राजभाषामानस Rajbhashamanas
राजभाषा हिंदी से जुडे कर्मियों का मानस। हिंदी प्रेमियों के लिए उपयुक्त जानकारी एवं संपर्क सूत्र।
शुक्रवार, 7 अगस्त 2020
मी तुला अर्पण करून जाईल
बुधवार, 10 जून 2020
''जन्म से पहले एक प्रार्थना''
सोमवार, 20 अप्रैल 2020
बलराज साहनी का हिंदी प्रेम
मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020
संसदीय राजभाषा निरीक्षण समिति -ध्यान देने योग्य बातें
गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019
पसायदान
*पसायदान*
विश्वरचयिता ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ
मेरे वाक यज्ञ से संतुष्ट होकर
मुझे अनुग्रहित करके प्रसाद प्रदान करें। (1)
दुष्टों की दुर्भावना का अंत हो,
सत्कर्म के प्रति दुष्टों की आस्था बढ़े
विश्व में मित्र भाव प्रवाहित होकर
सभी जीवों में मित्रता बढ़े । (2)
पापी के मन का अज्ञान रुपी अंधकार दूर हो
विश्व में स्वधर्म रुपी उषा काल हो
सभी जीवों की मंगल मनोकामनाएँ पूर्ण हो (3)
सर्वत्र मंगल वृष्टि से
सकल विश्व को पुलकित करनेवाले
ईश्वरनिष्ठ संत
सभी जीवों पर कृपा करें (4)
वे सभी सुसंवादी संत कल्पतरु समान
उद्यान हैं
चेतनारूपी चिंतामणी रत्नों के पुर हैं
अमृत स्वर की गर्जना करनेवाले समुद्र हैं (5)
बेदाग पूर्णिमा के चंद्र और
ताप रहित सूर्य के समान संत सज्जन
सभी जीवों के मित्र हो जाएं (6)
त्रिलोकों में सर्व सुख सम्पन्न पूर्ण होकर
विश्व के आदि पुरुष की सेवा करें (7)
यह ग्रंथ जिनका जीवन है
वे इस विश्व के दृश्य और अदृश्य
भोग पर विजय प्राप्त करें (8)
इति विश्वेश्वर गुरु श्री निवृत्तिनाथ
आशीर्वाद देकर बोले
यह प्रसाद तुझे प्राप्त हो
यह वर पाकर ज्ञानदेव सुखी हो गया (9)
ज्योतिबा
ज्योतिबा
धन्यवाद।
आप उसे
दहलीज के
बाहर ले आये,
क ख ग घ
त थ द ध
पढ़ाया
और
कितना बदलाव आया है ,
अब उसे
दस्तख़त के लिए
बायी अंगुली पर
स्याही लगानी नहीं पड़ती ,
अब वह स्वयं
लिख सकती है .........
मिटटी का तेल स्वयं पर
छिड़कने से पहले
( उसके पीछे रहनेवाले बच्चों को ध्यान में रखकर)
" मैं अपनी मर्जी से
जल कर ख़ाक हो रही हूँ "
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(मराठी कवि - अशोक नायगांवकर )
हिंदी अनुवाद- विजय नगरकर
अब इस गांधी का क्या करें ?
जलाने पर भी दहन नहीं हो रहा
खत्म करने पर भी खत्म नहीं हो रहा ,
हत्या करके भी मर नहीं रहा
इस गांधी का अब क्या करें?
मूर्ति तोड़ने पर भी
अभंग है
बदनामी के सैलाब में भी
अचल है
बदनामी के चक्रवात में . जनमानस में अमर है,
चरित्र के साथ खूब खिलवाड़ किया विचारों से भटका दिया,
केसरिया रंग में पोत दिया
थक गया हूँ इस 70 सालों से
अब हम करें तो क्या करें ? अब इस गांधी का क्या करें?
कितनी बार पेड़ काटें?
जड़े फिर भी जमीन के अंदर
फैल रही है हर दिशा में
खत्म हुआ
कहते कहते
चर्चा के चक्रवात में
घूम रहे है,
उसके विचार बार बार
बापू, तेरा नाम पोछने पर भी
उजागर हो रहा है।
हम अब इस 70 सालों में
जमीन के अंदर
धंस गए है
पिछले 70 सालों से
एक ही सवाल
इस गांधी का अब क्या करें ? ***************************.
मूल मराठी कविता - हेरंब कुलकर्णी (8208589195 )
(हिंदी अनुवाद- विजय प्रभाकर नगरकर)
आई
माँ एक नाम है
अपने आप भरा पूरा
घर में जैसे एक गाँव है,
सभी में मौजूद रहती है
अब इस दुनिया से दूर है
लेकिन कोई मानता नहीं।
मेला खत्म हुआ, दुकानें उठ गई
परदेस में क्यों आंखे नम हुई,
माँ हर दिल में कुछ यादें छोड़ जाती है
हर दिल जानता है माँ का दिल,
घर में जब दीप जले
कोई नहीं देखता उसे
अंधरे में जब वह बुझ जाती है
तब समूचे मैदान में दिशाहीन
मन उसके लिए दौड़ता है,
कितनी फसलें , कितने फासले
मिट्टी की प्यास कब बुझ पाई है।
कितना खोदा है माटी को बार बार
नजर आता है कुआं
मन के गहरे पाताल में,
इससे क्या अलग है माँ?
