सोमवार, 2 अप्रैल 2012

हिन्दी बोले तो...




डॉ. रामवृक्ष सिंह

       बहुत दिनों बाद ससुराल पहुँचे। सास-ससुर ने खूब आवभगत की। साली ने पूछ-पूछकर और सच कहें तो ठूंस-ठूंसकर खिलाया-पिलाया। लेकिन मुँहलगे साले ने मुँह का सारा जायका खराब कर दिया। पूछ बैठा- "जीजाजी, आप तो बैंक में हिन्दी अधिकारी हैं न?" हमें लगा,  साला सच्ची बात हमारे मुँह से सुनकर न जाने क्या मजे लूटना चाहता है? जिस रहस्य को हम बरसों से अपनी आबरू की तरह दबाए-छिपाए और दुनिया की नज़रों से बचाए-बचाए घूम रहे थे, वही ये साला आज सरे आम उजागर किए दे रहा है। अब क्या है! कुछ दिन बाद ससुराल के सभी संबंधियों, फिर उनके अड़ोसियों-पड़ोसियों और फिर सारे शहर को पता चल जाएगा कि हमारी औकात तो कुछ भी नहीं है, कि हम तो अदना से हिन्दी अधिकारी हैं। अरे राम! कितना अनर्थ हो जाएगा! सोच-सोचकर साले पर बड़ा गुस्सा आ रहा था। लेकिन करते क्या? गुस्सा तो हिन्दी की दुर्दशा से जुड़ी तमाम बातों पर आता है, लेकिन हम क्या कर लेते हैं? सच कहें तो गुस्से को पी जाना और अपनी लाचारगी को शाश्वत मानकर स्वीकार कर लेना ही हिन्दी अधिकारी का परम कर्तव्य और परम प्राप्य है। हम चुप रह गये। बड़े-बड़े मंसूबे बनाकर ससुराल गए थे, लेकिन कोई भी पूरे न हुए। जितने समय रुकने की सोचकर गए थे, उससे भी पहले ही चले आए। बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले। बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। चचा ग़ालिब ने शायद हमारे लिए ही यह शेर लिखा था।

       घर आए तो ससुराल का संक्रमण यहाँ भी पहुँच गया था। इतनी तेजी से कोई व्याधि नहीं फैलती, जितनी तेजी से प्रवाद। वैसे तो यह बीमारी मानव-सभ्यता के आरंभिक दिनों से ही बदस्तूर कायम है। लेकिन इसकी हालिया तेजी निश्चित रूप से सूचना क्रांति की मेहरबानी है। अभी घर के अहाते में पूरी तरह फिट भी नहीं हो पाए थे कि बड़े बेटे साहब ने हमसे पूछ लिया- "क्यों डैड! आप बैंक में हिन्दी अधिकारी हैं?" उसके प्रश्न में हमें जिज्ञासा कम, तंज अधिक दिखा। हमने बड़ी लाचारी से उसकी ओर देखा, जैसे बकरा कसाई को देखता है। बोले कुछ नहीं। अलबत्ता मन ने कहा- "मान लो बेटा, हम हिन्दी अधिकारी न होते, कहीं के कलट्टर, मजिस्टेट होते तो क्या तुम कुछ दूसरी तरह से पैदा हुए होते? या तुम्हारी अम्मा, जिनसे हमारी शादी तभी हो गई थी, जब हमें और उनको भी सुथने का नाड़ा बाँधने का भी सलीका नहीं था, कुछ और हो गई होतीं?"  बेटे की बात अनसुनी करके हम चुपचाप बैठ गए।
      
       हिन्दी अधिकारी बने हमें एक चौथाई सेंचुरी हो चुकी है। और इस दौरान हमने सबसे बड़ा सबक यही सीखा है। कोई कुछ भी बोले, कुछ भी कहे.. चुपचाप सुनते रहो। अपनी पगार का स्मरण करो, उसी में मन लगाओ। जैसे सच्चा भक्त संसार की दूसरी बातों पर ध्यान न देकर अपने आराध्य का ध्यान लगाए रहता है, उसी प्रकार सच्चा हिन्दी अधिकारी और सारी बातों, यहाँ तक कि हिन्दी कार्यान्वयन पर भी ध्यान न देकर, बस महीने के अंत में मिलने वाली अपनी तनख्वाह पर ध्यान लगाता है। उससे भी ऊँचा संत वह है जो निरीक्षण, कार्यशाला, सम्मेलन आदि के बहाने अपनी कमाई बढ़ाने के दूसरे स्रोतों पर ध्यान लगाए। सच्चा राजभाषा अधिकारी निरपवाद रूप से ऐसा ही करता है।  कई बार तो वह अपने कपड़े -लत्ते पर भी ध्यान नहीं देता। बहुत से हिन्दी अधिकारी ऐसे मिल जाएँगे जो बीस रुपये वाली रबड़ की शानदार हवाई चप्पल और ठेले पर बिकने वाली बिना प्रेस की हुई, स्थायी रिंकल-युक्त पैंट-कमीज पहनकर ही दफ्तर चले आते हैं। सर्दियों में अस्पताल की बेडशीट जैसी हरी-हरी चद्दरें और खेस ओढ़कर दफ्तर आनेवाले हिन्दी अधिकारी भी हमने देखे हैं। एक बार पहनने के बाद फटने तक शरीर से चिपकी रहने वाली जीन्स और कई-कई हफ्ते से बह रहे तरह-तरह के श्रम-वारि से सुवसित टी-शर्ट पहनकर निरीक्षण करने वाले कर्मवीर उप निदेशक (कार्यान्वयन) से भी अपना साबका पड़ चुका है।

       अब हम बेटे को कैसे समझाते कि उसके बाप की प्रोफेशनल बिरादरी में कैसे-कैसे अघोरी शामिल हैं!  उसका कोमल मन, जो पहले ही अपने बाप को राजभाषा के अभिधान से विभूषित, किन्तु वस्तुतः गाय-गोरू चरानेवाले अथवा ईंटा-गारा ढोने वाले लतमरुआ लोगों की भाषा यानी हिन्दी के सेवक के रूप में देखकर विचलित हो चुका है, इस कठोर सच्चाई का सदमा कैसे झेलेगा? यह सोचकर हम उस मुद्दे पर चुप रह गए। अलबत्ता दूसरे मुद्दे पर हमने बच्चे की क्लास ले ली और डपटते हुए उससे कहा- "यार, जबसे तुम पैदा हुए हो तब से तुम्हें समझाते चले आ रहे हैं कि हमें डैड-वैड मत बुलाया करो। बुलाना है तो सीधे-सीधे पिताजी या बाबूजी कहो। यही अपनी परंपरा है। लेकिन तुम हो कि कुछ समझते ही नहीं।"

       बच्चा अब बच्चा नहीं रहा है। कुछ-कुछ मुँहजोर भी हो चला है। कुछ दोष तो उसकी उम्र का है और कुछ अपना भी दुर्भाग्य। सच कहें तो हर कोई हिन्दी अधिकारी से जुबान तराशी करता है, चाहे वह चपरासी हो या टाइपिस्ट। हर किसी को मालूम है कि हिन्दी अधिकारी की लानत-मलानत करने का उसे जन्मसिद्ध अधिकार है। हर कोई जानता है कि सरकारी संस्थाओं के राजभाषा-कर्मी की भर्ती ही इसलिए होती है कि उसपर सब अपना फ्रस्ट्रेशन निकालें। हिन्दी विभाग वाला जो अनुवाद करे, उसमें कोई भी अपनी लंगड़ी टाँग घुसा सकता है। अनूदित सामग्री को कठिन बताकर हिन्दी पाठ को और उसके माध्यम से हिन्दी अधिकारी को कभी भी ठेंगा दिखाया जा सकता है। बस यह सोचकर दिल को बहला लेते हैं कि वे सब पराए लोग हैं। उनका क्या? किन्तु बुरा तो तब लगता है जब अपने सगे ही अपना अपमान करने लगें। बच्चे की भी क्या कहें! सयाना हो चुकने के कारण कभी-कभी अपनी इयत्ता और अस्मिता को लेकर संजीदा हो जाता है। विडंबना यह है कि उसकी इस नई -नवेली अदा के पहले शिकार हम ही बनते हैं। लिहाजा इस बार भी बच्चे ने तड़ाक से टीप दिया- "क्या डैड!  हमें ही क्यों, आप और आप जैसे हजारों लोग हमारे जन्म लेने से भी कई दशक पहले से, बल्कि सच कहें तो सन उन्नीस सौ उनचास से ही पूरे देश को समझाते चले आ रहे हैं कि हिन्दी हमारी राजभाषा है, कि उसमें काम करना आसान है। समझा ही नहीं रहे हैं, सबको ट्रेनिंग भी देते आ रहे हैं। कार्यशाला कराते हैं। सम्मेलन कराते हैं। यहाँ तक कि मॉरीशस, इंग्लैंड, सूरीनाम और न्यूयॉर्क जैसी विदेशी जगहों पर भी जा-जाकर हिन्दी का नगाड़ा पीटते चले आ रहे हैं। कुछ फर्क पड़ा उससे? सारी कसरत बेकार ही तो साबित हुई है।"

