शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

अनुवादिनी

 

अनुवादिनी: भारतीय भाषाओं में अनुवाद हेतु

अनुवादिनी एक सॉफ्टवेयर है जो विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद करने में सहायता करता है। इसे अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) द्वारा विकसित किया गया है, और यह शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा समर्थित है।

अनुवादिनी निम्नलिखित विशेषताएं प्रदान करता है:

22 भाषाओं का समर्थन: यह 22 भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद करने में सक्षम है, जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, तमिल, तेलुगु, मराठी, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी, असमिया, उड़िया, नेपाली, डोगरी, कश्मीरी, मैथिली, संथाली, राजस्थानी, मणिपुरी, और भोजपुरी शामिल हैं।

विभिन्न प्रकार के दस्तावेज़ों का अनुवाद: यह विभिन्न प्रकार के दस्तावेज़ों का अनुवाद कर सकता है, जैसे कि पाठ, ऑडियो, वीडियो, और छवियाँ।

ऑफलाइन अनुवाद: यह ऑफ़लाइन अनुवाद भी प्रदान करता है, जिससे आप इंटरनेट कनेक्शन के बिना भी भाषाओं का अनुवाद कर सकते हैं।

अनुवाद की गुणवत्ता में सुधार: यह लगातार अनुवाद की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग करता है।

अनुवादिनी का उपयोग विभिन्न प्रकार के लोगों द्वारा किया जा सकता है, जिनमें छात्र, शिक्षक, पेशेवर, और आम नागरिक शामिल हैं। यह शिक्षा, व्यवसाय, और अन्य क्षेत्रों में भाषाओं के बीच अनुवाद करने के लिए एक उपयोगी उपकरण है।

अनुवादिनी का उपयोग करने के लिए, आप निम्नलिखित चरणों का पालन कर सकते हैं:

अनुवादिनी वेबसाइट  

"अनुवाद करें" बटन पर क्लिक करें।

"स्रोत भाषा" और "लक्ष्य भाषा" चुनें।

"अनुवाद करने के लिए पाठ दर्ज करें" बॉक्स में अपना पाठ दर्ज करें।

"अनुवाद करें" बटन पर क्लिक करें।

अनुवादिनी एक उपयोगी उपकरण है जो विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद करने में सहायता करता है। यह शिक्षा, व्यवसाय, और अन्य क्षेत्रों में भाषाओं के बीच अनुवाद करने के लिए एक उपयोगी उपकरण है।


## अनुवादिनी का संचालन निम्नलिखित तकनीकों पर आधारित है:


**1. मशीन अनुवाद:** अनुवादिनी मशीन अनुवाद (MT) तकनीक का उपयोग विभिन्न भाषाओं के बीच अनुवाद करने के लिए करता है। MT एक कम्प्यूटर-आधारित प्रक्रिया है जो एक भाषा से दूसरी भाषा में पाठ का स्वचालित अनुवाद करती है।


**2. न्यूरल मशीन अनुवाद:** अनुवादिनी न्यूरल मशीन अनुवाद (NMT) तकनीक का भी उपयोग करता है। NMT MT का एक प्रकार है जो कृत्रिम तंत्रिका नेटवर्क (ANN) का उपयोग करके अनुवाद करता है। ANN डेटा से सीखने में सक्षम होते हैं, और अनुवादिनी में, वे भाषाओं के बीच अनुवाद करने के लिए प्रशिक्षित होते हैं।


**3. शब्दावली और भाषा नियम:** अनुवादिनी शब्दावली और भाषा नियमों का उपयोग अनुवाद की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए भी करता है। शब्दावली में विभिन्न भाषाओं में शब्दों का डेटाबेस होता है, और भाषा नियमों में विभिन्न भाषाओं में वाक्य रचना और व्याकरण के बारे में जानकारी होती है।


**4. ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकग्निशन (OCR):** अनुवादिनी OCR तकनीक का उपयोग छवियों में पाठ को पहचानने और अनुवाद करने के लिए भी करता है।


**5. भाषण पहचान:** अनुवादिनी भाषण पहचान तकनीक का उपयोग ऑडियो में भाषण को पहचानने और अनुवाद करने के लिए भी करता है।


**अनुवादिनी** इन तकनीकों का उपयोग करके विभिन्न भाषाओं के बीच अनुवाद करने में सक्षम है। यह लगातार अनुवाद की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए मशी

न लर्निंग का उपयोग करता है।



“शब्दों के साथ साथ भारतीय भाषा परिवार की परिक्रमा”

 “शब्दों के साथ साथ भारतीय भाषा परिवार की परिक्रमा”


डॉ सुरेश पंत जी द्वारा लिखित शब्दों के साथ-साथ पुस्तक को बेस्ट सेलर के नाते अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई है। भाषा प्रेमियों ने इस पुस्तक का सहर्ष स्वागत किया है।

 विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक पेंगुइन स्वदेशी भारत ने अब इस पुस्तक का दूसरा भाग प्रकाशित किया है। पुस्तक का आवरण चित्र मनीष ने तैयार किया है ।


पुस्तक के आवरण पृष्ठ के चित्र में एक गतिमान चक्राकार आकृति में “शब्दों के साथ-साथ 2” को चित्रित किया गया है। यह चक्राकार यह दर्शाता है की शब्दों की यात्रा अनेक संस्कृतियों भू भागों के विभिन्न भाषिक समूह को समृद्ध करते हुए अनवरत आगे बढ़ रही है। 


आवरण पृष्ठ पर यह घोषणा की गई है कि “विविध शब्दों और उनके व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाने वाली पुस्तक।

भारतीय भाषा परिवार में शब्द ज्ञान का महत्व अत्यधिक है। भाषा मानव-व्यवहार का एक महत्वपूर्ण अंग होती है। जन्म से ही मनुष्य को अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए भाषा की आवश्यकता महसूस होती है। भाषा के बिना मानव पशुतुल्य होता है।

“शब्दो के साथ साथ” सिर्फ हिंदी भाषा नहीं बल्कि अन्य भारतीय भाषाओं की शब्द संपदा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।इस पुस्तक के साथ साथ हिंदी पाठकों के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं के पाठकों भी भला होगा। भारतीय भाषाओं पर सबसे अत्यधिक आक्रमण अंग्रेजी भाषा का हुआ है। हम आजकल हमारी भाषाओं की समृद्ध शब्द परंपरा को भूल रहे है। इस निराशा के माहौल में पंत जी के “शब्दों के साथ साथ” पुस्तक ने नई ऊर्जा प्रदान की है।


आश्चर्य तब होता है कि हिंदी साहित्य की समृद्ध परंपरा में शब्दकोशों का महत्व बढ़ रहा है। इस समय पंत जी के “शब्दों के साथ साथ “पुस्तक ने हमारा ध्यान आकृष्ट किया है।हम फिर हमारे शब्दों की खोज पर निकल पड़े है। यह एक आश्वासक स्थिति पैदा हुई है।



इस पुस्तक के 83 प्रमुख शब्द संपदा की सार्थक चर्चा की गई है।एक निष्ठावान विद्वान अध्यापक होने के नाते सुरेश पंत जी ने परिश्रमपूर्वक इस शब्द संपदा का इतिहास रोचक आसान भाषा में प्रस्तुत किया है।

इस पुस्तक के पृष्ठ 227 पर संदर्भ सूची प्रदान की गई है जिससे पाठकों के लिए कोई विशेष शब्द ढूंढने में आसन होगा। पृष्ठ 238 पर भाषा विज्ञान संबंधित अनेक महत्वपूर्ण लेखकों की सूची के साथ-साथ वेब संदर्भ में ऑनलाइन उपलब्ध कोषों की लिंक भी प्रदान की गई है।




