गूगल अब 9 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है। इन भाषाओं में आप गूगल पर कंटेंट देख सकते हैं। इतना ही नहीं गूगल आपके लिए इन भाषाओं से अनुवाद भी करेगा। वो भी पूरे वाक्य, न कि टुकड़ों में। ये भाषाएं हैं हिंदी, बंगाली, मराठी, तमिल, तेलगु, गुजराती, पंजाबी, मलयालम और कन्नड। गूगल सर्च और गूगल मैप पर भी अनुवाद की ये सुविधा मिलेगी। मोबाइल और डेस्कटॉप दोनों की फॉर्मेट में अनुवाद की ये सुविधा है। गूगल के मुताबिक इस वक्त अंग्रेजी के मुकाबले लोकल भाषाओं में के ज्यादा भारतीय इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। अगले 4 साल में भारतीय भाषाओं में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले भारतीय की तादाद 30 करोड़ होने की उम्मीद है। केपीएमजी के साथ गूगल ने एक रिपोर्ट की है जिसके मुताबिक सबसे ज्यादा तमिल, हिंदी, कन्नड, बंगाली और मराठी जानने वाले लोग ऑनलाइन सेवाओं का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।
राजभाषा हिंदी से जुडे कर्मियों का मानस। हिंदी प्रेमियों के लिए उपयुक्त जानकारी एवं संपर्क सूत्र।
शनिवार, 26 मई 2018
राजभाषा हिंदी प्रचार प्रसार में एण्ड्राइड मोबाइल की भूमिका
गूगल अब 9 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है। इन भाषाओं में आप गूगल पर कंटेंट देख सकते हैं। इतना ही नहीं गूगल आपके लिए इन भाषाओं से अनुवाद भी करेगा। वो भी पूरे वाक्य, न कि टुकड़ों में। ये भाषाएं हैं हिंदी, बंगाली, मराठी, तमिल, तेलगु, गुजराती, पंजाबी, मलयालम और कन्नड। गूगल सर्च और गूगल मैप पर भी अनुवाद की ये सुविधा मिलेगी। मोबाइल और डेस्कटॉप दोनों की फॉर्मेट में अनुवाद की ये सुविधा है। गूगल के मुताबिक इस वक्त अंग्रेजी के मुकाबले लोकल भाषाओं में के ज्यादा भारतीय इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। अगले 4 साल में भारतीय भाषाओं में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले भारतीय की तादाद 30 करोड़ होने की उम्मीद है। केपीएमजी के साथ गूगल ने एक रिपोर्ट की है जिसके मुताबिक सबसे ज्यादा तमिल, हिंदी, कन्नड, बंगाली और मराठी जानने वाले लोग ऑनलाइन सेवाओं का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।
रविवार, 13 मई 2018
हिंदी के कर्मठ योद्धा बालकवि बैरागी
यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि बालकवि बैरागी जी हमारे बीच नहीं रहें। वे हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि थे,इसके अलावा वे हिंदी भाषा के एक कर्मठ योद्धा थे।मैंने उनके भाषण दिल्ली में सुने थे। मेरा यह सौभाग्य रहा कि मैंने उनकी कुछ हिंदी कविताओं का मराठी में अनुवाद किया था। जिसके बारे में उन्होंने मुझे बधाई देते हुए कहा था कि मराठी अनुवाद उन्होंने उनके तत्कालीन मराठी सांसद मित्रों को दिखाया था जो उनको पसंद आया था।
मैं जब दूरसंचार विभाग में हिंदी अनुवादक था तब हमारे कैडर की समस्या के बारे में उनके साथ पत्राचार होता था।वे तब राज्य सभा के सांसद थे। मेरा आवेदन पत्र उन्होंने एक बार सीधे तत्कालीन गृह मंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भेजा था और गृह मंत्री जी द्वारा प्राप्त जवाबी पत्र भी मुझे भेज दिया था।वे कहते थे कि हिंदी भाषा की लड़ाई बहुत लंबी है।यहां थक कर हार मानना नहीं चाहिए।
