अपनी मर्ज़ी से कहां हम अपने सफर के हम है
रुख हवाओं का जिधर का है , उधर के हम है।
मेरे मोबाईल पर सुप्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंग की आवाज़ गुंज रही थी। तभी सोलापुर से मेरे साडु निलेश भंडारी से फोन आया - विजय हमें गोवा ट्रेक के लिए निकलना है । मैं सोचने लगा यह ट्रेक क्या बला है? उम्र के मध्यम पडाव में क्या मैं ट्रेक कर सकता हूँ । क्या मैं जंगल, पहाड से गुजर सकता हूँ। निलेश भंडारी ने अब तक पाँच ट्रेक पुरे किए थे। निलेश ने मुझे आश्वस्त किया । मुझे ज्ञात हुआ कि इस ट्रेक में 10 साल के बच्चों को लेकर 70 साल के बुजुर्ग लोग भी हिस्सा ले सकते है। शर्त यह है कि आप तंदरुस्त हो और रोज़ाना 15/20 कि.मी. पैदल चलने की क्षमता हो। चलते समय आपके पीठ पर रॅक सॅक का कम से कम 5 कि.ग्रम/ 10 कि.ग्रम का वजन उठाना पडता है।दि. 15 दिसंबर 07 से 02 जनवरी 08 के बीच यूथ होस्टल्स एसोशिएशन ऑफ इंडिया तथा स्पोर्ट एथॉरिटी ऑफ गोवा के संयुक्त तत्वावाधन में यह ट्रेक आयोजित किया गया था । यूवा तथा खेल मंत्रालय, भारत सरकार के आीन यूथ होस्टेल्स ऑफ एसोशिएशन पूरे भारत में विभिन्न राज्यों में राष्ट्रीय ट्रेक आयोजित करते है। इस संबंध में पूरी जानकारी आप www.yhaindia.org पर प्राप्त कर सकते है। ट्रेक का ऑन लाइन पंजीकरण किया जा सकता है। आपको स्वास्थ्य संबंधित वैद्यकिय प्रमाण पत्र तथा ट्रेक शुल्क भेजना है। आप किसी नज़दीकी युथ होस्टेल एसोशिएशन कार्यालय से संपर्क कर सकते है।
इस बार गोवा स्टेट ब्रँच द्वारा इस ट्रेक का आयोजन किया गया था । गोवा राज्य प्राकृतिक सौंदर्य, विस्तीर्ण सुंदर बीच, गिरीजा घरों और मंदिरों के लिए सुप्रसिद्ध है। अरबी समुद्र के विस्तीर्ण तट पर गोवा के अनेक मशहुर बीच फैले हुए है। गोवा की बेहतरिन वादियाँ, आकर्षक पहाडों का मन लुभावने आमंत्रण, लैंड स्केप, पाम वृक्षों का घना जंगल सागर की लहरों को चुमनेवाला सुरज , सुनहरी रुपेरी रेत के बीच कर्नाटक और गोवा की सीमा पर स्थित दूधसागर वॉटर फॉल हमारा मन मोह ले रही थीं। पश्चिम घाट की यह पहाड़ी हिमालयीन पहाड़ी से कुछ कम नहीं है। ट्रेकिंग मार्ग में वही रोमांच है जो हिमालय की पहाड़ियों में नजर आ जाता है। आठ दिनों के इस ट्रेक की शुरुआत स्पोर्ट एथारिटी ग्राउंड, कंपाल, पणजी स्थित बेस कैंप से शुरु हुई। सोलापूर यूनिट के 11 तथा अहमदनगर के 2 सदस्य इस ट्रेक में शामिल हुए। इस के अलावा पुणे, मुंबई, जोधपुर, अहमदाबाद, गुवाहाटी के कुल 49 सदस्यों की ब्ॉच क्रं. 9 में शामिल हो गई । बेस कैंप पणजी पहूँचने पर हमारा हार्दिक स्वागत वहॉं के कैंप लीडर श्री मनोज जोशी, रोहिदास नाईक, रुपा म्ॉडम, श्री.रोहिदास नाईक आदि लोगों ने किया। बेस कैंप में 30 तंबू लगाएँ गए थे। हर तंबू में 10 से 15 लोग आराम से रह सकते थे। युथ होस्टल असोसिएशन ने सहभागी ट्रेक करने वालों के लिए आवास भोजन, नाश्ता चाय-पानी आदि बेहतरीन सुविधा प्रदान की। बेस कैंप का माहौल मिल्ट्री अथवा पुलिस विभाग जैसा लगा । निश्चित समय पर नाश्ता, भोजन, चाय लेने के लिए कतार में खडा होना पडता था। रात को 9 बजे कैंप फायर याने मनोरंजन का कार्यक्रम होता है। इसमें सहभागी सदस्य अपनी कला का प्रदर्शन कर सकते है। कोई गीता गाता है, कोई जोक सुनाता है तो कोई शेरोशायरी करता है। कैंप फायर यह एक आकर्षक बिंदु है। विभिन्न प्रांतों से पधारे हुए विभिन्न भारतीय भाषा भाषी मित्रगण मौजमस्ती करते है। यहाँ एक संपूर्ण हिंदुस्तान का छोटा रुप देखने को मिलता है।
