“शब्दों के साथ साथ भारतीय भाषा परिवार की परिक्रमा”
डॉ सुरेश पंत जी द्वारा लिखित शब्दों के साथ-साथ पुस्तक को बेस्ट सेलर के नाते अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। भाषा प्रेमियों ने इस पुस्तक का सहर्ष स्वागत किया है।
विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक पेंगुइन स्वदेशी भारत ने अब इस पुस्तक का दूसरा भाग प्रकाशित किया है। पुस्तक का आवरण चित्र मनीष ने तैयार किया है ।
पुस्तक के आवरण पृष्ठ के चित्र में एक गतिमान चक्राकार आकृति में “शब्दों के साथ-साथ 2” को चित्रित किया गया है। यह चक्राकार यह दर्शाता है की शब्दों की यात्रा अनेक संस्कृतियों भू भागों के विभिन्न भाषिक समूह को समृद्ध करते हुए अनवरत आगे बढ़ रही है।
आवरण पृष्ठ पर यह घोषणा की गई है कि “विविध शब्दों और उनके व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाने वाली पुस्तक।
भारतीय भाषा परिवार में शब्द ज्ञान का महत्व अत्यधिक है। भाषा मानव-व्यवहार का एक महत्वपूर्ण अंग होती है। जन्म से ही मनुष्य को अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए भाषा की आवश्यकता महसूस होती है। भाषा के बिना मानव पशुतुल्य होता है।
“शब्दो के साथ साथ” सिर्फ हिंदी भाषा नहीं बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं की शब्द संपदा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।इस पुस्तक के साथ साथ हिंदी पाठकों के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं के पाठकों भी भला होगा। भारतीय भाषाओं पर सबसे अत्यधिक आक्रमण अंग्रेजी भाषा का हुआ है। हम आजकल हमारी भाषाओं की समृद्ध शब्द परंपरा को भूल रहे है। इस निराशा के माहौल में पंत जी के “शब्दों के साथ साथ” पुस्तक ने नई ऊर्जा प्रदान की है।
आश्चर्य तब होता है कि हिंदी साहित्य की समृद्ध परंपरा में शब्दकोशों का महत्व बढ़ रहा है। इस समय पंत जी के “शब्दों के साथ साथ “पुस्तक ने हमारा ध्यान आकृष्ट किया है।हम फिर हमारे शब्दों की खोज पर निकल पड़े है। यह एक आश्वासक स्थिति पैदा हुई है।
इस पुस्तक के 83 प्रमुख शब्द संपदा की सार्थक चर्चा की गई है।एक निष्ठावान विद्वान अध्यापक होने के नाते सुरेश पंत जी ने परिश्रमपूर्वक इस शब्द संपदा का इतिहास रोचक आसान भाषा में प्रस्तुत किया है।
इस पुस्तक के पृष्ठ 227 पर संदर्भ सूची प्रदान की गई है जिससे पाठकों के लिए कोई विशेष शब्द ढूंढने में आसन होगा। पृष्ठ 238 पर भाषा विज्ञान संबंधित अनेक महत्वपूर्ण लेखकों की सूची के साथ-साथ वेब संदर्भ में ऑनलाइन उपलब्ध कोषों की लिंक भी प्रदान की गई है।
डॉ. सुरेश पंत ने अपनी इस भूमिका में "शब्दों के साथ-साथ" के दूसरे भाग के निर्माण की पृष्ठभूमि, प्रेरणा और चुनौतियों को विस्तार से प्रस्तुत किया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि हिंदी भाषा का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है और इसके साथ ही शब्दों के अर्थ और प्रयोग को लेकर नए-नए प्रश्न उठ रहे हैं। उन्होंने इस पुस्तक को लिखने के लिए विभिन्न लोगों, विशेषज्ञों और पाठकों के योगदान को स्वीकार किया है।
इस भूमिका में, डॉ. पंत एक भाषाविद और अध्यापक के रूप में अपनी भूमिका को बखूबी निभाते हुए दिखाई देते हैं।
उनका हिंदी भाषा के विकास और उसके शुद्ध प्रयोग के प्रति गहरा समर्पण हैं।
