मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

राष्ट्रभाषा से राजभाषा की यात्रा में हिंदी

भारतीय संविधान सभा के तत्कालीन अध्यक्ष एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने लोकसभा में राज भाषा हिंदी पर हुई चर्चा के उपरांत दिनांक 14.9.1949 को सभा को संबोधित किया। राज भाषा हिंदी को स्वीकार करने पर उन्होंने हिंदीतर सदस्यों का विशेष आभार व्यक्त किया क्योंकि राष्ट्रीय एकता एवं स्वाभिमान के लिए किसी एक भारतीय भाषा को राज भाषा के रुप में स्वीकार करना आवश्यक था। इस भाषण में उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया है कि राज भाषा हिंदी को बहुमत से स्वीकार किया गया है। वर्तमान राजनीति में हिंदी को राष्ट्र भाषा न मानने की होड़ लगी है जो देश की एकता के लिए घातक है। हमें भारतीय भाषा भगिनी परिवार में एकता एवं समन्वय रखना चाहिए क्योंकि इस राष्ट्र की संस्कृति एक है। जिस तरह एक देश, एक ध्वज,एक राष्ट्र गीत एवं एक राष्ट्र भाषा की संकल्प ना को विश्व में स्वीकार किया जाता है उसी तरह हमारे देश में राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीकों का सम्मान करना चाहिए जो अनिवार्य भी और हितकारी भी होगा। भारतीय संविधान के कलम ३०१ के अनुसार हिंदी राज भाषा है जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। हिंदी के विकास के लिए जो विशेष निर्देश जारी किए गए है उसके अनुसार हिंदी भाषा किसी एक प्रांत की विशेष भाषा नहीं है बल्कि उसका स्वरूप संपूर्ण राष्ट्र के सभी भाषाओं के प्रचलित शब्दों के आधार पर किया जाना सुनिश्चित किया गया है। संस्कृत को मूल आधार बना दिया गया है और हिंदी में विश्व के सभी भाषाओं के शब्दों को स्वीकार करने में कोई परहेज नहीं है जब वे शब्द देश-विदेश में प्रचलित है।
इस पुस्तक के लेखक डॉ.विमलेश कांति वर्मा ने अपनी भूमिका में यह स्पष्ट कर दिया है कि १९४९ से १९५० तक के दस्तावेज़ के आधार पर लिखी है। भारत की स्वाधीनता के बाद से संविधान बनने और पारित होने तक के चार वर्षों में देश के महान नेताओं के बीच हिंदी को संवैधानिक मान्यता दिए जाने के संबंध में हुई बहस का विवरण इस पुस्तक में उपलब्ध है।

हिंदी भाषा के विवाद में तत्कालीन भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी उस भाषण को फिर एक बार सभी ने पढना चाहिए। संबंधित भाषण भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित राष्ट्र भाषा से राज भाषा तक पुस्तक से साभार प्रस्तुत है।