       हम टुकुर-टुकुर उसके मुँह की ओर देखते रह गए। आजकल के बच्चे कितने समझदार हो गए हैं! इनको समझाना आसान काम है क्या! कोरी भावुकता भरी बातों से इनके दिल को नहीं जीता जा सकता। और सिर्फ इसलिए तो ये कतई हमारी बात नहीं मान लेंगे कि हम इनके डैड हैं। जब तक कारण-कार्य संबंध न दिखाई पड़ता हो, बात पूरे तर्क के साथ न कही गई हो, ये आज की पीढ़ी आपको भाव नहीं देने वाली। अब हम कैसे इसे समझाएँ? यही सोच रहे थे कि बच्चे ने निर्णयात्मक लहजे में कहा- "डैड, आप हिन्दी अधिकारी हैं। लेकिन अंग्रेजी के बिना आपका भी काम नहीं चलता। अगर अंग्रेजी नहीं होती तो आपको कौन पूछता? अंग्रेजी है, इसलिए आप हैं। और एक बात। यदि आप केवल हिन्दी जानते तो भी आपको कोई घास नहीं डालता। क्योंकि आप अंग्रेजी भी जानते हैं और अंग्रेजी से हिन्दी तथा हिन्दी से अंग्रेजी में अनुवाद करने में सक्षम हैं, इसीलिए आप हिन्दी अधिकारी हैं। अंग्रेजी ज्ञान के बिना तो डैड आप अपना काम ही नहीं कर पाते।"

       बच्चे की इस युक्ति पर हमारी बाँछें खिल आईं- "अरे हाँ! यार! तैने ये अच्छा रास्ता निकाला।" हमारा मन भर आया। हम गदगद हो आए। बेटे ने क्या बात बताई है! लेकिन फिर कुछ सोचकर मन का हैलोजन अचानक बुझ-सा गया। इसका अभिप्राय तो यह हुआ कि बेटे के मन में भी हमारे लिए यदि कुछ सम्मान है तो केवल इसलिए कि हमें हिन्दी ही नहीं, अंग्रेजी का भी ज्ञान है। यानी हमारे सम्मान का अवलंब ये निगोड़ी अंग्रेजी ही है, न कि हिन्दी। यह विचार मन में आते ही हमारे मन पर पड़ा सदियों का कुहासा अचानक छंट गया। हमें कुछ-कुछ वैसा ही तत्व-बोध हुआ, जैसा पीपल के पेड़ के नीचे बैठे, गृह-त्यागी सिद्धार्थ को भिक्षाटन से मिली खीर खाने के बाद हुआ था। अरे यार! अब समझ आया कि हर हिन्दी अधिकारी बात-बात पर अंग्रेजी क्यों झाड़ने लगता है। सच तो यही है कि यदि हिन्दी अधिकारी अंग्रेजी न झाड़े तो उसकी कोई इज्जत ही न करे।

       एक दिन बेटा हमारे दफ्तर आ धमका। उसने हमारे चारों ओर निगाह दौड़ाई। कुल मिलाकर सब कुछ ठीक ही ठाक था। फिर अचानक उसने कुछ देखा और प्रश्न दागा-  "डैड, आपकी सीट शौचालय के एकदम पास क्यों है?" सच कहें तो बहुत दिनों से हमारे अंतर्मन में कहीं यह खटका लगा हुआ था कि बेटे या कोई अन्य प्रबुद्ध महाशय ज़रूर एक न एक दिन ऐसा ही कोई सवाल दागेंगे। इसलिए उत्तर की तैयारी पहले से ही कर रखी थी। कॉलेज के दिनों से ही हम इसी तरह दस संभावित प्रश्न तैयार करके जाते रहे हैं और उनमें से दो-चार के फिट हो जाने पर बाइज्जत परीक्षाएं उत्तीर्ण करते रहे हैं। सो हमने बेटे के उक्त प्रश्न का समाधान प्रस्तुत किया- "बेटा, तुम तो जानते हो कि दफ्तर के लोग चाहे दिन भर अपनी सीट पर न जाएँ और इधर-उधर घूम-फिरकर टाइम पास करके घर चले जाएँ, किन्तु दिन में तीन-चार बार शौचालय तो वे अनिवार्य रूप से जाते ही हैं। इसलिए हमारी सीट शौचालय के बगल में रखी गई है, ताकि हर आते-जाते को हम गाहे--गाहे राजभाषा कार्यान्वयन की जानकारी देते रहें। बल्कि सरापा हिन्दी की प्रतिमूर्ति बने रहनेवाले तुम्हारे इस अभागे बाप को देखकर उन्हें दिन में तीन-चार बार तो ऐसा लगे कि इस देश के केन्द्र सरकार के दफ्तरों की राजभाषा हिन्दी है। लिहाजा शौचालय के बगल में बैठने से राजभाषा कार्यान्वयन के प्रचार-प्रसार और अनुश्रवण में बहुत सुविधा हो जाती है।" बेटा हमारी बात से कन्विन्स हो गया। हमें खुशी हुई। अंदर की जो बात हम उसे नहीं बता पाए, वह यह है कि शौचालय के पास बैठने से हमें भी कितनी सहूलियत है! आशा है बेटा जब थोड़ा और सयाना व दुनियादार हो जाएगा तो खुद ब खुद समझ जाएगा कि हिन्दी अधिकारी होना कितने जीवट का काम है। यों भी बाप के प्रति बेटों के मन में श्रद्धा तभी जगती है, जब वे खुद बाप बनकर अधेड़ हो रहे होते हैं और उनके खुद के बेटों की रेखें फूट रही होती हैं। रही साले की बात, तो उससे क्या फ़र्क पड़ता है?  साले और साले के जैसी अन्य प्रजातियों के जीवों से निबटने के नए-नए तरीके तो हिन्दी अधिकारी ताज़िन्दगी ईज़ाद करता ही रहता है।
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आर.वी.सिंह/R.V. Singh
मोबाइल/Mob-9454712299
ईमेल/email-rvsi...@sidbi.in 


गुरुवार, 12 जनवरी 2012

फेसबुक पर राजभाषा विभाग की उपस्थिति

अब राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने फेसबुक पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है। हम राजभाषा विभाग के इस कदम का हार्दिक स्वागत करते है। फेसबुक संवाद का सशक्त माध्यम है। इसके द्वारा युवकों को आकर्षित करके उनके विचारों को समझने में मदद मिलेगी। राजभाषा विभाग ने तकनीकी क्षेत्र में अपना कदम रखा है। अनेक हिंदी ब्लॉगर, लेखक अब फेसबुक पर राजभाषा विभाग के पृष्ठ पर अपने विचार,प्रतिक्रियाएँ दे सकते है।
राजभाषा विभाग के तकनीकी अधिकारी श्री. केवल कृष्णन प्रशंसा के पात्र है। उन्होंने लिखा है कि -

      " राजभाषा के प्रचार-प्रसार हेतु फेसबुक की क्षमता का उपयोग करके करोड़ों  लोगों से जुड़कर, उन्हें राजभाषा के प्रचार-प्रसार में जोड़ा जा सकता है जिससे उन्हेंस राजभाषा विभाग की नीतियों और कार्य-कलापों से अवगत कराकर उनका फीडबैक भी लिया जा सकता है।  भारत सरकार के सभी मंत्रालय/विभाग/
कार्यालय भी इसके माध्यय से राजभाषा विभाग संबंधी जानकारी प्राप्त  कर सकते हैं।

       फेसबुक पर राजभाषा विभाग द्वारा निम्नं गतिविधियां की जा सकती हैं :

  •  विभाग तथा विभाग के अधीनस्थ कार्यालयों की महत्वपूर्ण गतिविधियां
  • हिंदी भाषा के शिक्षण हेतु केन्द्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान
  • केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो द्वारा अनुवाद प्रशिक्षण संबंधी टिप्स
  • आई.टी. टूल्स के प्रयोग हेतु जानकारी एवं प्रयोगकर्ताओं की समस्याओं का समाधान
  • अनुसंधान प्रभाग एवं क्षेत्रीय कार्यान्वेयन कार्यालयों द्वारा विभिन्‍न गतिविधियों जैसे नगर राजभाषा कार्यान्व्यन समितियों की बैठक आदि की सूचना उपलब्ध  करवाना
     आइए हम राजभाषा विभाग के इस नए कदम का हार्दिक स्वागत करें और सक्रिय योगदान प्रदान करें।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

