राजभाषा हिंदी से जुडे कर्मियों का मानस। हिंदी प्रेमियों के लिए उपयुक्त जानकारी एवं संपर्क सूत्र।
सोमवार, 20 अप्रैल 2020
बलराज साहनी का हिंदी प्रेम
मंगलवार, 25 फ़रवरी 2020
संसदीय राजभाषा निरीक्षण समिति -ध्यान देने योग्य बातें
गुरुवार, 24 अक्तूबर 2019
पसायदान
*पसायदान*
विश्वरचयिता ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ
मेरे वाक यज्ञ से संतुष्ट होकर
मुझे अनुग्रहित करके प्रसाद प्रदान करें। (1)
दुष्टों की दुर्भावना का अंत हो,
सत्कर्म के प्रति दुष्टों की आस्था बढ़े
विश्व में मित्र भाव प्रवाहित होकर
सभी जीवों में मित्रता बढ़े । (2)
पापी के मन का अज्ञान रुपी अंधकार दूर हो
विश्व में स्वधर्म रुपी उषा काल हो
सभी जीवों की मंगल मनोकामनाएँ पूर्ण हो (3)
सर्वत्र मंगल वृष्टि से
सकल विश्व को पुलकित करनेवाले
ईश्वरनिष्ठ संत
सभी जीवों पर कृपा करें (4)
वे सभी सुसंवादी संत कल्पतरु समान
उद्यान हैं
चेतनारूपी चिंतामणी रत्नों के पुर हैं
अमृत स्वर की गर्जना करनेवाले समुद्र हैं (5)
बेदाग पूर्णिमा के चंद्र और
ताप रहित सूर्य के समान संत सज्जन
सभी जीवों के मित्र हो जाएं (6)
त्रिलोकों में सर्व सुख सम्पन्न पूर्ण होकर
विश्व के आदि पुरुष की सेवा करें (7)
यह ग्रंथ जिनका जीवन है
वे इस विश्व के दृश्य और अदृश्य
भोग पर विजय प्राप्त करें (8)
इति विश्वेश्वर गुरु श्री निवृत्तिनाथ
आशीर्वाद देकर बोले
यह प्रसाद तुझे प्राप्त हो
यह वर पाकर ज्ञानदेव सुखी हो गया (9)
ज्योतिबा
ज्योतिबा
धन्यवाद।
आप उसे
दहलीज के
बाहर ले आये,
क ख ग घ
त थ द ध
पढ़ाया
और
कितना बदलाव आया है ,
अब उसे
दस्तख़त के लिए
बायी अंगुली पर
स्याही लगानी नहीं पड़ती ,
अब वह स्वयं
लिख सकती है .........
मिटटी का तेल स्वयं पर
छिड़कने से पहले
( उसके पीछे रहनेवाले बच्चों को ध्यान में रखकर)
" मैं अपनी मर्जी से
जल कर ख़ाक हो रही हूँ "
------------------------------------------------------------------
(मराठी कवि - अशोक नायगांवकर )
हिंदी अनुवाद- विजय नगरकर
अब इस गांधी का क्या करें ?
जलाने पर भी दहन नहीं हो रहा
खत्म करने पर भी खत्म नहीं हो रहा ,
हत्या करके भी मर नहीं रहा
इस गांधी का अब क्या करें?
मूर्ति तोड़ने पर भी
अभंग है
बदनामी के सैलाब में भी
अचल है
बदनामी के चक्रवात में . जनमानस में अमर है,
चरित्र के साथ खूब खिलवाड़ किया विचारों से भटका दिया,
केसरिया रंग में पोत दिया
थक गया हूँ इस 70 सालों से
अब हम करें तो क्या करें ? अब इस गांधी का क्या करें?
कितनी बार पेड़ काटें?
जड़े फिर भी जमीन के अंदर
फैल रही है हर दिशा में
खत्म हुआ
कहते कहते
चर्चा के चक्रवात में
घूम रहे है,
उसके विचार बार बार
बापू, तेरा नाम पोछने पर भी
उजागर हो रहा है।
हम अब इस 70 सालों में
जमीन के अंदर
धंस गए है
पिछले 70 सालों से
एक ही सवाल
इस गांधी का अब क्या करें ? ***************************.
मूल मराठी कविता - हेरंब कुलकर्णी (8208589195 )
(हिंदी अनुवाद- विजय प्रभाकर नगरकर)
आई
माँ एक नाम है
अपने आप भरा पूरा
घर में जैसे एक गाँव है,
सभी में मौजूद रहती है
अब इस दुनिया से दूर है
लेकिन कोई मानता नहीं।
मेला खत्म हुआ, दुकानें उठ गई
परदेस में क्यों आंखे नम हुई,
माँ हर दिल में कुछ यादें छोड़ जाती है
हर दिल जानता है माँ का दिल,
घर में जब दीप जले
कोई नहीं देखता उसे
अंधरे में जब वह बुझ जाती है
तब समूचे मैदान में दिशाहीन
मन उसके लिए दौड़ता है,
कितनी फसलें , कितने फासले
मिट्टी की प्यास कब बुझ पाई है।
कितना खोदा है माटी को बार बार
नजर आता है कुआं
मन के गहरे पाताल में,
इससे क्या अलग है माँ?