“ अब आज की कार्यवाही समाप्त होती है, किंतु सदन को स्थगित करने से पूर्व मैं बधाई के रुप में कुछ शब्द कहना चाहता हूँ । मेरे विचार में हमने अपने संविधान में एक अध्याय स्वीकार किया है जिसका देश के निर्माण पर बहुत प्रभाव पडेगा। हमारे इतिहास में अब तक कभी भी एक भाषा को शासन और प्रशासन की भाषा के रुप में मान्यता नहीं मिली थी। हमारा धार्मिक साहित्य और प्रकाशन संस्कृत में सन् निहित था। निस्संदेह उसका समस्त देश में
अध्ययन किया जाता था, किंतु वह भाषा भी कभी समूचे देश के प्रशासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होती थी। आज पहली ही बार ऐसा संविधान बना है जब कि हमने अपने संविधान में एक भाषा लिखी है जो संघ के प्रशासन की भाषा होगी और उस भाषा का विकास समय की परिस्थितियों के अनुसार ही करना होगा ।
मैं हिंदी का या किसी अन्य भाषा का विद्वान होने का दावा नहीं करता । मेरा यह भी दावा नहीं है कि किसी भाषा में मेरा कुछ अंश दान है, किंतु सामान्य व्यक्ति में हमारा उस भाषा का क्या रुप होगा जिसे हमने आज संघ के प्रशासन की भाषा स्वीकार की है। हिंदी में विगत में कई-कई बार परिवर्तन हुए हैं और आज उसकी कई शैलियाँ हैं, पहले हमारा बहुत-सा साहित्य ब्रजभाषा में लिखा गया था। अब हिंदी में खड़ी बोली का प्रचलन है। मेरे विचार में देश की अन्य भाषाओं के संपर्क से उसका और भी विकास होगा। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदी देश की अन्य भाषाओं से अच्छी-अच्छी बातें ग्रहण करेगी तो उससे उन्नति ही होगी, अवनति नहीं होगी।
हमने अब देश का राजनैतिक एकीकरण कर लिया है। अब हम एक दूसरा जोड़ लगा रहे हैं जिससे हम सब एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक हो जाएंगे। मुझे आशा है कि सब सदस्य संतोष की भावना लेकर घर जाएंगे और जो मतदान में हार भी गए हैं, वे भी इस पर बुरा नहीं मानेंगे तथा उस कार्य में सहायता देंगे जो संविधान के कारण संघ को भाषा के विषय में अब करना पड़ेगा ।
मैं दक्षिण भारत के विषय में एक शब्द कहना चाहता हूँ । 1917 में जब महात्मा गांधी चंपारण में थे और मुझे उनके साथ कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था तब उन्होंने दक्षिण में हिंदी प्रचार का कार्य आरंभ करने का विचार किया और उनके कहने पर स्वामी सत्य देव और गांधी जी के प्रिय पुत्र देव दास गांधी ने वहां जाकर यह कार्य आरंभ किया। बाद में 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में इस प्रचार कार्य को सम्मेलन का मुख्य कार्य
स्वीकार किया गया और वहां कार्य चलता रहा। मेरा सौभाग्य है कि मैं गत 32 वर्षो में इस कार्य से संबंध रहा हूँ, यद्यपि मैं इसे घनिष्ट संबंध का दावा नहीं कर सकता । मैं दक्षिण में एक सिरे से दूसरे सिरे को गया और मेरे हृदय में बहुत प्रसन्नता हुई कि दक्षिण के लोगों ने भाषा के संबंध में महात्मा गांधी के अनुरोध के अनुसार कैसा अच्छा कार्य किया है। मैं जानता हूँ कि उन्हें कितनी ही कठिनाइयों का सामना करना पडा किंतु उनमें इस मामले में जो जोश था वह बहुत सराहनीय था। मैंने कई बार पारितोषिक-वितरण भी किया है और सदस्यों को यह सुन कर मनोरंजन होगा कि मैंने एक ही समय पर दो पीढ़ियों को पारितोषिक दिए हैं, शायद तीन को ही दिए हों-अर्थात दादा, पिता और पुत्र हिंदी पढ कर, परीक्षा पास करके एक ही वर्ष पारितोषिकों तथा प्रमाण पत्रों के लिए आए थे। यह कार्य चलता रहा है और दक्षिण के लोगों ने इसे अपनाया है। आज मैं कह नहीं सकता कि वे इस हिंदी कार्य के लिए कितने लाख व्यय कर रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि इस भाषा को दक्षिण के बहुत से लोगों ने अखिल भारतीय भाषा मान लिया है और इसमें उन्होंने जिस जोश का प्रदर्शन किया है उसके लिए उत्तर भारतीयों को उन्हें बधाई देनी चाहिए, मान्यता देनी चाहिए और धन्यवाद देना चाहिए।