घर जब वह मौजूद नहीं
किसके लिए गोशाला में गाय व्याकुल है
माँ का नाम क्या है
बच्चों की माँ है
बछड़ों की गाय है
दूध का माखन है
लंगड़े का पैर है
धरती का आधार है
माँ है जन्म जन्मांतर की रोटी है
ना कभी खत्म होती है
ना कभी बचती है
मूल मराठी कविता-आई
कवि-फ मु शिंदे
हिंदी अनुवाद-विजय नगरकर
"अपूर्ण कविता"
स्कूल छूटने की बेल की आवाज
हवा में गूँज ही रही थी तब
मैं मशीन की गति से
घर पहुंचा था,
पीठ पर लटका बस्ता फेंक
घोड़े जैसा दौड़ कर
पहुँच जाता था खेल के मैदान में
मस्तमौला बैल सा
धूल मिट्टी में नहाकर
इतराता था अपने मर्द होनेपर
वो भी आती थी स्कूल से
घर के चार मटकियां पानी से भर
घर आंगन बुहारकर
देवघर में ज्योत जगाकर
वह बनाती थी रोटी
मां जैसी गोल गोल
और राह निहारती देहरी पर
माँ के लौटने तक जंगल से,
वह चित्र निकालती थी
और रंगोली सजाती
घर के आंगन में
मीरा के भजन और
पुस्तक की कविताएं
गाती थी मीठे स्वर में
बर्तन मांजना, कूड़ा कचरा बीनना
आँगन बुहारना,
और न जाने कितने काम
वह करती रही
मैं हाथ पांव पसारकर
सो जाता था
वह किताबे लेकर बैठती थी
दीपक की रोशनी में देर तक
एक ही कक्षा में थे हम
गुरुजी कान मरोड़कर
या कभी शब्दों की फटकार से
मुझे उपदेश देते
" तेरी बड़ी बहन जैसा बनेगा तो
जीवन सुधर जाएगा तेरा "
मैं दीदी की शिकायत करता था माँ के पास
मैट्रिक का पहाड़
पार किया मैंने फूलती साँस लेकर
उसने अच्छे अंक हासिल किए थे
बापू ने कहा
मैं दोनों का खर्चा नहीं उठा पाऊंगा
आंख का पानी छुपाकर
उसने कहा था
भैया को आगे पढ़ने दीजिए
उसके बाद जन्मे भाई के
रास्ते से चुपचाप हटकर
वह बनाती गई उपले
माँ के साथ खेती का काम करती
काँटे झाड़ी हटाती गई
नारी बनकर अंदर ही अंदर
टूटती गई,
उसके भाग्य का कौर चुराकर
मैं आगे बढ़ता गया
किताबों की राह पर,
मैं बात जान गया
दिल में टिस रह गयी
उसने आंख का पानी
क्यों छुपाया था,
उसको ब्याह कर
बापू आज़ाद हुए
माँ की जिम्मेदारी खत्म हुई
अभी तक मेरा मन
अपराधी है अव्यक्त बोझ तले,
भैयादूज, रक्षा बंधन के दिन
दीदी मायके आती रही
सहर्ष सगर्व
छोटे भाईके वैभव देख कर
हर्ष विभोर होती रही
बुरी नजर उतारती रही
भारी आंखों से आरती उतारती रही
ससुराल लौटते हुए
छोटे भाई को देती रही अशेष आशीष,
उसके जाने के बाद
मेरा मन जलता रहा दीपक समान
जिसकी रोशनी में
वह पढ़ती थी किताबें
और कविताएँ
उसकी कविता
मेरे लिए
रही अपूर्ण।
■■
हिंदी अनुवाद- विजय नगरकर।
मूल मराठी कविता - पुनीत मातकर | गडचिरोली | 7039921832
बुधवार, 12 जून 2019
पसायदान
संत ज्ञानेश्रर जी ने ज्ञानेश्वरी ग्रंथ अर्थात "सटीक भावार्थ दीपिका" पूर्ण करने के उपरांत ईश्वर को जो प्रार्थना लिखी थी,उसे 'पसायदान' से मराठी विश्व में ख्याति प्राप्त हुई है। अत्यंत कष्टदायी जीवन बिताने पर गीता ग्रंथ पर सटीक विवरण प्राकृत मराठी में लिखा। संन्यासी के पुत्र के नाम से जाति से बहिष्कृत किया गया। सनातन धर्म की ज्योत प्रज्वलित करके आम लोगों में ज्ञान गंगा प्रवाहित की। तत्कालीन आसान प्राकृत भाषा में गीता का ज्ञान प्रवाहित किया जो वर्षों से संस्कृत भाषा की मर्यादा में बंधा हुआ था।संत ज्ञानेश्वर संतों में क्रांतिकारक संत थे जिहोंने दीन दुखी आम लोगों के लिए धार्मिक कार्य किया। मराठी के प्रथम आद्य कवि, अनुवादक, समीक्षक, मार्गदर्शक संत ज्ञानेश्वर के चरणों पर पसायदान का हिंदी अनुवाद सविनय सादर प्रस्तुत है। मेरी अल्प बुद्धि से यह अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ।इस अनुवाद की समीक्षा,सुधार हेतु हिंदी लेखिका कवियत्री डॉडॉ. अन्नपूर्णा सिंह जी हार्दिक धन्यवाद।
