मराठी कविता "आई"
माँ एक नाम है
अपने आप भरा पूरा
घर में जैसे एक गाँव है,
सभी में मौजूद रहती है
अब इस दुनिया से दूर है
लेकिन कोई मानता नहीं।
मेला खत्म हुआ, दुकानें उठ गई
परदेस में क्यों आंखे नम हुई,
माँ हर दिल में कुछ यादें छोड़ जाती है
हर दिल जानता है माँ का दिल,
घर में जब दीप जले
कोई नहीं देखता उसे
अंधरे में जब वह बुझ जाती है
तब समूचे मैदान में दिशाहीन
मन उसके लिए दौड़ता है,
कितनी फसलें , कितने फासले
मिट्टी की प्यास कब बुझ पाई है।
कितना खोदा है माटी को बार बार
नजर आता है कुआं
मन के गहरे पाताल में,
इससे क्या अलग है माँ?
घर जब वह मौजूद नहीं
किसके लिए गोशाला में गाय व्याकुल है
माँ का नाम क्या है
बच्चों की माँ है
बछड़ों की गाय है
दूध का माखन है
लंगड़े का पैर है
धरती का आधार है
माँ है जन्म जन्मांतर की रोटी है
ना कभी खत्म होती है
ना कभी बचती है
मूल मराठी कविता-आई
कवि-फ मु शिंदे
हिंदी अनुवाद-विजय नगरकर
माँ एक नाम है
अपने आप भरा पूरा
घर में जैसे एक गाँव है,
सभी में मौजूद रहती है
अब इस दुनिया से दूर है
लेकिन कोई मानता नहीं।
मेला खत्म हुआ, दुकानें उठ गई
परदेस में क्यों आंखे नम हुई,
माँ हर दिल में कुछ यादें छोड़ जाती है
हर दिल जानता है माँ का दिल,
घर में जब दीप जले
कोई नहीं देखता उसे
अंधरे में जब वह बुझ जाती है
तब समूचे मैदान में दिशाहीन
मन उसके लिए दौड़ता है,
कितनी फसलें , कितने फासले
मिट्टी की प्यास कब बुझ पाई है।
कितना खोदा है माटी को बार बार
नजर आता है कुआं
मन के गहरे पाताल में,
इससे क्या अलग है माँ?
घर जब वह मौजूद नहीं
किसके लिए गोशाला में गाय व्याकुल है
माँ का नाम क्या है
बच्चों की माँ है
बछड़ों की गाय है
दूध का माखन है
लंगड़े का पैर है
धरती का आधार है
माँ है जन्म जन्मांतर की रोटी है
ना कभी खत्म होती है
ना कभी बचती है
मूल मराठी कविता-आई
कवि-फ मु शिंदे
हिंदी अनुवाद-विजय नगरकर