बालकवि बैरागी अपने सुंदर हस्ताक्षर में पत्र भेजते थे।मैंने उनके पत्रों को संभाल कर रखा है। एक हिंदी भाषा समर्थक कर्मठ योद्धा अंतिम यात्रा पर चल पड़ा है।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।
💐💐💐
विजय नगरकर
अहमदनगर
बालकवि बैरागी नहीं रहे। हमारे बहुत चहेते बंधु विष्णु बैरागी उनके छोटे भाई हैं और यह उनके परिवार के लिए ही नहीं बल्कि साहित्य और सिनेमा से जुड़े लोगों के लिए भी दुख की घड़ी है।
बहुत पहले दूरदर्शन पर मैंने फ़िल्म "रेशमा और शेरा" देखी थी। इसमें अमिताभ बच्चन एक गूंगे नौजवान की भूमिका में थे। इसका एक गीत उन्हीं दिनों मन में बैठ गया था। इधर कुछ सालों में इसे कई बार सुना। कई म्यूज़िक डायरेक्टर से भी इस गीत का ज़िक्र किया कि अब इस तरह की धुनें नहीं रची जातीं। यह राग मांड में है और आप जानते हैं कि यह कौन सा गीत है।
तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं शाख रे
तू बादल मैं बिजुरी, तू पंछी मैं पात रे
राग मांड वही है, जिसमें राजस्थान का मशहूर लोकगीत "केसरिया बालम आओ नी, पधारो म्हारो देश" गाया जाता है। फ़िल्मों में भी इसके कई प्रयोग हुए हैं। मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा पाकीज़ा का गीत "चांदनी रात बड़ी देर के बाद आयी है, ये मुलाक़ात बड़ी देर के बाद आयी है; आज की रात वो आये हैं बड़ी देर के बाद, आज की रात बड़ी देर के बाद आयी है... ठाड़े रहियो ओ बांके यार रे, ठाड़े रहियो" में राग मिश्र खमाज के साथ मांड भी मिला हुआ है। और भी कई गीत हैं इस राग में, लेकिन "तू चंदा मैं चांदनी" का जवाब नहीं है। यह गीत बालकवि बैरागी ने लिखा था।
बालकवि बैरागी ने हिंदी फ़िल्मों के लिए दो गीत लिखे। 1971 में रेशमा और शेरा का यह मशहूर गीत और दूसरा 1985 में आयी फ़िल्म "अनकही" का एक गीत, "मुझको भी राधा बना ले नंदलाल"। इस फ़िल्म में अमोल पालेकर, दीप्ति नवल और श्रीराम लागू थे।
बालकवि बैरागी इसलिए बड़े हैं, क्योंकि वे उन कुछ गीतकारों की टोली में थे, जिन्हें फ़िल्मों की चमक-दमक से ज़्यादा साहित्य में सुख मिलता था। गोपाल दास नीरज भी अलीगढ़ लौट गये। गोपाल सिंह नेपाली भी मुंबई में नहीं टिके। पंडित नरेंद्र शर्मा ने भी बहुत थोड़े से गाने लिखे। संतोष आनंद आजकल दिल्ली में एकाकी जीवन गुज़ार रहे हैं। ऐसे कई गीतकार, जिन्होंने हिंदी फ़िल्मों को बेहद ख़ूबसूरत गाने दिये, लेकिन जब फ़िल्मों में शब्दों को किनारा किया जाने लगा, वे चुपचाप बंद गली के अपने आख़िरी मकान में जाकर क़ैद हो गये।
एक और बात, मैंने बालकवि बैरागी को सामने से सुना है। ग़ालिब के मोहल्ले बल्लीमारान (चांदनी चौक, दिल्ली) में एक कवि सम्मेलन था। उसमें पाकिस्तान से अहमद फ़राज़ भी आये थे, जिनकी ग़ज़ल "रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ" बहुत मक़बूल है। उस वक़्त मोबाइल तो था, लेकिन सेल्फ़ी का दौर शुरू नहीं हुआ था। वरना हमारे पास इन हस्तियों के साथ सेल्फ़ी होती।
*** सुरेंद्र जिंसी
बुधवार, 9 मई 2018
हिंदी संगोष्ठी की दावत
*हिंदी संगोष्ठी* 😀😀😀
