने की क्या आवश्यकता है? आखिर अंक हैं क्या ? दस ही तो हैं। इन दस में, मुझे याद पड़ता है कि तीन तो ऐसे हैं जो अंग्रेजी में और हिंदी में एक से हैं। 2,3 और 0 । मेरे खयाल में चार और हैं जो रुप में एक से हैं किंतु उनसे अलग-अलग कार्य निकलते हैं। उदाहरण के लिए हिंदी का 4 अंग्रेजी के 8 से बहुत मिलता-जुलता है, यद्यपि एक 4 के लिए आता है और दूसरा 8 के लिए । अंग्रेजी का 6 हिंदी के 7 से बहुत मिलता है, यद्यपि उन दोनों के भिन्न-भिन्न अर्थ है। हिंदी का 9 जिस रुप में अब लिखा जाता है, मराठी से लिया गया है और अंग्रेजी के 9 से बहुत मिलता है। अब केवल दो-तीन अंक बच गए जिनके दोनों प्रकार के अंकों में भिन्न-भिन्न रुप हैं और भिन्न-भिन्न अर्थ हैं। अत: यह मुद्रणालय की सुविधा या असुविधा का प्रश्न नहीं हैं जैसा कि कुछ सदस्यों ने कहा है। मेरे विचार में मुद्रणालय की दृष्टि से हिंदी और अंग्रेजी अंकों में कोई अंतर नहीं है।
किंतु हमें अपने मित्रों की भावनाओं का आदर करना है जो उसे चाहते हैं, और मैं अपने सब हिंदी मित्रों से कहूँगा कि वे इसे उस भावना से स्वीकार करें, इसलिए स्वीकार करें कि हम उनसे हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि स्वीकार करवाना चाहते हैं और मुझे प्रसन्नता है कि इस सदन ने अत्यधिक बहुमत से इस सुझाव को स्वीकार कर लिया है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आखिर यह बहुत बडी रियायत नहीं है। हम उनसे हिंदी स्वीकार करवाना चाहते थे और
उन्होंने स्वीकार कर लिया, और हम उनसे देवनागरी लिपि को स्वीकार करवाना चाहते थे, वह भी उन्होंने स्वीकार कर ली। वे हमसे भिन्न प्रकार के अंक स्वीकार करवाना चाहते थे, उन्हें स्वीकार करने में कठिनाई क्यो होनी चाहिए? इस पर मैं छोटा-सा दृष्टांत देता हूँ जो मनोरंजक होगा । हम चाहते हैं कि कुछ मित्र हमें निमंत्रण दें। वे निमंत्रण दे देते हैं। वे कहते हैं, आप आकर हमारे घर में ठहर सकते हैं, उसके लिए आपका स्वागत है। किंतु जब आप हमारे घर आएं तो कृपया अंग्रेजी चलन के जूते पहनिए, भारतीय चप्पल मत पहनिए जैसा कि आप अपने घर में पहनते हैं। उस निमंत्रण को केवल इसी आधार पर ठुकराना मेरे लिए बुध्दिमता नहीं होगी। मैं चप्पल को नहीं छोड़ना चाहता। मैं अंग्रेजी जूते पहन लूँगा और निमंत्रण को स्वीकार कर लूँगा और इसी सहिष्णुता की भावना से राष्ट्रीय समस्याएं हल हो सकती हैं।
हमारे संविधान में बहुत से विवाद उठ खड़े हुए हैं और बहुत से प्रश्न उठे हैं जिन पर गंभीर मतभेद थे किंतु हमने किसी न किसी प्रकार उनका निपटारा कर लिया। यह सबसे बडी खाई थी जिससे हम एक दूसरे से अलग हो सकते थे। हमें यह कल्पना करनी चाहिए कि यदि दक्षिण हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि को स्वीकार नहीं करता, तब क्या होता। स्विटज़रलैंड जैसे छोटे-से, नन्हे से देश में तीन भाषाएं हैं जो संविधान में मान्य हैं और सब कुछ काम उन तीनों भाषाओं में होता है। क्या हम समझते हैं कि हम केंद्रीय प्रशसकीय प्रयोजनों के लिए उन भाषाओं को रखने की सोचते जो भारत में प्रचलित हैं तो क्या हम सब प्रांतों के साथ रख सकते थे, सभी में एकता करा सकते थे? प्रत्येक पृष्ठ को शायद पंद्रह-बीस भाषाओं में मुद्रित करना पड़ता।
यह केवल व्यय का प्रश्न नहीं है। यह मानसिक दशा का भी प्रश्न है जिसका हमारे समस्त जीवन पर प्रभाव पड़ेगा । हम केंद्र में जिस भाषा का प्रयोग करेंगे, उससे हम एक दूसरे के निकटतम आते जाएंगे। आखिर अंग्रेजी से हम निकटतम आए हैं क्योंकि यह एक भाषा थी। अंग्रेजी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है, इससे अवश्यमेव हमारे संबंध घनिष्टतर होंगे, विशेषत: इसलिए कि हमारी परंपरा एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं। अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि इस देश में बहुत-सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते थे। हमने यथासंभव बुध्दिमानी का कार्य किया है। मुझे हर्ष है, मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी सन्तति इसके लिए हमारी सराहना करेगी ।“