घर जब वह मौजूद नहीं
किसके लिए गोशाला में गाय व्याकुल है
माँ का नाम क्या है
बच्चों की माँ है
बछड़ों की गाय है
दूध का माखन है
लंगड़े का पैर है
धरती का आधार है
माँ है जन्म जन्मांतर की रोटी है
ना कभी खत्म होती है
ना कभी बचती है
मूल मराठी कविता-आई
कवि-फ मु शिंदे
हिंदी अनुवाद-विजय नगरकर
"अपूर्ण कविता"
स्कूल छूटने की बेल की आवाज
हवा में गूँज ही रही थी तब
मैं मशीन की गति से
घर पहुंचा था,
पीठ पर लटका बस्ता फेंक
घोड़े जैसा दौड़ कर
पहुँच जाता था खेल के मैदान में
मस्तमौला बैल सा
धूल मिट्टी में नहाकर
इतराता था अपने मर्द होनेपर
वो भी आती थी स्कूल से
घर के चार मटकियां पानी से भर
घर आंगन बुहारकर
देवघर में ज्योत जगाकर
वह बनाती थी रोटी
मां जैसी गोल गोल
और राह निहारती देहरी पर
माँ के लौटने तक जंगल से,
वह चित्र निकालती थी
और रंगोली सजाती
घर के आंगन में
मीरा के भजन और
पुस्तक की कविताएं
गाती थी मीठे स्वर में
बर्तन मांजना, कूड़ा कचरा बीनना
आँगन बुहारना,
और न जाने कितने काम
वह करती रही
मैं हाथ पांव पसारकर
सो जाता था
वह किताबे लेकर बैठती थी
दीपक की रोशनी में देर तक
एक ही कक्षा में थे हम
गुरुजी कान मरोड़कर
या कभी शब्दों की फटकार से
मुझे उपदेश देते
" तेरी बड़ी बहन जैसा बनेगा तो
जीवन सुधर जाएगा तेरा "
मैं दीदी की शिकायत करता था माँ के पास
मैट्रिक का पहाड़
पार किया मैंने फूलती साँस लेकर
उसने अच्छे अंक हासिल किए थे
बापू ने कहा
मैं दोनों का खर्चा नहीं उठा पाऊंगा
आंख का पानी छुपाकर
उसने कहा था
भैया को आगे पढ़ने दीजिए
उसके बाद जन्मे भाई के
रास्ते से चुपचाप हटकर
वह बनाती गई उपले
माँ के साथ खेती का काम करती
काँटे झाड़ी हटाती गई
नारी बनकर अंदर ही अंदर
टूटती गई,
उसके भाग्य का कौर चुराकर
मैं आगे बढ़ता गया
किताबों की राह पर,
मैं बात जान गया
दिल में टिस रह गयी
उसने आंख का पानी
क्यों छुपाया था,
उसको ब्याह कर
बापू आज़ाद हुए
माँ की जिम्मेदारी खत्म हुई
अभी तक मेरा मन
अपराधी है अव्यक्त बोझ तले,
भैयादूज, रक्षा बंधन के दिन
दीदी मायके आती रही
सहर्ष सगर्व
छोटे भाईके वैभव देख कर
हर्ष विभोर होती रही
बुरी नजर उतारती रही
भारी आंखों से आरती उतारती रही
ससुराल लौटते हुए
छोटे भाई को देती रही अशेष आशीष,
उसके जाने के बाद
मेरा मन जलता रहा दीपक समान
जिसकी रोशनी में
वह पढ़ती थी किताबें
और कविताएँ
उसकी कविता
मेरे लिए
रही अपूर्ण।
■■
हिंदी अनुवाद- विजय नगरकर।
मूल मराठी कविता - पुनीत मातकर | गडचिरोली | 7039921832
बुधवार, 12 जून 2019
पसायदान
संत ज्ञानेश्रर जी ने ज्ञानेश्वरी ग्रंथ अर्थात "सटीक भावार्थ दीपिका" पूर्ण करने के उपरांत ईश्वर को जो प्रार्थना लिखी थी,उसे 'पसायदान' से मराठी विश्व में ख्याति प्राप्त हुई है। अत्यंत कष्टदायी जीवन बिताने पर गीता ग्रंथ पर सटीक विवरण प्राकृत मराठी में लिखा। संन्यासी के पुत्र के नाम से जाति से बहिष्कृत किया गया। सनातन धर्म की ज्योत प्रज्वलित करके आम लोगों में ज्ञान गंगा प्रवाहित की। तत्कालीन आसान प्राकृत भाषा में गीता का ज्ञान प्रवाहित किया जो वर्षों से संस्कृत भाषा की मर्यादा में बंधा हुआ था।संत ज्ञानेश्वर संतों में क्रांतिकारक संत थे जिहोंने दीन दुखी आम लोगों के लिए धार्मिक कार्य किया। मराठी के प्रथम आद्य कवि, अनुवादक, समीक्षक, मार्गदर्शक संत ज्ञानेश्वर के चरणों पर पसायदान का हिंदी अनुवाद सविनय सादर प्रस्तुत है। मेरी अल्प बुद्धि से यह अनुवाद प्रस्तुत कर रहा हूँ।इस अनुवाद की समीक्षा,सुधार हेतु हिंदी लेखिका कवियत्री डॉडॉ. अन्नपूर्णा सिंह जी हार्दिक धन्यवाद।
*पसायदान*
विश्वरचयिता ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ
मेरे वाक यज्ञ से संतुष्ट होकर
मुझे अनुग्रहित करके प्रसाद प्रदान करें। (1)
दुष्टों की दुर्भावना का अंत हो,
सत्कर्म के प्रति दुष्टों की आस्था बढ़े
विश्व में मित्र भाव प्रवाहित होकर
सभी जीवों में मित्रता बढ़े । (2)
पापी के मन का अज्ञान रुपी अंधकार दूर हो
विश्व में स्वधर्म रुपी उषा काल हो
सभी जीवों की मंगल मनोकामनाएँ पूर्ण हो (3)
सर्वत्र मंगल वृष्टि से
सकल विश्व को पुलकित करनेवाले
ईश्वरनिष्ठ संत
सभी जीवों पर कृपा करें (4)
वे सभी सुसंवादी संत कल्पतरु समान
उद्यान हैं
चेतनारूपी चिंतामणी रत्नों के पुर हैं
अमृत स्वर की गर्जना करनेवाले समुद्र हैं (5)
बेदाग पूर्णिमा के चंद्र और
ताप रहित सूर्य के समान संत सज्जन
सभी जीवों के मित्र हो जाएं (6)
त्रिलोकों में सर्व सुख सम्पन्न पूर्ण होकर
विश्व के आदि पुरुष की सेवा करें (7)
यह ग्रंथ जिनका जीवन है
वे इस विश्व के दृश्य और अदृश्य
भोग पर विजय प्राप्त करें (8)
इति विश्वेश्वर गुरु श्री निवृत्तिनाथ
आशीर्वाद देकर बोले
यह प्रसाद तुझे प्राप्त हो
यह वर पाकर ज्ञानदेव सुखी हो गया (9)
बुधवार, 17 अप्रैल 2019
अमेरिकन प्रोजेक्ट में हिंदी
The Gateway to Educational Material (GEM) यह अमेरिकन सरकार का प्रोजेक्ट है जो सिराकस यूनिवर्सिटी को दिया गया था।तब कंप्यूटर और इंटरनेट पर हिंदी भाषा ने नया कदम रखा था।
मुझे यह देखकर अत्यंत आश्चर्य हुआ था कि इस अंतरराष्ट्रीय प्रोजेक्ट में हिंदी भाषा को शामिल नहीं किया था। विश्व की अनेक भाषाओं की जानकारी लिंक सहित वहां उपलब्ध थी।मुझे यह बात हजम नहीं हुई कि हिंदी सर्च करने पर वहाँ निल रिपोर्ट आ रही थी।
मैंने इस प्रोजेक्ट में हिंदी भाषा संबंधित वेब पेजेस, भारत सरकार के प्रोजेक्ट,हिंदी सॉफ्टवेयर आदि विस्तृत जानकारी लिंक सहित अमेरिकन प्रोजेक्ट को प्रदान की थी।
मेरे इस योगदान को अमेरिकन प्रोजेक्ट ने स्वीकार की थी।उसकी परिवर्तन नीति में मेरी स्वीकृति ली गई थी।
मेरे लिए यह गौरव की बात थी।
मैं हर बार पुणे जाता तो सी डैक जरूर जाता था।वहां हिंदी विभाग के साइंटिफिक ऑफिसर से संपर्क करता था।मेरे मन में हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी को लेकर रोमांचक उत्साह था।
इसके बाद मैंने हिंदी और सूचना प्रौद्योगिकी के अभ्यास में कार्यरत रहा।
(नोट-मेरा पहला सरनेम "कांबळे"था जो बाद में "नगरकर"में गैज़ेट द्वारा परिवर्तित किया गया।)
मंगलवार, 5 फ़रवरी 2019
भावी पीढ़ियों के लिए मूल भाषाओं में प्राण फूंकने की पुकार
हाल के दशकों में पुरखों के ज़माने से चली आ रही सैंकड़ों भाषाएं धीरे धीरे शांत होने लगी हैं. उन्हीं के साथ विलुप्त हो गई है उन्हें बोलने वाले लोगों की संस्कृति, ज्ञान और परंपराएं. जो भाषाएं बच गईं हैं उन्हें संरक्षित रखने और नए प्राण फूंकने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने मूल भाषाओं के अंतरराष्ट्रीय वर्ष की आधिकारिक शुरुआत की है.