जिस प्रकार घटिया से घटिया लेख के शीर्षक के आगे सेमिकोलन लगा कर “एक तथ्यपरक अध्ययन” या “एक व्यवहारिक समीक्षा” जैसे ज्ञान-टपकाऊ और प्रज्ञा भड़काऊ शब्द जोड़कर या फिर किसी दो कौड़ी के व्याख्यान के अंत में ट्रक के पीछे लिखे-पढ़े जाने वाले शेर पढ़कर क्रमशः टटपूंजिया लेखक और थर्ड ग्रेड का कंपायमान वक्ता भी आत्ममुग्धता के मोड़ में आ जाता है उसी प्रकार बेसिर-पैर की संगोष्ठी में भी रसना सुखदायी उदरपूजन और घर-परिवार की किच-किच से दूर मध्यम वर्गीय जीवन से कूटे पीसे प्रतिभागी के लिए 3 स्टार होटल में आरामदायक आवास की व्यवस्था कर-करा कर संयोजक सेमिनार को महासफल होने की स्वघोषण कर देता है और इसका प्रमाणपत्र अपने गले में टांग लेता है।
यह दुःखद आश्चर्य है कि मैंने आज तक किसी भी सेमिनार को असफल बताते हुए किसी आयोजक के मुख से नहीं सुना । जिस प्रकार इस देश में कभी कोई पार्टी चुनाव हारती नहीं बल्कि सूपड़ासाफ हार पर भी उसकी नैतिक जीत होती है उसी प्रकार इस देश में कभी कोई सेमिनार न असफल होता है और न कभी होगा ...!! पर हां जे बात है कि सेमिनार के टेक्निकल एक्सपर्टों ने सेमिनार की सफलता के स्तर के अनुपात को प्रीतिभोज में ताज़ा पनीर की नर्माहट, लंबे छरहरे बासमती के पुलाव की गर्माहट और बटर-स्कॉच ऐशक्रीम के चॉकलेटी-मक्खनी स्वाद की मुख-घुलावट तथा sight seeing के लिए वाहन की व्यवस्था में आयोजकों की तत्परता के स्तर की समानुपाती ठहराया है । भोजनावकाश के बाद श्रोताओं को रूम-फ्रेशनर की खुशबू से महकते मंद शीतल वातानुकूलन कक्ष में जगाए रखना आयोजकों के लिए कई बार भ्रष्टाचार की परिभाषा तय करने सा चुनौतीपूर्ण हो जाता है । इस मामले में घाघ सेमिनारी विशेषज्ञ कुछ कोकिलकंठी, कटाराक्षी और मृगनयनी विदुषी ललनाओं का व्याख्यान भोजनाकाश के बाद रसज्ञ श्रोताओं को जगाए रखने के लिए रख छोड़ते हैं । विषय चाहे कितना ही नीरस हो पर सामने का दृश्य नयनभिराम हो तो आदमी पलकों से ना झपकने के लिए भी झगड़ लेता है । इसके विपरीत व्याख्यान चाहे कितना भी अभिनव, टेक्निकल, सूचनापरक क्यों ना हो पर उपरोक्त व्यवस्थाओं में कमी सेमिनार की धज्जियां आयोजकों के पीठ पीछे वैसे ही बखेर देती हैं जैसे हाथीछाप पार्टी के उम्मीदवारों की धज्जियां 2014 के लोकसभा चुनाव में बिखर गईं थी । 🚑
शैक्षणिक सूरमाओं के द्वारा चाहे सेमिनार का आविष्कार किसी भी उद्देश्य के लिए किया गया हो पर इस देश के खुर्राट और हरफ़नमौला खिलाड़ी इसका दोहन बहुमुखी प्रकार से करने में विश्वास रखते हैं । क्योंकि ज्ञान तो आजकल फैसबुक और व्हाट्सएप पर ताबड़तोड़ और अंधाधुंध बरस रहा है पर सेमिनार के बहाने सरकारी दामाद बन गोवा, शिमला या मुन्नार की सैर का आनंद इस परम रसायन का भुक्तभोगी ही जानता है बाकि के अभागे तो केवल उसका कल्पनानंद ही ले सकते हैं । किसी सेमिनार का पत्र आते ही प्राप्तकर्ता के सुमुख से अनायास ही निकल पड़ता है _ चलो भाई , इसी बहाने गोवा/शिमला/मुन्नार की सैर ही हो जाएगी । 🛫
कुछ हिंदी के परमसेवी प्राइवेट भक्त हिंदीभक्ति और नोटभक्ति के संग ईश्वरभक्ति के कलयुगी फ्युजन के तहत 30-35 हजार प्रति भक्त के रेट पर ऐसी संगोष्ठियां तिरुपती बालाजी, जगन्नाथ पुरी या रामेश्वरम में भी आयोजित करा देते हैं क्योंकि देशी हनीमूनी जगहों पर सरकारी हनीमून से अघाए दामादनुमा अधिकारियों का मन लोक के साथ साथ सपरिवार कुछ परलोक सुधार के लिए भी इन तीर्थस्थलों की और भी उन्मुख हो जाया करता है । हिंदीसेवा के साथ साथ बैकुंठ में भी सीट पक्की वो भी सरकारी खर्चे पर ...!!