राजभाषा विभाग की पहल-सरल हिंदी का प्रयोग

राजभाषा विभाग,गृह मंत्रालय के सचिव श्रीमती वीणा उपाध्याय ने सरकारी कामकाज़ में सरल हिंदी का प्रयोग करने हेतु दिनांक 26 सितंबर,2011 में सभी मंत्रालयों एवं विभागों को निर्देश जारी किए है। इस आदेश की चर्चा अनेक समाचार पत्रों में पढने में आयी है।
दैनिक भास्कर ने लिखा है
        आजादी के 64 साल बाद भी सरकार हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा नहीं बना पाई है, मगर अब उसने सरकारी दफ्तरों में इस्तेमाल होने वाली हिंदी को बदलने के प्रयास अवश्य तेज कर दिए हैं। दफ्तरों में इस्तेमाल होने वाले हिंदी के कठिन शब्दों की जगह उर्दू, फारसी, सामान्य हिंदी और अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं। बोलचाल में ऐसी हिंदी को ‘हिंग्लिश’ कहते हैं।

गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने इस सिलसिले में सभी मंत्रालयों और विभागों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। निर्देशों के मुताबिक, कामकाज के दौरान साहित्यिक हिंदी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी शब्द का हिंदी में उपयोग बतौर अनुवाद न हो। इससे आम लोगों को समस्या होती है। एक हद के बाद यही समस्या किसी भी व्यक्ति को मानसिक तौर पर भाषा के खिलाफ खड़ा करती है।

पत्र में कहा गया है कि जहां तक संभव हो, सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रचलित शब्दों का उपयोग हो। और, ऐसा न होने पर अंग्रेजी के वैकल्पिक शब्दों का चयन किया जाए। सामान्य सरकारी कामकाज में बोलचाल की व्यावहारिक भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए। कनिष्ठ अभियंता, परिमंडल, अधीक्षण अभियंता, संगणक या प्रतिभूति जैसे शब्द जो अब तक लोगों को परेशान करते थे, उनकी जगह सरकारी दफ्तरों में अब अंग्रेजी के शब्द देवनागरी में लिखने की इजाजत दी गई है। मंत्रालय के इस कदम को वक्त के लिहाज से उठाया गया कदम माना जा रहा है।
नया फरमान
गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने सभी मंत्रालयों और विभागों को जारी किए दिशा-निर्देश मंत्रालय के इस आदेश के बाद पुलिस, कोर्ट, ब्यूरो, रेलवे स्टेशन, बटन, कोट, पैंट, सिग्नल, लिफ्ट, फीस, कानून, अदालत, मुकदमा, दफ्तर, एफआईआर जैसे अंग्रेजी, फारसी और तुर्की भाषा के शब्दों का चलन जारी रहेगा।
ऐसे शब्दों से थी परेशानी
मिसिल (फाइल), प्रतिभूति (सिक्योरिटी), कुंजीपटल (कीबोर्ड) और संगणक (कंप्यूटर) आदि।

वेब दुनिया ने कहा है-
कठिन हिंदी शब्दों से आने वाली समस्याओं से पार पाने के लिए सरकार ने सेक्शन ऑफिसरों को निर्देश दिया है कि वे आसानी से समझ में आने और भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए वैसे शब्दों की जगह ‘हिंग्लिश’ शब्दों का प्रयोग करें।

यह आदेश गृह मंत्रालय की राजभाषा इकाई ने जारी किया। इसे हाल में विभिन्न दफ्तरों में फिर से भेजा गया है। इसमें आधिकारिक तौर पर उल्लेख किया गया है कि विशुद्ध हिंदी के इस्तेमाल से आम जनता में अरुचि पैदा होती है।

परिपत्र में अनुशंसा की गई है कि आधिकारिक कामों के लिए कठिन हिंदी शब्दों की जगह देवनागरी लिपि में अंग्रेजी के वैकल्पिक शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

गृह मंत्रालय में आधिकारिक भाषा विभाग ने उदाहरण देते हुए कहा कि ‘मिसिल’ की जगह फाइल का इस्तेमाल किया जा सकता है। ‘प्रत्याभूति’ की जगह ‘गारंटी’, ‘कुंजीपटल’ की जगह की-बोर्ड और ‘संगणक’ की जगह ‘कंप्यूटर’ का इस्तेमाल किया जा सकता है।

इसमें लोकप्रिय हिंदी शब्दों और वैकल्पिक अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने की भी वकालत की गई है ताकि भाषा को और आकर्षक तथा दफ्तरों और आम जनता के बीच इसे लोकप्रिय बनाया जा सके।

परिपत्र में कहा गया है कि जब भी आधिकारिक काम के दौरान अनुवाद की भाषा के तौर पर हिंदी का इस्तेमाल किया जाता है तो यह कठिन और जटिल बन जाती है। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद की प्रक्रिया में बदलाव करने की तत्काल आवश्यकता है। शब्दश: हिंदी करने की बजाय अनुवाद में मूल पाठ का भावानुवाद होना चाहिए।

आधिकारिक पत्राचार में उर्दू, अंग्रेजी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के लोकप्रिय शब्दों के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। हिंदी के शुद्ध शब्द साहित्यिक उद्देश्यों के लिए होने चाहिए, जबकि काम के लिए व्यावहारिक ‘मिश्रित’ शब्दों का इस्तेमाल होना चाहिए। इसमें कहा गया है कि शुद्ध हिंदी में अनुवाद करने की बजाय देवनागरी लिपि में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करना ज्यादा बेहतर है। (भाषा)
 

पोस्ट कार्ड



मैं छोटा हूँ, सस्ता हूँ
आम जनता का साथी हूँ,
सुख-दुःख बाँटता हूँ
भेद मन का खोलता हूँ।

हिंदुस्तान मेरा परिवार है,
हर जाति धरम में मेरी पहचान है
जब चाहो पढ़ लो मुझे
जब चाहो भेज दो मुझे।

माता-पिता का आशीर्वाद हूँ
भाई-बहन का धागा हूँ
घर घर की कहानी हूँ
मैं नहीं आता तो वीरानी हूँ।

डाक घर मेरी सराय है
घर आपका मेरा ठिकाना है
डाकिया कहे आपका पोस्ट कार्ड आया है
आप कहे घर हमारे मेहमान आया है।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