अपने उदघाटन संबोधन में मोहाक समुदाय के प्रमुख कैनन हेमलॉक ने पृथ्वी को श्रृद्धांजलि अर्पित की. "मूल निवासियों के तौर पर हमारी भाषाएं पृथ्वी की भाषाएं हैं और ये वो भाषाएं हैं जिन्हें हम अपनी मां के साथ बोला करते थे. हमारी भाषाओं का स्वास्थ्य पृथ्वी के स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है."
"हम अपना संपर्क खो देंगे और फिर पृथ्वी को जानने समझने की सदियों पुरानी जानकारी चली जाएगी. हमारे भविष्य और आने वाली पीढ़ियों के लिए ज़रूरी है कि हम अपने पुरखों की भाषाओं का उपयोग करें."
संयुक्त राष्ट्र महासभा अध्यक्ष मारिया फ़र्नान्डा एस्पिनोसा ने मूल भाषाओं और पैृतक संस्कृति और ज्ञान में अहम संबंध को रेखांकित किया. "वे संप्रेषण के माध्यम से कहीं ज़्यादा हैं. वे मानवीय विरासत को आगे बढा़ए जाने का ज़रिया हैं."
"हर मूल भाषा का मानवता के लिए एक ख़ास अहमियत है जो इतिहास, मूल्य, साहित्य, अध्यात्म, परिप्रेक्ष्य और ज्ञान का अपार खजाना है जिसे सदियों से विकसित और पोषित किया गया है. जब कोई भाषा विलुप्त होती है तो उसके बाद उसके साथ जुड़ी स्मृतियों को भी वो ले जाती है."
"मूल भाषाएं लोगों की पहचान का प्रतीक हैं, जीवन जीने का तरीक़ा हैं और पृथ्वी के साथ संबंध को अभिव्यक्त करने का माध्यम." एस्पिनोसा ने उन्हें बचाए जाने को बेहद अहम करार दिया है.
मूल भाषाएं पुरखों के ज़माने से चली आ रही ज्ञान प्रणालियों और प्रथाओं के बारे में भी अवगत कराती हैं विशेषकर कृषि, जीव विज्ञान, चिकित्सा, खगोल शास्त्र और मौसम विज्ञान से जुड़ा ज्ञान. दुनिया में इस 4,000 मूल भाषाएं अब भी मौजूद हैं लेकिन अधिकतर विलुप्त होने के कगार पर पहुंच रही हैं.
"यह अंतरराष्ट्रीय वर्ष एक ऐसा मंच बनना चाहिए जिसके ज़रिए हम तेज़ी से ख़त्म होती भाषाओं के इस रुझान को पलट सकें. उन्हें बचा सकें और पोषित कर सकें. ऐसी शिक्षा प्रणाली को विकसित कर सकें जिसमें मातृ भाषा से सीखने पर ज़ोर हो."
बोलिविया के ईवो मोरालेस ने औपनिवेशिक ताकतों से मूल निवासियों और भाषाओं को बचाने पर बल दिया. "औपनिवेशिक काल से बच कर हम आज यहां तक आए हैं. उस समय हमारे पुरखों को उनके घुटनों के बल ला दिया गया था और अन्याय के बोझ तले कुचल दिया गया था."
उपस्थित लोगों से मोरालेस ने कहा कि संवाद के ज़रिए ऐसी नीतियों को बनाया जाना चाहिए ताकि मूल निवासियों का जीवन, पहचान, मूल्य और संस्कृति की रक्षा हो सके.
90 देशों में 77 करोड़ से अधिक मूल निवासी रहते हैं जो वैश्विक जनसंख्या का छह फ़ीसदी है. वे जैव विविधता वाले इलाक़ों में रहते हैं लेकिन मोरालेस ने ध्यान दिलाया कि पूंजीवादी लालच ने उन्हें दुनिया के सबसे ग़रीब 15 फ़ीसदी जनसंख्या में ला छोड़ा है.
साभार-संयुक्त राष्ट्र संघ
https://news.un.org/hi/story/2019/02/1010662
बुधवार, 19 सितंबर 2018
14 सितंबर,2018 हिंदी दिवस
- भारत के अलावा मॉरीशस, फिलीपींस, नेपाल, फिजी, गुयाना, सुरिनाम, त्रिनिदाद, तिब्बत और पाकिस्तान में कुछ परिवर्तनों के साथ ही सही लेकिन हिंदी बोली और समझी जाती है। एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 80 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। हिंदी केवल हमारी मातृभाषा या राष्ट्रभाषा ही नहीं अपितु यह राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का प्रतीक है। राष्ट्रभाषा हिंदी हमें भावनात्मक एकता के सूत्र में पिरोती है। आज विश्व में हिंदी बोलने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हिंदी को 1949 में राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। इसी दौरान जवाहर लाल नेहरू ने हिंदी दिवस मनाने का फैसला किया था। 14 सितंबर 1953 को वो पहला अवसर आया जब हिंदी दिवस मनाया गया।
- आप दुनिया के किसी भी हिस्से में जाएं जहां भारतीय मूल या भारतीय नागरिक हों। वहां आपको हिंदी मिलेगी। दरअसल, विदेश में रह रहे भारतीय ही नहीं दूसरे देशों के लोग भी बॉलीवुड यानी हिंदी फिल्मों के शौकीन होते हैं। राज कपूर के दौर में तो रूस में हिंदी का ज़बरदस्त प्रभाव देखा गया। वहां कई संगीत केंद्र ऐसे स्थापित हुए जो हिंदी फिल्मों और इसके संगीत को बढ़ावा देने लगे। पाकिस्तान में तो कई बार बुद्धिजीवियों के बीच इस बात को लेकर बहस छिड़ चुकी है कि हिंदी फिल्मों की वजह से पाकिस्तान में उर्दू को नुकसान हुआ। अमिताभ बच्चन और कई बड़े कलाकार ऐसे हैं जो विशुद्ध हिंदी का उपयोग करते हैं।
क्या है हिन्दी दिवस का इतिहास?
वैसे तो भारत विभिन्न्ताओं वाला देश है. यहां हर राज्य की अपनी अलग सांस्कृतिक, राजनीतिक और ऐतिहासिक पहचान है. यही नहीं सभी जगह की बोली भी अलग है. इसके बावजूद हिन्दी भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है. यही वजह है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने हिन्दी को जनमानस की भाषा कहा था. उन्होंने 1918 में आयोजित हिन्दी साहित्य सम्मेलन में हिन्दी को राष्ट्र भाषा बनाने के लिए कहा था.