डॉ. सुरेश पंत ने अपनी इस भूमिका में "शब्दों के साथ-साथ" के दूसरे भाग के निर्माण की पृष्ठभूमि, प्रेरणा और चुनौतियों को विस्तार से प्रस्तुत किया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया है कि हिंदी भाषा का प्रयोग लगातार बढ़ रहा है और इसके साथ ही शब्दों के अर्थ और प्रयोग को लेकर नए-नए प्रश्न उठ रहे हैं। उन्होंने इस पुस्तक को लिखने के लिए विभिन्न लोगों, विशेषज्ञों और पाठकों के योगदान को स्वीकार किया है।

इस भूमिका में, डॉ. पंत एक भाषाविद और अध्यापक के रूप में अपनी भूमिका को बखूबी निभाते हुए दिखाई देते हैं। 

उनका हिंदी भाषा के विकास और उसके शुद्ध प्रयोग के प्रति गहरा समर्पण हैं।

मुख्य बात यह है कि पाठकों की जिज्ञासाओं को वे समझते हैं और उनके प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करते हैं।


 विद्वतापूर्ण दृष्टिकोण होने कारण वे हिंदी भाषा के विस्तृत अध्ययन और शोध पर आधारित अपनी बात रखते हैं।

उनकी विनम्रता है कि वे अन्य विद्वानों के योगदान को स्वीकार करते हैं और अपनी सीमाओं को भी स्वीकार करते हैं।


डॉ. पंत ने इस बात पर जोर दिया है कि भाषा एक गतिशील तत्व है और इसके शब्द भंडार और प्रयोग लगातार बदलते रहते हैं। वे इस बात को भी स्वीकार करते हैं कि शब्द विमर्श का कार्य कभी भी पूर्ण नहीं हो सकता।

सोशल मीडिया के एक्स,फेसबुक पर सक्रिय रहनेवाले ज्येष्ठ वयोवृद्ध डॉ. पंत ने इस पुस्तक के निर्माण में पाठकों के महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार किया है। उन्होंने बताया है कि पाठकों द्वारा पूछे गए प्रश्नों ने उन्हें कई नए शब्दों और विषयों पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है।


डॉ. सुरेश पंत की यह भूमिका एक भाषाविद और अध्यापक के रूप में उनकी गहनता को दर्शाती है। उन्होंने "शब्दों के साथ-साथ" के दूसरे भाग को लिखने के पीछे की प्रेरणा और चुनौतियों को स्पष्ट किया है। यह भूमिका हिंदी भाषा के प्रति उनके समर्पण और पाठकों के प्रति उनके सम्मान को भी दर्शाती है।

यह पुस्तक हिंदी भाषा के शब्दों के अर्थ और प्रयोग पर केंद्रित है। इसमें कई ऐसे शब्दों को शामिल किया गया है जिनके बारे में लोगों को अक्सर संदेह होता है या जिनका प्रयोग गलत तरीके से किया जाता है।


यह पुस्तक उन सभी लोगों के लिए उपयोगी होगी जो हिंदी भाषा में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। इसमें पत्रकार, लेखक, शिक्षक, छात्र और सभी हिंदी प्रेमी शामिल हैं।


पुस्तक में हिंदी भाषा के व्याकरण, शब्दावली, वाक्य रचना आदि जैसे विभिन्न विषयों को शामिल किया गया है। इसमें कई ऐसे उदाहरण भी दिए गए हैं जो शब्दों के सही प्रयोग को समझने में मदद करते हैं।


इस पुस्तक के लेखक डॉ. सुरेश पंत हैं, जो एक प्रसिद्ध भाषाविद और अध्यापक हैं। उन्होंने हिंदी भाषा पर कई किताबें लिखी हैं।


इस पुस्तक की खासियत यह है कि इसमें भाषा को सरल और सहज तरीके से समझाया गया है। इसमें पाठकों के सवालों के जवाब भी दिए गए हैं।


आप इस पुस्तक को ऑनलाइन या किसी भी बड़े किताबों की दुकान से खरीद सकते हैं।

"शब्दों के साथ-साथ" पुस्तक को पढ़कर आप हिंदी भाषा के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें सीख सकते हैं। यह पुस्तक आपको हिंदी भाषा की गहराई में ले जाएगी और आपको शब्दों के सही अर्थ और प्रयोग के बारे में विस्तृत जानकारी देगी।


इस पुस्तक को पढ़ने के बाद आप कई ऐसे शब्दों के अर्थ जान पाएंगे जिनके बारे में आप पहले नहीं जानते थे।

 आप शब्दों को विभिन्न वाक्यों में कैसे प्रयोग किया जाता है, यह सीखेंगे। आप कई शब्दों के पर्यायवाची और विलोम शब्द जान पाएंगे। आप हिंदी व्याकरण के कई नियमों को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे। आप हिंदी भाषा की उत्पत्ति और विकास के बारे में जान पाएंगे।

 आप हिंदी भाषा के विभिन्न रूपों (जैसे कि मानक हिंदी, खड़ी बोली, आदि) के बारे में जान पाएंगे।

आप हिंदी भाषा में नए शब्दों का निर्माण कैसे होता है, यह सीखेंगे।

आप हिंदी भाषा में प्रभावी ढंग से लेखन करने के लिए कुछ टिप्स और तकनीक सीखेंगे।


इस पुस्तक को पढ़ने से आपकी हिंदी भाषा की पकड़ मजबूत होगी। आप हिंदी भाषा में अधिक आत्मविश्वास के साथ बोल और लिख पाएंगे।

आपकी शब्दावली बढ़ेगी, आपकी शब्दावली में कई नए शब्द जुड़ जाएंगे।

आपकी लेखन शैली में सुधार होगा, आप हिंदी भाषा में अधिक प्रभावी और सटीक ढंग से लिख पाएंगे।

आप हिंदी साहित्य को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे, आप हिंदी साहित्य के विभिन्न ग्रंथों को पढ़ते समय उनके अर्थ को अधिक गहराई से समझ पाएंगे।


 "शब्दों के साथ-साथ" पुस्तक हिंदी भाषा सीखने और समझने के लिए एक बहुत ही उपयोगी पुस्तक है। यदि आप हिंदी भाषा में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं, तो आपको यह पुस्तक अवश्य पढ़नी चाहिए।


केंद्रीय हिंदी निदेशालय,नई दिल्ली के सहायक निदेशक रत्नेश कुमार मिश्र जी द्वारा डॉ. सुरेश पंत की पुस्तक "शब्दों के साथ-साथ 2" पर लिखी गई भूमिका हिंदी भाषा और उसके अध्ययन के प्रति गहन समर्पण का प्रमाण है। उन्होंने इस पुस्तक को महज एक शब्दकोश या व्याकरण की किताब से कहीं अधिक बताया है।


 मिश्र जी ने बड़ी ही खूबसूरती से बताया है कि शब्द केवल संचार के माध्यम नहीं हैं, बल्कि वे हमारे विचारों, भावनाओं और संस्कृति के वाहक भी हैं।

 उन्होंने डॉ. सुरेश पंत के लगातार प्रयासों और अध्ययन को सराहा है, जिसके परिणामस्वरूप यह पुस्तक सामने आई है।


 मिश्र जी ने भाषा की जटिलताओं और उसके विकास के विभिन्न चरणों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने बताया है कि यह पुस्तक न केवल हिंदी भाषा के विद्यार्थियों, बल्कि लेखकों, अनुवादकों और भाषा के प्रति रुचि रखने वाले सभी लोगों के लिए उपयोगी है।


 मिश्र जी ने डॉ. पंत की लेखन शैली की प्रशंसा की है, जो जटिल विषयों को सरल और रोचक तरीके से समझाती है।


 मिश्र जी ने शब्दों की उत्पत्ति, उनके अर्थों में परिवर्तन और विभिन्न भाषाओं के साथ उनके संबंधों पर विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने शब्दों के सही प्रयोग के महत्व पर जोर दिया है और बताया है कि कैसे शब्दों का गलत प्रयोग हमारे संचार को प्रभावित कर सकता है। हिंदी भाषा की विविधता और उसके विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला है।