अहमद नगर दूरसंचार ज़िले की गृह पत्रिका कलश

सरकारी कार्यालयों में गृह पत्रिका का प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य कर्मचारी एवं प्रशासन के बीच सुसंवाद निर्माण करना है। गृह पत्रिका प्रकाशन का मतलब कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारियों की प्रतिभा की अभिव्यक्ति को एक सशक्त मंच उपलब्ध करवाना भी है। इस पत्रिका में रचनाएं प्रकाशित हो जाने के कारण न जाने कितने छुपे हुए कलाकार, लेखक, कवि प्रशासन के सामने आ गए। कार्यालय के कर्मचारियों के परिवार सदस्य भी इस पत्रिका के साथ जुड़ने लगे। कार्यालय में सांस्कृतिक वातावरण निर्माण करने में गृह पत्रिका ने प्रमुख भूमिका अदा की है। आज भी हमारा लिखा हुआ कोई साहित्य छपकर आता है तो हमें अत्यंत आनंद होता है। हम अपनी रचना को प्रकाशित होकर ऐसे आनंदित हो जाते है जैसे हमारे घर में किसी नव शिशु ने जन्म लिया हो।
दूरसंचार की तकनीकी पहलुओं को हम अपनी मातृ भाषा एवं राज भाषा में पढ़ने लगे। जो तकनीक पहले कठीण लगता था वह अब आसान लगने लगा। हम कार्यालय के नियम,सुविधा और अनुशासन को अच्छी तरह से समझने लगे है। गृह पत्रिका की भाषा कोई साहित्यिक अथवा नियम पुस्तक की नहीं बल्कि हमारी बोलचाल की दैनिक भाषा होती है।
गृह पत्रिका कलश का प्रथम अंक 2 अक्तूबर 1993 को प्रकाशित हुआ । अहमद नगर दूरसंचार ज़िले के तत्कालीन दूरसंचार ज़िला प्रबंधक श्री सत्य पाल (वर्तमान मुख्य महाप्रबंधक गुजरात सर्किल, अहमदाबाद) ने अपने अध्यक्षीय प्रास्ताविक में लिखा था - अहमद नगर दूरसंचार सेवाओं की उपलब्धियाँ तथा सामान्य जानकारी से अवगत कराना तथा कर्मचारियों में छुपी प्रतिभा को उजागर करना गृह पत्रिका कलश का उद्देश्य है।
गृह पत्रिका कलश का नाम स्व. श्री ए.जी. लांडगे (टेलिफोन अधीक्षक) ने सुझाया था । इस कलश को हिंदी-मराठी रचनाओं से सुशोभित किया गया । कलश के प्रथम मुख्य संपादक मंडल अभियंता(विकास) श्री पूरनमल के साथ कार्यकारी संपादक श्री आर.एस.कुलकर्णी, सह संपादक श्री एन.पी. साब्रन तथा वि. प्र. नगरकर थे।
गृह पत्रिका कलश का मुख पृष्ठ आकर्षण बिंदु रहा क्योंकि अहमद नगर ज़िले के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक प्राकृतिक स्थलों को प्रकाशित किया जाने लगा ।
मुख पृष्ठ पर अब तक संत ज्ञानेश्वर का पैस , शिरडी के साई बाबा शनि शिंगनापूर के शनि देवता, भंडारदरा धरण, निघोज के स्वयंभू कुंड, रेहकुरी का हरीण अभयारण्य, सिदेश्वर वाडी का पुरातन शिवालय मंदिर, रंधा फॉल, टाहाकारी अकोले का हेमोडपंथी प्राचीन जगदंबा माता मंदिर,
चोंडी, स्थित परम पूजनीय अहिल्या देवी होळकर का जन्मस्थान, अहमद नगर का भूईकोट किला, चाँद बीबी महल, हयूम मेमोरियल चर्च, विशाल गणपति, नेवासा का मोहिनीराज मंदिर आदि महत्त्वपूर्ण फोटो प्रकाशित हुए है।
कलश पत्रिका का निरंतर प्रकाशन तत्कालीन दूरसंचार ज़िला प्रबंधक श्री सत्य पाल, श्री ए.पी. भट, श्री जी.पी. भोकरे, महाप्रबंधक श्री एन.एन. गुप्ता, श्री जे. के. गुप्ता, श्री हेमंत जोगळेकर, श्री आर. के. चौहान तथा वर्तमान महाप्रबंधक श्री एल.एस.रोपिया जी ने सुलभ किया।
गृह पत्रिका कलश हेतु हमें डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठा विद्यापीठ के डॉ. चंद्र देव कवडे, निर्मलाताई देशपांडे ( विनोबा भावे की मानस पुत्री ), हिंदी साहित्यिक श्री यश पाल जौन, अहमद नगर के सेवानिवृत्त मेजर जनरल श्री बी.एस.मलिका, पूर्व सांसद श्री रत्नाकर पांडेय, हिंदी लेखक डॉ. दामोदर खडसे, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के महामन्त्री प्रा. अनंतराम त्रिपाठी तत्कालीन राज्यपाल अरूणाचल प्रदेश श्री माता प्रसाद, नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी के श्री सुधाकर पाण्डेय, विधान सभा सदस्य श्री राधा कृष्ण विखे पाटील, पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री श्री दिलीप गांधी,
डॉ. मनोज पटौरिया (निदेशक वैज्ञानिक एफ ), दूरसंचार विभाग के हिंदी सलाहकार श्री हरिहर लाल श्रीवास्तव, श्री राजेन्द्र पटोरिया आदि महानुभावों के प्रेरणादायक पत्र एवं प्रशंसा प्राप्त हुई है।
इस पत्रिका को गतिमान रखने में संपादक सदस्य श्री वि.प्र. नगरकर, सुभाष डाके, श्रीमती एस.सी. कुर्वे, श्री बी.डी.महानुर, वसंत दातीर, बी.जी. देशमुख, श्रीमती एस.एस. अष्टेकर, डी.भी . भोर अतिथि संपादक डॉ. शहाबुद्दीन शेख, लछमन हर्दवाणी, हेरंब कुलकर्णी आदि विद्वानों ने महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया ।
गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग, क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय, मुंबई में वर्ष 1994-95 के दौरान दूरसंचार ज़िला प्रबंधक कार्यालय अहमद नगर द्वारा प्रकाशित कलश गृह पत्रिका को द्वितीय पुरस्कार से 14 नवंबर 1995 को सम्मानित किया । इसी तरह राष्ट्रीय हिंदी अकादमी रु‎पांबरा पश्चिम बंगाल में इस कार्यालय की गृह पत्रिका कलश तथा राजभाषा कार्य हेतु राष्ट्रीय राजभाषा प्रथम पुरस्कार 1997 शिलाँग में प्रदान किया । इस कार्यक्रम में तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष श्री पी.ए. संगमा, मेघालय के राज्यपाल श्री जेकाब एवं मुख्यमंत्री श्री मराक उपस्थित थे।
पत्रिकाएँ अहमद नगर दूरसंचार के गुणवंत एवं होनहार बच्चों के फोटो हमेशा प्रकाशित किए जा रहे है। अधिकारी एवं कर्मचारियों के साहित्य को प्रकाशित करते समय हमने उनके परिवार सदस्य द्वारा लिखित साहित्य को भी प्रकाशित किया है। दूरसंचार सेवा संबंधित आधुनिक सेवाएं एवं तकनीक की जानकारी हिंदी मराठी भाषा के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाई जा रही है।
भारतीय दूरसंचार के 150 वें गौरवशाली वर्ष के निमित्त हमने 15 अगस्त 2003 को विशेषांक प्रकाशित किया था । इसी तरह राज भाषा सुवर्ण जंयती विशेषांक 14 सितंबर 2002 प्रकाशित किया गया इस पत्रिका में श्री वि. प्र.नगरकर, वसंत दातीर , बी.डी.महानुर, अन्सार इनामदार, बी.जी.देशमुख, सुभाष डाके, श्रीमती प्रगति पवार, रंगनाथ वाडेकर, विक्रांत कंगे, गिरीष जाधव, बी.बी. चौहान, श्रीमती एस.सी. कुर्वे , सविता धर्माधिकारी, आर. के. सोनवणे, श्री एल.एस. गावडे,श्री एम.एस.शेख, शेख सी.यू. पटेल, शहाबुद्दीन शेख, श्रीमती छाया घोटणकर, चि. अक्षय जांमगावकर, श्री डी.बी.अढाव, भूषण देशमुख, श्रीमती पी.जी.कंत्रोड, श्री व्ही.ए.इंगळे, भालचंद्र कांबळे , एस.बी. डोंगरे , डी.बी.भोर, कु. भाग्यश्री चेमटे, एस.आर.भळगट, एस.व्ही.नगरकर, प्रदीप जाधव, एच.आर.रोहोकले, आर.जी.ज्योतिक, व्ही.आर.पवार, ए.ए. चेंबूरकर आदि कर्मचारियों एवं अधिकारियों ने निरंतर अपनी रचनाएँ भेज कर कलश पत्रिका के सफल प्रकाशन में अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान किया है।
इस पत्रिका की चर्चा अनेक समाचार पत्र एवं पत्रिकायें में प्रकाशित हुई है। हमें सुदूर प्रांतों के ( असम, उड़ीसा, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश आदि ) अनेक पाठकों की प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हो रही है।
कुछ हिंदी प्रेमी हमें पत्र भेज कर कलश का वार्षिक चंदा भेजने के बारे में निवेदन करते है लेकिन यह एक गृह पत्रिका होने के कारण मुफ्त में अधिकारियों एवं कर्मचारियों को वितरित की जाती है।

मंगलवार, 22 जून 2010

संत महिपति की मराठी ग्रंथ रचनाएँ

१) श्रीभक्तविजय ५७ ९९१६ १६८४
२) श्रीकथासरामृत १२ ७२०० १६८७
३) श्रीसंतलीलामृत ३५ ५२५९ १६८९
४) श्रीभक्तलीलामृत ५१ १०७९४ १६९६
५) श्रीसंतविजय २६ (अपूर्ण) ४६२८ १६९६
६) श्रीपंढरी म्हात्म्य १२ - -
७) श्रीअनंत व्रतकथा - १८६ -
८) श्रीदत्तात्रेय जन्म - ११२ -
९) श्रीतुलसी महात्म्य ५ ७६३ -
१०) श्रीगणेशपुराण (अपूर्ण) ४ ३०४ -
११) श्रीपांडुरंग स्तोत्र - १०८ -
१२) श्रीमुक्ताभरणव्रत - १०१ -
१३) श्रीऋषीपंचमी व्रत - १४२ -
१४) अपराध निवेदन स्तोत्र - १०१ -
१५) स्फुट अभंग व पदे - - -
इन ग्रंथों में मराठी पद्य रचनाओं की संख्या चालीस हजार के करीब है।
'महाराष्ट्र कवि चरित्रकार' श्री. ज. र. आजगावकर द्वारी लिखित महिपती द्वारा रचित सुप्रसिध्द संतों का चरित्र निम्न नुसार है-
श्री नामदेव चरित्र अभंग ६२
श्री हरिपाळ चरित्र अभंग ५८
श्री कमाल चरित्र अभंग ६७
श्री नरसी मेहता चरित्र अभंग ५२
श्री राका कुंभार चरित्र अभंग ४७
श्री जगमित्र नागा चरित्र अभंग ६३
श्री माणकोजे बोधले चरित्र अभंग ६७
श्री संतोबा पवार चरित्र अभंग १०२
श्री चोखामेळा चरित्र अभंग ४७