आजादी मिलने के बाद लंबे विचार-विमर्श के बाद आखिरकार 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिन्दी को राज भाषा बनाने का फैसला लिया गया. भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की धारा 343 (1) में हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने के संदर्भ में कुछ इस तरह लिखा गया है, 'संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी. संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा.'
हालांकि हिन्दी को राजभाषा बनाए जाने से काफी लोग खुश नहीं थे और इसका विरोध करने लगे. इसी विरोध के चलते बाद में अंग्रेजी को भी राजभाषा का दर्जा दे दिया गया.
हिन्दी दिवस क्यों मनाया जाता है?
भारत सालों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा. इसी वजह से उस गुलामी का असर लंबे समय तक देखने को मिला. यहां तक कि इसका प्रभाव भाषा में भी पड़ा. वैसे तो हिन्दी दुनिया की चौथी ऐसी भाषा है जिसे सबसे ज्यादा लोग बोलते हैं लेकिन इसके बावजूद हिन्दी को अपने ही देश में हीन भावना से देखा जाता है. आमतौर पर हिन्दी बोलने वाले को पिछड़ा और अंग्रेजी में अपनी बात कहने वाले को आधुनिक कहा जाता है.
जानिए हिन्दी से जुड़े रोचक तथ्य
इसे हिन्दी का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इतना समृद्ध भाषा कोष होने के बावजूद आज हिन्दी लिखते और बोलते वक्त ज्यादातर अंग्रेजी भाषा के शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है. और तो और हिन्दी के कई शब्द चलन से ही हट गए. ऐसे में हिन्दी दिवस को मनाना जरूरी है ताकि लोगों को यह याद रहे कि हिन्दी उनकी राजभाषा है और उसका सम्मन व प्रचार-प्रसार करना उनका कर्तव्य है. हिन्दी दिवस मनाने के पीछे मंशा यही है कि लोगों को एहसास दिलाया जा सके कि जब तक वे इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे तब तक इस भाषा का विकास नहीं होगा.
हिन्दी दिवस कैसे मनाया जाता है?
हिन्दी दिवस के मौके पर कई कार्यक्रमों का आयोजन होता है. स्कूलों, कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों में निबंध प्रतिया, वाद-विवाद प्रतियोगता, कविता पाठ, नाटक, और प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है. इसके अलावा सरकारी दफ्तरों में हिन्दी पखवाड़े का आयोजन होता है. यानी कि 14 सितंबर से लेकर अगले 15 दिनों तक सरकारी दफ्तों में विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं. यही नहीं साल भर हिन्दी के विकास के लिए अच्छा काम करने वाले सरकारी दफ्तरों को पुरस्कार से भी सम्मानित किया जाता है.
हिन्दी से जुड़ी 8 दिलचस्प बातें, जिन्हें पढ़कर आपको गर्व होगा
1. हिन्दी विश्व में चौथी ऐसी भाषा है जिसे सबसे ज्यादा लोग बोलते हैं. ताजा आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में भारत में 43.63 फीसदी लोग हिन्दी भाषा बोलते हैं. जबकि 2001 में यह आंकड़ा 41.3 फीसदी था. तब 42 करोड़ लोग हिन्दी बोलते थे. जनगणना के आंकड़ों के अनुसार 2001 से 2011 के बीच हिन्दी बोलने वाले 10 करोड़ लोग बढ़ गए. साफ है कि हिन्दी देश की सबसे तेजी से बढ़ती भाषा है.
इन्हीं बातों की वजह से हिन्दी को सलाम करती है दुनिया
2. इसे आप हिन्दी की ताकत ही कहेंगे कि अब लगभग सभी विदेशी कंपनियां हिन्दी को बढ़ावा दे रही हैं. यहां तक कि दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल में पहले जहां अंग्रेजी कॉनटेंट को बढ़ावा दिया जाता था वही गूगल अब हिन्दी और अन्य क्षेत्रीय भाषा वाले कॉन्टेंट को प्रमुखता दे रहा है. हाल ही में ई-कॉमर्स साइट अमेजन इंडिया ने अपना हिन्दी ऐप्प लॉन्च किया है. ओएलएक्स, क्विकर जैसे प्लेटफॉर्म पहले ही हिन्दी में उपलब्ध हैं. स्नैपडील भी हिन्दी में है.
3. इंटरनेट के प्रसार से किसी को अगर सबसे ज्यादा फायदा हुआ है तो वह हिन्दी है. 2016 में डिजिटल माध्यम में हिन्दी समाचार पढ़ने वालों की संख्या 5.5 करोड़ थी, जो 2021 में बढ़कर 14.4 करोड़ होने का अनुमान है.
4. 2021 में हिन्दी में इंटरनेट उपयोग करने वाले अंग्रेजी में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से अधिक हो जाएंगे. 20.1 करोड़ लोग हिन्दी का उपयोग करने लगेंगे. गूगल के अनुसार हिन्दी में कॉन्टेंट पढ़ने वाले हर साल 94 फीसदी बढ़ रहे हैं, जबकि अंग्रेजी में यह दर सालाना 17 फीसदी है.
5. अभी विश्व के सैंकड़ों विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है और पूरी दुनिया में करोड़ों लोग हिन्दी बोलते हैं. यही नहीं हिन्दी दुनिया भर में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली पांच भाषाओं में से एक है.
6. दक्षिण प्रशान्त महासागर के मेलानेशिया में फिजी नाम का एक द्वीप है. फिजी में हिन्दी को आधाकारिक भाषा का दर्जा दिया गया है. इसे फिजियन हिन्दी या फिजियन हिन्दुस्तानी भी कहते हैं. यह अवधी, भोजपुरी और अन्य बोलियों का मिलाजुला रूप है.
7. पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, संयुक्त अरब अमीरात, युगांडा, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद, मॉरिशस और साउथ अफ्रीका समेत कई देशों में हिन्दी बोली जाती है.
8. साल 2017 में ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी में पहली बार 'अच्छा', 'बड़ा दिन', 'बच्चा' और 'सूर्य नमस्कार' जैसे हिन्दी शब्दों को शामिल किया गया.
( साभार- एन.डी.टी.वी. नई दिल्ली https://khabar.ndtv.com/news/career/hindi-diwas-2018-why-we-celebrate-hindi-diwas-on-14-september-know-history-and-facts-1916402)
इस बीच हिंदी की देवनागरी लिपि का प्रचार और चलन दोनों ही बढ़ रहा था. ऐसी हालत में महात्मा गांधी के सामने भी यह सवाल बार-बार आता था कि आजाद भारत की भाषा क्या होगी? भारत वापस आने से लेकर देश की आजादी के वक्त तक महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय भाषा के सवाल पर जो कुछ कहा हम आपको बता रहे हैं.