यदि आज उन्होंने किसी विशेष बात पर हठ किया है तो हमें याद रखना चाहिए कि आखिर यदि हिंदी को उन्हें स्वीकार करना है तो वे ही करेंगे, उनकी ओर से हम तो नहीं करेंगे, और आखिर यह क्या बात है जिस पर इतना वाद-विवाद हो गया है? मैं आश्चर्य कर रहा था कि हमें छोटे-से मामले पर इतनी बहस करने की, इतना समय बर्बाद करने की क्या आवश्यकता है? आखिर अंक हैं क्या ? दस ही तो हैं। इन दस में, मुझे याद पड़ता है कि तीन तो ऐसे हैं जो अंग्रेजी में और हिंदी में एक से हैं। 2,3 और 0 । मेरे खयाल में चार और हैं जो रुप में एक से हैं किंतु उनसे अलग-अलग कार्य निकलते हैं। उदाहरण के लिए हिंदी का 4 अंग्रेजी के 8 से बहुत मिलता-जुलता है, यद्यपि एक 4 के लिए आता है और दूसरा 8 के लिए । अंग्रेजी का 6 हिंदी के 7 से बहुत मिलता है, यद्यपि उन दोनों के भिन्न-भिन्न अर्थ है। हिंदी का 9 जिस रुप में अब लिखा जाता है, मराठी से लिया गया है और अंग्रेजी के 9 से बहुत मिलता है। अब केवल दो-तीन अंक बच गए जिनके दोनों प्रकार के अंकों में भिन्न-भिन्न रुप हैं और भिन्न-भिन्न अर्थ हैं। अत: यह मुद्रणालय की सुविधा या असुविधा का प्रश्न नहीं हैं जैसा कि कुछ सदस्यों ने कहा है। मेरे विचार में मुद्रणालय की दृष्टि से हिंदी और अंग्रेजी अंकों में कोई अंतर नहीं है।
किंतु हमें अपने मित्रों की भावनाओं का आदर करना है जो उसे चाहते हैं, और मैं अपने सब हिंदी मित्रों से कहूँगा कि वे इसे उस भावना से स्वीकार करें, इसलिए स्वीकार करें कि हम उनसे हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि स्वीकार करवाना चाहते हैं और मुझे प्रसन्नता है कि इस सदन ने अत्यधिक बहुमत से इस सुझाव को स्वीकार कर लिया है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आखिर यह बहुत बडी रियायत नहीं है। हम उनसे हिंदी स्वीकार करवाना चाहते थे और
उन्होंने स्वीकार कर लिया, और हम उनसे देवनागरी लिपि को स्वीकार करवाना चाहते थे, वह भी उन्होंने स्वीकार कर ली। वे हमसे भिन्न प्रकार के अंक स्वीकार करवाना चाहते थे, उन्हें स्वीकार करने में कठिनाई क्यो होनी चाहिए? इस पर मैं छोटा-सा दृष्टांत देता हूँ जो मनोरंजक होगा । हम चाहते हैं कि कुछ मित्र हमें निमंत्रण दें। वे निमंत्रण दे देते हैं। वे कहते हैं, आप आकर हमारे घर में ठहर सकते हैं, उसके लिए आपका स्वागत है। किंतु जब आप हमारे घर आएं तो कृपया अंग्रेजी चलन के जूते पहनिए, भारतीय चप्पल मत पहनिए जैसा कि आप अपने घर में पहनते हैं। उस निमंत्रण को केवल इसी आधार पर ठुकराना मेरे लिए बुध्दिमता नहीं होगी। मैं चप्पल को नहीं छोड़ना चाहता। मैं अंग्रेजी जूते पहन लूँगा और निमंत्रण को स्वीकार कर लूँगा और इसी सहिष्णुता की भावना से राष्ट्रीय समस्याएं हल हो सकती हैं।
हमारे संविधान में बहुत से विवाद उठ खड़े हुए हैं और बहुत से प्रश्न उठे हैं जिन पर गंभीर मतभेद थे किंतु हमने किसी न किसी प्रकार उनका निपटारा कर लिया। यह सबसे बडी खाई थी जिससे हम एक दूसरे से अलग हो सकते थे। हमें यह कल्पना करनी चाहिए कि यदि दक्षिण हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि को स्वीकार नहीं करता, तब क्या होता। स्विटज़रलैंड जैसे छोटे-से, नन्हे से देश में तीन भाषाएं हैं जो संविधान में मान्य हैं और सब कुछ काम उन तीनों भाषाओं में होता है। क्या हम समझते हैं कि हम केंद्रीय प्रशसकीय प्रयोजनों के लिए उन भाषाओं को रखने की सोचते जो भारत में प्रचलित हैं तो क्या हम सब प्रांतों के साथ रख सकते थे, सभी में एकता करा सकते थे? प्रत्येक पृष्ठ को शायद पंद्रह-बीस भाषाओं में मुद्रित करना पड़ता।
यह केवल व्यय का प्रश्न नहीं है। यह मानसिक दशा का भी प्रश्न है जिसका हमारे समस्त जीवन पर प्रभाव पड़ेगा । हम केंद्र में जिस भाषा का प्रयोग करेंगे, उससे हम एक दूसरे के निकटतम आते जाएंगे। आखिर अंग्रेजी से हम निकटतम आए हैं क्योंकि यह एक भाषा थी। अंग्रेजी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है, इससे अवश्यमेव हमारे संबंध घनिष्टतर होंगे, विशेषत: इसलिए कि हमारी परंपरा एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं। अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि इस देश में बहुत-सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते थे। हमने यथासंभव बुध्दिमानी का कार्य किया है। मुझे हर्ष है, मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी सन्तति इसके लिए हमारी सराहना करेगी ।“