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

अपनी भाषा का टुटने का दर्द

अपनी भाषा का टुटने का दर्द

रुस के कझाकिस्तान और उझबेकिस्तान के सरहद पर हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है। व्यापार व्यवसाय के कारण जैनियों,पंजाबियों एवं उत्तर भारतीयों ने यहां अपना घर बसाया। उनकी भाषाओं के संमिश्रण के कारण रुस में एक नई हिंदी भाषा ने जन्म लिया। इस अनोखे हिंदी पर हिंदी भाषा के विद्वान स्व.भोलानाथ तिवारी जी ने अनुसंधान किया। जिस अनुसंधान के फलस्वरुप उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय ने पी.एच.डी. प्रदान की।
वहां एक जगह पर घुमते हुए उन्होंने देखा कि एक जगह दो रुसी महिलाओं में झगड़ा हो रहा था। एक महिला ने गाली दी जिसपर दूसरी महिला तत्काल फुट कर रो पड़ी। उन्हें अत्यंत आश्चर्य हुआ कि तब उन्होंने अपने रुसी मित्र को पुछा कि वह कौनसी गाली थी जिसपर वह महिला रोने लगी। दो महिलाओं में जब कोई झगड़ा होता है तो भाषा में निखार आ जाता है। उनके मित्र ने कहां कि उस गाली का मतलब है कि “तुने सिखायी हुई भाषा तेरा बच्चा बड़ा होकर उसे भूल जाए ” । तिवारी जी के दिल को इस बात से झंझोड़ दिया क्योंकि वे भाषा विद्वान थे जिन्हें यह मालूम था कि अपनी मातृभाषा से टुटना याने अपने परिवार,समाज और देश से टुट जाना।
अपनी भाषा से टुट जाने का सिलसिला आज तक जारी है आगे भी जारी रहेगा। अब हमें यह सोचना होगा कि संपत्ति, विकास,नाम शोहरत के लिए दूसरी भाषा को हमारे घर परिवार में कितना पूजा जाना चाहिए। कहते है कि आई-टी में अँग्रेजी का ही बोलबाला है। क्या हमें कॉल सेंटर के जरिए विदेशी लोगों की जीवन भर गुलामगिरी ही करनी है या अपने लोगों के लिए भी कुछ करना चाहिए ? जिस परिवार ने हमें पाल पोस कर बड़ा किया उनकी भाषा के प्रति क्या हमारा कोई उत्तरदायित्व नहीं बनता है ?
आज राजनीति में राज ठाकरे अगर यह कहें कि महाराष्ट्र में मराठी का प्रयोग होना चाहिए तो उसमें बूरा क्या है ? लेकिन भाषा आग्रह के लिए हिंसा का सहारा लेना कदापि स्वीकार्य नहीं है। राज ठाकरे कहते है कि महाराष्ट्र में अन्य प्रांतियों का आक्रमण हो रहा है। जिसके कारण मराठी लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है। उनके पास मुंबई,पुणे के मॅकडोनल्ड के अधिकारी गए और कहने लगे कि हमारे दुकान की नेमप्लेट अँग्रेजी में है और उसके साथ मराठी को जोड़ना महंगा होगा तब राज ने पुछा कि नामपट्ट महंगा है या आपकी दुकान का माल महंगा है। माल की कीमत की रक्षा करने के लिए क्या आप मराठी का प्रयोग नहीं कर सकते ? कुछ राजनीति की बातों को छोड़ दे तो राज ठाकरे यह भी स्वीकार करते है कि उन्हें अन्य भाषाओं के प्रति कोई घृणा नहीं है। उनका आग्रह मराठी को बढावा देना है। वे कहते है कि पूर्व प्रधान मंत्री स्व.नरसिंह राव जी को अनेक भारतीय भाषाओं का ज्ञान था। अटल जी भी अनेक भाषोओं के ज्ञानी है। सोनिया जी को भी इतालवी के अलावा हिंदी भाषा का भी ज्ञान है।
विस्थापन के कारण अनेक भारतीय लोक दक्षिण अफ्रिका,वेस्ट इंडिज,मॉरिशस आदि देशों में गिरमिटिया बन गए। मतलब यह है कि अँग्रजों ने एग्रीमेंट पर बंधक मजदूर बना दिया। उन्होंने भी विदेशी धरती पर छोटा भारत बना दिया। महात्मा गांधी के प्रथम संग्राम की पृष्ठभूमि भी यही विस्थापित भारतीयों के परिवार की कहानी है जिसे डॉ.गिरिराज किशोर जी ने पहला गिरमिटिया में वर्णन किया है। जब गांधी भारत आए तब कॉंग्रेस की सभा को वे हिंदी में संबोधित करने लगे। उन्होंने लोकमान्य टिळक को अँग्रेजी के बजाय हिंदी में भाषण देने का अनुरोध किया।
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विजय प्रभाकर नगरकर
राजभाषा अधिकारी भारत संचार निगम लि. अहमदनगर महाराष्ट्र भारत. मोबाईल-०९४२२७२६४०० Email- vpnagarkar@gmail.com