इंदौर में गांधी ने की थी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने की मांग
भारत लौटने के कुछ ही वक्त बाद 1918 में महात्मा गांधी ने इंदौर के हिंदी साहित्य सम्मेलन में कहा था, "जैसे ब्रिटिश अंग्रेजी में बोलते हैं और सारे कामों में अंग्रेजी का ही प्रयोग करते हैं. वैसे ही मैं सभी से प्रार्थना करता हूं कि हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का सम्मान अदा करें. इसे राष्ट्रीय भाषा बनाकर हमें अपने कर्तव्य को निभाना चाहिए."
महात्मा गांधी ने इसके बाद पांच 'हिंदी दूत' उन राज्यों में भेजे, जहां पर इस भाषा का ज्यादा प्रचलन नहीं था. इन पांच दूतों में महात्मा गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी भी एक थे. ये पांच हिंदी दूत हिंदी के प्रचार के लिए सबसे पहले तत्कालीन मद्रास स्टेट पहुंचे. जो आज का तमिलनाडु है.
कोर्ट की सुनवाई में भी गांधी चाहते थे हिंदी का प्रयोग
महात्मा गांधी से जब प्रश्न किया गया कि आधिकारिक रूप से अंग्रेजी का प्रयोग किया जा रहा है और इसे बदलने की बजाए ऐसे ही जारी रखा जाये क्योंकि लोग इस भाषा को भी भारत में समझने लगे हैं. इस सवाल पर महात्मा गांधी का कहना था कि अंग्रेजी से बेहतर होगा कि हिन्दुस्तानी को भारत की राष्ट्रीय भाषा बनाया जाए क्योंकि यह हिंदू- मुसलमान, उत्तर-दक्षिण को जोड़ती है. महात्मा गांधी का यह भी मानना था कि हिंदी का प्रयोग केवल बोलचाल और देश की आधिकारिक भाषा के तौर पर ही नहीं बल्कि न्यायालयों में सुनवाई के लिए भी किया जाना चाहिए.
इस बारे में वे कहते थे, "कोर्ट की सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता है, लोगों को राजनीतिक प्रक्रिया पूरी तरह से समझ नहीं आएगी. राष्ट्रीय और क्षेत्रीय भाषाओं को कोर्ट में जरूर आगे बढ़ाना चाहिए. अपने भाषण की समाप्ति पर महात्मा गांधी ने कहा था, मेरा विनम्र लेकिन दृढ़ विचार है कि जब तक हम हिंदी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिला देते और दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं को उनका जरूरी महत्व नहीं दिला देते, तब तक स्वराज्य की सारी बातें अर्थहीन रहेंगी."
गांधी नहीं चाहते थे कि जिस 'हिंदी' को हम आज जानते हैं वह राष्ट्रभाषा बने
10 अगस्त, 1947 को प्रकाशित अपने एक लेख में महात्मा गांधी ने राष्ट्रीय भाषा के बारे में लिखा था, "दिल्ली में मैं रोज ही हिंदुओं और मुस्लिमों से मिलता हूं. जिनमें हिंदुओं की संख्या ज्यादा है. इनमें से ज्यादातर एक ही भाषा बोलते हैं जिसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, फारसी और अरबी के भी (शब्द) ज्यादा नहीं होते. इनकी बड़ी संख्या को देवनागरी लिपि नहीं आती है. वे मुझे अलग सी अंग्रेजी में (चिट्ठी) लिखते हैं. और जब मैं उन्हें विदेशी भाषा में न लिखने को कहता हूं, वे उर्दू लिपि में लिखते हैं. तो अगर ऐसे में यह अनेक भाषाओं की खिचड़ी 'हिंदी' हो और इसकी लिपि केवल देवनागरी हो, इन हिंदुओं की क्या दुर्दशा होगी?"
इसी लेख में महात्मा गांधी ने यह भी लिखा था, "लाखों भारतीय जो गांवों में रहते हैं, उन्हें किताबों से कोई लेना-देना नहीं है. वे हिंदुस्तानी बोलते हैं, जिसे मुस्लिम उर्दू लिपि में लिखते हैं और हिंदू उर्दू या नागरी लिपि में लिखते हैं. इसलिए हमारा और आपका यह कर्तव्य है कि हम दोनों ही लिपियां सीखें."
महात्मा गांधी के इसी लेख का जिक्र करते हुए संविधान सभा के सदस्य मोहम्मद इस्माइल ने 14 सितंबर, 1949 को भाषा के सवाल पर बहस के दौरान यह प्रस्ताव रखा था कि संविधान सभा को हिंदी को राजभाषा के तौर पर स्वीकार करते हुए उसकी उर्दू और देवनागरी दोनों ही लिपियों में राज्य की आधिकारिक भाषा के तौर पर स्वीकार करना चाहिए. हालांकि ऐसा हो न सका और संविधान ने देवनागरी में ही हिंदी को आधिकारिक भाषा माना.
हिंदी के राजभाषा बनने के बाद राजेंद्र प्रसाद ने किया था महात्मा गांधी को याद
संविधान सभा में 14 सितंबर, 1949 को जब हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिला, राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा के सदस्य के तौर पर हिंदी के लिए किए गए महात्मा गांधी के प्रयासों को याद किया. उन्होंने कहा, "मैं दक्षिण भारत के लिए एक शब्द कहना चाहूंगा. 1917 में जब महात्मा गांधी चंपारण गये थे, मुझे उनके साथ काम करने का अवसर मिला. और जब उन्होंने दक्षिण भारत में हिंदी का प्रचार करने के बारे में सोचा और तय किया कि स्वामी सत्यदेव और अपने प्रिय बेटे देवदास गांधी को इस काम को शुरू करने को कहा.
राजेंद्र प्रसाद ने 1918 में इंदौर में हुए हिंदी साहित्य सम्मेलन में इस हिंदी प्रचार कार्यक्रम को एक प्रमुख कार्यक्रम बताया था. उन्होंने कहा था, "मैं यह दावा नहीं कर सकता कि मैं इस कार्यक्रम से पिछले 32 सालों में अच्छे से जुड़ा रहा हूं लेकिन मैं दक्षिण भारत में एक कोने से दूसरे कोने तक गया हूं और वहां पर जैसे लोगों की महात्मा गांधी के इस आह्वान के प्रति प्रतिक्रिया रही है, उसे देखकर मेरे दिल को बहुत खुशी होती है."
नोट : उर्दू भाषा की लिपि को 'नस्तलिक' कहा जाता है. लेकिन महात्मा गांधी ने अपने लेखों में 'उर्दू लिपि' शब्द ही लिखा है. इसलिए इस लेख में भी बार-बार 'उर्दू लिपि' शब्द का ही प्रयोग हुआ है.
