यह जानकर बहुत दुःख हुआ कि बालकवि बैरागी जी हमारे बीच नहीं रहें। वे हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि थे,इसके अलावा वे हिंदी भाषा के एक कर्मठ योद्धा थे।मैंने उनके भाषण दिल्ली में सुने थे। मेरा यह सौभाग्य रहा कि मैंने उनकी कुछ हिंदी कविताओं का मराठी में अनुवाद किया था। जिसके बारे में उन्होंने मुझे बधाई देते हुए कहा था कि मराठी अनुवाद उन्होंने उनके तत्कालीन मराठी सांसद मित्रों को दिखाया था जो उनको पसंद आया था।
मैं जब दूरसंचार विभाग में हिंदी अनुवादक था तब हमारे कैडर की समस्या के बारे में उनके साथ पत्राचार होता था।वे तब राज्य सभा के सांसद थे। मेरा आवेदन पत्र उन्होंने एक बार सीधे तत्कालीन गृह मंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी जी को भेजा था और गृह मंत्री जी द्वारा प्राप्त जवाबी पत्र भी मुझे भेज दिया था।वे कहते थे कि हिंदी भाषा की लड़ाई बहुत लंबी है।यहां थक कर हार मानना नहीं चाहिए।
बालकवि बैरागी अपने सुंदर हस्ताक्षर में पत्र भेजते थे।मैंने उनके पत्रों को संभाल कर रखा है। एक हिंदी भाषा समर्थक कर्मठ योद्धा अंतिम यात्रा पर चल पड़ा है।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।
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विजय नगरकर
अहमदनगर
बालकवि बैरागी नहीं रहे। हमारे बहुत चहेते बंधु विष्णु बैरागी उनके छोटे भाई हैं और यह उनके परिवार के लिए ही नहीं बल्कि साहित्य और सिनेमा से जुड़े लोगों के लिए भी दुख की घड़ी है।
बहुत पहले दूरदर्शन पर मैंने फ़िल्म "रेशमा और शेरा" देखी थी। इसमें अमिताभ बच्चन एक गूंगे नौजवान की भूमिका में थे। इसका एक गीत उन्हीं दिनों मन में बैठ गया था। इधर कुछ सालों में इसे कई बार सुना। कई म्यूज़िक डायरेक्टर से भी इस गीत का ज़िक्र किया कि अब इस तरह की धुनें नहीं रची जातीं। यह राग मांड में है और आप जानते हैं कि यह कौन सा गीत है।
तू चंदा मैं चांदनी, तू तरुवर मैं शाख रे
तू बादल मैं बिजुरी, तू पंछी मैं पात रे
राग मांड वही है, जिसमें राजस्थान का मशहूर लोकगीत "केसरिया बालम आओ नी, पधारो म्हारो देश" गाया जाता है। फ़िल्मों में भी इसके कई प्रयोग हुए हैं। मजरूह सुल्तानपुरी का लिखा पाकीज़ा का गीत "चांदनी रात बड़ी देर के बाद आयी है, ये मुलाक़ात बड़ी देर के बाद आयी है; आज की रात वो आये हैं बड़ी देर के बाद, आज की रात बड़ी देर के बाद आयी है... ठाड़े रहियो ओ बांके यार रे, ठाड़े रहियो" में राग मिश्र खमाज के साथ मांड भी मिला हुआ है। और भी कई गीत हैं इस राग में, लेकिन "तू चंदा मैं चांदनी" का जवाब नहीं है। यह गीत बालकवि बैरागी ने लिखा था।
बालकवि बैरागी ने हिंदी फ़िल्मों के लिए दो गीत लिखे। 1971 में रेशमा और शेरा का यह मशहूर गीत और दूसरा 1985 में आयी फ़िल्म "अनकही" का एक गीत, "मुझको भी राधा बना ले नंदलाल"। इस फ़िल्म में अमोल पालेकर, दीप्ति नवल और श्रीराम लागू थे।
बालकवि बैरागी इसलिए बड़े हैं, क्योंकि वे उन कुछ गीतकारों की टोली में थे, जिन्हें फ़िल्मों की चमक-दमक से ज़्यादा साहित्य में सुख मिलता था। गोपाल दास नीरज भी अलीगढ़ लौट गये। गोपाल सिंह नेपाली भी मुंबई में नहीं टिके। पंडित नरेंद्र शर्मा ने भी बहुत थोड़े से गाने लिखे। संतोष आनंद आजकल दिल्ली में एकाकी जीवन गुज़ार रहे हैं। ऐसे कई गीतकार, जिन्होंने हिंदी फ़िल्मों को बेहद ख़ूबसूरत गाने दिये, लेकिन जब फ़िल्मों में शब्दों को किनारा किया जाने लगा, वे चुपचाप बंद गली के अपने आख़िरी मकान में जाकर क़ैद हो गये।
एक और बात, मैंने बालकवि बैरागी को सामने से सुना है। ग़ालिब के मोहल्ले बल्लीमारान (चांदनी चौक, दिल्ली) में एक कवि सम्मेलन था। उसमें पाकिस्तान से अहमद फ़राज़ भी आये थे, जिनकी ग़ज़ल "रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ" बहुत मक़बूल है। उस वक़्त मोबाइल तो था, लेकिन सेल्फ़ी का दौर शुरू नहीं हुआ था। वरना हमारे पास इन हस्तियों के साथ सेल्फ़ी होती।
*** सुरेंद्र जिंसी
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