सोमवार, 26 अप्रैल 2021

हिंदी तकनीकी ब्लॉगर बी एस पाबला जी नहीं रहे

 

नहीं रहे  ब्लॉगिंग की दुनिया के बेताज बादशाह

गिरीश पंकज

ब्लॉगिंग की दुनिया के बेताज बादशाह कहे जाने वाले असरदार सरदार (बलविंदर सिंह ) बीएस पाबला जी भी इस कोरोना काल  में उसकी चपेट में आ गए।  तकनीकी की दुनिया से जुड़े लोगों के लिए यह एक बड़ी क्षति कही जाएगी । भिलाई इस्पात संयंत्र में महत्वपूर्ण पद पर कार्य करते हुए पाबलाजी वर्षों से एक मशहूर ब्लॉगर के रूप में सक्रिय रहे।  देश-विदेश के अनेक लोगों के ब्लॉग उन्होंने भिलाई में बैठकर बनाए। जब कभी किसी को मदद की जरूरत पड़ती, वह सबको विनम्रतापूर्वक सहयोग करते। कुछ वर्ष पहले जब भारत सरकार की किसी वेबसाइट को पाकिस्तानी हैकरों ने हैक किया था, तो सरकार ने पाबला जी से ही तकनीकी मदद ली थी । पाबला जी अनेक हैकरों की हेकड़ी निकालने में माहिर थे। पुलिस वाले भी साइबर क्राइम के मामले में पाबला जी की मदद लिया करते थे।  एक दशक पहले ब्लॉग बनाने के लिए पाबला जी ने भी मेरा मार्गदर्शन भी किया था।  तब मैंने भी अपने तीन ब्लॉग बना लिए थे और ब्लॉगिंग की दुनिया में बहुत सक्रिय हो गया था । तब से उनसे मेरे बेहद आत्मीय संबंध रहे । छत्तीसगढ़ के कुछ ब्लॉगर  देश में बड़े लोकप्रिय  हुए ,जिनमें नंबर वन पर पाबला जी थे। तकनीकी के प्रति उनका बड़ा गहरा लगाव था । यही कारण है कि उनके घर में भी तकनीकी दुनिया के दर्शन होते थे ।वह अपने मोबाइल के जरिए बिजली चालू- बंद करते थे । दरवाजे भी मोबाइल के जरिए ही खुलते और बंद होते थे। मैं अच्छे लेखक भी थे । पाबला जी की लेखन- शैली कमाल की थी। मंत्रमुग्ध कर देने वाली। बतिया-सी लेखनी।  वे लोगों को इंटरनेट के माध्यम से आमदनी के गुर सहज सरल तरीके से बताते थे ।  ब्लॉगिंग के जरिये वे खुद अच्छी खासी कमाई कर लेते थे।  कंप्यूटर के अद्भुत जानकार पाबला जी उतने ही व्यवहार कुशल थे। न जाने कितनी बार रायपुर  और भिलाई में उन से मुलाकातें होती रही।  इस बीच पाबला जी पारिवारिक दृष्टि से निरंतर टूटते रहे। परिवार के अनेक सदस्य धीरे-धीरे बिछड़ते रहे।  और अंत में हालत यह हुई कि अब उनकी एक बेटी है जो बाहर रहती है। अंतिम समय में वे अपने पालतू कुत्ते मैक मैं के साथ ही जीवन बिता रहे थे। वे अक्सर उसकी तस्वीर फेसबुक में डाला करते थे। हालांकि बाद में पाबला जी ने फेसबुक अकाउंट ही बंद कर दिया था। 