'श्री भक्तलीलामृत' इस ग्रंथ में पदों की संख्या १०७९४ है।

शनिवार, 1 मई 2010

गुगल लिपि परिवर्तक

भारत के गुगल लैब ने किसी वेब पेज को अपनी भाषा की लिपि में पढ़ने की सुविधा प्रदान की है। अब तमिल वेब पेज भी अंग्रेज़ी लिपि (रोमन लिपि)  में परिवर्तित करके हम पढ़ सकते है। यहां किसी पाठ का अनुवाद नहीं बल्कि लिप्यंतरण किया जाता है। यह प्रक्रिया स्वराधारित है। इस परिवर्तक की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि अब हम किसी भारतीय भाषा में उपलब्ध सामग्री चाहे वह युनिकोड रहित हो उसे युनिकोड में परिवर्तित कर सकते है। इस सुविधा के कारण हम लिप ऑफ़िस, श्री लिपि,शुशा,शिवाजी,कृति देव, आकृति आदि फ़ौंट में किया हुआ काम युनिकोड में परिवर्तित कर सकते है। युनिकोड परिवर्तन करना बहुत कष्टसाध्य काम था।  याद रखे कि आपके कंप्यूटर में युनिकोड सक्रिय किया गया है। किसी वेबसाइट को देखने के लिए टैक्स्ट एरिया में यूआरएल टाइप करके आपकी पसंदीदा लिपि को चुन कर उसे परिवर्तित करने के लिए बटन दबाइए।
इस परिवर्तक में निम्नलिखित लिपि उपलब्ध है-
·        बाँग्ला
·        ग्रीक
·        अंग्रेज़ी
·        फ़ारसी
·        गुजराती
·        देवनागरी (हिंदी,मराठी,संस्कृत,नेपाली )
·        कन्नड़
·        मलायम
·        पंजाबी
·        रूसी
·        संस्कृत
·        सर्बियन
·        तमिल
·        तेलुगु
·        उर्दू
 इसमें सभी लोकप्रिय साइट के फ़ौंट युनिकोड में परिवर्तित होकर दिखाए जाएँगे। अगर आपकी कोई पसंदीदा साइट के फ़ौंट युनिकोड में परिवर्तित होने में मुश्किल हो रही है तो आप संबधित सामग्री उस फाँट के साथ गुगल लैब को निम्नलिखित मेल पते पर भेज दें –
 indialabs+scriptconv@google.com
सभी साइट का परिवर्तन कभी कभी संभव नहीं हो पाता है। जिन पृष्ठों में एचटीएमएल सपोर्ट है वही परिवर्तन संभव है। जिन साइट पर कुकिज सक्रिय करना आवश्यक होता है ऐसे साइट का परिवर्तन संभव नहीं है। अगर साइट में काम्प्लैक्स जावा का प्रयोग किया गया है तो वहा भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
 
कभी कभी परिवर्तन करने के बाद भी मूल लिपि में पृष्ठ दिखाया देते है क्योंकि प्रतिमाओं को परिवर्तित नहीं किया जाता है। इसी तरह सामग्री मूल रूप में न होकर जावा स्क्रिप्ट द्वारा भरी हो तो उसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता
गुगल लिपि परिवर्तक स्वयं उन पृष्ठों को पुनः एचटीएमएल में लिख कर उसे आपकी लिपि में परिवर्तित करके प्रस्तुत करता है। आप निश्चिन्त होकर साइट पर विचरण कर सकते हो।
आप अगर चाहे तो उपरि बार पर किसी साइट को मूल पृष्ठ पर जाकर बगैर परिवर्तन करके देख सकते है।
वेब पेज के किसी टैक्स्ट को आप टैक्स्ट एरिया में चिपका कर देख भी सकते है जिससे पूरे वेब पृष्ठ को परिवर्तित करने की आवश्यकता नहीं होगी।

अगर आप परिवर्तन आपकी पसंदीदा लिपि में नहीं कर पा रहे हो तो गुगल लैब को ज़रुर सुचित करें।

indialabs+scriptconv@google.com

कृपया आप स्वयम् अजमाकर देखें और गुगल लैब से संपर्क करें ताकि यह योजना सफल बनें।
http://scriptconv.googlelabs.com/
 
 

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

राष्ट्र लिपि के विकास में नागरी लिपि का योगदान

आचार्य विनोबा भावे जी ने देवनागरी लिपि के बारे में कहा है कि “ हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है।“
देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कुछ विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, नेपाली, तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में सिंधि, गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।

अधिकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर रेखा नहीं होती है)इसे शिरोरेखा कहते हैं। इसका विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और व्यापक लिपि शायद केवल आइपीए लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है।सी-डैक पुणे के अनुसंधान के अनुसार देवनागरी लिपि का मूल आधार ब्राह्मी लिपि है। आजकल कंप्यूटर पर इनस्क्रिप्ट की बोर्ड सबसे लोकप्रिय की बोर्ड है जिसका आधार भी ब्राह्मी लिपि है। सभी भारतीय भाषाओं का जन्म ब्राह्मी लिपि से हुआ है। इसलिए इनस्क्रिप्ट की बोर्ड की सहायता से किसी भी भारतीय भाषा को एक ही की बोर्ड द्वारा टंकित किया जा सकता है। सभी भारतीय भाषाएँ स्वराधारित है।
भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नहीं है।

इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) मे प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा।

भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं (उर्दू को छोडकर), पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं -- क्योंकि वो सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।
देवनागरी लिपि को सूचना प्रौद्योगिकी में स्थापित करने के लिए भारत सरकार ने देवनागरी लिपि को तकनीकी रुप में विश्वस्तरिय बनाया है। अब देवनागरी के अक्षर यूनिकोड में परिवर्तित
किए गए है। सूचना विनिमय के मानक के रूप में यूनिकोड की स्वीकृति संपूर्ण विश्व में बढ़ती जा रही है । सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की अधिकांश कंपनियों ने इसके पक्ष में अपने सहयोग की घोषणा कर दी है । भारतीय भाषाओं के लिए यूनिकोड 'आइस्की 91' का प्रयोग न करके 'इस्की 88' का प्रयोग करता है जो अद्यतन सरकारी मानक है । यह आवश्यक समझा गया कि भारत सरकार, भारतीय भाषाओं के लिए कोड में आवश्यक संशोधन के लिए यूनिकोड कंसोर्टियम के समक्ष अपना पक्ष रखे । इस उद्देश्य से सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय यूनिकोड कंसोर्टियम का मताधिकार के साथ पूर्ण सदस्य बन गया है ।