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

अपनी भाषा का टुटने का दर्द

अपनी भाषा का टुटने का दर्द

रुस के कझाकिस्तान और उझबेकिस्तान के सरहद पर हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है। व्यापार व्यवसाय के कारण जैनियों,पंजाबियों एवं उत्तर भारतीयों ने यहां अपना घर बसाया। उनकी भाषाओं के संमिश्रण के कारण रुस में एक नई हिंदी भाषा ने जन्म लिया। इस अनोखे हिंदी पर हिंदी भाषा के विद्वान स्व.भोलानाथ तिवारी जी ने अनुसंधान किया। जिस अनुसंधान के फलस्वरुप उन्हें दिल्ली विश्वविद्यालय ने पी.एच.डी. प्रदान की।
वहां एक जगह पर घुमते हुए उन्होंने देखा कि एक जगह दो रुसी महिलाओं में झगड़ा हो रहा था। एक महिला ने गाली दी जिसपर दूसरी महिला तत्काल फुट कर रो पड़ी। उन्हें अत्यंत आश्चर्य हुआ कि तब उन्होंने अपने रुसी मित्र को पुछा कि वह कौनसी गाली थी जिसपर वह महिला रोने लगी। दो महिलाओं में जब कोई झगड़ा होता है तो भाषा में निखार आ जाता है। उनके मित्र ने कहां कि उस गाली का मतलब है कि “तुने सिखायी हुई भाषा तेरा बच्चा बड़ा होकर उसे भूल जाए ” । तिवारी जी के दिल को इस बात से झंझोड़ दिया क्योंकि वे भाषा विद्वान थे जिन्हें यह मालूम था कि अपनी मातृभाषा से टुटना याने अपने परिवार,समाज और देश से टुट जाना।
अपनी भाषा से टुट जाने का सिलसिला आज तक जारी है आगे भी जारी रहेगा। अब हमें यह सोचना होगा कि संपत्ति, विकास,नाम शोहरत के लिए दूसरी भाषा को हमारे घर परिवार में कितना पूजा जाना चाहिए। कहते है कि आई-टी में अँग्रेजी का ही बोलबाला है। क्या हमें कॉल सेंटर के जरिए विदेशी लोगों की जीवन भर गुलामगिरी ही करनी है या अपने लोगों के लिए भी कुछ करना चाहिए ? जिस परिवार ने हमें पाल पोस कर बड़ा किया उनकी भाषा के प्रति क्या हमारा कोई उत्तरदायित्व नहीं बनता है ?
आज राजनीति में राज ठाकरे अगर यह कहें कि महाराष्ट्र में मराठी का प्रयोग होना चाहिए तो उसमें बूरा क्या है ? लेकिन भाषा आग्रह के लिए हिंसा का सहारा लेना कदापि स्वीकार्य नहीं है। राज ठाकरे कहते है कि महाराष्ट्र में अन्य प्रांतियों का आक्रमण हो रहा है। जिसके कारण मराठी लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है। उनके पास मुंबई,पुणे के मॅकडोनल्ड के अधिकारी गए और कहने लगे कि हमारे दुकान की नेमप्लेट अँग्रेजी में है और उसके साथ मराठी को जोड़ना महंगा होगा तब राज ने पुछा कि नामपट्ट महंगा है या आपकी दुकान का माल महंगा है। माल की कीमत की रक्षा करने के लिए क्या आप मराठी का प्रयोग नहीं कर सकते ? कुछ राजनीति की बातों को छोड़ दे तो राज ठाकरे यह भी स्वीकार करते है कि उन्हें अन्य भाषाओं के प्रति कोई घृणा नहीं है। उनका आग्रह मराठी को बढावा देना है। वे कहते है कि पूर्व प्रधान मंत्री स्व.नरसिंह राव जी को अनेक भारतीय भाषाओं का ज्ञान था। अटल जी भी अनेक भाषोओं के ज्ञानी है। सोनिया जी को भी इतालवी के अलावा हिंदी भाषा का भी ज्ञान है।
विस्थापन के कारण अनेक भारतीय लोक दक्षिण अफ्रिका,वेस्ट इंडिज,मॉरिशस आदि देशों में गिरमिटिया बन गए। मतलब यह है कि अँग्रजों ने एग्रीमेंट पर बंधक मजदूर बना दिया। उन्होंने भी विदेशी धरती पर छोटा भारत बना दिया। महात्मा गांधी के प्रथम संग्राम की पृष्ठभूमि भी यही विस्थापित भारतीयों के परिवार की कहानी है जिसे डॉ.गिरिराज किशोर जी ने पहला गिरमिटिया में वर्णन किया है। जब गांधी भारत आए तब कॉंग्रेस की सभा को वे हिंदी में संबोधित करने लगे। उन्होंने लोकमान्य टिळक को अँग्रेजी के बजाय हिंदी में भाषण देने का अनुरोध किया।
*********