मुख्य बात यह है कि पाठकों की जिज्ञासाओं को वे समझते हैं और उनके प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करते हैं।
विद्वतापूर्ण दृष्टिकोण होने कारण वे हिंदी भाषा के विस्तृत अध्ययन और शोध पर आधारित अपनी बात रखते हैं।
उनकी विनम्रता है कि वे अन्य विद्वानों के योगदान को स्वीकार करते हैं और अपनी सीमाओं को भी स्वीकार करते हैं।
डॉ. पंत ने इस बात पर जोर दिया है कि भाषा एक गतिशील तत्व है और इसके शब्द भंडार और प्रयोग लगातार बदलते रहते हैं। वे इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि शब्द विमर्श का कार्य कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता।
सोशल मीडिया के एक्स,फेसबुक पर सक्रिय रहनेवाले ज्येष्ठ वयोवृद्ध डॉ. पंत ने इस पुस्तक के निर्माण में पाठकों के महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार किया है। उन्होंने बताया है कि पाठकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों ने उन्हें कई नए शब्दों और विषयों पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है।
डॉ. सुरेश पंत की यह भूमिका एक भाषाविद और अध्यापक के रूप में उनकी गहनता को दर्शाती है। उन्होंने "शब्दों के साथ-साथ" के दूसरे भाग को लिखने के पीछे की प्रेरणा और चुनौतियों को स्पष्ट किया है। यह भूमिका हिंदी भाषा के प्रति उनके समर्पण और पाठकों के प्रति उनके सम्मान को भी दर्शाती है।
यह पुस्तक हिंदी भाषा के शब्दों के अर्थ और प्रयोग पर केंद्रित है। इसमें कई ऐसे शब्दों को शामिल किया गया है जिनके बारे में लोगों को अक्सर संदेह होता है या जिनका प्रयोग गलत तरीके से किया जाता है।
यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए उपयोगी होगी जो हिंदी भाषा में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। इसमें पत्रकार, लेखक, शिक्षक, छात्र और सभी हिंदी प्रेमी शामिल हैं।
पुस्तक में हिंदी भाषा के व्याकरण, शब्दावली, वाक्य रचना आदि जैसे विभिन्न विषयों को शामिल किया गया है। इसमें कई ऐसे उदाहरण भी दिए गए हैं जो शब्दों के सही प्रयोग को समझने में मदद करते हैं।
इस पुस्तक के लेखक डॉ. सुरेश पंत हैं, जो एक प्रसिद्ध भाषाविद और अध्यापक हैं। उन्होंने हिंदी भाषा पर कई किताबें लिखी हैं।
इस पुस्तक की खासियत यह है कि इसमें भाषा को सरल और सहज तरीके से समझाया गया है। इसमें पाठकों के सवालों के जवाब भी दिए गए हैं।
आप इस पुस्तक को ऑनलाइन या किसी भी बड़े किताबों की दुकान से खरीद सकते हैं।
"शब्दों के साथ-साथ" पुस्तक को पढ़कर आप हिंदी भाषा के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें सीख सकते हैं। यह पुस्तक आपको हिंदी भाषा की गहराई में ले जाएगी और आपको शब्दों के सही अर्थ और प्रयोग के बारे में विस्तृत जानकारी देगी।
इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आप कई ऐसे शब्दों के अर्थ जान पाएंगे जिनके बारे में आप पहले नहीं जानते थे।
आप शब्दों को विभिन्न वाक्यों में कैसे प्रयोग किया जाता है, यह सीखेंगे। आप कई शब्दों के पर्यायवाची और विलोम शब्द जान पाएंगे। आप हिंदी व्याकरण के कई नियमों को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे। आप हिंदी भाषा की उत्पत्ति और विकास के बारे में जान पाएंगे।
आप हिंदी भाषा के विभिन्न रूपों (जैसे कि मानक हिंदी, खड़ी बोली, आदि) के बारे में जान पाएंगे।