रत्नेश कुमार मिश्र की यह भूमिका डॉ. सुरेश पंत की पुस्तक के महत्व को और अधिक उजागर करती है। उन्होंने न केवल पुस्तक की प्रशंसा की है, बल्कि हिंदी भाषा के अध्ययन और विकास के लिए भी एक नई दिशा दिखाई है।



यह पुस्तक उन लोगों के लिए विशेष रूप से उपयोगी होगी जो हिंदी भाषा सीखना चाहते हैं।

 जिनकी हिंदी साहित्य में रुचि हैं ,जो पाठक भाषा विज्ञान के बारे में अधिक जानना चाहते और शब्दों के सही प्रयोग के बारे में जानना चाहते हैं।



अगर आप हिंदी भाषा के प्रति गंभीर हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए एक अनमोल खजाना साबित हो सकती है।


मैं उन सभी भाषा प्रेमियों,अनुवादकों,शिक्षकों,पत्रकारों से आग्रह करूंगा कि आप इस पुस्तक को जरूर खरीदकर पढ़े और अपनी भाषा को समृद्ध करें।



डॉ सुरेश पंत जी के इस महत्वपूर्ण आकादेमिक कार्य हेतु हार्दिक बधाई।



 


मंगलवार, 5 दिसंबर 2023

पीठापुरम यात्रा

 आंध्र प्रदेश के पीठापुरम यात्रा के दौरान कुछ धार्मिक स्थलों का सहपरिवार भ्रमण किया।

पीठापुरम श्रीपाद वल्लभ पादुका मंदिर परिसर में महाराष्ट्र के बहुसंख्य मराठी परिवारों से भेंट हुई। मराठी दत्तात्रेय भगवान के अनेक भक्तों का जमावड़ा लगा रहता है। वहां की दुकानों पर मराठी भाषा में सूचनाएं लिखी गई है। आंध्र प्रदेश में महाराष्ट्र के छोटे शहर का आभास हुआ।

मंदिर में पालकी उत्सव में अनेक मराठी भक्ति गीत, अभंग गाए जाते है। इसमें मराठी के साथ तेलुगु,कन्नड़,हिंदी,तमिल भजन गाए जाते है। यह देखकर भारत की विविधता में एकता दिखाई गई।

मंदिर के आसपास अनेक धर्मशालाएं,निवास व्यवस्था उपलब्ध है।


पीठापुरम श्रीपाद वल्लभ पादुका मंदिर आंध्र प्रदेश राज्य के पूर्व गोदावरी जिले के पीठापुरम शहर में स्थित एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर श्रीपाद वल्लभ, जो दत्तात्रेय के अवतार माने जाते हैं। उनके जन्मस्थान के रूप में जाना जाता है। मंदिर में श्रीपाद वल्लभ की पादुका को पूजा जाता है। 


मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में किया गया था। मंदिर का मुख्य गर्भगृह एक चबूतरे पर स्थित है। गर्भगृह में श्रीपाद वल्लभ की पादुका को एक सोने के सिंहासन पर रखा गया है। मंदिर के परिसर में एक विशाल तालाब भी है।


मंदिर हिंदू धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है। हर साल लाखों भक्त मंदिर में आते हैं और श्रीपाद वल्लभ की पूजा करते हैं। मंदिर की वार्षिक रथ यात्रा बहुत प्रसिद्ध है। रथ यात्रा के दौरान, श्रीपाद वल्लभ की पादुका को एक रथ में रखकर शहर भर में ले जाया जाता है।


"कुक्कुटेश्वर मंदिर"

कुक्कुटेश्वर मंदिर भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के काकीनाडा जिले के पीतापुरम शहर में स्थित एक हिंदू मंदिर है। यह मंदिर शैव और शाक्त दोनों हिंदू परंपराओं में प्रमुख है। यह अठारह महा शक्ति पीठों में से एक है जिसे शक्तिवाद में सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है।


मंदिर का निर्माण शतवाहन काल में एक स्थानीय आंध्र भृत्य राजा द्वारा किया गया था। यह मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है जिसमें कई अन्य मंदिर और धार्मिक स्थल हैं।


मंदिर का मुख्य देवता भगवान शिव हैं, जिन्हें कुक्कुटेश्वर के रूप में जाना जाता है। भगवान शिव को एक मोर के सिर के रूप में दर्शाया गया है। मंदिर में एक विशाल एकल पत्थर की नंदी भी है।

मंदिर का दूसरा प्रमुख देवता देवी दुर्गा हैं, जिन्हें पुरुहूतिका के रूप में जाना जाता है। देवी दुर्गा को एक शक्तिपीठ के रूप में पूजा जाता है, जो एक स्थान है जहां देवी दुर्गा का एक अंग गिरा था।

मंदिर कई महत्वपूर्ण त्योहारों का आयोजन करता है, जिनमें महा शिवरात्रि, नवरात्रि और कार्तिक मास शामिल हैं।

कुक्कुटेश्वर मंदिर एक महत्वपूर्ण हिंदू तीर्थस्थल है जो आध्यात्मिक खोज में लोगों को आकर्षित करता है। यह मंदिर अपने प्राचीन इतिहास, समृद्ध वास्तुकला और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है।



"द्रक्षरामम्"

**द्रक्षरामम्** एक नगर है जो भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के कोनसीमा जिले में स्थित है। यह शिवजी को समर्पित एक प्राचीन हिंदू मंदिर का घर है। द्रक्षरामम् पञ्चराम् तीर्थों में से एक है, जो हिंदुओं के लिए बहुत पवित्र स्थान हैं।


द्रक्षरामम् मंदिर 8वीं शताब्दी में पूर्वी चालुक्यों द्वारा बनाया गया था। यह एक पत्थर का निर्माण है, जो शिवजी के भीमेश्वर रूप को समर्पित है। मंदिर में एक बड़ा प्रांगण, एक मंडप और एक गर्भगृह है। गर्भगृह में भीमेश्वर स्वामी की मूर्ति है, जो एक बड़ी पत्थर की मूर्ति है।


मंदिर के चारों ओर कई अन्य मंदिर और स्थान हैं। इनमें दुर्गादेवी मंदिर, नंदी मंडप और शिवजी के 108 शिल्प शामिल हैं।


द्रक्षरामम् एक प्रसिद्ध हिंदू तीर्थस्थल है। हर साल, हजारों भक्त द्रक्षरामम् आते हैं और भीमेश्वर स्वामी के दर्शन करते हैं।


द्रक्षरामम् एक सुंदर जगह है, जिसमें हिंदू धर्म के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व है।



"अन्नवरम"

अन्नवरम आंध्र प्रदेश के पूर्व गोदावरी जिले में एक छोटा सा गांव है। यह पंपा नदी के तट पर स्थित है और अपनी प्रसिद्ध वीरा वेंकट सत्यनारायण मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर विष्णु के एक रूप को समर्पित है और इसे "दक्षिण का तिरुपति" कहा जाता है।


अन्नवरम एक लोकप्रिय तीर्थ स्थल है और हर साल लाखों भक्त यहां आते हैं। मंदिर की स्थापना 16वीं शताब्दी में हुई थी और यह एक विशाल और भव्य मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में वीरा वेंकट सत्यनारायण की एक सुंदर मूर्ति है। मंदिर में कई अन्य देवताओं की भी मूर्तियाँ हैं, जिनमें भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान शामिल हैं।


अन्नवरम में कई अन्य मंदिर भी हैं, जिनमें कामाक्षी देवी मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर और हनुमान मंदिर शामिल हैं। गांव में एक बड़ा बाजार भी है जहां आप स्थानीय हस्तशिल्प और स्मृति चिन्ह खरीद सकते हैं।