मंगलवार, 2 जून 2009

लो अब सभी हिंदी कर्मी बन गए अफसर

केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण.नियंत्रण और अपील) नियमावली, 1965 के अंतर्गत पदों का वर्गीकरण आदेश सं. 11012य7य2008-स्था(क) दिनांक 17 अप्रैल,2009 द्वारा भारत सरकार, कार्मिक,लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय , कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग नई दिल्ली के आदेशानुसार अब सभी हिंदी कर्मी चाहे हिंदी अधिकारी हो या कनिष्ठ और वरीष्ठ हिंदी अनुवादक हो अब सभी अधिकारी बन गए है। हिंदी अधिकारी,सहायक निदेशक(राजभाषा) को ग्रुप ए तथा कनिष्ठ या वरिष्ठ हिंदी अनुवादकों का वर्गीकरण अब ग्रुप बी में किया गया है। इससे हिंदी पदों का उचित सम्मान किया गया है। हर विभाग में कार्यरत हिंदी कर्मियों को अब अधिकारी माना जाएगा। अपने विभाग द्वारा इस आदेश पर उचित कार्रवाई करने के लिए सबको सचेत रहना होगा। अब हिंदी पदों की भर्ती प्रक्रिया में गति आनी चाहिए।
No.1101217/2008-Estt. (A)
Government of India
Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions
(Department of Personnel and Training)
North Block,
New Delhi,

Dated the 1i
h
April, 2009
Under the Central Civil Services (Classification, Control and Appeal)
Rules, 1965, all Central Government posts are classified into four categories,
viz., Groups "A", "B", "C" and "0". This classification at present is based on the
norms prescribed by the Department of Personnel and Training vide S.O.
332(E) dated 20.04.1998 published in the Gazette of India Extraordinary.
2. As per clause (4) of the Central Civil Services (Revised Pay) Rules, 2008
notified vide notification No G.S.R. 622(E) dated 29.8.2008, the pay band and
grade payor the pay scales, as applicable, of every posUgrade specified in
column 2 of the First Schedule thereto shall be as specified against it in
columns 5 and 6 thereof. Consequent upon the notification of the said rules, it
has become necessary to prescribe revised norms for categorization of posts
into the abovementioned four categories based on the pay b~nd and grade pay
or the pay scales as applicable, as approved by the Government. Accordingly,
an Order classifying the various Central Civil Services posts into Group "A", "B",
"C" and "0" based on the revised norms of pay has been notified in the Gazette
of India Extraordinary vide S.O. 946 (E) dated 09.04.2009. A copy of the Order
is enclosed. All posts in the Central Civil Services would now stand classified
strictly in accordance with the norms of pay band and grade payor pay scales
as prescribed in the said Order.
4. In some Ministries/bepartments, posts may exist which are not classified
as per the norms laid down by this Department. If, for any specific reason
Ministry/Department proposes to classify the posts differently it would be necessary for that Department to send a specific proposal to
Department of Personnel and Training giving full justification in support of the
proposal within three months of this a.M. so that the exceptions to the norms
of classification laid down in S.O .946 (E) dated 09- 04 - 2009 can be notified.
J
~
( P.PRABHAKARAN )
Deputy Secretary to the Government of India
1. Comptroller and Auditor General of India, New Delhi
2. Lok Sabha Secretariat/Rajya Sabha Secretariat/Ministry of Parliamentary
Affairs.
3. Union Public Service Commission, New Delhi.
4. President's SecretariaWice-President's Secretariat/ Prime Minister'sOffice.
5. Election Commission of India, New Delhi.
6. Central Vigilance Commission, New Delhi.
7. Staff Selection Commission, New Delhi.
8. Central Bureau of Investigation, New Delhi.
9. Chief Secretaries of all State Governments/Union Territory
Administrations.
10. All Attached and Subordinate Offices of the Ministry of Personnel, Public
Grievances and Pensions.
11. All Officers and Sections in the Ministry of Personnel, PG and Pensions.
12. NIC (DOPT) with the request that this a.M. may be placed on the
Department's website

(www.persmin.nic.in).








































MINiSTRY OF PERSONNEL, PUBLIC GRIEVANCES AND PENSIONS
(Department of Personnel and Training)
- ORDER
New Delhi, the 9th April, 2009
8.0. 946(E).-In exercise of the powers conferred by the proviso to article 309 and clause 5 of article 148 of the Constitution read with rule 6 of the Central Civil Services (Classification, Controhmd Appeal) Rules, 1965 and in supersession of the notification of the Government ofIndia in the Department ofPersonp.el and Training number S.O. 332(E) d~d the 20th day of April, 1998, and after consultation with the Comptroller and Auditor General ofIndia in relation to persons serving in the Indian Audit and Accounts Department, except as respects things done or omitted to be done before such supersession, the President hereby directs thatwitheffect from the date of publication of this order in the Official Gazette, all civil posts under the Union, shall be classified as follows:- .
1. (a) A Central Civil post in Cabinet Secretary's scale (Rs. 90000- flXed),
Apex Scale (Rs.80000-flXed) and Higher Administrative Grade plus
scale (Rs. 75500-80000); and

