मंगलवार, 24 अक्तूबर 2023

सिंदूर खेला

 "सिंदूर खेला" एक हिंदू परंपरा है जो पूर्वी भारत और बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के आखिरी दिन, विजयादशमी पर मनाई जाती है। इस दिन, विवाहित महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, जो सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है।




सिंदूर खेला का शाब्दिक अर्थ है "सिंदूर खेल"। सिंदूर एक लाल रंग का कुंकुम है जिसे हिंदू धर्म में अक्सर देवी दुर्गा और अन्य देवी-देवताओं के प्रतिनिधित्व के लिए उपयोग किया जाता है। यह विवाह के बाद महिलाओं के माथे पर भी लगाया जाता है।




सिंदूर खेला एक खुशी और उत्सव का समय है। महिलाएं एक साथ आती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, जो एकजुटता और प्रेम का प्रतीक है। यह एक ऐसा समय भी है जब महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छी स्वास्थ्य की कामना करती हैं।




सिंदूर खेला को कई तरह से मनाया जा सकता है। कुछ महिलाएं एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाती हैं, जबकि अन्य एक दूसरे को सिंदूर से भरी बाल्टी से छिड़कती हैं। कुछ महिलाएं धुनुची नृत्य भी करती हैं, जो एक पारंपरिक बंगाली नृत्य है।




सिंदूर खेला में सबसे लोकप्रिय नृत्य धुनुची नृत्य है। धुनुची नृत्य एक पारंपरिक बंगाली नृत्य है जिसमें महिलाएं एक लंबे, डंडे के आकार के ड्रम को बजाते हुए नृत्य करती हैं। धुनुची नृत्य एक ऊर्जावान और उत्साही नृत्य है जो महिलाओं को अपने दुखों और चिंताओं को दूर करने में मदद करता है।


धुनुची नृत्य में, महिलाएं एक घेरे में खड़ी होती हैं और एक विशेष प्रकार की ढोलक की धुन पर नृत्य करती हैं। नृत्य तेज और ऊर्जावान होता है। महिलाएं अपने हाथों और पैरों को ताल से ताल मिलाती हैं और गाने गाती हैं।




सिंदूर खेला में गाए जाने वाले गाने अक्सर देवी दुर्गा की स्तुति में होते हैं। वे महिलाओं के लिए आशीर्वाद और खुशी की कामना करते हैं।




सिंदूर खेला एक महत्वपूर्ण हिंदू परंपरा है जो महिलाओं को एक साथ लाने और उनके समुदाय में खुशी और उत्सव का जश्न मनाने का अवसर प्रदान करती है।




"सिंदूर खेला" त्योहार: प.बंगाल में धार्मिक आस्था के अनुसार नवरात्रि में माँ दुर्गा पृथ्वी पर अपने मायके आती हैं और नौ दिन तक यहां रहती है। 


दसवीं के दिन माता ससुराल के लिए विदा होती हैं। इसके पीछे भाव है कि बेटी मायके से विदा हो रही है, उसका सुहाग बना रहे और खुशियां बनी रहें।


माँ दुर्गा का विदाई दिवस जिसे यात्रा के दौरान भी मनाया जाता है...


सिंदूर खेला उत्सव सुहागन स्त्रियों द्वारा मनाया जाता है..


आजकल अविवाहिताऐं भी सुयोग्य वर की कामना से ये उत्सव मनाती हैं..

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