अन्नवरम एक खूबसूरत और ऐतिहासिक गांव है जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है। यदि आप आंध्र प्रदेश में यात्रा कर रहे हैं, तो अन्नवरम एक ऐसी जगह है जिसे आप याद नहीं करना चाहेंगे।


"बासर सरस्वती मंदिर"

बासर सरस्वती मंदिर आंध्र प्रदेश के निर्मल जिले में स्थित एक प्रसिद्ध हिंदू मंदिर है। यह मंदिर देवी सरस्वती को समर्पित है, जो ज्ञान, कला, संगीत और विद्या की देवी हैं। मंदिर गोदावरी नदी के तट पर स्थित है और यह एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है।



मंदिर का निर्माण ऋषि वाल्मीकि ने किया था, जो रामायण के रचयिता थे। मंदिर का निर्माण 14वीं शताब्दी में किया गया था और यह एक विशाल परिसर है। मंदिर में एक मुख्य मंदिर है, जिसमें देवी सरस्वती की एक सुंदर मूर्ति है। मंदिर के परिसर में अन्य मंदिर भी हैं, जिनमें भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान गणेश को समर्पित मंदिर शामिल हैं।


मंदिर हर साल हजारों भक्तों को आकर्षित करता है। बसंत पंचमी के त्योहार पर, मंदिर में विशेष समारोह आयोजित किए जाते हैं। इस त्योहार पर, भक्त देवी सरस्वती की पूजा करते हैं और ज्ञान और शिक्षा के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं।


मंदिर एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है। यह आंध्र 

प्रदेश के सबसे लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है।


मंगलवार, 24 अक्टूबर 2023

सिंदूर खेला

 "सिंदूर खेला" एक हिंदू परंपरा है जो पूर्वी भारत और बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के आखिरी दिन, विजयादशमी पर मनाई जाती है। इस दिन, विवाहित महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, जो सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है।




सिंदूर खेला का शाब्दिक अर्थ है "सिंदूर खेल"। सिंदूर एक लाल रंग का कुंकुम है जिसे हिंदू धर्म में अक्सर देवी दुर्गा और अन्य देवी-देवताओं के प्रतिनिधित्व के लिए उपयोग किया जाता है। यह विवाह के बाद महिलाओं के माथे पर भी लगाया जाता है।




सिंदूर खेला एक खुशी और उत्सव का समय है। महिलाएं एक साथ आती हैं और एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं, जो एकजुटता और प्रेम का प्रतीक है। यह एक ऐसा समय भी है जब महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छी स्वास्थ्य की कामना करती हैं।




सिंदूर खेला को कई तरह से मनाया जा सकता है। कुछ महिलाएं एक-दूसरे के माथे पर सिंदूर लगाती हैं, जबकि अन्य एक दूसरे को सिंदूर से भरी बाल्टी से छिड़कती हैं। कुछ महिलाएं धुनुची नृत्य भी करती हैं, जो एक पारंपरिक बंगाली नृत्य है।




सिंदूर खेला में सबसे लोकप्रिय नृत्य धुनुची नृत्य है। धुनुची नृत्य एक पारंपरिक बंगाली नृत्य है जिसमें महिलाएं एक लंबे, डंडे के आकार के ड्रम को बजाते हुए नृत्य करती हैं। धुनुची नृत्य एक ऊर्जावान और उत्साही नृत्य है जो महिलाओं को अपने दुखों और चिंताओं को दूर करने में मदद करता है।


धुनुची नृत्य में, महिलाएं एक घेरे में खड़ी होती हैं और एक विशेष प्रकार की ढोलक की धुन पर नृत्य करती हैं। नृत्य तेज और ऊर्जावान होता है। महिलाएं अपने हाथों और पैरों को ताल से ताल मिलाती हैं और गाने गाती हैं।




सिंदूर खेला में गाए जाने वाले गाने अक्सर देवी दुर्गा की स्तुति में होते हैं। वे महिलाओं के लिए आशीर्वाद और खुशी की कामना करते हैं।




सिंदूर खेला एक महत्वपूर्ण हिंदू परंपरा है जो महिलाओं को एक साथ लाने और उनके समुदाय में खुशी और उत्सव का जश्न मनाने का अवसर प्रदान करती है।




"सिंदूर खेला" त्योहार: प.बंगाल में धार्मिक आस्था के अनुसार नवरात्रि में माँ दुर्गा पृथ्वी पर अपने मायके आती हैं और नौ दिन तक यहां रहती है। 


दसवीं के दिन माता ससुराल के लिए विदा होती हैं। इसके पीछे भाव है कि बेटी मायके से विदा हो रही है, उसका सुहाग बना रहे और खुशियां बनी रहें।


माँ दुर्गा का विदाई दिवस जिसे यात्रा के दौरान भी मनाया जाता है...


सिंदूर खेला उत्सव सुहागन स्त्रियों द्वारा मनाया जाता है..


आजकल अविवाहिताऐं भी सुयोग्य वर की कामना से ये उत्सव मनाती हैं..

बुधवार, 20 सितंबर 2023

गूगल कृत्रिम बुद्धि

 शीर्षक: भाषा संबंधित बार्ड एआई की उपयोगिता

परिचय:

भाषा मानव संचार का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। यह हमें विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने, दूसरों के साथ जुड़ने और दुनिया को समझने की अनुमति देता है। हाल के वर्षों में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) ने भाषा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। इन प्रगतिओं में से एक है बार्ड एआई, जो एक बड़ा भाषा मॉडल है जो Google AI द्वारा विकसित किया गया है।

बार्ड एआई की उपयोगिता:

बार्ड एआई का उपयोग कई तरह से भाषा से संबंधित कार्यों को करने के लिए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, इसका उपयोग किया जा सकता है:

  • भाषाओं का अनुवाद करना: बार्ड एआई को कई भाषाओं में प्रशिक्षित किया जाता है, इसलिए इसका उपयोग एक भाषा से दूसरी भाषा में पाठ का अनुवाद करने के लिए किया जा सकता है।
  • रचनात्मक पाठ प्रारूप उत्पन्न करना: बार्ड एआई को कविताएँ, कोड, स्क्रिप्ट, संगीत के टुकड़े, ईमेल, पत्र आदि जैसे रचनात्मक पाठ प्रारूप उत्पन्न करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है।
  • प्रश्नों का उत्तर देना: बार्ड एआई को विभिन्न विषयों पर जानकारीपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है।
  • समझने योग्य और सुगम पाठ उत्पन्न करना: बार्ड एआई को समझने योग्य और सुगम पाठ उत्पन्न करने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है।

बार्ड एआई के लाभ:

बार्ड एआई के कई लाभ हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • यह भाषाओं का अनुवाद करने में सक्षम है: बार्ड एआई का उपयोग विभिन्न भाषाओं के बीच पाठ का अनुवाद करने के लिए किया जा सकता है। यह किसी भी व्यक्ति के लिए उपयोगी हो सकता है जो एक से अधिक भाषाओं का उपयोग करता है।
  • यह रचनात्मक पाठ प्रारूप उत्पन्न करने में सक्षम है: बार्ड एआई का उपयोग कविताएँ, कोड, स्क्रिप्ट, संगीत के टुकड़े, ईमेल, पत्र आदि जैसे रचनात्मक पाठ प्रारूप उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है। यह किसी भी व्यक्ति के लिए उपयोगी हो सकता है जो रचनात्मक लेखन में रुचि रखता है।
  • यह प्रश्नों का उत्तर देने में सक्षम है: बार्ड एआई का उपयोग विभिन्न विषयों पर जानकारीपूर्ण प्रश्नों का उत्तर देने के लिए किया जा सकता है। यह किसी भी व्यक्ति के लिए उपयोगी हो सकता है जो ज्ञान प्राप्त करना चाहता है।
  • यह समझने योग्य और सुगम पाठ उत्पन्न करने में सक्षम है: बार्ड एआई का उपयोग समझने योग्य और सुगम पाठ उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है। यह किसी भी व्यक्ति के लिए उपयोगी हो सकता है जो पाठ को पढ़ने में कठिनाई का सामना करता है।

