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गुरुवार, 24 अक्टूबर 2019

पसायदान

संत ज्ञानेश्रर जी ने ज्ञानेश्वरी ग्रंथ अर्थात "सटीक भावार्थ दीपिका"  पूर्ण करने के उपरांत ईश्वर को जो प्रार्थना लिखी थी,उसे 'पसायदान' से मराठी विश्व में ख्याति प्राप्त हुई है। अत्यंत कष्टदायी जीवन बिताने पर गीता ग्रंथ पर सटीक विवरण प्राकृत मराठी में लिखा। संन्यासी के पुत्र के नाम से जाति से बहिष्कृत किया गया। सनातन धर्म की ज्योत प्रज्वलित करके आम लोगों में ज्ञान गंगा प्रवाहित की। तत्कालीन आसान प्राकृत भाषा में गीता का ज्ञान प्रवाहित किया जो वर्षों से संस्कृत भाषा की मर्यादा में बंधा हुआ था।संत ज्ञानेश्वर संतों में क्रांतिकारक संत थे जिहोंने दीन दुखी आम लोगों के लिए धार्मिक कार्य किया। मराठी के प्रथम आद्य कवि, अनुवादक, समीक्षक, मार्गदर्शक संत ज्ञानेश्वर के चरणों पर  पसायदान का हिंदी अनुवाद सविनय सादर प्रस्तुत है। मेरी अल्प बुद्धि से यह अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ।इस अनुवाद की समीक्षा,सुधार हेतु हिंदी लेखिका कवियत्री डॉडॉ. अन्नपूर्णा सिंह जी हार्दिक धन्यवाद।

*पसायदान*

विश्वरचयिता ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ
मेरे वाक यज्ञ से संतुष्ट होकर
मुझे अनुग्रहित करके प्रसाद प्रदान करें। (1)
दुष्टों की दुर्भावना का अंत हो,
सत्कर्म के प्रति दुष्टों की आस्था बढ़े
विश्व में मित्र भाव प्रवाहित होकर
सभी जीवों में मित्रता बढ़े । (2)
पापी के मन का अज्ञान रुपी अंधकार दूर हो
विश्व में स्वधर्म रुपी उषा काल हो
सभी जीवों की मंगल मनोकामनाएँ पूर्ण हो (3)
सर्वत्र मंगल वृष्टि से
 सकल विश्व को पुलकित करनेवाले
ईश्वरनिष्ठ   संत
 सभी जीवों पर कृपा करें (4)
वे सभी सुसंवादी  संत कल्पतरु समान
 उद्यान हैं
चेतनारूपी  चिंतामणी रत्नों के पुर हैं
अमृत स्वर की गर्जना करनेवाले समुद्र हैं (5)
बेदाग पूर्णिमा के चंद्र और
ताप रहित सूर्य के समान संत सज्जन
सभी जीवों के मित्र हो जाएं  (6)

त्रिलोकों में सर्व सुख सम्पन्न पूर्ण होकर
विश्व के आदि पुरुष की सेवा करें (7)
यह ग्रंथ जिनका जीवन है
वे इस विश्व के दृश्य और अदृश्य
भोग पर विजय प्राप्त करें (8)
इति विश्वेश्वर गुरु श्री निवृत्तिनाथ
आशीर्वाद देकर  बोले
यह प्रसाद तुझे प्राप्त हो
यह वर पाकर ज्ञानदेव सुखी हो गया (9)

ज्योतिबा

(समाज सुधारक और देश में नारी को शिक्षा देने के लिए पहला  स्कूल पुणे में खोलने वाले ज्योतिबा फुले पर लिखी गयी मराठी कविता का हिंदी अनुवाद)  ----

ज्योतिबा
धन्यवाद।
आप  उसे
दहलीज के
बाहर ले आये,
क ख ग घ
त थ द ध
पढ़ाया
और
कितना बदलाव आया है ,
अब उसे
दस्तख़त के लिए
बायी अंगुली पर
स्याही लगानी नहीं पड़ती ,
अब वह स्वयं
लिख सकती है .........
मिटटी का तेल स्वयं पर
छिड़कने  से पहले
( उसके पीछे रहनेवाले बच्चों को ध्यान में रखकर)
" मैं अपनी मर्जी से
जल कर ख़ाक हो रही हूँ "
------------------------------------------------------------------
(मराठी कवि - अशोक नायगांवकर )
हिंदी अनुवाद- विजय नगरकर

अब इस गांधी का क्या करें ?

अब इस गांधी का क्या करें ?😊    (कविता)    **************************

जलाने पर भी दहन नहीं हो रहा               
खत्म करने पर भी  खत्म नहीं हो रहा ,
 हत्या करके भी मर नहीं रहा
   इस गांधी का अब क्या करें?

  मूर्ति तोड़ने पर भी
   अभंग है
   बदनामी के सैलाब में भी
   अचल है
                                       
बदनामी के चक्रवात में                           .              जनमानस में अमर है,
 
चरित्र के साथ  खूब खिलवाड़ किया                                                                             विचारों से भटका दिया,
केसरिया रंग में  पोत दिया

   थक गया हूँ इस 70 सालों से
     अब हम करें तो क्या करें ?                                                                                अब इस गांधी का क्या करें?     
                                                                            कितनी बार पेड़ काटें?       
  जड़े फिर भी जमीन के अंदर
 फैल रही है हर दिशा में
                                                                                             
खत्म हुआ
कहते कहते
चर्चा के चक्रवात में   
  घूम रहे है,
उसके विचार बार बार
   बापू, तेरा नाम पोछने पर भी
 उजागर हो रहा है।

   हम  अब इस 70 सालों में
जमीन के अंदर
धंस   गए है
  पिछले 70 सालों से
एक ही सवाल
   इस गांधी का अब क्या करें ? ***************************.   
 मूल मराठी कविता - हेरंब कुलकर्णी  (8208589195 )

(हिंदी अनुवाद- विजय प्रभाकर नगरकर)

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