(b) A Central Civil post carrying the following grade pays ;-
Rs. 12000, Rs. 10000, Rs. 8900 and Rs. 8700 in the scale of pay of
Rs. 37400-67000 in Pay Band-4, andRs, 7600, Rs. 6600andRs. 5400
in the scale afpay ofRs. 15600-39100 in Pay Band-J .
2. A Central Civil post carrying the following grade pays ;-
. Rs. 5400, Rs. 4800, Rs. 4600 and Rs. 4200 in the scale of pay of
Rs. 9300-34800 inPayBand-2.

3. A Central Civil post carrying the following grade pays ;-
Rs. 2800, Rs. 2400, Rs. 2000, Rs. 1900 and Rs. 1800 in the scale of
pay ofRs. 5200-20200 in Pay Band-I.

4. A Central Civil post carrying the fol\owing grade pays ;-) .
Rs. DOO,Rs. 1400, Rs. 1600, Rs. 1650 in the scale of pay of
Rs. 4440- 7440 in 1S Scale
GroupD
(till the posts
are upgraded)
Explanation: For the purpose of this order Pay Band, in relation to a post, means the running Pay Bands specified in Part-
A, Section 1 of column 5 of the First Schedule to the Central Civil Services (Revised Pay) Rules, 2008 .
[F.No. llOI2/7/2oo8-Estt. (A)]
C. B. PALIWAL, It Secy.

विजय प्रभाकर कांबले
राजभाषा अधिकारी भारत संचार निगम लि. अहमदनगर महाराष्ट्र भारत. मोबाईल-०९४२२७२६४०० Email- viprakamble@gmail.com
http://rajbhashamanas.blogspot.com htttp://groupus.goo

बुधवार, 20 मई 2009

केंद्र सरकार के कार्यालयों में न्यूनतम हिंदी पदों का सृजन

केंद्र सरकार के कार्यालयों,उपक्रमों,बैंकों आदि में न्यूनतम हिंदी पदों को सृजित करने के बारे में गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने विस्तृत आदेश ज्ञा॰ सं॰ 13035/3/95--रा॰भा॰ (नीति एवं समन्वय) दिनांक 22-07-2004 द्वारा जारी किए गए है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस आदेश का सही पालन सभी कार्यालयों में नहीं किया जाता है। मा. संसदीय राजभाषा निरीक्षण समिति ने आपत्ति उठाने के बावज़ूद भी न्यूनतम हिंदी पदों की नियुक्ति नहीं की जा रही है। इससे कार्यालय के राजभाषा कार्यान्वयन तथा अनुवाद कार्य में बाधा उत्पन्न हो जाती है। सरकारी कार्यालयों में हिंदी का प्रसार करने का प्रामाणिक प्रयास सभी स्तरों पर नहीं किया जाता है। जहां एक जगह रोजगार निर्माण की बात की जाती है वहां हिंदी पदों के सृजन एवं नियूक्ति के मामले में उदासीनता दिखायी देती है।
हिंदी पदों का सृजन करते समय अनुसचिवीय कर्मचारियों की गणना की जाती है। इसकी गणना करते समय हर कार्यालय में कोई निश्चित आदेश जारी नहीं किया जाता है । इस संदर्भ में राजभाषा विभाग के स्पष्ट आदेश है कि अनुसचिवीय कर्मचारियों शब्दों के अंतर्गत वे सभी कर्मचारी तथा अधिकारी शामिल हैं जिनके पद अनुसचिवीय कार्यों के लिए सृजित किए गए हैं चाहे वे तकनीकी या वैज्ञानिक कर्मचारी या अधिकारी हो। इसके अतिरिक्त यदि तकनीकी और वैज्ञानिक पद इस तरह से काम के लिए स्वीकृत हों परन्तु पदधारियों को अनुसचिवीय कार्य भी सौंपा गया हो तो आंतरिक कार्य अध्ययन एकक द्वारा इस तरह के कर्मचारियों के कार्य के स्वरूप की पड़ताल करने के बाद उन्हे हिंदी पदों के सजृन के लिए गिना जा सकता है।
हिंदी पदों के सृजन के बारे में राजभाषा विभाग के आदेश निम्नानुसार है।
क) मंत्रालयों/विभागों के लिए
1) प्रत्येक मंत्रालय तथा स्वतंत्र विभाग में जिसका पूर्णकालिक सचिव हो वहां एक सहायक निदेशक (राजभाषा)।
2) प्रत्येक ऐसे मंत्रालय या विभाग में जहां 100 या 100 से अधिक अनुसचिवीय कर्मचारी हो या जिसके अंतर्गत 4 या 4 से अधिक
संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालय या उपक्रम ऐसे जिसमें हर एक में 100 या 100 से अधिक अनुसचिवीय कर्मचारी हो वहां एक वरिष्ठ
हिंदी अधिकारी अर्थात उप-निदेशक (राजभाषा)। राजभाषा विभाग के निर्धारित नार्मस को ध्यान में रखते हुए यह पद सहायक निदेशक के पद के बदले या उसके अतिरिक्त हो सकता है।
मंत्रालय/विभाग में कार्य के स्वरूप और कार्य की मात्रा के आधार पर 12000-16500 रुपए के वेतनमान में संयुक्त निदेशक
(राजभाषा) (इसी वेतनमान में पहले निदेशक) का पद बनाया जा सकता है।
3) 50 से कम अनुसचिवीय कर्मचारियों पर एक कनिष्ठ अनुवादक 50से 50 अनुसचिवीय कर्मचारियों पर 2 कनिष्ठ अनुवादक
101 से 150 अनुसचिवीय कर्मचारियों पर 3 अनुवादक 151 या इससे अधिक अनुसचिवीय कर्मचारी होने पर 3 कनिष्ठ
अनुवादक तथा एक वरिष्ठ अनुवादक।