निष्कर्ष:

बार्ड एआई एक शक्तिशाली उपकरण है जिसका उपयोग भाषा से संबंधित कई तरह के कार्यों को करने के लिए किया जा सकता है। यह किसी भी व्यक्ति के लिए उपयोगी हो सकता है जो भाषा का उपयोग करता है, चाहे वह अनुवाद करना, रचनात्मक लेखन करना, ज्ञान प्राप्त करना या पाठ को समझना चाहता हो।


शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

अपूर्ण कविता

 भाई दूज की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏💐

पुनीत की मराठी कविता का हि


■ अपूर्ण कविता


स्कूल छूटने की बेल की आवाज

हवा में गूँज ही रही थी

 तब तक मैं रॉकेट की गति से 

घर पहुंचता था,


पीठ पर लटका बस्ता फेंक

घोड़े जैसा दौड़ कर

पहुँच जाता था खेल के मैदान में,

मस्तमौला बैल सा

धूल मिट्टी में नहाकर

इतराता था अपने मर्द होनेपर,


वो भी आती थी स्कूल से

घर के चार मटकियां पानी से भर

घर आंगन बुहारकर

देवघर में ज्योत जगाकर

वह बनाती थी रोटी

मां जैसी गोल गोल,

और राह निहारती देहरी पर

माँ के लौटने तक जंगल से,


वह चित्र निकालती थी

और रंगोली सजाती

घर के आंगन में,

मीरा के भजन और

पुस्तक की कविताएं

गाती थी मीठे स्वर में,


बर्तन मांजना, कूड़ा कचरा बीनना

आँगन बुहारना, 

और न जाने कितने काम

वह करती रही,


मैं हाथ पांव पसारकर

सो जाता था

वह किताबे लेकर बैठती थी

दीपक की रोशनी में देर रात तक,


एक ही कक्षा में थे हम

गुरुजी कान मरोड़कर

या कभी शब्दों की फटकार से

मुझे उपदेश देते

" तेरी बड़ी बहन जैसा बनेगा तो

जीवन सुधर जाएगा तेरा "

मैं दीदी की शिकायत करता था माँ के पास,


मैट्रिक का पहाड़

पार किया मैंने फूलती साँस लेकर

उसने अच्छे अंक हासिल किए थे

बापू ने कहा

मैं दोनों का खर्चा नहीं उठा पाऊंगा,


आंख का पानी छुपाकर

उसने कहा था

" भैया को आगे पढ़ने दीजिए"

उसके बाद जन्मे भाई के

 रास्ते से चुपचाप हटकर

वह बनाती गई उपले,

माँ के साथ खेती का काम करती

काँटे झाड़ी हटाती गई,

नारी बनकर अंदर ही अंदर

टूटती गई, 


उसके भाग्य का कौर चुराकर

मैं आगे बढ़ता गया

किताबों की राह पर,

 

 मैं बात जान गया था

दिल में टिस रह गयी

उसने आंख का पानी 

क्यों छुपाया था,


उसको ब्याह कर

बापू आज़ाद हुए

माँ की जिम्मेदारी खत्म हुई

अभी तक मेरा मन

अपराधी है अव्यक्त बोझ तले,


भैयादूज, रक्षा बंधन के दिन

दीदी मायके आती रही

सहर्ष सगर्व 

छोटे भाई के वैभव देख कर

हर्ष विभोर होती रही,

बुरी नजर उतारती रही

भारी आंखों से आरती उतारती रही,


ससुराल लौटते हुए

छोटे भाई को देती रही अशेष आशीष,


उसके जाने के बाद

मेरा मन जलता रहा दीपक समान

जिसकी रोशनी में

वह पढ़ती थी किताबें

और कविताएँ

उसकी कविता

मेरे लिए 

रही अपूर्ण।

■■

हिंदी अनुवाद-

 विजय विजय प्रभाकर नगरकर  

मूल मराठी कविता -

 पुनीत मातकर | गडचिरोली |

वीर सावरकर राष्ट्रभाषा

 वीर सावरकर एक जगह लिखते हैं कि 

"भारतवर्ष के कोने कोने में उत्तर से दक्षिण,दक्षिण से उत्तर, पूरब से पश्चिम, पश्चिम से पूरब तक बोली जाने वाली आम जनता की संपर्क सर्वसाधारण भाषा एकमात्र हिंदी ही हो सकती है।

 भारतवर्ष में चारों धामों में शंकराचार्य के पीठ स्थापित हुए हैं। वहां धार्मिक विचारों का आदान-प्रदान हिंदी के माध्यम द्वारा होता आ रहा है।"


 आगे वे कहते हैं कि

" इंग्लैंड में हमारा क्रांतिकारियों का दल था। हम प्रतिदिन प्रण दुहारते थे कि हमारा देश हिंदुस्तान,हमारा गीत वंदे मातरम और हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी है"।

भैंस

 मैंने भैंस के बारे में कुछ कहावतें सुनी थी जैसे


*काला अक्षर भैंस बराबर*


*जिसकी लाठी उसकी भैंस*


*गई भैंस पानी में*


* भैंस के आगे बीन बजाना*


 *भैंस बैठ पगुराये*


* भैंस पूछ उठाएगी तो गाना नहीं गाएगी गोबर करेगी* 


*दुधैल गाय की लात भली लगती है*


भैंस पर कुछ मजेदार कविताएं भी लिखी गई है ।हास्य ललित निबंध भी पढ़े हैं।


लेकिन मुझे तब आश्चर्य हुआ जब मेरे शहर के एक गरीब ग्वाला मित्र दिलीप शहापुरकर ने भैंस विषय पर गंभीर संवेदनशील काव्य संग्रह "महिषायण" लिखा है। यह ग्वाला समाज का एक रामायण ही है। 


 आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण अब तक उसका मराठी काव्य संग्रह अप्रकाशित है। यह बात करीब 25 साल पुरानी है। आज पुराना रेकॉर्ड देखते समय कुछ कविताएं हाथ लगी। उसके आग्रह पर मैंने उस संग्रह का हिंदी अनुवाद भी किया है। उसे कुछ पैसे भी दिए थे। पता नहीं वह कब प्रकाशित होगा। दिलीप एक संवेदनशील मराठी कवि और बेहतरीन चित्रकार भी है। उसने भैंस पर अनेक विविध तरह के कलात्मक चित्र निकाले हैं। 


पारिवारिक जिम्मेदारी और आर्थिक विपत्ति के दिनों में न जाने कितने लेखक, कवि, चित्रकार, रंगमंच कलाकार की प्रतिभा कुचल गई है। जिंदगी से समझौता करते हुए कितने लोग फिसल गए है। दुःख होता है जब अनेक कलाकार विपन्न परिस्थिति से संघर्ष करते हुए जी रहे है। समय का पहिया अजीब तरह से घूमता है।


काल की महिमा अपरंपार है।प्रतिभा होते हुए भी हम खुलकर कोई गीत गा नहीं सकते।कभी रंगमंच पर अपने अभिनय के कौशल दिखा नहीं पाते। कभी हमारी कविता के फूल खिलकर भी मुरझा जाते हैं।


अनुवाद करते समय मूल भाषा की विशेष शब्दावली, सांस्कृतिक संदर्भ ध्यान में रखने पड़ते है। कुछ अज्ञात शब्दों का सामना हो जाता है जैसे एक शब्द था "जानी"। पूछने पर दिलीप ने कहां कि "हमारे समाज में हर परिवार में एक जानी गाय, भैंस होती है। उसे हम एक पूंजी समझकर पालते है। उसे अन्य गाय,भैंस से अलग रखते है। उसका दूध हमें पूजनीय होता है। उस दूध की बिक्री नहीं की जाती। हमारे परिवार के बच्चों को जानी गाय, भैंस का दूध दिया जाता है" 