(साभार- न्यूज 18 हिंदी -https://hindi.news18.com/news/knowledge/jack-ma-of-alibaba-rejected-in-30-jobs-before-found-own-company-1516295.html)
युवाओं पर है हिंदी की समृद्धि का दायित्व
चित्रा मुद्गल
दयनीय नहीं है हिंदी की स्थिति
प्रेम जनमेजय
मानसिकता बदलने से मिलेगा हिंदी को सम्मान
राजेंद्र उपाध्याय
'युवाओं में कम
होता हिन्दी के प्रति लगाव'
अंग्रेेजी
में कंफर्टेबल हैं,
पर हिंदी सबको समझ आती है
अंग्रेजी
बोलो, पर हिंदी जानना भी जरूरी अंग्रेजी में एक कहावत है- डु एज द रोमंस डु।
यानीकि उस जगह की परंपरा को...
अंग्रेजी में एक कहावत है- डु एज द रोमंस डु। यानीकि उस जगह की परंपरा को फॉलो करो जहां आप रहते हैं या जहां आप जा रहे हैं। इसलिए मुझे ज्यादातर अंग्रेजी बोलनी पड़ती है। दूसरा मेरा बिजनेस और मिलना-जुलना उन लोगों से है, जो ज्यादातर अंग्रेजी में ही बात करते हैं। इसका मतलब ये नहीं कि मुझे अपनी राष्ट्रीय भाषा हिंदी की अहमियत का नहीं पता। मैं तो अपने गांव का सरपंच रह चुका हूं और जानता हूं कि अपनी भाषा का क्या महत्व है। इसलिए हिंदी भी उतनी ही बोलता हूं। दूसरा हमारे चंडीगढ़ में तो फिर भी हालात बेहतर हैं। मेरे बेटा और बेटी अपने दादा दादी से हिंदी में ही बात करते हैं। इसलिए उन्हें हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाएं आती हैं। बाकी मेरा मानना है कि भारत ग्लोबल पावर बन रहा है तो हमें विदेशियों से बात करने के लिए अंग्रेजी आना जरूरी है। पर हमें ये धारणा बदलनी होगी कि अगर अंग्रेजी नहीं आती तो हम अपाहिज हैं। बल्कि हमें अंग्रेजी से पहले अपनी राष्ट्र भाषा हिंदी को महत्व देना चाहिए। - करण गिल्होत्रा, चंडीगढ़, आंत्रप्रिन्योर
पहले दिन से ही नहीं मिली हिंदी काे तवज्जो
कॉन्वेंट स्कूल में स्टडी हुई। मैगजीन, नॉवल भी अंग्रेजी में ही पढ़े। अब सर्कल और रूटीन लाइफ में अंग्रेजी का इस्तेमाल हुआ तो जाहिर है यही लैंग्वेज बोलने की आदत होगी। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हिंदी भाषा का मुझे बिलकुल नहीं पता। लेकिन की यह सोच बन गई है कि जो लोग अंग्रेजी अच्छे से बोल लेते हैं तो उनका लेवल हिन्दी बोलने वालों की तुलना में ज्यादा है। इस सोच को भी बदलना होगा। दूसरा जब इंडिया में इंटरनेट आया, फोन आया, कंप्यूटर आया तो उसके कीबोर्ड से लेकर हर चीज अंग्रेजी में ही थी। हिन्दी और बाकी क्षेत्रीय भाषा में तो काफी देर के बाद फोंट आए। मुझे याद है फ्रेंच में जब इंटरनेट आया तो उन्होंने अंग्रेजी का नहीं फ्रेंच का इस्तेमाल किया। चाइना के लोग भी अपनी भाषा का ही इस्तेमाल करते हैं। जब कंप्यूटर, इंटरनेट, स्मार्ट फोन हमारे देश में आए तो सरकार को पहले दिन से ही अपनी मातृभाषा को तवज्जो देनी चाहिए थी। - सिंपल कौर, चंडीगढ़ , फैशन डिजाइनर
आज हिंदी का दिन है। वही हिंदी जो अपने लोच के कारण बाकी सब भाषाओं को अपने में समेट कर आगे बढ़ती है। जो अपने लिए जगह रखते हुए दूसरी भाषाओं को भी स्पेस देती है। इसी हिंदी के बारे में आजकल ये सुनने को मिलता है-वी आर नॉट कंफर्टेबल विद हिंदी ...ऐसा क्यों है? क्या ये लोग सचमुच हिंदी नहीं जानते या फिर अंग्रेजी के चलन ने हिंदी को इनकी दुनिया से दूर कर दिया है। ट्राईसिटी के कुछ लोगों ने समने इसी बारे में बात की। इनमें से ज्यादातर का कहना था कि अंग्रेजी बोलनी पड़ती है क्योंकि लोग यही समझते हैं , वरना हिंदी सबको आती है।
अशुद्ध हिंदी बोलने से अच्छा मैं बेहतर इंग्लिश बोलना ज्यादा प्रेफर करूंगा
यह कड़वा सच है कि हमारी सोसाइटी में अंग्रेजी न बोलने वाले को लोग कम पढ़ा-लिखा मानते हैं। लोगों की मेंटेलिटी ऐसी हो गई है। शुरू में कई बार जब मैं किसी बड़े क्लाइंट से हिंदी में बात करता तो मुझे अमेच्योर समझा जाता। इसलिए अब अंग्रेजी बोलना ज्यादा प्रेफर करता हूं और अब इसकी आदत हो गई है। मैंने शुरु से ही इंग्लिश मीडियम में पढाई की है, इसलिए हिंदी पर पकड़ नहीं है। अशुद्ध हिंदी बोलने से अच्छा मैं अच्छी इंग्लिश बोलना प्रेफर करूंगा। - रोहित ठाकुर, सिनेमेटोग्राफर
अंग्रेजी भाषा को सभी क्लासी मानते हैं
किसी ने सही कहा है अंग्रेज चले गए पर अंग्रेजी यहां छोड़ गए। नतीजा यह हुआ कि यह हमारी मातृभाषा पर ही हावी हो गई। वही कल्चर आज भी देखने को मिलता है। इसीलिए हम भी वक्त के साथ माॅडर्न बन गए। हिंदी भाषीय होते हुए भी हम अंग्रेजी में बातें करने लगे हैं। यह मानने लगे कि अगर हम हिंदी में बात करेंगे तो सामने वाले के आगे हमारा स्तर कम लगेगा। खुद को असहज बता देते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं। असल में यह सबकुछ सोसाइटी की वजह से होता है। जैसा रंग सोसाइटी का होता है वैसा ही बनना पड़ता है। आसानी से कह देते हैं कि हम असहज हैं हिंदी बोलने में। फिल्म देखने से लेकर आम बातचीत हिंदी में करते हैं मगर फोन पर अंग्रेजी बोलते हैं। इसलिए, क्योंकि अंग्रेजी को क्लासी माना जाता है। होना यह चाहिए कि जिस हिंदी भाषा की वजह से आपकी पहचान है उसे प्राइमरी भाषा के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। अंग्रेजी और बाकी भाषाओं को सेकेंडरी लैंग्वेज के तौर पर रखना चाहिए। - अनुपमा चोपड़ा, चंडीगढ़, टीचर।
दोस्तों से हिंदी में बात करना पसंद करती हूं
इसमें कोई दो राय नहीं कि बचपन से हमने घर में हिंदी ही बोली है। अपने पेरेंट्स और दोस्तों से भी हिंदी में बात करते हैं। लेकिन हम सब का रुझान वेस्टर्न कल्चर की ओर ज्यादा हो गया है और हम अमेरिका को कॉपी करते हैं। इसलिए कई बार न चाहने के बावजूद अंग्रेजी में बात करनी पड़ती है। उसकी एक वजह ये है कि हमने जितनी भी मीनिंगफुल चीजें पढ़ी हैं, वो सब अंग्रेजी में हैं। उदाहरण के तौर पर- सन रिवॉल्वंस अराउंड अर्थ। अब इसे हिंदी में कैसे कहना है, मुझे समझ नहीं आता। प्रोफेशनल लाइफ में और बिजनेस की भाषा में जितनी भी टर्मिनोलॉजी है, उसे हमने अंग्रेजी में पढ़ा है। ऐसे में हम हिंदी में कैसे बात करें? जबकि मैं ये अच्छे से समझती हूं कि हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है और इसमें बात करने से हम अपनी भावनाआें को आसानी से बता पाते हैं। इसलिए मैं अपने दोस्तों से हिंदी में बात करना प्रेफर करती हूं और अपने फॉर्मल व प्रोफेशनल रिलेशंस में अंग्रेजी में बात करती हूं। यही समय ही मांग है। - प्रीतिका मेहता, को फाउंडर-माइंडबैट्रीज और टेडएक्स चंडीगढ़ की ऑर्गेनाइजर
(साभार दैनिक भास्कर, चंडिगढ़- https://www.bhaskar.com/union-territory/chandigarh/news/confirmable-in-english-but-everyone-understands-hindi-020044-2718091.html)
एक भाषा नहीं, विविध
रूपों से जब सजेगी हिंदी!