उनके साथ नेपाल की यादगार यात्रा

दुखों का पहाड़ पाबला जी पर टूटता रहा, मगर वे मजबूती के साथ डटे रहे और ब्लॉगिंग करते रहे।  बाद में वे फेसबुक की दुनिया से भी जुड़े और उस के माध्यम से हम उनके और रोमांचकारी जीवन से भी अवगत होते रहे । रोमांचकारी से मेरा आशय यह  कि वह मस्तमौला  यायावरी व्यक्तित्व के धनी थे और लंबी-लंबी यात्राएं अपनी मारुति ईको कार से किया करते थे । अकसर अकेले ही निकल जाते थे। हालांकि कई बार वे  दुर्घटनाग्रस्त होते-होते भी बचे लेकिन उन्होंने लॉन्ग ड्राइव की अपनी आदत नहीं छोड़ी। मेरा सौभाग्य रहा कि एक बार उनके साथ मैंने उनकी ही कार में काठमांडू तक की यात्रा की। यह बात है अक्टूबर ,2013 की । उस रोमांचकारी यात्रा को मैं कभी नहीं भूल सकता।  मेरे साथ मेरे  एक और यायावरी में माहिर ब्लॉगर ललित शर्मा भी थे । हम तीनों काठमांडू में होने वाले ब्लॉगर सम्मेलन के लिए शामिल होने निकले थे। यह आयोजन लखनऊ के साथी ब्लॉगर रवींद्र प्रभात ने आयोजित किया था। पाबलाजी ने कहा कि '' बाशशाओ, कहां ट्रेन से इधर-उधर भटकते हुए काठमांडू जाएंगे।  बेहतर होगा कि हम लोग कार से ही सुनौली बार्डर होते हुए नेपाल पहुँचें। मुझे भी कार से लंबी यात्रा का शौक है इसलिए सहज ही तैयार हो गया। पाबला जी की गाड़ी में उस समय नेविगेटर (जीपीएस सिस्टम) विशेष रूप से लगा हुआ था।  अब तो हर कार में जीपीएस की सुविधा है।  उस वक्त नहीं थी । पर पाबला जी की गाड़ी में नेविगेटर लगा था और मजे की बात, उन्होंने कार में ब्लैक बॉक्स भी लगा कर रखा था, जो हवाई जहाज में लगा होता है। जिसके माध्यम से प्रतिपल की रिकॉर्डिंग होती रहती है।  यात्रा का बेहद रोमांचकारी अनुभव लौटकर ललित शर्मा ने लिखा।  पाबला जी ने बहुत खूब लिखा । यात्रा-वृतांत पढ़ने के शौकीन मित्रों से आग्रह है कि इस रोचक और रोमांचकारी यात्रा-वृतांत पढ़ने के लिए 'ललितशर्माडॉटकॉम' और पाबला जी के ब्लॉग को जरूर खंगालें।  यात्रा वृतांत कैसे लिखे जाते हैं, इन्हें पढ़कर समझा जा सकता है। 