आप हिंदी भाषा में नए शब्दों का निर्माण कैसे होता है, यह सीखेंगे।
आप हिंदी भाषा में प्रभावी ढंग से लेखन करने के लिए कुछ टिप्स और तकनीक सीखेंगे।
इस पुस्तक को पढ़ने से आपकी हिंदी भाषा की पकड़ मजबूत होगी। आप हिंदी भाषा में अधिक आत्मविश्वास के साथ बोल और लिख पाएंगे।
आपकी शब्दावली बढ़ेगी, आपकी शब्दावली में कई नए शब्द जुड़ जाएंगे।
आपकी लेखन शैली में सुधार होगा, आप हिंदी भाषा में अधिक प्रभावी और सटीक ढंग से लिख पाएंगे।
आप हिंदी साहित्य को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे, आप हिंदी साहित्य के विभिन्न ग्रंथों को पढ़ते समय उनके अर्थ को अधिक गहराई से समझ पाएंगे।
"शब्दों के साथ-साथ" पुस्तक हिंदी भाषा सीखने और समझने के लिए एक बहुत ही उपयोगी पुस्तक है। यदि आप हिंदी भाषा में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं, तो आपको यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।
केंद्रीय हिंदी निदेशालय,नई दिल्ली के सहायक निदेशक रत्नेश कुमार मिश्र जी द्वारा डॉ. सुरेश पंत की पुस्तक "शब्दों के साथ-साथ 2" पर लिखी गई भूमिका हिंदी भाषा और उसके अध्ययन के प्रति गहन समर्पण का प्रमाण है। उन्होंने इस पुस्तक को महज एक शब्दकोश या व्याकरण की किताब से कहीं अधिक बताया है।
मिश्र जी ने बड़ी ही खूबसूरती से बताया है कि शब्द केवल संचार के माध्यम नहीं हैं, बल्कि वे हमारे विचारों, भावनाओं और संस्कृति के वाहक भी हैं।
उन्होंने डॉ. सुरेश पंत के लगातार प्रयासों और अध्ययन को सराहा है, जिसके परिणामस्वरूप यह पुस्तक सामने आई है।
मिश्र जी ने भाषा की जटिलताओं और उसके विकास के विभिन्न चरणों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है कि यह पुस्तक न केवल हिंदी भाषा के विद्यार्थियों, बल्कि लेखकों, अनुवादकों और भाषा के प्रति रुचि रखने वाले सभी लोगों के लिए उपयोगी है।
मिश्र जी ने डॉ. पंत की लेखन शैली की प्रशंसा की है, जो जटिल विषयों को सरल और रोचक तरीके से समझाती है।
मिश्र जी ने शब्दों की उत्पत्ति, उनके अर्थों में परिवर्तन और विभिन्न भाषाओं के साथ उनके संबंधों पर विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने शब्दों के सही प्रयोग के महत्व पर जोर दिया है और बताया है कि कैसे शब्दों का गलत प्रयोग हमारे संचार को प्रभावित कर सकता है। हिंदी भाषा की विविधता और उसके विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला है।
रत्नेश कुमार मिश्र की यह भूमिका डॉ. सुरेश पंत की पुस्तक के महत्व को और अधिक उजागर करती है। उन्होंने न केवल पुस्तक की प्रशंसा की है, बल्कि हिंदी भाषा के अध्ययन और विकास के लिए भी एक नई दिशा दिखाई है।
यह पुस्तक उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होगी जो हिंदी भाषा सीखना चाहते हैं।
जिनकी हिंदी साहित्य में रुचि हैं ,जो पाठक भाषा विज्ञान के बारे में अधिक जानना चाहते और शब्दों के सही प्रयोग के बारे में जानना चाहते हैं।
अगर आप हिंदी भाषा के प्रति गंभीर हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए एक अनमोल खजाना साबित हो सकती है।
मैं उन सभी भाषा प्रेमियों,अनुवादकों,शिक्षकों,पत्रकारों से आग्रह करूंगा कि आप इस पुस्तक को जरूर खरीदकर पढ़े और अपनी भाषा को समृद्ध करें।
डॉ सुरेश पंत जी के इस महत्वपूर्ण आकादेमिक कार्य हेतु हार्दिक बधाई।