व्हाट्सएप पर अंग्रेजी में गुड मॉर्निंग लिखकर संदेश भेजने वाले लोग अपने संदेश को हिंदी में टाइप कर सकते हैं और सुप्रभात लिखकर दोस्तों और परिजनों को भेज सकते हैं।
फोन की सेटिंग्स में ‘इनपुट एंड लैग्वेंज’ के अंदर हिंदी का विकल्प मिलेगा, उसको क्लिक कर दें। अलग-अलग फोन हैंडसेट में सेटिंग्स के विकल्प अलग-अलग हो सकते हैं।
शाम के वक्त अगर आप अच्छे खाने की तलाश में हैं तो हिंदी में सिर्फ खाने का नाम लिखना होगा उसके बाद उससे संबंधित रेस्टोरेंट और दुकानों की सूची आ जाएगी। साथ ही अब ऑनलाइन खरीदारी की सुविधा भी हिंदी में उपलब्ध हो गई है।
क्रोम ब्राउजर के सर्च बार में ‘डोसा खाना है’ लिखें। इसके बाद आस-पास मौजूद डोसा बनाने वाले रेस्टोरेंट की सूची आ जाएगी। ध्यान रखें कि फोन का लोकेशन फीचर ऑन हो। उधर, अमेजन ने अपनी वेबसाइट हिंदी में भी शुरू कर दी है।
अगर आप सुबह के वक्त जिम जाने से बचने के लिए यूट्यूब पर फिटनेस वीडियो देखते हैं तो चलिए आपको बता दें अब आप हिंदी में पढ़कर भी कसरत की जानकारी जुटा सकते हैं। आपके लिए गूगल प्लेस्टोर पर ढेरों एप मौजूद हैं। इन्हें खोजकर आप अपनी सेहत का ख्याल रख सकते हैं।
गूगल प्लेस्टोर पर Gym Guide in Hindi एक ऐसा ही एप है। इसमें 100 से भी अधिक व्यायाम के बारे में बताया गया है। कसरत और उनके फायदे क्या हैं, उसके बारे में जानकारी दी गई है। आप अपनी जरूरत के मुताबिक व्यायाम का चयन कर सकते हैं।
आप कॉलेज या दफ्तर जाने से पहले ट्रैफिक का हाल जानने के लिए गूगल मैप्स का इस्तेमाल करते हैं तो अब इस काम में हिंदी आपकी मदद करेगी। हिंदी में लिखकर जगह खोज सकते हैं।
इसके लिए फोन की सेटिंग में लैंग्वेज एंड इनपुट वाले विकल्प पर जाकर फोन की भाषा को हिंदी में तब्दील किया जा सकता है, उसके बाद गूगल मैप्स का परिणाम हिंदी भाषा में नजर आएगा।
विंडोज में हिंदी कीबोर्ड ऑन करने के लिए आपको कंप्यूटर या लैपटॉप के ‘कंप्यूटर पैनल’ में Clock, Language, and Region में जाना होगा। इसके बाद Region and Language पर क्लिक कर दें। यहां ऊपर वाली पट्टी में चार नए बार (रेखाएं) दिखाई देंगे। पहले बार पर फॉर्मेट, दूसरे पर लोकेशन, तीसरे पर कीबोर्ड... और चौथे पर लैंग्वेंज एंड एडमिनिस्ट्रेटिव का विकल्प है। हिंदी कीबोर्ड पाने के लिए तीसरे नंबर के विकल्प ‘कीबोर्ड’ पर क्लिक करें। फिर चेंज कीबोर्ड पर क्लिक करें। एक और स्क्रीन बार खुलेगी, जिसमें ‘जनरल’ पर क्लिक करना होगा। यहां जाने के बाद हिंदी (इंडिया) के विकल्प पर जाएं। इसमें आपके ‘देवनागरी- इनक्रिप्ट’ और ‘हिंदी ट्रेडिशनल’ के बॉक्स दिखाई देंगे। किसी एक का चयन करें और ‘अप्लाई’ पर क्लिक करें। इससे कंप्यूटर में हिंदी कीबोर्ड का फीचर आ जाएगा। इसके लिए अलग फॉन्ट की जरूरत नहीं होगी। मंगल फॉन्ट माइक्रोसॉफ्ट की सभी विंडोज में डिफॉल्ट होता है।
माइक्रोसॉफ्ट के इस इनबिल्ट कीबोर्ड का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे बड़ी ही आसानी से हिंदी से अंग्रेजी और अंग्रेजी से हिंदी में बदला जा सकता है। इसके लिए Shift+Alt बटन को एक साथ दबाना होता है। उदाहरण के तौर पर अगर आप हिंदी टाइपिंग कर रहे हैं तो Shift+Alt को दबाकर कीबोर्ड को अंग्रेजी में बदल सकते हैं। वहीं अगर आप अंग्रेजी में टाइपिंग कर रहे हैं तो Shift+Alt को दबाने से हिंदी में टाइपिंग शुरू कर कर सकते हैं। यह शॉर्टकट ऑनस्क्रीन कीबोर्ड पर भी लागू होते हैं
आज हिन्दी की स्थिति त्रिशंकु की है. स्वाधीनता आंदोलन के दौरान उसे राष्ट्रभाषा बनाने की मांग हुई और स्वाधीन भारत की वह राजभाषा बना दी गई. जैसे त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग जाने के लिए कहा गया था, लेकिन उसे अचानक बीच में इस तरह रोक दिया गया कि न वह स्वर्ग जा सका और न धरती पर वापस आ सकता था, वैसे ही हिन्दी को बना दिया गया है. वह न तो राजभाषा का दर्जा पाकर स्वर्ग जा सकती है और न ही गिरकर धरती पर आ सकती है. कभी-कभी तो लगता है कि भाषा के क्षेत्र में हिन्दी की स्थिति भारत के ‘राष्ट्रपति’ जैसी है और अंग्रेजी को ‘प्रधानमंत्री’ की हैसियत प्राप्त है. हिन्दी एक सम्मानजनक पद पर तो है, पर व्यवहार में दूसरे दर्जे पर है और सारे अधिकार ‘अंग्रेजी’ के पास हैं. यह एक ऐसी हकीकत है जिसे बदलने का कोई तरीका फिलहाल दिखाई नहीं पड़ रहा है. ऐसे में हमारा समूचा देश दि्वभाषी होने के लिए अभिशप्त है.