16 बिट (2 बाइट) यूनिकोड - यूनिकोड मानक कंप्यूटर संसाधन के उद्देश्य से पाठ निरूपण के लिए एक सार्वदेशिक वर्ण कोडांतरण मानक है । यूनिकोड मानक विश्व कीलिखित भाषाओं के लिए प्रयुक्त सभी वर्णों के कोडांतरण की क्षमता रखता है । यूनिकोड मानक वर्ण तथा उसके प्रयोग के संबंध में सूचना प्रदान करता है । बहुभाषी पाठों से संबंध रखने वाले व्यापारिक लोगों, भाषाविदों, शोधकर्ताओं, विज्ञानियों, गणितज्ञों तथा तकनीकज्ञों जैसे कंप्यूटर प्रयोक्ताओं के लिए यूनिकोड मानक बहुत ही उपयोगी है । यूनिकोड 16 बिट कोडांतरण का उपयोग करता है जिसमें 65000 वर्णों (65536) से भी अधिक के लिए कोड बिंदु उपलब्ध कराता है । यूनिकोड मानक प्रत्येक वर्ण को एक निश्चत संख्यात्मक मूल्य तथा नाम निर्धारित करता है ।
यूनिकोड
यूनिकोड, प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष संख्या प्रदान करता है, चाहे कोई भी कम्प्यूटर प्लेटफॉर्म, प्रोग्राम अथवा कोई भी भाषा हो। यूनिकोड स्टैंडर्ड को एपल, एच.पी., आई.बी.एम., जस्ट सिस्टम, माइक्रोसॉफ्ट, ऑरेकल, सैप, सन, साईबेस, यूनिसिस जैसी उद्योग की प्रमुख कम्पनियों और कई अन्य ने अपनाया है। यूनिकोड की आवश्यकता आधुनिक मानदंडों, जैसे एक्स.एम.एल, जावा, एकमा स्क्रिप्ट (जावास्क्रिप्ट), एल.डी.ए.पी., कोर्बा 3.0, डब्ल्यू.एम.एल के लिए होती है और यह आई.एस.ओ/आई.ई.सी. 10646 को लागू करने का अधिकारिक तरीका है। यह कई संचालन प्रणालियों, सभी आधुनिक ब्राउजरों और कई अन्य उत्पादों में होता है। यूनिकोड स्टैंडर्ड की उत्पति और इसके सहायक उपकरणों की उपलब्धता, हाल ही के अति महत्वपूर्ण विश्वव्यापी सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी रुझानों में से हैं।
यूनिकोड को ग्राहक-सर्वर अथवा बहु-आयामी उपकरणों और वेबसाइटों में शामिल करने से, परंपरागत उपकरणों के प्रयोग की अपेक्षा खर्च में अत्यधिक बचत होती है। यूनिकोड से एक ऐसा अकेला सॉफ्टवेयर उत्पाद अथवा अकेला वेबसाइट मिल जाता है, जिसे री-इंजीनियरिंग के बिना विभिन्न प्लेटफॉर्मों, भाषाओं और देशों में उपयोग किया जा सकता है। इससे आँकड़ों को बिना किसी बाधा के विभिन्न प्रणालियों से होकर ले जाया जा सकता है।
यूनिकोड क्या है?
यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नम्बर प्रदान करता है,
• चाहे कोई भी प्लैटफॉर्म हो,
• चाहे कोई भी प्रोग्राम हो,
• चाहे कोई भी भाषा हो।
कम्प्यूटर, मूल रूप से, नंबरों से सम्बंध रखते हैं। ये प्रत्येक अक्षर और वर्ण के लिए एक नंबर निर्धारित करके अक्षर और वर्ण संग्रहित करते हैं। यूनिकोड का आविष्कार होने से पहले, ऐसे नंबर देने के लिए सैंकडों विभिन्न संकेत लिपि प्रणालियां थीं। किसी एक संकेत लिपि में पर्याप्त अक्षर नहीं हो सकते हैं : उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ को अकेले ही, अपनी सभी भाषाओं को कवर करने के लिए अनेक विभिन्न संकेत लिपियों की आवश्यकता होती है। अंग्रेजी जैसी भाषा के लिए भी, सभी अक्षरों, विरामचिन्हों और सामान्य प्रयोग के तकनीकी प्रतीकों हेतु एक ही संकेत लिपि पर्याप्त नहीं थी।
ये संकेत लिपि प्रणालियां परस्पर विरोधी भी हैं। इसीलिए, दो संकेत लिपियां दो विभिन्न अक्षरों के लिए, एक ही नंबर प्रयोग कर सकती हैं, अथवा समान अक्षर के लिए विभिन्न नम्बरों का प्रयोग कर सकती हैं। किसी भी कम्प्यूटर (विशेष रूप से सर्वर) को विभिन्न संकेत लिपियां संभालनी पड़ती है; फिर भी जब दो विभिन्न संकेत लिपियों अथवा प्लेटफॉर्मों के बीच डाटा भेजा जाता है तो उस डाटा के हमेशा खराब होने का जोखिम रहता है।
यूनिकोड से यह सब कुछ बदल रहा है!

यूनिकोड कन्सॉर्शियम के बारे में यूनिकोड कन्सॉर्शियम, एक लाभ न कमाने वाला एक संगठन है जिसकी स्थापना यूनिकोड स्टैंडर्ड, जो आधुनिक सॉफ्टवेयर उत्पादों और मानकों में पाठ की प्रस्तुति को निर्दिष्ट करता है, के विकास, विस्तार और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इस कन्सॉर्शियम के सदस्यों में, कम्प्यूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न निगम और संगठन शामिल हैं। इस कन्सॉर्शियम का वित्तपोषण पूर्णतः सदस्यों के शुल्क से किया जाता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम में सदस्यता, विश्व में कहीं भी स्थित उन संगठनों और व्यक्तियों के लिए खुली है जो यूनिकोड का समर्थन करते हैं और जो इसके विस्तार और कार्यान्वयन में सहायता करना चाहते हैं।

यूनिकोड कन्सॉर्शियम के अनुसार इण्डिक यूनिकोड यूनिकोड के भारतीय लिपियों से सम्बंधित सॅक्शन को कहा जाता है। यूनिकोड के नवीनतम संस्करण ५.१.० में विविध भारतीय लिपियों को मानकीकृत किया गया है जिनमें देवनागरी भी शामिल है।
यूनिकोड ५.१.० में निम्नलिखित भारतीय लिपियों को कूटबद्ध किया गया है:
• देवनागरी
• बंगाली लिपि
• गुजराती लिपि
• गुरुमुखी
• कन्नड़ लिपि
• लिम्बू लिपि (enLimbu script)
• मलयालम लिपि
• उड़िया लिपि
• सिंहल लिपि
• स्यलोटी नागरी (enSyloti Nagri)
• तमिल लिपि
• तेलुगु लिपि
यूनिकोड कॉन्सोर्टियम द्वारा अब तक निर्धारित देवनागरी यूनिकोड ५.१.० में कुल १०९ वर्णों/चिह्नों का मानकीकरण किया गया है अभी देवनागरी के बहुत से वर्ण जिनमें शुद्ध व्यंजन (हलन्त व्यंजन - आधे अक्षर) तथा कई वैदिक ध्वनि चिह्न एवं अन्य चिह्न यथा स्वस्तिक आदि, यूनिकोड में शामिल नहीं हैं। शुद्द व्यंजनों के यूनिकोडित न होने के कारण वर्तमान में उन्हें सामान्य व्यंजन के साथ अलग से हलन्त लगाकर प्रकट किया जाता है जिससे कि टैक्स्ट का साइज बढ़ने के अतिरिक्त कम्प्यूटिंग सम्बंधी कई समस्याएँ आती हैं।

यूनिकोड 16 बिट कोडिंग का प्रयोग करते हुए 65000 से अधिक वर्णों (65536) के लिए कोड-बिंदु निश्चत करता है । यूनिकोड मानक प्रत्येक वर्ण को एक विशिष्ट संख्यात्मक मूल्य तथा नाम प्रदान करता है । यूनिकोड मानक विश्व की सभी लिखित भाषाओं में प्रयुक्त सभी वर्णों की कोडिंग के लिए क्षमता प्रदान करता है । 'इस्की' 8बिट कोड है जो 'एकी' के 7बिट कोड का विस्तृत रूप है जिसके अनुसार ब्राह्मी लिपि से उद्भूत 10 भारतीय लिपियों के लिए मूलभूत वर्ण सम्मिलित हैं । भारत में 15 मान्यता प्राप्त भाषाएँ हैं । फारसी-अरबी लिपियों के अतिरिक्त, भारतीय भाषाओं के लिए प्रयुक्त अन्य सभी 10 लिपियाँ प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई हैं तथा इसकी ध्वन्यात्मक संरचना में समानता पाई जाती है जिससे समान वर्ण सैट संभव हो सकता । 'आज इस्की' कोड सारणी ब्राह्मी आधारित भारतीय लिपियों के लिए आवश्यक एक प्रकार का सुपर सैट है । सुविधा के लिए मान्यता प्राप्त देवनागरी लिपि के वर्णों को मानक में प्रयोग किया गया है ।


बहुभाषी साफ़्टवेयर के विकास के लिए यूनीकोड मानकों का उद्योग जगत द्वारा व्यापक प्रयोग किया जा रहा है। भारतीय लिपियों के लिये यूनीकोड मानक ISCII-1988 पर आधारित हैं। सूचना आदान-प्रदान के लिये वर्तमान मानक ISCII - IS13194:1991(Indian Script Code for Information Interchange- IS13194:1991) है। भारतीय लिपियों की विशिष्ताओं के पर्याप्त निरूपण के लिए यूनीकोड मानकों में कुछ रूपांतरण शामिल किए जाने जरूरी हैं। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय यूनीकोड कंसार्टियम का मताधिकार सदस्य है। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने संबंधित राज्य सरकारों, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग और भाषाविदों के परामर्श से वर्तमान यूनीकोड मानकों में प्रस्तावित परिवर्तनों को अंतिम रूप दिया गया है। इन्हें TDIL समाचार पत्रिका विश्वभारत@tdil के अंक 4 (देवनागरी आधारित भाषाएं संस्कृत, हिन्दी, मराठी, नेपाली, कोंकणी, सिन्धी), अंक 5 (गुजराती, मलयालम तेलगू, गुरूमुखी, उड़िया), अंक 6 (बंगला, मनीपुरी और असमी), अंक 7 (तमिल, कन्नड़, उर्दू, सिन्धी, कश्मीरी) में प्रकाशित किया गया था। प्रस्तावित परिवर्तनों को यूनीकोड कंसार्टियम में प्रस्तुत किया गया था। यूनीकोड तकनीकी समिति ने प्रस्तावित परिवर्तनों में से कुछ परिवर्तन स्वीकार कर लिये हैं एवं अद्यतन यूनीकोड मानकों में इनका समावेश किया जा चुका है ।