दुसरे दिन ट्रेक की जानकारी दी गई। गोवा के जंगल और बीच की भौगोलिक स्थिति तथा उस परिसर में रहनेवाले पशुपक्षियों की भी जानकारी दी गई। हमें विभिन्न साँपों की प्रजातियाँ उनके लक्षण और ठिकानों की जानकारी प्रत्यक्ष साँपों को प्रदर्शित करके दी । हमें यह हिदायत दी गई कि ट्रेक के दौरान धुम्रपान तथा मद्यपान करना पूरी तरह निषिद्ध है। गोवा के बीच पर अनेक विदेशी महिलाएँ कही अर्ध नग्न तो कही पर पूरी तरह स्थिति में सनबाथ लेती रहती है। उनके फोटो निकालना या उन्हें कॅमेरे से शुट करना मना है। अगर कोई पकडा गया तो विदेशी लोग मार पिटाई करते है और स्थानिक गोवा के लोग भी उनका सहयोग करते है। गोवा पर्यटन के कारण विदेशी धन भारत में आ जाता है। गोवा का कारोबार विदेशी पर्यटकों पर पर ज्यादा निर्भर है। इसलिए गोवा के स्थानिक लोग विदेशी पर्यटकों का ध्यान रखते है। उन्हें कोई परेशानी न हो इसलिए हमेशा सतर्क रहते है।
भोजन के उपरांत सागर के बीच स्टीमर नाव के जरीए हमें डॉल्फिन मछलियाँ दिखाने के लिए चक्कर लगाया गया । डॉल्फिन मछलियाँ बहुत शर्मिली और संवेदनशील होती है। स्टीमर का आवाज सुनकर पानी में दूर-दूर भागती थी। कभी-कभी कुछ डॉल्फिन मछलियाँ नजदीक से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । हमारे अनेक सदस्यों ने फोटो लिए , तो कुछ सदस्यों ने हैन्डी कॅम से शुट किया । तीसरे दिन हम वेलिसावो बीच की ओर चल पडे। ट्रेक पर निकलने से पहले हमारे कैंप लीडर तथा उनके वरिष्ठ सहयोगियों ने हमारे बैग से कुछ जरुरी चीजें निकालकर रॅक सॅक में डाल दी। ट्रेक करते समय रॅक सॅक का वजन बहुत कम होना चाहिए क्योंकि जंगल पहाड से गुजरते समय भारी बस्ता मुसीबत बन जाता है। हमारे रॅक सॅक में दो कॉटन शर्ट, दो कॉटन पैंट, सन कैप, हंटर शुज, कॉटन साक्स की दो जोडियाँ, टॉर्च , वॉटर बॉटल , लंच बॉक्स स्टील मग अथवा टंबलर प्लेट, चम्मच, पेन, चक्कू , सुई धागा, गॉगल, कोल्ड क्रीम, साबुन, टॉईलेट पेपर, कॅमेरा तथा आपकी दैनिक दवाइयाँ (अगर आप ले ते हो तो ) आदि चीजों को रॅक सॅक में पॅक किया गया था ।
वेलसावो बीच पहूँचने के लिए हमें बोगमालो बीच तक लोकल बस द्वारा जाना पडा।यह ट्रेक पूरी तरह सागर की तट से लहरों का सुखद स्पर्श और थंडी हवा से भरा था। वेलसावो बीच पहूँचने तक शाम के पाँच बज चुके थे। वेलसावो बीच के कैंप लीडर ने हमें वेलकम ड्रींक (शरबत ) पिलाया । शाम को 6 बजे हम सब बीच की रेत पर बैठ गए, क्योंकि सागर में सुरज डुबने का लुभावना दृश्य हमें देखना था। रात के भोजन के बाद फायर कैंप हुआ । इस बेहतरीन मनोरंजन के बाद मन हल्का और शरीर में चुस्ती आ गई। हम सब थकावट भुलकर घनघोर निद्रा में प्रवेश कर गए।