ख) संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालयों के लिए
1) 100 या 100 से अधिक अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले प्रत्येक संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालय में एक हिंदी अधिकारी या सहायक निदेशक (राजभाषा
2) (क) ‘क क्षेत्र में स्थित कार्यालयों के लिए (रक्षा सेनाओं और अर्ध सैनिक बलों कार्यालयों को छोड़कर)μ18 से 125
अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले कार्यालय में एक कनिष्ठ अनुवादक 126 से अधिक अनुसचिवीय कर्मचारियों के लिए दो -कनिष्ठ
अनुवादक।
(ख) ‘ख तथा ग क्षेत्र में स्थित कार्यालयों के लिए
18 से 75 तक अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले कार्यालय में एक कनिष्ठ अनुवादक। 76 से 125 अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले
कार्यालयों के लिए दो कनिष्ठ अनुवादक। 126 से 175 अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले कार्यालय के लिए तीन कनिष्ठ अनुवादक।
175 से अधिक अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले कार्यालय के लिए तीन कनिष्ठ अनुवादक तथा एक वरिष्ठ अनुवादक।

ग) रक्षा सेनाओं और अर्ध सैनिक बलों के ‘क क्षेत्र में स्थित कार्यालयों पर भी जो एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित होते रहते
है यही मानक लागू होंगे।
(घ) ‘ख व ‘ग क्षेत्र में स्थित केंद्रीय सरकार के ऐसे सभी कार्यालयों में जहां कम से कम 25 अनुसचिवीय कर्मचारी हों एक ¯हिंदी
टाइपिस्ट का पद दिया जाए। ‘क क्षेत्र में नए खोले जाने वाले कार्यालयों में भी यदि कम से कम 25 अनुसचिवीय कर्मचारी हों
तो एक हिंदी टाइपिस्ट पद दिया जाए। ‘क क्षेत्र में स्थित रक्षा सेनाओं और अर्धसैनिक बलों के कार्यालयों जो एक क्षेत्र से दूसरे
क्षेत्र में स्थानांतरित होते रहते है उनमें भी वही मानक लागू होंगे।
च) मंत्रालयों/विभागों और संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालयों में राजभाषा नीति के अनुपालन के लिए अन्य पदः-
(प) अनुवाद के अलावा अन्य कई प्रकार का कार्य ऐसा है जो राजभाषा नीति का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है, जैसे आदेशों का परिचालन करना, प्रगति रिपोर्ट बनाना ,हिंदी सलाहकार समिति, राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों की कार्यसूची व कार्यवृत्त तैयार करना कर्मचारियों को हिंदी सीखने के लिए नामित करना, कार्यशालाओं का आयोजन करना आदि। मंत्रालयों/विभागों
और संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालयों में इस कार्य के लिए निम्नलिखित पदों की अनुशंसा की जाती हैः-
(क) अवर श्रेणी लिपिक (हिंदी टाइपिस्ट) का एक पद यह पद पहले से अस्तित्व में है जैसाकि राजभाषा विभाग के दिनांक 05-04-89
के का॰ज्ञा॰ सं॰ 13035 -रा॰भा॰(ग) में उल्लिखित है।