विजय प्रभाकर नगरकर
राजभाषा अधिकारी भारत संचार निगम लि. अहमदनगर महाराष्ट्र भारत. मोबाईल-०९४२२७२६४०० Email- vpnagarkar@gmail.com

मंगलवार, 2 जून 2009

लो अब सभी हिंदी कर्मी बन गए अफसर

केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण.नियंत्रण और अपील) नियमावली, 1965 के अंतर्गत पदों का वर्गीकरण आदेश सं. 11012य7य2008-स्था(क) दिनांक 17 अप्रैल,2009 द्वारा भारत सरकार, कार्मिक,लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय , कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग नई दिल्ली के आदेशानुसार अब सभी हिंदी कर्मी चाहे हिंदी अधिकारी हो या कनिष्ठ और वरीष्ठ हिंदी अनुवादक हो अब सभी अधिकारी बन गए है। हिंदी अधिकारी,सहायक निदेशक(राजभाषा) को ग्रुप ए तथा कनिष्ठ या वरिष्ठ हिंदी अनुवादकों का वर्गीकरण अब ग्रुप बी में किया गया है। इससे हिंदी पदों का उचित सम्मान किया गया है। हर विभाग में कार्यरत हिंदी कर्मियों को अब अधिकारी माना जाएगा। अपने विभाग द्वारा इस आदेश पर उचित कार्रवाई करने के लिए सबको सचेत रहना होगा। अब हिंदी पदों की भर्ती प्रक्रिया में गति आनी चाहिए।
No.1101217/2008-Estt. (A)
Government of India
Ministry of Personnel, Public Grievances and Pensions
(Department of Personnel and Training)
North Block,
New Delhi,