महाराष्ट्र में हर दिवाली के वर्ष प्रतिपदा, पाडवा के दिन "सगर महोत्सव मनाया जाता है। इस दिन गांव के विशाल मैदान में भैंसों, पाड़ों को एकत्रित करके उनकी पूजा की जाती है। भैंस को लक्ष्मी और रेड़ा, भैंसा को यमराज माना जाता है।


 मैं इस तरह की प्रथा से अनजान था। हमारे समाज में व्याप्त इन विलक्षण बातों को गहराई से समझना होगा।


अनुवाद करते समय मेरे बांग्ला मित्र, लेखक सुमित पाल ने सहायता की। सुमित ने उर्दू फारसी पर पी. एच.डी. की है। आजकल सुमित के लेख निरंतर देश अनेक सुप्रसिद्ध उर्दू, अंग्रेजी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं।


अनुवाद के कुछ अंश सादर प्रस्तुत है।


 " महिषायण" 


आप पूजा विधि में 

दूध घी का अभिषेक करते है

वहां झोपड़ी में कोई बच्चा

 दूध के बिना ही सो जाता है,


 हम दूध का दान करते हुए अपना अस्तित्व भूल जाते हैं लेकिन हमारे सूखे पन में 

कसाई का घर 

मनुष्य हमें दिखाता है ,


 संत ज्ञानेश्वर ने

 हमारे मुख से 

वेद कहलाएं है,

 विज्ञान युग ने 

हमें गूंगा बनवाया है,


परंपरागत यह रिवाज चला आ रहा है 

लोगों के बाजार में हमारा नीलाम होता आ रहा है 

हमारे दूध की मात्रा पर

उनका सौदा तय होता है,


तुम हमारे कान कतरते हो 

नक्काशीदार

 क्योंकि भैंस लगे सुंदर 

 हम कब तक बर्दाश्त करें

  वेदना आप के खातिर, 


आप बड़े चालाक धूर्त 

हमारे सामने खड़ा कर देते हो हमारे मृत पाड़े का भोत 

आप कितने अनुभवी होशियार, 

निरंतर हमारा दूध 

चुराकर ले जाते है 

अपने घर परिवार,


भैंस बरकतदार

 गरीबों का तारणहार 

इसलिए यह कल्पवृक्ष 

खड़ा है हमारे द्वार।


****

(मराठी "भोत" का अर्थ मृत पाड़े के शरीर में भूसा भरकर दूध दुहते समय भैंस के सामने रखा जाता है, ताकि उसे चाट कर भैंस दूध दे। पता नहीं इसे हिंदी में क्या कहते है?)

****

(प्रकाशनाधीन मराठी

 " महिषायण" काव्य संग्रह से साभार।)

मूल मराठी कवि -

दिलीप शहापुरकर

हिंदी अनुवाद - 

विजय नगरकर

ऑनलाईन

 लक्ष्मी पूजन के दिन फूल खरीदने गया था। पैसे देने लगा तो जेब खाली थी। मनी पर्स घर पर ही भूल गया था। फूलवाली ने कहा " कोई बात नहीं,बाबूजी, मोबाइल से पैसे देना"

रोड पर बैठी उस गरीब बुजुर्ग महिला को देखकर पूछा 

"मौसी, मोबाइल तो है लेकिन आपके पास फोन पे , क्यू आर कोड कहा है?"

फूलवाली ने वही वजन कांटे का पलड़ा उठाया और पीछेवाला कोड दिखाया। रोड पर  छोटी जगह में वह कहां फोन पे, क्यू आर कोड का बैनर लगा सकती थी?


ऑनलाइन के जमाने में छोटे छोटे दुकानदार भी नई तकनीक से परिचित हुए है। बहुत अच्छा लगा, पूछा "क्या एक फोटो ले सकता हूं?"

सहर्ष पोज देते हुई फूलवाली ने कहां " बाबूजी पेट की भूख वर्तमान तकनीक भी सीखा देती है"


सोमवार, 26 अप्रैल 2021

हिंदी तकनीकी ब्लॉगर बी एस पाबला जी नहीं रहे

 

नहीं रहे  ब्लॉगिंग की दुनिया के बेताज बादशाह

गिरीश पंकज

ब्लॉगिंग की दुनिया के बेताज बादशाह कहे जाने वाले असरदार सरदार (बलविंदर सिंह ) बीएस पाबला जी भी इस कोरोना काल  में उसकी चपेट में आ गए।  तकनीकी की दुनिया से जुड़े लोगों के लिए यह एक बड़ी क्षति कही जाएगी । भिलाई इस्पात संयंत्र में महत्वपूर्ण पद पर कार्य करते हुए पाबलाजी वर्षों से एक मशहूर ब्लॉगर के रूप में सक्रिय रहे।  देश-विदेश के अनेक लोगों के ब्लॉग उन्होंने भिलाई में बैठकर बनाए। जब कभी किसी को मदद की जरूरत पड़ती, वह सबको विनम्रतापूर्वक सहयोग करते। कुछ वर्ष पहले जब भारत सरकार की किसी वेबसाइट को पाकिस्तानी हैकरों ने हैक किया था, तो सरकार ने पाबला जी से ही तकनीकी मदद ली थी । पाबला जी अनेक हैकरों की हेकड़ी निकालने में माहिर थे। पुलिस वाले भी साइबर क्राइम के मामले में पाबला जी की मदद लिया करते थे।  एक दशक पहले ब्लॉग बनाने के लिए पाबला जी ने भी मेरा मार्गदर्शन भी किया था।  तब मैंने भी अपने तीन ब्लॉग बना लिए थे और ब्लॉगिंग की दुनिया में बहुत सक्रिय हो गया था । तब से उनसे मेरे बेहद आत्मीय संबंध रहे । छत्तीसगढ़ के कुछ ब्लॉगर  देश में बड़े लोकप्रिय  हुए ,जिनमें नंबर वन पर पाबला जी थे। तकनीकी के प्रति उनका बड़ा गहरा लगाव था । यही कारण है कि उनके घर में भी तकनीकी दुनिया के दर्शन होते थे ।वह अपने मोबाइल के जरिए बिजली चालू- बंद करते थे । दरवाजे भी मोबाइल के जरिए ही खुलते और बंद होते थे। मैं अच्छे लेखक भी थे । पाबला जी की लेखन- शैली कमाल की थी। मंत्रमुग्ध कर देने वाली। बतिया-सी लेखनी।  वे लोगों को इंटरनेट के माध्यम से आमदनी के गुर सहज सरल तरीके से बताते थे ।  ब्लॉगिंग के जरिये वे खुद अच्छी खासी कमाई कर लेते थे।  कंप्यूटर के अद्भुत जानकार पाबला जी उतने ही व्यवहार कुशल थे। न जाने कितनी बार रायपुर  और भिलाई में उन से मुलाकातें होती रही।  इस बीच पाबला जी पारिवारिक दृष्टि से निरंतर टूटते रहे। परिवार के अनेक सदस्य धीरे-धीरे बिछड़ते रहे।  और अंत में हालत यह हुई कि अब उनकी एक बेटी है जो बाहर रहती है। अंतिम समय में वे अपने पालतू कुत्ते मैक मैं के साथ ही जीवन बिता रहे थे। वे अक्सर उसकी तस्वीर फेसबुक में डाला करते थे। हालांकि बाद में पाबला जी ने फेसबुक अकाउंट ही बंद कर दिया था। 