ख) सहायक का एक पद उन मंत्रालयों/विभागों में तथा सहायक या उसके समकक्ष पद उन संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालयों में जहां
अनुसचिवीय कर्मचारियों की संख्या (ग्रुप ‘डी को छोड़कर) कम से कम 310 है।
ग) यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि जहां उक्त कार्यों के लिए सहायक या समकक्ष पद पहले से स्वीकृत है वहां अतिरिक्त पद अनुशंसित
न किया जाए।
च) ‘अनुसचिवीय कर्मचारियों से सभी कर्मचारियों से (श्रेणी ‘घ के कर्मचारियों को छोड़कर) है जिनके पद लिपिक वर्गीय कार्यों के लिए मंजूर किए गए है भले ही वे तकनीकी या वैज्ञानिक कर्मचारी या अधिकारी हों। इसके अतिरिक्त जिन तकनीकी और वैज्ञानिक कर्मचारियों/अधिकारियों को अनुसचिवीय कार्य (जैसे टिप्पण, प्रारूपण, पत्र लेखन, लेखाकरण आदि) सौंपा गया है उनको भी हिंदी पदों की गणना में शामिल किया जाए।
इन मार्गदर्शी सिद्धांतों में ¯हिंदी पदों की जो संख्या निर्धारित की गई है वह न्यूनतम है ताकि इनकी व्यवस्था, बिना कार्य अध्ययन के केवल
कार्यालय के कर्मचारियों की संख्या और कार्यालय किस क्षेत्र में स्थित है के आधार पर की जाए ताकि राजभाषा नीति के कार्यान्वयन पर प्रतिकूल असर
न पड़े। काम की मात्रा और स्वरूप को ध्यान में रखते हुए किसी भी कार्यालय में इससे अधिक पदों का यदि औचित्य हो तो उनका सृजन कार्य अध्ययन के आधार पर किया जा सकता है।
कार्य अध्ययन करते समय उसी कार्य को ही ध्यान में न लिया जाए जो इस समय किया जा रहा है बल्कि वे कार्य की सारी मदें हिसाब में ली जाएं जो राजभाषा अधिनियम, नियम, वार्षिक कार्यक्रम आदि की अपेक्षाओं के अनुसार हिंदी में या दोनों भाषाओं (¯हिंदी और अंग्रेजी) में किए जाने जरूरी है। कहना न होगा कि कार्य अध्ययन कार्यभार की मात्रा का ध्यानपूर्वक मूल्यांकन करके ही किया जाना चाहिए न कि तदर्थ आधार पर।
यह स्पष्ट किया जाता है कि जिन कार्यालयों में अनुवादक आदि के पद पूर्व के मानकों के आधार पर पहले से सृजित किए जा चुके है उन्हे इस आधार पर समाप्त नहीं किया जाएगा कि संशोधित मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार निर्धारित संख्या से वे अधिक है। तथापि, कोई भी अतिरिक्त मांग मंत्रालय/विभाग तथा उसके संबद्ध और अधीनस्थ कार्यालय में समग्र रूप से फालतू पाए जाने वाले पदों से समायोजित की जाएं।
केंद्रीय सरकार के प्रशिक्षण संस्थानों में ¯हिंदी के माध्यम से प्रशिक्षण देने के लिए प्रशिक्षण सामग्री का अनुवाद करने के लिए अनुवाद कार्य की मात्रा के आधार पर आवश्यक पदों का सृजन किया जाना चाहिए और इसके लिए न्यूनतम पदों का कोई मानदंड बनाने की आवश्यकता नहीं है।
यह कार्यालय ज्ञापन निदेशक कर्मचारी निरीक्षण एकक) वित्त मंत्रालय द्वारा उनकी दिनांक 26-12-2003 की अन्तर्विभागीय टिप्पणी
सं॰ 526 एस॰आई॰यू॰/2003 में दिए गए अनुमोदन से जारी किया जाता है।

इतने स्पष्ट आदेश होने के बावज़ूद अकेला हिंदी अधिकारी या अनुवादक हिंदी कार्य में कितना न्याय दे सकता है ।

विजय प्रभाकर कांबले
राजभाषा अधिकारी भारत संचार निगम लि. अहमदनगर महाराष्ट्र भारत. मोबाईल-०९४२२७२६४०० Email- viprakamble@gmail.com
http://rajbhashamanas.blogspot.com htttp://groupus.goo

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

प्रगति - हिंदी ब्राउजर

सी-डैक बेंगलुरु ने भारतीय भाषाओं के लिए भारतीय ओपन ऑफिस जारी किया है। इस योजना के अंतर्गत इंटेलीबँश.टचफॉक्स,प्रगति,इंडिक फॉक्स,हिंदी थेसारस,पाथ फाईन्डर तथा WiRWiB का विकास किया जा रहा है। क्या आप ऐसे ब्राउजर के साथ काम करना चाहते है जिसमें संपूर्ण हिंदी सहायता उपलब्ध है ? फिर आपको प्रगति हिंदी ब्राउजर अजमाना चाहिए। प्रगति मेँ इनबिल्ट अँग्रेजी – हिंदी शब्दकोश उपलब्ध है । जिसकी सहायता से आप किसी भी अँग्रेजी वेब पेज के किसी भी शब्द पर क्लिक करते ही आपको ऑनलाईन अँग्रेजी शब्द के लिए हिंदी अर्थ दिखाई देगा ।