Dated the 1i
h
April, 2009
Under the Central Civil Services (Classification, Control and Appeal)
Rules, 1965, all Central Government posts are classified into four categories,
viz., Groups "A", "B", "C" and "0". This classification at present is based on the
norms prescribed by the Department of Personnel and Training vide S.O.
332(E) dated 20.04.1998 published in the Gazette of India Extraordinary.
2. As per clause (4) of the Central Civil Services (Revised Pay) Rules, 2008
notified vide notification No G.S.R. 622(E) dated 29.8.2008, the pay band and
grade payor the pay scales, as applicable, of every posUgrade specified in
column 2 of the First Schedule thereto shall be as specified against it in
columns 5 and 6 thereof. Consequent upon the notification of the said rules, it
has become necessary to prescribe revised norms for categorization of posts
into the abovementioned four categories based on the pay b~nd and grade pay
or the pay scales as applicable, as approved by the Government. Accordingly,
an Order classifying the various Central Civil Services posts into Group "A", "B",
"C" and "0" based on the revised norms of pay has been notified in the Gazette
of India Extraordinary vide S.O. 946 (E) dated 09.04.2009. A copy of the Order
is enclosed. All posts in the Central Civil Services would now stand classified
strictly in accordance with the norms of pay band and grade payor pay scales
as prescribed in the said Order.
4. In some Ministries/bepartments, posts may exist which are not classified
as per the norms laid down by this Department. If, for any specific reason
Ministry/Department proposes to classify the posts differently it would be necessary for that Department to send a specific proposal to
Department of Personnel and Training giving full justification in support of the
proposal within three months of this a.M. so that the exceptions to the norms
of classification laid down in S.O .946 (E) dated 09- 04 - 2009 can be notified.
J
~
( P.PRABHAKARAN )
Deputy Secretary to the Government of India
1. Comptroller and Auditor General of India, New Delhi
2. Lok Sabha Secretariat/Rajya Sabha Secretariat/Ministry of Parliamentary
Affairs.
3. Union Public Service Commission, New Delhi.
4. President's SecretariaWice-President's Secretariat/ Prime Minister'sOffice.
5. Election Commission of India, New Delhi.
6. Central Vigilance Commission, New Delhi.
7. Staff Selection Commission, New Delhi.
8. Central Bureau of Investigation, New Delhi.
9. Chief Secretaries of all State Governments/Union Territory
Administrations.
10. All Attached and Subordinate Offices of the Ministry of Personnel, Public
Grievances and Pensions.
11. All Officers and Sections in the Ministry of Personnel, PG and Pensions.
12. NIC (DOPT) with the request that this a.M. may be placed on the
Department's website

(www.persmin.nic.in).








































MINiSTRY OF PERSONNEL, PUBLIC GRIEVANCES AND PENSIONS
(Department of Personnel and Training)
- ORDER
New Delhi, the 9th April, 2009
8.0. 946(E).-In exercise of the powers conferred by the proviso to article 309 and clause 5 of article 148 of the Constitution read with rule 6 of the Central Civil Services (Classification, Controhmd Appeal) Rules, 1965 and in supersession of the notification of the Government ofIndia in the Department ofPersonp.el and Training number S.O. 332(E) d~d the 20th day of April, 1998, and after consultation with the Comptroller and Auditor General ofIndia in relation to persons serving in the Indian Audit and Accounts Department, except as respects things done or omitted to be done before such supersession, the President hereby directs thatwitheffect from the date of publication of this order in the Official Gazette, all civil posts under the Union, shall be classified as follows:- .
1. (a) A Central Civil post in Cabinet Secretary's scale (Rs. 90000- flXed),
Apex Scale (Rs.80000-flXed) and Higher Administrative Grade plus
scale (Rs. 75500-80000); and

(b) A Central Civil post carrying the following grade pays ;-
Rs. 12000, Rs. 10000, Rs. 8900 and Rs. 8700 in the scale of pay of
Rs. 37400-67000 in Pay Band-4, andRs, 7600, Rs. 6600andRs. 5400
in the scale afpay ofRs. 15600-39100 in Pay Band-J .
2. A Central Civil post carrying the following grade pays ;-
. Rs. 5400, Rs. 4800, Rs. 4600 and Rs. 4200 in the scale of pay of
Rs. 9300-34800 inPayBand-2.

3. A Central Civil post carrying the following grade pays ;-
Rs. 2800, Rs. 2400, Rs. 2000, Rs. 1900 and Rs. 1800 in the scale of
pay ofRs. 5200-20200 in Pay Band-I.

4. A Central Civil post carrying the fol\owing grade pays ;-) .
Rs. DOO,Rs. 1400, Rs. 1600, Rs. 1650 in the scale of pay of
Rs. 4440- 7440 in 1S Scale
GroupD
(till the posts
are upgraded)
Explanation: For the purpose of this order Pay Band, in relation to a post, means the running Pay Bands specified in Part-
A, Section 1 of column 5 of the First Schedule to the Central Civil Services (Revised Pay) Rules, 2008 .
[F.No. llOI2/7/2oo8-Estt. (A)]
C. B. PALIWAL, It Secy.