*पसायदान*
विश्वरचयिता ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ
मेरे वाक यज्ञ से संतुष्ट होकर
मुझे अनुग्रहित करके प्रसाद प्रदान करें। (1)
दुष्टों की दुर्भावना का अंत हो,
सत्कर्म के प्रति दुष्टों की आस्था बढ़े
विश्व में मित्र भाव प्रवाहित होकर
सभी जीवों में मित्रता बढ़े । (2)
पापी के मन का अज्ञान रुपी अंधकार दूर हो
विश्व में स्वधर्म रुपी उषा काल हो
सभी जीवों की मंगल मनोकामनाएँ पूर्ण हो (3)
सर्वत्र मंगल वृष्टि से
सकल विश्व को पुलकित करनेवाले
ईश्वरनिष्ठ संत
सभी जीवों पर कृपा करें (4)
वे सभी सुसंवादी संत कल्पतरु समान
उद्यान हैं
चेतनारूपी चिंतामणी रत्नों के पुर हैं
अमृत स्वर की गर्जना करनेवाले समुद्र हैं (5)
बेदाग पूर्णिमा के चंद्र और
ताप रहित सूर्य के समान संत सज्जन
सभी जीवों के मित्र हो जाएं (6)
त्रिलोकों में सर्व सुख सम्पन्न पूर्ण होकर
विश्व के आदि पुरुष की सेवा करें (7)
यह ग्रंथ जिनका जीवन है
वे इस विश्व के दृश्य और अदृश्य
भोग पर विजय प्राप्त करें (8)
इति विश्वेश्वर गुरु श्री निवृत्तिनाथ
आशीर्वाद देकर बोले
यह प्रसाद तुझे प्राप्त हो
यह वर पाकर ज्ञानदेव सुखी हो गया (9)
बुधवार, 17 अप्रैल 2019
अमेरिकन प्रोजेक्ट में हिंदी
The Gateway to Educational Material (GEM) यह अमेरिकन सरकार का प्रोजेक्ट है जो सिराकस यूनिवर्सिटी को दिया गया था।तब कंप्यूटर और इंटरनेट पर हिंदी भाषा ने नया कदम रखा था।
मुझे यह देखकर अत्यंत आश्चर्य हुआ था कि इस अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट में हिंदी भाषा को शामिल नहीं किया था। विश्व की अनेक भाषाओं की जानकारी लिंक सहित वहां उपलब्ध थी।मुझे यह बात हजम नहीं हुई कि हिंदी सर्च करने पर वहाँ निल रिपोर्ट आ रही थी।
मैंने इस प्रोजेक्ट में हिंदी भाषा संबंधित वेब पेजेस, भारत सरकार के प्रोजेक्ट,हिंदी सॉफ्टवेयर आदि विस्तृत जानकारी लिंक सहित अमेरिकन प्रोजेक्ट को प्रदान की थी।
मेरे इस योगदान को अमेरिकन प्रोजेक्ट ने स्वीकार की थी।उसकी परिवर्तन नीति में मेरी स्वीकृति ली गई थी।
मेरे लिए यह गौरव की बात थी।
मैं हर बार पुणे जाता तो सी डैक जरूर जाता था।वहां हिंदी विभाग के साइंटिफिक ऑफिसर से संपर्क करता था।मेरे मन में हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी को लेकर रोमांचक उत्साह था।
इसके बाद मैंने हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी के अभ्यास में कार्यरत रहा।
(नोट-मेरा पहला सरनेम "कांबळे"था जो बाद में "नगरकर"में गैज़ेट द्वारा परिवर्तित किया गया।)
मी तुला अर्पण करून जाईल
मी माझे सर्वस्व तुला अर्पण करून निरोप घेईल मुलांनो, मी माझी विनम्रता गिळंकृत केली आहे मी माझी बनावट संपत्ती तुम्हाला वारस ठेऊन जात आहे मी ...

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मी माझे सर्वस्व तुला अर्पण करून निरोप घेईल मुलांनो, मी माझी विनम्रता गिळंकृत केली आहे मी माझी बनावट संपत्ती तुम्हाला वारस ठेऊन जात आहे मी ...
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''जन्म से पहले एक प्रार्थना'' क्या आप सुन रहे हो? मैं अभी जन्मा नहीं हूँ मुझे बचाओ रक्तपिपासु पिशाचों से चूहे से, नेवले से त...
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टैगोर ने कहा पंजाबी में लिखो, बलराज साहनी ने कहा हिन्दी देश की भाषा बलराज साहनी (बलराज साहनी प्रतिबद्ध अभिनेता भर नहीं रहे, लेखक और चिंतक भ...