चौथे दिन सुबह कैंप लीडर ने 6 बजे सी.टी बजाई। उसके बाद बेड टी हर एक कैंप में प्राप्त हुआ । नहा धोकर हम सब नाश्ता लेकर तथा लंच बॉक्स पॅक करके बेनॉलियम बीच की ओर चल पडे। यह रास्ता सागर किनारे से सुनहरी रेती से गुजर रहा था । नंगे पैरों को छुनेवाली सागर की लहरें , सागर की लहरों पर तैरते किंग फिशर और अन्य समुद्री पक्षियों के झुंड, सागर किनारों की लहरों से खेलते बच्चे, युवक और बुजुर्ग लोग यह नजारा अविस्मरणीय था। इतना विस्तीर्ण सागर तट हमने पहली बार देखा। वेलसावो बीच के पास झुआरी केमिकल फर्टिलाइजर फैक्टरी से यह विस्तीर्ण सोलह कि. मी. का बीच बेनॉलियम तक फैला हुआ है। दिनभर सागर का साथ रहा। सागर के तट पर आनेवाली नटखट आवाज करती लहरें मनमोह ले रही थी। शाम को 5 बजे हम बेनॉलियम कैंप पहूँच गए। फ्रेश होकर हमने चाय-नाश्ता लिया। फिर एक बार कैंप फायर हुआ ।
पाँचवें दिन हम बेनॉलियम बीच से सागर की ओर चल पडे। दुध सागर जाने के लिए हमने मडगांव से कोलेम का रास्ता ट्रेन से पार किया। कोलेम से दूध सागर यह एक अनोखा जंगल ट्रेक है। दूध सागर वॉटर फॉल गोवा और कर्नाटक के बॉर्डर पर बसा हुआ है।दुध सागर वॉटर फॉल देखने के लिए यहाँ अनेक विदेशी सैलानियों की भीड इकट्ठा होती है। बेनॉलियम कोलेम गांव से सीधे दूध सागर वॉटर फॉल तक जीप द्वारा अनेक विदेश सैलानी सफर करते हुए दिखाई पडे। लेकिन हमें तो पैदल जंगल पार करना था। गोवा फॉरेस्ट कार्यालय का टोलनाका दिखाई पडा। यहाँ पर प्रवेश शुल्क तथा कैमरा शुल्क अदा करने पर आगे जंगल जाने की इजाजत मिलती है। जंगल से गुजरते हुए धुम्रपान करना सक्त मना है। पूरे ट्रेक में धुम्रपान या नशापानी करना सक्त मना था। पीनेवाले बेहाल हो गए थे। उन्हें डर था अगर पकडे गए तो बीच रास्ते से ही हमें वापिस घर लौटना पउेगा। इसलिए पीनेवाले भी पुरे ट्रेक के दौरान नशा पानी से अनचाहे मन से दूर रहे। ऊपर की पहाडियों से नीचे की ओर दौडता हुआ पानी का प्रचंड जलप्रपात (वाटरफॉल) बहुत ही आकर्षक एवमं मनोहरी था । तीन स्टेप्स से गुजरता हुआ यह पानी गोवा के घने जंगल से पार होकर सागर में जाकर मिलता है। दूधसागर वॉटर फॉल के नीचे पानी के तालाब में विदेशी युवक-युवतियाँ तैरने का आनंद ले रहे थे। हमारे गाईड ने बताया कि इस रुके हुए पानी के अंदर शक्तिशाली करंट होता है। जो अच्छे अच्छे तैराइयों को खीचकर पानी में बहाकर ले जाता है। पिछले वर्ष ट्रेक करनेवाले एक हिमाचली युवक की मृत्यू उसकी बेपरवाई के कारण हो गई थी। दूधसागर वॉटरफॉल के ऊपर की पहाडी की चढाई करना हमें बहुत कठीन लग रहा था। साँस फुल रही थी। पैर काँप रहे थे। लेकिन हम सब ने इस पहाड को पार किया। दूधसागर कैंप पहूँचने में हमें काफी समय लगा। रात का अंधेरा होने से पहले जंगल पार करना बहुत जरुरी होता है। रात को जंगली जानवर बाहर निकल पडते है। हमारे दो युवा सहयोगी जंगल में रास्ता भूल गए। इसमें सुबोध प्रभु जो अमेरिका में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहा है। हर रास्ते पर कही पेड तो कही पत्थरों पर ट्रेक का निशाण लगाया होता है। लेकिन कभी कभी ट्रेक करते समय यह निशाण देखना हम भूल जाते है। दूधसागर कैंप पहूँचने पर पीछे रास्ता भटके हुए हमारे साथियों की तलाश में हमारे ब्ॉच के लिडर तथा गाइड उन्हें ढुंढने निकले पडे। अंधेरे हो गया था लेकिन बैटरी की प्रकाश और आवाज देकर उनको ढुंढ लिया गया। दूधसागर कैंप पहूँचने पर सबने राहत की साँस ली। कैंप फायर के बाद हम सभी घोडे बेचकर सो गए।