आज के फैंसी हिन्दीप्रेमी भगतों और हिंदी के प्रभारी पंडों को इससे बढ़कर और क्या चाहिए ...
☕☕☕☕
✒ डॉ. राकेश शर्मा, गोवा
शनिवार, 28 अक्तूबर 2017
भारती लिपि
भारती लिखावट कुंजीपटल
भारती को भारत के लिए एक आम स्क्रिप्ट के रूप में प्रस्तावित किया जा रहा है। रोमन लिपि को कई यूरोपीय भाषाओं (अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, इतालवी आदि) के लिए एक आम स्क्रिप्ट के रूप में उपयोग किया जाता है, जो उन भाषाओं में बोलने और लिखने वाले देशों में संचार की सुविधा प्रदान करता है। इसी तरह पूरे देश के लिए एक आम स्क्रिप्ट भारत में कई संचार बाधाओं को दूर करने में मदद मिलेगी ।
भारती लिखावट कुंजीपटल भारतीय भाषाओं में पाठ / पाठ प्रविष्टि के लिए एक हस्तलेखन आधारित इनपुट उपकरण है। भारती एक सरल और एकीकृत स्क्रिप्ट है जिसका उपयोग सबसे बड़ी भारतीय भाषाओं को लिखने के लिए किया जा सकता है। यह सरल आकारों का उपयोग करके डिज़ाइन किया गया है, अक्सर विभिन्न भारतीय भाषाओं / स्क्रिप्ट्स से सरल अक्षर उधार लेता है भारती पात्रों को इस तरह बनाया गया है कि चरित्र की ध्वनि (ध्वन्यात्मकता) अपने आकार में परिलक्षित होती है, और इसलिए याद रखना आसान है। समर्थित भाषाओं: हिंदी / मराठी (देवनागरी स्क्रिप्ट), बंगाली, पंजाबी / गुरुमुखी, गुजराती, उड़िया, तेलुगु, कन्नड़, तमिल और मलयालम हैं। भारती वर्णों और उपरोक्त सूचीबद्ध भारतीय भाषाओं के वर्णों के बीच मानचित्रण मदद पृष्ठों में दिया गया है। नमूना शब्द भी दिए जाते हैं।
भारती लिखावट कुंजीपटल किसी भी ऐप में भारतीय भाषा पाठ में प्रवेश करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है जिसमें पाठ संपादक शामिल होता है। एक बार पाठ संपादक खुला है, एक लिखने योग्य क्षेत्र पॉप अप है। उपयोगकर्ता को मेनू से एक भाषा चुननी होगी। उपयोगकर्ता लिखते क्षेत्र पर भारती वर्णों को एक स्टाइलस या उंगली से लिखते हैं। हस्तलिखित वर्ण एप द्वारा मान्यता प्राप्त होंगे और चयनित भारतीय भाषा / स्क्रिप्ट में परिवर्तित हो जाएंगे और फ़ॉन्ट के रूप में प्रदर्शित होंगे। भारती लिखावट कुंजीपटल भारतीय भाषा टेक्स्टिंग के लिए सबसे अच्छा साधन साबित होगा।
Head
V. Srinivasa Chakravarthy,
Professor,
Department of Biotechnology,
IIT Madras.
Team members:
Srinath Balakrishnan
पीठापुरम यात्रा
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