वीर सावरकर एक जगह लिखते हैं कि
"भारतवर्ष के कोने कोने में उत्तर से दक्षिण,दक्षिण से उत्तर, पूरब से पश्चिम, पश्चिम से पूरब तक बोली जाने वाली आम जनता की संपर्क सर्वसाधारण भाषा एकमात्र हिंदी ही हो सकती है।
भारतवर्ष में चारों धामों में शंकराचार्य के पीठ स्थापित हुए हैं। वहां धार्मिक विचारों का आदान-प्रदान हिंदी के माध्यम द्वारा होता आ रहा है।"
आगे वे कहते हैं कि
" इंग्लैंड में हमारा क्रांतिकारियों का दल था। हम प्रतिदिन प्रण दुहारते थे कि हमारा देश हिंदुस्तान,हमारा गीत वंदे मातरम और हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है"।
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