उनके साथ नेपाल की यादगार यात्रा

दुखों का पहाड़ पाबला जी पर टूटता रहा, मगर वे मजबूती के साथ डटे रहे और ब्लॉगिंग करते रहे।  बाद में वे फेसबुक की दुनिया से भी जुड़े और उस के माध्यम से हम उनके और रोमांचकारी जीवन से भी अवगत होते रहे । रोमांचकारी से मेरा आशय यह  कि वह मस्तमौला  यायावरी व्यक्तित्व के धनी थे और लंबी-लंबी यात्राएं अपनी मारुति ईको कार से किया करते थे । अकसर अकेले ही निकल जाते थे। हालांकि कई बार वे  दुर्घटनाग्रस्त होते-होते भी बचे लेकिन उन्होंने लॉन्ग ड्राइव की अपनी आदत नहीं छोड़ी। मेरा सौभाग्य रहा कि एक बार उनके साथ मैंने उनकी ही कार में काठमांडू तक की यात्रा की। यह बात है अक्टूबर ,2013 की । उस रोमांचकारी यात्रा को मैं कभी नहीं भूल सकता।  मेरे साथ मेरे  एक और यायावरी में माहिर ब्लॉगर ललित शर्मा भी थे । हम तीनों काठमांडू में होने वाले ब्लॉगर सम्मेलन के लिए शामिल होने निकले थे। यह आयोजन लखनऊ के साथी ब्लॉगर रवींद्र प्रभात ने आयोजित किया था। पाबलाजी ने कहा कि '' बाशशाओ, कहां ट्रेन से इधर-उधर भटकते हुए काठमांडू जाएंगे।  बेहतर होगा कि हम लोग कार से ही सुनौली बार्डर होते हुए नेपाल पहुँचें। मुझे भी कार से लंबी यात्रा का शौक है इसलिए सहज ही तैयार हो गया। पाबला जी की गाड़ी में उस समय नेविगेटर (जीपीएस सिस्टम) विशेष रूप से लगा हुआ था।  अब तो हर कार में जीपीएस की सुविधा है।  उस वक्त नहीं थी । पर पाबला जी की गाड़ी में नेविगेटर लगा था और मजे की बात, उन्होंने कार में ब्लैक बॉक्स भी लगा कर रखा था, जो हवाई जहाज में लगा होता है। जिसके माध्यम से प्रतिपल की रिकॉर्डिंग होती रहती है।  यात्रा का बेहद रोमांचकारी अनुभव लौटकर ललित शर्मा ने लिखा।  पाबला जी ने बहुत खूब लिखा । यात्रा-वृतांत पढ़ने के शौकीन मित्रों से आग्रह है कि इस रोचक और रोमांचकारी यात्रा-वृतांत पढ़ने के लिए 'ललितशर्माडॉटकॉम' और पाबला जी के ब्लॉग को जरूर खंगालें।  यात्रा वृतांत कैसे लिखे जाते हैं, इन्हें पढ़कर समझा जा सकता है। 


पाबला जी दुर्ग से निकले और नेविगेटर की मदद से सुबह छह बजे मेरे घर पहुंच गए।  मैं तब चकित रह गया, तो उन्होंने बताया,  ''यह साडे नेविगेटर का कमाल है जी!'' ललित शर्मा भी तब तक घर पहुंच गए थे। उसके बाद हमारी काठमांडू यात्रा शुरू हुई।  अंबिकापुर, रेनुकोट होते हुए हम गोरखपुर पहुंचे। उस वक्त रास्ते की हालत बेहद खराब थी । कई बार पाब्ला जी कार कीचड़ भरी सड़क में फँस जाती, तो कहीं सड़क नाम की कोई चीज ही नहीं थी।  धीरे-धीरे कार आगे सरकती । बड़ी मुश्किल से वह आगे बढ़ते। लेकिन मजाल है कि एक बार भी उनके चेहरे पर शिकन आई हो। वह सिस्टम को कोसते और मुस्कान बिखेरते हुए कार चलाते। जब कभी उनका मूड होता रास्ते में चाय पानी के लिए रुक जाते। रास्ते में कहीं कहीं दर्शनीय स्थल भी मिले, तो कहते, ''चलो इसे भी देख लेते हैं।'' हमनेे चुनारगढ़ को निकट सेे देखा। यह वही चुनारगढ़  है, जिसका जिक्र देवकीनंदन खत्री ने  चंद्रकांता संतति में किया है। हम जर्जर रास्तों को पार करके किसी तरह गोरखपुर पहुँचे। पाबला जी ने गूगल में सर्च कर गोरखपुर के एक होटल को होटल में रुकना तय किया।  नेविगेटर  में होटल का नाम भर दिया। बस क्या था। गोरखपुर जब हम पहुंचे तो उनकी कार होटल के ठीक सामने रुकी । नेविगेटर बाला का पंजाबी स्वर  उभरा, ''साड्डा होटल आ गया है।''  नेविगेटर  को वे 'नेविगेटर बाला' कहते थे। उनकी नेविगेटर बाला पंजाबी में निर्देश देती थी,  जिसे सुनकर मुझे बड़ा आनंद आता था। रात्रि विश्राम कर हम सुबह सुनौली बॉर्डर होते हुए नेपाल की सीमा में प्रवेश किए। फिर रास्ते में तमाम तरह के रोचक अनुभव से गुजरते हुए  लगभग तरह सौ किलोमीटर की यात्रा तय करके देर रात काठमांडू पहुंच गए।  वहां पाबला जी को चाहने वाले लोगों की भीड़ थी । पाबला जी उन से घिरे रहे । पाबला जी का वहाँ  सम्मान भी हुआ।  फिर तीसरे दिन हम सुबह-सुबह वापस होने लगे । होटल के बाहर पाबला जी की कार पार्क थी।  वह कार को रिवर्स कर ही रहे थे तभी पीछे का कांच बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया।  अब समस्या यह हुई इतनी बड़ी यात्रा बिना कांच लगाए कैसे हो। कांच लगाने का खर्चा भी बहुत अधिक था इसलिए पाबला जी ने कहा, पीछे हम अपनी चादर लगाकर काम चला लेंगे । आज दुर्ग पहुंचकर ही लगवाऊँगा।  पाबला जी और ललित ने किसी तरह से चादर बांधी और फिर पाबला जी पहले की तरह उत्साह के साथ ड्राइविंग सीट पर बैठ गए और निकल पड़े छत्तीसगढ़ की ओर।  हम लोग पाबला जी से अनुरोध करते रहे कि हमें भी बीच-बीच में कार चलाने का मौका दें ताकि आपको कुछ आराम मिल जाए ,लेकिन पाबला जी जिद्दी सरदार थे। बोले, ''नहीं कार तो मैं ही चलाऊँगा। हां जब मुझे नींद आएगी, तो रास्ते में कहीं भी गाड़ी खड़ी करके एकाध घंटे की नींद ले लिया करूंगा।'' और ऐसा ही हुआ।  पाबला जी के साथ हम लोग बतियाते हुए यात्रा करते  रहे । रास्ते में पाबला जी को कहीं लगता कि नींद आ रही है, तो वे  फौरन गाड़ी रोक देते और कार में ही सो जाते।  तब हम और ललित आपस में गप मारते बैठे रहते या आसपास घूमघाम कर समय बिताते। रास्ते में कहीं आंधी चलती । कहीं जोरदार बारिश होती, मगर पाबला जी तनिक भी विचलित नहीं होते थे। पूरी तरह सतर्क होकर कार चलाते  हुए हम लोगों को सकुशल रायपुर पहुंचा दिया। फिर भिलाई की ओर प्रस्थान किया।  भिलाई पहुंच कर उन्होंने फोन करके सूचित किया कि मैं पहुंच गया हूँ। पाबला जी के साथ चार-पाँच दिन की वह नेपाल यात्रा आज भी मेरे ज़ेहन में बसी हुई है। इस दौरान पाबला जी का जीवंत व्यक्तित्व मैंने निकट से देखा।  बेहद सहज-सरल -बिंदास! अद्भुत तकनीकी व ज्ञान से भरे हुए मगर उतने ही विनम्र । बहुत कम होते हैं ऐसे लोग।


अब पाबला जी वाहेगुरु जी की शरण में चले गए  हैं। मगर उनका प्रदेय इंटरनेट के माध्यम से हमारे बीच मौजूद रहेगा।  मैं चाहूंगा कि लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए उनके ब्लॉगों को जरूर देखें।  इसका लाभ यह होगा कि हमें काम की अनेक दुर्लभ जानकारी मिलेगी। पाबला जी के महत्वपूर्ण ब्लॉग इस प्रकार हैं , जिन्हें  हम सर्च करके देख सकते हैं। जैसे, कम्प्यूटर सुरक्षा, ज़िंदगी के मेले,शोध व सर्वे, कल की दुनिया, हिंदी ब्लॉगरों के जनमदिन, My SMSs, इंटरनेट से आमदनी, ब्लॉग बुखार।

पाबला जी को शत-शत नमन!