पाबला जी दुर्ग से निकले और नेविगेटर की मदद से सुबह छह बजे मेरे घर पहुंच गए।  मैं तब चकित रह गया, तो उन्होंने बताया,  ''यह साडे नेविगेटर का कमाल है जी!'' ललित शर्मा भी तब तक घर पहुंच गए थे। उसके बाद हमारी काठमांडू यात्रा शुरू हुई।  अंबिकापुर, रेनुकोट होते हुए हम गोरखपुर पहुंचे। उस वक्त रास्ते की हालत बेहद खराब थी । कई बार पाब्ला जी कार कीचड़ भरी सड़क में फँस जाती, तो कहीं सड़क नाम की कोई चीज ही नहीं थी।  धीरे-धीरे कार आगे सरकती । बड़ी मुश्किल से वह आगे बढ़ते। लेकिन मजाल है कि एक बार भी उनके चेहरे पर शिकन आई हो। वह सिस्टम को कोसते और मुस्कान बिखेरते हुए कार चलाते। जब कभी उनका मूड होता रास्ते में चाय पानी के लिए रुक जाते। रास्ते में कहीं कहीं दर्शनीय स्थल भी मिले, तो कहते, ''चलो इसे भी देख लेते हैं।'' हमनेे चुनारगढ़ को निकट सेे देखा। यह वही चुनारगढ़  है, जिसका जिक्र देवकीनंदन खत्री ने  चंद्रकांता संतति में किया है। हम जर्जर रास्तों को पार करके किसी तरह गोरखपुर पहुँचे। पाबला जी ने गूगल में सर्च कर गोरखपुर के एक होटल को होटल में रुकना तय किया।  नेविगेटर  में होटल का नाम भर दिया। बस क्या था। गोरखपुर जब हम पहुंचे तो उनकी कार होटल के ठीक सामने रुकी । नेविगेटर बाला का पंजाबी स्वर  उभरा, ''साड्डा होटल आ गया है।''  नेविगेटर  को वे 'नेविगेटर बाला' कहते थे। उनकी नेविगेटर बाला पंजाबी में निर्देश देती थी,  जिसे सुनकर मुझे बड़ा आनंद आता था। रात्रि विश्राम कर हम सुबह सुनौली बॉर्डर होते हुए नेपाल की सीमा में प्रवेश किए। फिर रास्ते में तमाम तरह के रोचक अनुभव से गुजरते हुए  लगभग तरह सौ किलोमीटर की यात्रा तय करके देर रात काठमांडू पहुंच गए।  वहां पाबला जी को चाहने वाले लोगों की भीड़ थी । पाबला जी उन से घिरे रहे । पाबला जी का वहाँ  सम्मान भी हुआ।  फिर तीसरे दिन हम सुबह-सुबह वापस होने लगे । होटल के बाहर पाबला जी की कार पार्क थी।  वह कार को रिवर्स कर ही रहे थे तभी पीछे का कांच बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया।  अब समस्या यह हुई इतनी बड़ी यात्रा बिना कांच लगाए कैसे हो। कांच लगाने का खर्चा भी बहुत अधिक था इसलिए पाबला जी ने कहा, पीछे हम अपनी चादर लगाकर काम चला लेंगे । आज दुर्ग पहुंचकर ही लगवाऊँगा।  पाबला जी और ललित ने किसी तरह से चादर बांधी और फिर पाबला जी पहले की तरह उत्साह के साथ ड्राइविंग सीट पर बैठ गए और निकल पड़े छत्तीसगढ़ की ओर।  हम लोग पाबला जी से अनुरोध करते रहे कि हमें भी बीच-बीच में कार चलाने का मौका दें ताकि आपको कुछ आराम मिल जाए ,लेकिन पाबला जी जिद्दी सरदार थे। बोले, ''नहीं कार तो मैं ही चलाऊँगा। हां जब मुझे नींद आएगी, तो रास्ते में कहीं भी गाड़ी खड़ी करके एकाध घंटे की नींद ले लिया करूंगा।'' और ऐसा ही हुआ।  पाबला जी के साथ हम लोग बतियाते हुए यात्रा करते  रहे । रास्ते में पाबला जी को कहीं लगता कि नींद आ रही है, तो वे  फौरन गाड़ी रोक देते और कार में ही सो जाते।  तब हम और ललित आपस में गप मारते बैठे रहते या आसपास घूमघाम कर समय बिताते। रास्ते में कहीं आंधी चलती । कहीं जोरदार बारिश होती, मगर पाबला जी तनिक भी विचलित नहीं होते थे। पूरी तरह सतर्क होकर कार चलाते  हुए हम लोगों को सकुशल रायपुर पहुंचा दिया। फिर भिलाई की ओर प्रस्थान किया।  भिलाई पहुंच कर उन्होंने फोन करके सूचित किया कि मैं पहुंच गया हूँ। पाबला जी के साथ चार-पाँच दिन की वह नेपाल यात्रा आज भी मेरे ज़ेहन में बसी हुई है। इस दौरान पाबला जी का जीवंत व्यक्तित्व मैंने निकट से देखा।  बेहद सहज-सरल -बिंदास! अद्भुत तकनीकी व ज्ञान से भरे हुए मगर उतने ही विनम्र । बहुत कम होते हैं ऐसे लोग।


अब पाबला जी वाहेगुरु जी की शरण में चले गए  हैं। मगर उनका प्रदेय इंटरनेट के माध्यम से हमारे बीच मौजूद रहेगा।  मैं चाहूंगा कि लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए उनके ब्लॉगों को जरूर देखें।  इसका लाभ यह होगा कि हमें काम की अनेक दुर्लभ जानकारी मिलेगी। पाबला जी के महत्वपूर्ण ब्लॉग इस प्रकार हैं , जिन्हें  हम सर्च करके देख सकते हैं। जैसे, कम्प्यूटर सुरक्षा, ज़िंदगी के मेले,शोध व सर्वे, कल की दुनिया, हिंदी ब्लॉगरों के जनमदिन, My SMSs, इंटरनेट से आमदनी, ब्लॉग बुखार।

पाबला जी को शत-शत नमन!





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गिरीश पंकज 
(गिरीशचंद्र उपाध्याय)
व्यंग्यश्री, 2018, हिंदी भवन, नई दिल्ली
संपादक, सद्भावना दर्पण
(भारतीय एवं  विश्व साहित्य के अनुवाद की त्रैमासिकी)
सेक़्टर -3, एचआईजी - 2 , घर नंबर- 2 , 
दीनदयाल उपाध्याय नगर, रायपुर- 492010
मोबाइल : 9425212720, 877 0969574 
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बीस खंडों में 'गिरीश पंकज रचनावली' प्रकाश्य 
10 उपन्यास, 30 व्यंग्य-संग्रह, 4 कहानी-संग्रह, 7 ग़ज़ल-संग्रह सहित 90  पुस्तकें
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सदस्य, हिंदी सलाहकार समिति, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, 
प्रांतीय अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, पूर्व सदस्य, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली (2008-2012)
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