भारतीय मानक ब्यूरो ने इस्की (सूचना विनिमय के लिए भारतीय मानक कोड) नाम से एक मानक निर्मित किया है जिसे 7 या 8 बिट वर्णों का प्रयोग करते हुए सभी कंप्यूटरों तथा संचार माध्यमों में प्रयोग किया जा सकता है । 8 बिट परिवेश में निचले 128 वर्ण वही हैं जो सूचना विनिमय के लिए IS10315:1982 (ISO 646 IRV)7-बिट वर्ण सैट द्वारा परिभाषित हैं, जिन्हें एस्की वर्ण सैट के रूप में भी जाना जाता है । ऊपर के 128 वर्ण सैट प्राचीन ब्राह्मी लिपि पर आधारित भारतीय लिपियों की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं ।

7 -बिट परिवेश में, नियंत्रक कोड एस.आई. को आस्की कोड के आह्वान के लिए प्रयोग किया जा सकता है तथा नियंत्रक कोड एस.ओ. को एस्की कोड सैट के पुनर्चयन के लिए प्रयोग किया जा सकता है । भारत में 15 मान्यता प्राप्त भाषाएँ हैं । फारसी-अरबी लिपियों के अतिरिक्त, भारतीय भाषाओं के लिए प्रयुक्त अन्य 10 लिपियाँ प्राचीन ब्राह्मी लिपि से उद्भूत हैं और इस्की कोड के अतिरिक्त वर्णों का प्रयोग किया जा सकता है । इस्की कोड सारणी ब्राह्मी आधारित भारतीय लिपियों में आवश्यक सभी वर्णों का एक सुपर सैट है । सुविधा के लिए, मान्यता प्राप्त देवनागरी लिपि के वर्णों को मानक में प्रयुक्त किया गया है । भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा जारी मानक संख्या IS1319 :1991 सूचना विनिमय के लिए नवीनतम भारतीय मानक है । इसे भारतीय भाषाओं में सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों के विकास के लिए व्यापक रूप से प्रयोग किया जा रहा है ।

लिपि वर्ण सैट यह प्रमुख वर्ण सैट होता है जिसमें बहुधा प्रयुक्त अधिकांश भाषाएं वर्ण, चिह्न, संख्याएँ आदि सम्मिलित होती हैं । कुछ अपवादों को छोड़कर चिह्नों का यह सैट सभी 'इस्फोक' वर्ण सैट में समान होगा । मैचिंग अंग्रेजी वर्ण सैट नीचे के आधे भाग में 'एस्की' वर्णों से युक्त मैचिंग अंग्रेजी फोंट के लिए सहयोगी वर्ण सैट होते हैं तथा उपर के आधे भाग में रोमन लिप्याँतरण के लिए बलाघात वर्ण होते हैं । अनुपूरक वर्ण सैट अनुपूरक वर्ण सैट मूलभूत लिपि वर्णों के सेट का एक विस्तृत सेट है जिसमें ऐसे संयुक्ताक्षर तथा चिह्न सम्मिलित होते हैं जिनका प्रयोग सामान्यतया नहीं होता ।
देवनागरी से अन्य लिपियों में रूपान्तरण
• ITRANS (iTrans) निरूपण , देवनागरी को लैटिन (रोमन) में परिवर्तित करने का आधुनिकतम और अक्षत (lossless) तरीका है। ( Online Interface to iTrans )
• आजकल अनेक कम्प्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को किसी भी भारतीय लिपि में बदला जा सकता है। ( भोमियो क्रास_लिटरेशन )
• कुछ ऐसे भी कम्प्यूटर प्रोग्राम हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को लैटिन, अरबी, चीनी, क्रिलिक, आईपीए (IPA) आदि में बदला जा सकता है। (ICU Transform Demo)
• यूनिकोड के पदार्पण के बाद देवनागरी का रोमनीकरण (romanization) अब अनावश्यक होता जा रहा है। क्योंकि धीरे-धीरे कम्प्यूटर पर देवनागरी को (और अन्य लिपियों को भी) पूर्ण समर्थन मिलने लगा है।



देवनागरी लिपि को कंप्यूटर पर टंकित करने के लिए ३ विकल्प है।
तीन कुंजीपटल विन्यास हैं -

1. रोमनीकृत विन्यास :रोमनीकृत विन्यासों में, हिंदी पाठ के टंकण में अंग्रेजी ध्वन्यात्मक मैपिंग का प्रयोग किया है । उदाहरण के लिए 'राम' टंकित करने के लिए raamaa (या rAmA) का प्रयोग किया जा सकता है ।

2.टाइपराइटर विन्यास : यह विन्यास हिंदी टाइपराइटर विन्यास के समान है तथा यह विन्यास हिंदी टंककों तथा हिंदी टाइपराइटर विन्यास तथा कुंजीक्रम चार्ट के जानकार लोगों के लिए उपयोगी है ।

3. इलेक्ट्रॉनिकी विभाग ध्वन्यात्मक : यह विन्यास इलेक्ट्रॉनिकी विभाग, भारत सरकार के द्वारा मानकीकृत किया गया है । इस विन्यास का लाभ यह है कि यह सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान है । उदाहरण के लिए 'k' कुंजी का प्रयोग सभी भारतीय भाषाओं में 'क' वर्ण के कुंजीयन के लिए किया जाता है । कुंजीपटल विन्यास तथा कुंजीक्रम चार्ट का प्रयोग सही कुंजी संयोजकों के लिए किया जाता है ।