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गिरीश पंकज 
(गिरीशचंद्र उपाध्याय)
व्यंग्यश्री, 2018, हिंदी भवन, नई दिल्ली
संपादक, सद्भावना दर्पण
(भारतीय एवं  विश्व साहित्य के अनुवाद की त्रैमासिकी)
सेक़्टर -3, एचआईजी - 2 , घर नंबर- 2 , 
दीनदयाल उपाध्याय नगर, रायपुर- 492010
मोबाइल : 9425212720, 877 0969574 
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बीस खंडों में 'गिरीश पंकज रचनावली' प्रकाश्य 
10 उपन्यास, 30 व्यंग्य-संग्रह, 4 कहानी-संग्रह, 7 ग़ज़ल-संग्रह सहित 90  पुस्तकें
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सदस्य, हिंदी सलाहकार समिति, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, भारत, 
प्रांतीय अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, पूर्व सदस्य, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली (2008-2012)
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1- http://sadbhawanadarpan.blogspot.com
2 - http://girishpankajkevyangya.blogspot.com
3 -http://girish-pankaj.blogspot.com


शुक्रवार, 7 अगस्त 2020

मी तुला अर्पण करून जाईल


मी माझे सर्वस्व तुला अर्पण करून निरोप घेईल

मुलांनो, मी  माझी विनम्रता गिळंकृत केली आहे
मी माझी बनावट संपत्ती तुम्हाला वारस 
ठेऊन जात आहे

मी विशेषज्ञ आहे
मी गांभीर्य पांघरून फिरत आहे
मला प्रत्येक भेटणारा माणूस मूर्ख वाटतो
मी  ही मुर्खता तुला स्वाधीन करून जात आहे

मी तुला माझे भरजरी वस्त्र,
भाषा वैभव
आणि माझा अहंकार
तुला अर्पण करून निरोप घेईल

मी कचरा पेटीत फेकून दिली आहे
सारी सहजता आणि तरलता
मी गंभीर राहील त्या क्षणा पर्यंत
जो पर्यंत माझा सन्मान होत राहील

जरा कुठे माझ्या विरोधात सूर निघतील
तेव्हा पहा माझी मानसिकता, वाचिकता
आणि शारीरिक हिंसा

माझ्या आत हिंस्त्र पशु आहे व
बाहेर एक आदर्श पुरुष आहे,
माझ्या मुलांनो तुम्हाला
 अर्पण करील माझा  हा दुटप्पीपणा

मी छता वरून लाँच झालेले 
रॉकेट आहे
का मोडक्या झोपडीतून
हवेत फेकलेला भाला आहे,
मी काय होतो या पेक्षा
जास्त महत्वाचे आहे की
मी काय झालो आहे,
जे काही असेल ते
 अर्पण करून निरोप घेईल

गल्लीत बलात्कार असो, दंगल असो
 मी तुला माझा शेळपटपणा अर्पण करून
शिकवून जाईल 
कसे शेपूट घालून
दार खिडकी बंद करून घरात राहावे,

शेजारील घरात गरीब मुले भुकेने मरत आहेत
तू मात्र गिळत रहा पुरी भजे, सुका मेवा
मी तुला ही अव्वल निष्ठुरता
अर्पण करून निरोप घेईल

तुला पाऊले पाऊले दिसतील
अर्धनग्न मळकट पिचलेली
असंख्य बालके आणि बाया
तू त्याकडे दुर्लक्ष करीत
तुझी किमती बनारस साडी
आणि पॅन्ट सावरीत
अलगद निघून जा
मी तुला ही महान बेफिकीर
 निर्लज्ज-परंपरा अर्पण करून निरोप घेईल

माझे साहित्य जगात वाचले जाते
अनेक भाषेत माझ्या पुस्तकांचा
अनुवाद झाला आहे
या अहंकाराच्या दुनियेत फुगून जाईल
आणि हीच हवा तुझ्या डोक्यात भरून
मी तुझा निरोप घेईल

माझे जे जे काही आहे
ते ते तुला अर्पण करून
तुमचा निरोप घेईल

   मूळ हिंदी कविता-
  ~अनामिका अनु
मराठी अनुवाद- विजय नगरकर

********
मूल हिंदी कविता

मैं अपना सबकुछ तुम्हें दे कर जाऊँगा 

बच्चों मैं पूरी विनम्रता खा चुका हूँ 
मैं  तुम्हें बनावटीपन विरासत में देकर जाऊँगा 

मैं विशेषज्ञ हूँ
मैं गंभीर अहं को पहन कर निकलता हूँ
बेवकूफ़ लगता हैं मुझे हर दूसरा व्यक्ति 
मैं यही बेवकूफ़ी तुम्हें देकर जाऊँगा 

मैं अपने बढ़िया कपड़े,
भाषा पर पकड़
और अपनी अकड़ दे कर जाऊँगा 

 मैंने डस्टबीन में फेंक दी है सारी सहजता, सरलता 
और तरलता
मैं तब तक ही  गंभीर रहूँगा
जब तक मेरा सम्मान होगा ।
 ज़रा सी ठेस पहुँचायी किसी ने
तब देखना मेरी मानसिक,वाचिक और शारीरिक हिंसा
मैं  भीतर से पशु ,बाहर से सलीकेदार आदमी हूँ
मैं   देकर जाऊँगा यह दोहरापन तुमको ,मेरे बच्चे!

मैं  छत पर से लान्च हुआ रॉकेट हूँ
या टूटी झोपड़ी से फेंका भाला!
क्या था ,से ज़्यादा महत्वपूर्ण है
क्या बना मैं !
जो बना वह देकर जाऊंँगा

गली में रेप, लूट, दंगा होगा
खिड़की लगाकर दुबकना सीखा दूँगा
मैं तुम्हें अपनी पूरी कायरता दे कर जाऊँगा

बगल में  मर जाएँगे भूखे बच्चे
तुम चबाते रहना पूरी भुजिया और सूखे मेवे
मैं  तुम्हें वह अव्वल दर्जे की निष्ठुरता देकर जाऊँगा

नग्न, मैली, कुचली औरतें और बच्चे कई बार दिखेंगे-देखेंगे तुमको
तुम अनदेखा कर ठीक करना अपनी बनारसी और पतलून
मैं वह महान निर्लज्ज निष्फ़िक्र परंपरा तुमको देकर जाऊँगा । 

मैं दुनिया भर में पढ़ा जाता हूँ 
कई भाषा में अनुवाद हुआ है मेरे कहे लिखे का,
इसी गुमान में  जीवन भर फूला रहा हूँ मैं
और तुम में यही ग़ुबार भर कर जाऊँगा

मेरा जो कुछ भी है
तुम्हें देकर जाऊँगा! 
 
~  अनामिका अनु

Anamika Anu 


अनुवादिनी

  अनुवादिनी: भारतीय भाषाओं में अनुवाद हेतु अनुवादिनी एक सॉफ्टवेयर है जो विभिन्न भारतीय भाषाओं के बीच अनुवाद करने में सहायता करता है। इसे अखि...