प्रगति बनाने वालोँ का दावा है कि वह विश्व का प्रथम फायरफॉक्स ब्राउजर है जिसमेँ ऑंनलाईन अँग्रेजी – हिंदी सहायता मौजुद है ।
इस प्रगति ब्राउजर की महत्वपूर्ण विशेषताऍ - 1. सँपूर्ण स्थानीय हिंदी इँटरफेस सुविधा
2. अँग्रेजी – हिंदी शब्दकोश की सहायता से ऑनलाईन क्लिक करते ही किसी अँग्रेजी शब्द का हिंदी अर्थ प्रस्तुत होगा ।
3. बिल्टइन शब्दकोश डिक्शनरी से खोज ।
4. अँबटु के लिए इँडिक भाषाओँ को सक्षम करना आसान

टचस्क्रीन की विशेषताऍ उपलब्ध जैसे –
• स्पर्श करके प्रयोग करना है ।
• फूलस्क्रीन व नॉर्मल कोड के बीच उडान
• वेब पेज के पर्याप्त प्रयोग हेतु PIE- मेनु का उपयोग
• ऑंनस्क्रीन हिंदी – अँग्रेजी की बोर्ड की सुविधा जिससे आप फॉर्म डाटा भर सकते है ।

प्रगति ब्राउजर मोजिला पब्लिक लायसेँस के अँतर्गत जारी किया गया है । आप प्रगति विँडोज , उबंटु – पाँगो , XFT एनेबल , फेडोरा के लिए डाउनलोड कर सकते है ।



Download Pragati for
• Windows http://www.ncb.ernet.in/bharateeyaoo/downloads/pragati/PragatiSetup.exe
• Ubuntu - Pango-XFT Enabled http://www.ncb.ernet.in/bharateeyaoo/downloads/pragati/pragati_ubuntu.tar.gz
• Fedora http://www.ncb.ernet.in/bharateeyaoo/downloads/pragati/pragati_fedora.tar.gz

इसे ममता अच्युतन तथा वैभव अग्रवाल ने विकसित किया है ।





विजय प्रभाकर नगरकर
राजभाषा अधिकारी भारत संचार निगम लि. अहमदनगर महाराष्ट्र भारत. मोबाईल-०९४२२७२६४०० Email- viprakamble@gmail.com
http://rajbhashamanas.blogspot.com htttp://groupus.goo

शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

ई-महाशब्दकोश


राजभाषा विभाग,गृह मंत्रालय,भारत सरकार ने सी-डैक पुणे के तकनीकी सहयोग से ई-महाशब्दकोश का निर्माण किया है। इस योजना के अंतर्गत शुरुआती दौर में प्रशासनिक शब्द संग्रह को देवनागरी यूनिकोड में प्रस्तुत किया गया है। इसमें आप अँग्रेजी का हिंदी पर्याय तथा हिंदी शब्दों का वाक्य में अतिरिक्त प्रयोग देख सकते है। इसकी विशेषता यह भी है कि आप हिंदी शब्दों का उच्चारण भी सुन सकते है। यह एक बहुउपयोगी शब्दकोश है। इसमें आप अन्य शब्द जोड सकते है। इसे अधिक उन्नत करने में आपका सहयोग अपेक्षित है।
इस ई-महाशब्दकोश की मुख्य विशेषताएँ - देवनागरी लिपि के लिए यूनीकोड फॉन्ट ,खोजे गये शब्द का उच्चारण,स्पष्ट लेआउट / जी. यू. आई. प्रयोग में आसान ,तीन अक्षरों पर शब्द सूची,पूर्ण शब्द खोज,द्विआयामी खोज,शब्दों की सूची में से खोजने की सुविधा ,सही मौखिक उच्चारण और संबंधित जानकारी,अर्थ एवं संबंधित जानकारी,शब्द / प्रदबंध का प्रयोग,शब्द / प्रदबंध का सचित्र चित्रण (जहॉं उचित हो) है।
श्रीमती पी.वी. वल्‍सला जी. कुट्टी ,संयुक्‍त सचिव, भारत सरकार ,राजभाषा विभाग,गृह मंत्रालय के अनुसार काफी समय से केन्‍द्र सरकार के कर्मचारियों के कार्य में हिंदी प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु प्रयास किए गए हैं । अनुभव बताता है कि केन्‍द्र सरकार के कार्यालयों और संगठनों में बड़ी संख्‍या में कर्मचारी अपने क्रियाकलापों में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करने के इच्‍छुक हैं परंतु पर्याप्‍त तकनीकी सुविधाओं के अभाव में हिंदी भाषा का प्रयोग प्रभावशाली ढंग से नहीं कर पाते हैं । सरकार द्वारा हिंदी में सहजता से कार्य करने के लिए प्रभावी साधनों को मुहैया कराने पर विचार किया गया है । हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु इलैक्‍ट्रॉनिक मीडिया के माध्‍यम से आधुनिक तकनीक के समावेश के विचार ने उन लोगों की समस्‍या के समाधान के रूप में जन्‍म लिया जो हिंदी में कार्य करने के इच्‍छुक हैं परंतु पर्याप्‍त सुविधा के अभाव में ऐसा करने से झिझक रहे हैं । सरकारी कार्यालयों में सरल व प्रभावी तरीके से हिंदी में कार्य करने के लिए उपयुक्‍त सॉफ्टवेयरों के विकास हेतु राजभाषा विभाग ने सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की कंप्‍यूटिंग कंपनी, नामत:, सी-डैक, पुणे के साथ एक समझौता किया है । पिछले कुछ वर्षों में विकसित सॉफ्टवेयरों में हिंदी भाषा का स्‍वयं शिक्षण (लीला-श्रृंखला), मंत्रा श्रृंखला द्वारा चुने गए कार्यक्षेत्रों में अंग्रेजी से हिंदी तुरंत अनुवाद, हिंदी डिक्‍टेशन के लिए श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर, अंग्रेजी स्‍पीच की पहचान कर उसे हिंदी में अनुवाद के लिए वाचांतर सॉफ्टवेयर शामिल है । सॉफ्टवेयरों के विकास की इस श्रृंखला में नवीनतम विकास राजभाषा विभाग द्वारा सी-डैक के माध्‍यम से ई-महाशब्दकोश का विकास है, जो कि एक द्विभाषी-द्विआयामी उच्‍चारण शब्दकोश है । प्रौद्योगिकी को हिंदी के प्रयोग से जोड़कर राजभाषा के प्रयोग को बढ़ाने के इरादे से हिंदी प्रेमियों के लिए ई-महाशब्दकोश को प्रस्‍तुत करना मेरे लिए हर्ष और गर्व की बात है । ई-महाशब्दकोश के वर्तमान शुरूआती संस्‍करण में प्रशासनिक कार्यक्षेत्र में प्रयुक्‍त होने वाले शब्‍दों को शामिल किया गया है । मुझे विश्‍वास है कि ई-महाशब्दकोश प्रयोगकर्ताओं में बहुत लोकप्रिय होगा क्‍योंकि यह केन्‍द्र सरकार के कार्यालयों में हिंदी में सामान्‍य कार्य करने में आने वाली अनेक बाधाओं को दूर करने में सहायक होगा । वास्‍तव में यह केवल सीमित अर्थों में एक शब्दकोश ही नहीं वरन् इससे आगे अपनी पहुंच को ले जाते हुए यह शुद्ध उच्‍चारण, विशेष प्रयोगकर्ताओं के लिए विशिष्‍ट अर्थ देना, शब्‍दों और मुहावरों को प्रयोग करने का विवरण आदि सुविधाओं को देने में सहायक है । यह कहने की आवश्‍यकता नहीं है कि यह शब्दकोश मुहावरों को प्रयोग करने में आने वाली दिक्‍कतों को दूर करने तथा उनको ठीक से दिखाने में प्रयोगकर्ता के लिए लाभकारी होगा । ई-महाशब्दकोश उनके लिए बहुत उपयोगी होगा जो वास्‍तव में हिंदी में काम करना चाहते हैं । सी-डैक, पुणे के सहयोग से राजभाषा विभाग द्वारा विकसित कराए गए सॉफ्टवेयरों में यह एक उल्‍लेखनीय उत्‍पाद होगा । ई-महाशब्दकोश की सूची में आगे सुधार के लिए यह आवश्‍यक होगा कि अधिक से अधिक लोग इसका प्रयोग करके अपना अमूल्‍य फीड-बैक राजभाषा विभाग या सी-डैक को भेजें ताकि ई-महाशब्दकोश की सक्षमता और दक्षता को अति उच्‍च स्‍तर तक ले जाया जा सके ।
राजभाषा विभाग के कार्यविधि की अधिक जानकारी के लिए, कृपया इन वैबसाईट पर संपर्क करे. http://rajbhasha.gov.in.
अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें-
• राजभाषा विभाग (डी.ओ.एल),तकनीकी कक्ष, गृह मंत्रालय
दूसरा माला, लोक नायक भवन,खान मार्केट, नई दिल्ली - 110 003
टेली : (o11) 2461 7695 / 2461 9860
फैक्स : (011) 2461 1031 / 2461 7809
ई-मेल : techcell-ol@nic.in
वेबसाईट : http://rajbhasha.nic.in

• प्रगत संगणन विकास केन्द्र (सी-डैक), एप्लाइड आर्टिफिशियल इंटैलीजेंस ग्रुप,
6वी मंजिल, एन.एस.जी. आय.टी. पार्क,स. नं. - 127/2B/2A, औंध, पुणे - 411 007,महाराष्ट्र (भारत)
टेली : (020) 25503314/15 फैक्स : (020) 25503334
ई-मेल: darbari@cdac.in वेबसाईट : http://cdac.in

पीठापुरम यात्रा

 आंध्र प्रदेश के पीठापुरम यात्रा के दौरान कुछ धार्मिक स्थलों का सहपरिवार भ्रमण किया। पीठापुरम श्रीपाद वल्लभ पादुका मंदिर परिसर में महाराष्ट्...