भारतीय भाषाओं में टाइप करने की सुविधा वाले माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस सुइट 2003 के आगमन से उस हर भारतीय भाषा में आप टाइप कर सकते हैं जिसे ऑफ़िस 2003 में समर्थन प्राप्त है। फिलहाल जिन भारतीय भाषाओं में आप ऑफ़िस 2003 में काम कर सकते हैं वे हैं- गुजराती, हिंदी, कन्नड, मलयालम, तमिल और बांग्ला। किसी भी भारतीय लिपि की वर्णॅमाला के जटिल अक्षरों और चिह्नों को आप ऑफ़िस 2003 में इंडिक आई एम ई या इनपुट मेथड एडिटर (कह लीजिए भाषा संपादक) की मदद से आप टाइप कर सकते हैं। भाषा संपादक या आई एम ई एक प्रोग्राम या ऑपरेटिंग सिस्टम का हिस्सा है जो कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों को मानक पश्चिमी की बोर्ड के जरिए जटिल वर्णॅ और चिह्नों (जैसे कि जापानी, तिब्बती, कोरियाई और भारतीय वर्णमालाओं) को टाइप करने की सुविधा देता है। अगर आप माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस के किसी प्रोग्राम में भारतीय भाषाओं, जैसे कि हिंदी, कन्नड, मलयालम, तमिल, गुजराती या बांग्ला में टाइप करना चाहते हैं तो आपको आई एम ई की ज़रूरत होगी। यह आई एम ई या आपके लिए माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस की सी डी में या माइक्रोसॉफ़्ट भाषाइंडिया वेबसाइट के Downloads लिंक पर उपलब्ध है। भारतीय लोगों के लिए हिंदी का अत्यधिक महत्व है। देश भर में 50 करोड़ से अधिक हिंदी भाषियों के होते हुए हिंदी वास्तव में प्रशासन और बहुसंख्यकों की भाषा है। कंप्यूटर पर माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस आधारित कार्य हिंदी में करने के लिए एक सरल, 5 चरणों की प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
1. आई एम ई में कार्य करने की संभावना के लिए कंप्यूटर में हिंदी आई एम ई स्थापित करना आवश्यक है। इसे bhashaindia.com के मुख्पृष्ट से डाउनलोड किया जा सकता है।
 अगर कंप्यूटर पर Windows 2000 स्थापित है और हिंदी के लिए सपोर्ट भी सक्रिय है तो उपभोक्ता कंट्रोल पैनल पर जा कर रीजनल ऑप्शन पर जाएं, यहां पर "सेटिंग फॉर द सिस्टम" में " इंडिक बॉक्स" को सेलेक्ट करें। इसके बाद Windows 2000 की सी डी कंप्यूटर के सी डी रॉम ड्राइव में लगाएं और प्रोग्राम स्थापित करने के लिए निर्देश पूरे करें।
 अगर कंप्यूटर में Windows XP स्थापित है तो कंट्रोल पैनल पर जा कर "रीजनल एंड लैंगुएजेस" ऑप्शन पर जाएं। यहां आपको तीन विकल्प मिलेंगे; रीजनल ऑप्शन, लैंगुएजेस और एडवांस्ड। यहां पर एक बॉक्स होगा " जटिल लिपियों और बाएं से दाएं भाषाओं के लिए ( थाई भाषा समेत) फ़ाइल स्थापित करें। इस बॉक्स को सेलेक्ट करें और फिर "अप्लाई" बटन पर क्लिक करें।
2. हिंदी आई एम ई की "सेट अप" फ़ाइल चलाएं (रन करें) और कंप्यूटर पुन: आरंभ करें।
3. अब अगला कदम होगा कंप्यूटर द्वारा की-बोर्ड ले-आउट पहचानने की व्यवस्था करने का। इसके लिए भाषा में परिवर्तन ज़रूरी होगा।
 अगर कंप्यूटर पर Windows 2002 स्थापित है तो कंट्रोल पैनल पर जाएं, फिर "टेक्स्ट सर्विस" खंड में। इसमें "इंस्टाल्ड सर्विस" खंड में एक ऑप्शन होगा HI का। इसमें दिखाई देने वाला की- बोर्ड सेलेक्ट करिए और "add" बटन क्लिक करिए। इसके बाद Input Language खंड में हिंदी का विकल्प चुनिए और Keyboard Layout / IME बॉक्स को सेलेक्ट करिए। अब जो विकल्प आप्को उपलब्ध नज़र आएं उनमें से इंडिक आई एम ई विकल्प सेलेक्ट कर लीजिए।
 अगर कंप्यूटर में Windows XP स्थापित है तो कंट्रोल पैनल पर जा कर "रीजनल एंड लैंगुएजेस" ऑप्शन बटन पर जाएं। यहां उपलब्ध तीन विकल्पों में से लैंगुएजेस ऑप्शन चुनिए। फिर "Text services and input languages" खंड में "Details…" पर क्लिक करिए। क्लिक करने पर हिंदी को इनपुट भाषा के रूप में चुनिए और की बोर्ड के रूप में ट्रेडीशनल हिंदी को चुनिए। इसके आगे Windows 2000 में स्थापना के कदम वैसे ही रहेंगे और ऑप्शन में इंडिक आई एम ई 1 को चुन लीजिए।
4. प्रोग्राम की इस स्थापना पूरी हो जाए फिर ऑफ़िस का कोई भी कार्यक्रम शुरू करिए, नोटपैड और वर्डपैड सहित। Windows के दाईं ओर, नीचे की तरफ़ आपको विभिन्न कार्यक्रमों के चिह्न दिखाई देंगे; उसी में आपको भाषा संकेतक भी दिखाई देगा। इसे क्लिक करिए और फिर जो छोटा मेन्यू नज़र आएगा उसमें " इंडिक आई एम ई" को सेलेक्ट करिए।
5. अब आपका कंप्यूटर हिंदी में टाइप करने के लिए तैयार है।
हिंदी के लिए इंडिक आई एम ई 1 में छ्ह प्रकार के की-बोर्ड आते हैं।
1. हिंदी ट्रांसलिटेरशन (हू-ब-हू लेखन) :
यह फ़ोनेटिक टाइपिंग पर आधारित होता है। यानी आप मानक अंग्रेजी की-बोर्ड पर रोमन लिपि में शब्द टाइप करेंगे तो वह इस्तेमाल किए गए अक्षरों के मुताबिक हिंदी अक्षर टाइप करेगा। उदाहरण के लिए आप को " क" टाइप करना है तो आप अंग्रेज़ी का " के" अक्षर दबाएं और वह हिंदी का "क" अक्षर बन कर टाइप होगा। यह फ़ोनेटिक के सिद्धांत पर कार्य करता है और उन स्थितियों में सबसे अधिक उपयोगी है जहां आप शब्दों को ठीक उसी प्रकार लिखते हैं जैसा उनका उच्चारण होता है। 2. हिंदी रेमिंगटन :
हिंदी रेमिंगटन सामन्य रेमिंगटन हिंदी टाइपराइटर है। इसमें रेमिंगटन की- बोर्ड के आधार पर टाइपिंग की जा सकती है।
3. हिंदी टाइपराइटर :
एक और ऎसा की-बोर्ड जो आम तौर पर टाइपिंग में इस्तेमाल होता है। इसमें हिंदी टाइपराइटर की- बोर्ड के आधार पर टाइपिंग की जा सकती है।
4. इंस्क्रिप्ट की-बोर्ड :
एक ऎसा हिंदी की-बोर्ड जहां लेखक मूल वर्णों को क्रमबद्ध तरीके से लिखता है और एक अंर्तनिहित "लॉजिक" यह तय करता है कि इनमें से किन वर्णों को जोड़ा जाए या निकाला जाए और वाक्य बनाया जाए।
5. वेबदुनिया की-बोर्ड :
एक हिंदी की-बोर्ड जो वेबदुनिया की-बोर्ड के क्रमानुसार हिंदी टाइप करता है।
6. हिंदी विशेष वर्ण :
एक ऎसा की-बोर्ड जिसमें हिंदी के सभी संभाव्य विशेष वर्ण होते हैं।
7. एंग्लो नागरी की-बोर्ड :
एक और हिंदी की-बोर्ड जो टाइपिंग में इस्तेमाल होता है। इसमें भी टाइपिंग वेबदुनिया की-बोर्ड के क्रमानुसार होती है। हिंदी आई एम ई में इतनी अलग-अलग विशेषताओं के होते हुए लेखक सरलता से माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस में हिंदी में किसी भी प्रकार का दस्तावेज़ टाइप कर सकता है।
हिंदी आई एम ई के इस्तेमाल में कुछ खास बातें ध्यान् रखने योग्य हैं। भारतीय लिपियों की जटिलता और उनके बारे में चल रहे अनुसंधान देखते हुए हिंदी में टाइपिंग करते समय कुछ बातें याद रखें।
1. अगर आप माइक्रोसॉफ़्ट एक्सेल में टाइप कर रहे हैं तो टाइप किए हुए शब्द स्पेस, एंटर या टैब बटन दबाने से पहले नहीं दिखेंगे।
2. जब शब्दसूची की कस्टमाइज़ विंडो बंद कर दी जाती है तो कंप्यूटर की स्क्रीन पर एक छोटी विंडो खुली रहेगी।
3. यदि माइक्रोसॉफ़्ट फ्रंट पेज़ या माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक के HTML कंपोज़ ऑप्शन में हिंदी बहुत तेजी से टाइप की जाती है तो प्रोग्राम अचानक बंद हो सकता है। इसलिए मध्यम गति की टाइपिंग अपनाएं।
4. माइक्रोसॉफ़्ट एक्सेल में हिंदी लिपि की टाइपिंग के दौरान बिना कारण प्रोग्राम बंद हो जाने की उच्च संभावना होती है, अत: समय-समय पर अपना कार्य "save" करते रहें।
5. माइक्रोसॉफ़्ट फ्रंट पेज़ या माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक के HTML Mail ऑप्शन में हिंदी लिपि लिखते समय कार्य थोड़ा धीमा हो जाता है।
6. अंग्रेज़ी की- बोर्ड ऑप्शन या स्थापित किए गए किसी भी आई एम ई के बीच अदला-बदली के दौरान यदि आखिरी शब्द के बाद जगह नहीं दी गयी तो वह मिट जाता है।
7. माइक्रोसॉफ़्ट फ्रंट पेज़ या माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक के HTML कंपोज़ ऑप्शन में नई पंक्ति पाने के लिए दो बार "Enter" बटन दबाना ज़रूरी है।
8. यदि कोई शब्द/ अक्षर टाइप करने के बाद बिना कोई जगह दिए हुए ( जैसे कि स्पेस, एंटर या टैब दबाए हुए) तीर के निशान वाले बटन दबाए गए तो उसके काम करने के लिए उस बटन को दो बार दबाना होगा। अगर शब्दों के बाद जगह है तो बटन एक बार में काम करेंगे।


भाषा के विकास में लिपि का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। भारत में राष्ट्रभाषा के नाम पर विरोध हो सकता है। राष्ट्रलिपि का सम्मान नागरी लिपि को मिलना चाहिए। राष्ट्रलिपि नागरी लिपि के विकास में सभी की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए।
जय नागरी, जय विनोबा जी।

(संदर्भ- हिंदी विकिपीडिया,भाषा इंडिया, नागरी लिपि परिषद,यूनिकोड.ओरजी )

पीठापुरम यात्रा

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