कोई भाषा किसी दूसरी भाषा का विकल्प नहीं हो सकती और मातृभाषा का तो कोई विकल्प हो ही नहीं सकता. यह माना गया है कि मां के दूध के साथ परिवार में जो भाषा सीखी जाती है, उसकी जगह कोई दूसरी भाषा नहीं ले सकती. जो भी कोई दूसरी भाषा सीखेगा, वह ‘अतिरिक्त’ होगी, ‘विकल्प’ नहीं. मैं तो कहता हूं कि जो अपनी बोली भूल जाता है वह कभी अच्छी हिन्दी न तो बोल पाता है और न लिख पाता है. इसलिए आज अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को बोलियां सिखाने की जरूरत है, ताकि वे अच्छी हिन्दी सीख सकें. इस लिहाज से ‘त्रिभाषा’ फॉर्मूला आज भी प्रासंगिक है, हर व्यक्ति को अपनी मातृभाषा के अलावा हिन्दी और अंग्रेजी का ज्ञान होना चाहिए.
हिन्दी का नाम लेते ही उसके दो रूप सामने आते हैं. एक, राजभाषा हिन्दी और दूसरी, वह हिन्दी जो बोलचाल या हमारे लोकप्रिय साहित्य में दिखती है. अधिकांश विरोध राजभाषा को लेकर किया जाता है. मजाक उड़ाते हुए उसे ‘नकली हिन्दी’ की संज्ञा दी जाती है. चूंकि यह भाषा सरकार ने बनाई है और सरकारी सत्ता-प्रतिष्ठान पर अंग्रेजी वालों का दबदबा है, इसलिए राजभाषा के नाम पर जो भी लिखा जाता है, वह अंग्रेजी का अनुवाद होता है. ‘अनुवाद’ हमेशा ‘मूल’ की छाया ही होता है और इसलिए वह हमेशा नकली ही रहेगा. मुझे तो लगता है कि सत्ता-प्रतिष्ठान पर काबिज अंग्रेजीदां अफसरों ने ही राजभाषा को नकली बना दिया. सरकार को चाहिए कि वह राजभाषा को अंग्रेजी के अनुवाद से मुक्ति दिलाए.
हिन्दी के विरुद्ध दुष्प्रचार सबसे ज्यादा उन माध्यमों ने किया, जिन पर अंग्रेजी का वर्चस्व है. हिन्दी विरोध से इनका व्यावसायिक हित जुड़ा है. यह अनायास नहीं है कि आज विश्व के जिन देशों में सबसे ज्यादा अंग्रेजी के लेखक पैदा हुए हैं, उनमें भारत सबसे ऊपर है. सिर्फ साहित्य ही नहीं बल्कि समाज, राजनीति, अर्थ और ज्ञान-विज्ञान के अन्य विषयों पर दुनिया के सारे बड़ेप्रकाशक भारतीय लेखकों की अंग्रेजी पुस्तकें छाप रहे हैं और भारत को इसका एक बड़ा बाजार बनाने के अभियान में जुटे हैं. 1947 के पहले भारत में अंग्रेजी में लिखने वालों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती थी, लेकिन आज यह संख्या सैकड़ों पार कर चुकी है. मुल्कराज आनंद, राजाराव, आर.के. नारायण के बाद नाम तलाशना पड़ता था, लेकिन आज दर्जनों नाम ऐसे हैं जो अंग्रेजी के बड़े-बड़े पुरस्कार पा रहे हैं. पहले अंग्रेजी लिखने वाले भारतीय लेखकों के ज्यादातर प्रकाशक भारत के ही होते थे, लेकिन अब विदेशी प्रकाशकों की पैठ बढ़ गई है. चूंकि हिन्दी की लोकप्रियता को घटाए बगैर भारत में अंग्रेजी का बाजार नहीं बढ़ेगा, इसलिए देश का अंग्रेजीदां तबका हिन्दी का विरोध कर रहा है.
एक यह भी तर्क दिया जा रहा है कि ग्लोबलाइजेशन के युग में अब राष्ट्र-राज्य की अवधारणाएं लगभग खत्म हो गई हैं. भारत भी अब एक राष्ट्र नहीं रहा. वह कई क्षेत्रीय अस्मिताओं का पुंज है. चूंकि एक राष्ट्र की बात ही खत्म हो रही है और उसके टुकड़े ज्यादा महत्वपूर्ण हो रहे हैं, तो फिर एक भाषा की जरूरत क्यों? हिन्दी को क्यों राष्ट्रभाषा माना जाए? जरूरत एक संपर्क भाषा की है जो अंग्रेजी ही हो सकती है. चूंकि यह अंतरराष्ट्रीय संपर्क भाषा भी है, इसलिए इसे भारत की संपर्क भाषा बनाने से फायदा ही होगा. राष्ट्र-राज्य को समाप्त मानने वाली यह धारणा दुर्भाग्य से उन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष अंग्रेजीदां बौद्धिकों की है जिन्होंने दो दशक पहले ‘सबॉल्टर्न स्टडीज’ के नाम से इतिहास लेखन के क्षेत्र में एक नए ‘स्कूल’ की स्थापना की थी. ये लोग अंग्रेजी में सोचते हैं और अंग्रेजी का ही खाते हैं. पश्चिम की नकल करते हैं और अपने समाज से कटकर वहीं के समाज में अपनी जड़ें तलाशते हैं. इस तबके ने जो नया दर्शन गढ़ा है उसे मैं ‘खंड-खंड पाखंड’ कहता हूं. यह दर्शन न सिर्फ अंग्रेजी के वर्चस्व और पश्चिमी विचारधारा की रक्षा करता है बल्कि परोक्ष रूप से नवउपनिवेशवाद का हिमायती भी है. इसलिए हिन्दी का प्रश्न सिर्फ अपनी भाषा के प्रति मोह का नहीं है बल्कि एक नए किस्म के उपनिवेशवादी सोच के विरुद्ध लड़ने से भी है. (साभार इंडिया.कॉम)
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