छटे दिन हम दूधसागर से कुवेशी की ओर चल पडे। यह इलाका कर्नाटक के कारवार जिले का हिस्सा है। दस कि.मी का यह रास्ता पूरी तरह जंगली रास्ता है। रास्ते में अनेक प्रकार के पेड पौधे, फूल नजर आए। यह जंगल पूरी तरह सुरक्षित रखा गया है। गिरे हुए पेड भी अपनी जगह पर सुखकर मिट्टी मे नष्ट होते जा रहे थें। पेड की शाखाओं पर बौठे हुए सजग प्रहरी पंछी अलग प्रकार की आवाज निकाल रहे थे। हमारे कुछ अनुभवी ट्रेक करनेवालों ने बताया कि जंगल के पशुपक्षी और जानवरों के लिए यह एक विशिष्ट संकेत है कि जंगल में मनुष्य आ रहा है। जंगल की यह प्राकृतिक रक्षा और प्रतिरक्षा की सृष्टी देखकर हम चकित हो गए। कुवेशी का कैंप एक नदी के झरने के तट पर बसा हुआ था। रातभर मेंढक की आवाज के साथ सुर मिलाकर हमारे कुछ सहयोगी खराटे लेते हुए सुर मिला रहे थे।
सातवें दिन हम अनमोड की तरफ चल पडे। यह हमारे ट्रेक का सबसे लंबा रास्ता रहा। जो करीब 22 कि.मी का फासला रहा। कर्नाटक राज्य के अनमोड गांव के नजदीक एक राष्ट्रीय महामार्ग पर हमारा कैंप लगाया गया था। सुबह हम तैयार हो रहे थे तब बेस कैंप पणजी के कैंप लीडर श्री मनोज जोशी अपने साथीदार के साथ हमारा हालचाल पुछने के लिए पहुँच गए थे। उन्होंने हमारी कुछ समस्याओं को बडी ध्यान से सुना। हमने कुछ सुझाव भी दिए। अनमोड से तांबडी सुरला आठ कि.मी. का रास्ता हम पैदल पार कर गए। यह हमारा आखरी पडाव था। घर की याद आ रही थी। तांबडी सुरला पहूँचने पर हमने प्राचीन महादेव मंदिर का दर्शन किया। तांबडी सुरला के नदी में हम नहा धोकर बेस कैंप जाने के लिए तैयार हो गए। दुपहर 3 बजे वहां गोवा कदंब ट्रान्सपोर्ट की बस हमें मिल गई । हम बस में सवार होकर शाम 5 बजे पणजी कैंप में पहूँच गए। बेस कैंप के फायर कैंप कार्यक्रम के दौरान हमें प्रमाणपत्र वितरीत किए गए। गोवा दूरसंचार के रोहिदास नाईक वहाँ फिल्ड अधिकारी के रुप में काम कर रहे थे। उनके करकमलों द्वारा प्रमाणपत्र वितरित किए गए। वर्ष का आखरी दिवस 31 दिसंबर हम सबने गोवा घुमकर बिताया। 31 दिसंबर की रात सागर पर गोवा पर्यटन की क्रुझ पर हम सवार हो गए। एक घंटे के इस सफर में क्रुझ पर रातभर संगीत नृत्य करते हुए युवा-युवती बच्चे तथा बुजुर्ग लोग भी अपनी आयु भुलकर नाच रहे थे। नए साल के प्रथम दिवस पर हम श्री शांता दूर्गा, श्री मंगेशी, पुराना चर्च देखने गए। राष्ट्रीय सागर विज्ञान अनुसंधान केंद्र देखने गए। यहाँ सागर के विभिन्न पहलुओं की डॉक्युमेंटरी फिल्म देखी। सागर विज्ञान संबंधी अनेक प्रोजेक्ट और अनुसंधान का कार्य वहाँ चल रहा है। अंडमान निकोबार सुनामी के बाद भारत सरकार ने विशेष ध्यान दिया हुआ है।
इसी तरह हमारा यह गोवा ट्रेक ईश्वर की कृपा से सफल रहा । इस ट्रेक के कुछ फायदे भी है। तंदरुस्त जीवन के लिए चलना बहुत जरुरी है। प्रकृति के साथ ताल मिलाकर उससे एकरुप होकर जंगल पहाड, सागर, पानी से गुजरते हुए साथीदार ट्रेक भाई-भाई बन जाते है।
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