विजय प्रभाकर कांबले
राजभाषा अधिकारी भारत संचार निगम लि. अहमदनगर महाराष्ट्र भारत. मोबाईल-०९४२२७२६४०० Email- viprakamble@gmail.com
http://rajbhashamanas.blogspot.com htttp://groupus.goo

बुधवार, 20 मई 2009

केंद्र सरकार के कार्यालयों में न्यूनतम हिंदी पदों का सृजन

केंद्र सरकार के कार्यालयों,उपक्रमों,बैंकों आदि में न्यूनतम हिंदी पदों को सृजित करने के बारे में गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग ने विस्तृत आदेश ज्ञा॰ सं॰ 13035/3/95--रा॰भा॰ (नीति एवं समन्वय) दिनांक 22-07-2004 द्वारा जारी किए गए है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस आदेश का सही पालन सभी कार्यालयों में नहीं किया जाता है। मा. संसदीय राजभाषा निरीक्षण समिति ने आपत्ति उठाने के बावज़ूद भी न्यूनतम हिंदी पदों की नियुक्ति नहीं की जा रही है। इससे कार्यालय के राजभाषा कार्यान्वयन तथा अनुवाद कार्य में बाधा उत्पन्न हो जाती है। सरकारी कार्यालयों में हिंदी का प्रसार करने का प्रामाणिक प्रयास सभी स्तरों पर नहीं किया जाता है। जहां एक जगह रोजगार निर्माण की बात की जाती है वहां हिंदी पदों के सृजन एवं नियूक्ति के मामले में उदासीनता दिखायी देती है।
हिंदी पदों का सृजन करते समय अनुसचिवीय कर्मचारियों की गणना की जाती है। इसकी गणना करते समय हर कार्यालय में कोई निश्चित आदेश जारी नहीं किया जाता है । इस संदर्भ में राजभाषा विभाग के स्पष्ट आदेश है कि अनुसचिवीय कर्मचारियों शब्दों के अंतर्गत वे सभी कर्मचारी तथा अधिकारी शामिल हैं जिनके पद अनुसचिवीय कार्यों के लिए सृजित किए गए हैं चाहे वे तकनीकी या वैज्ञानिक कर्मचारी या अधिकारी हो। इसके अतिरिक्त यदि तकनीकी और वैज्ञानिक पद इस तरह से काम के लिए स्वीकृत हों परन्तु पदधारियों को अनुसचिवीय कार्य भी सौंपा गया हो तो आंतरिक कार्य अध्ययन एकक द्वारा इस तरह के कर्मचारियों के कार्य के स्वरूप की पड़ताल करने के बाद उन्हे हिंदी पदों के सजृन के लिए गिना जा सकता है।
हिंदी पदों के सृजन के बारे में राजभाषा विभाग के आदेश निम्नानुसार है।
क) मंत्रालयों/विभागों के लिए
1) प्रत्येक मंत्रालय तथा स्वतंत्र विभाग में जिसका पूर्णकालिक सचिव हो वहां एक सहायक निदेशक (राजभाषा)।
2) प्रत्येक ऐसे मंत्रालय या विभाग में जहां 100 या 100 से अधिक अनुसचिवीय कर्मचारी हो या जिसके अंतर्गत 4 या 4 से अधिक
संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालय या उपक्रम ऐसे जिसमें हर एक में 100 या 100 से अधिक अनुसचिवीय कर्मचारी हो वहां एक वरिष्ठ
हिंदी अधिकारी अर्थात उप-निदेशक (राजभाषा)। राजभाषा विभाग के निर्धारित नार्मस को ध्यान में रखते हुए यह पद सहायक निदेशक के पद के बदले या उसके अतिरिक्त हो सकता है।
मंत्रालय/विभाग में कार्य के स्वरूप और कार्य की मात्रा के आधार पर 12000-16500 रुपए के वेतनमान में संयुक्त निदेशक
(राजभाषा) (इसी वेतनमान में पहले निदेशक) का पद बनाया जा सकता है।
3) 50 से कम अनुसचिवीय कर्मचारियों पर एक कनिष्ठ अनुवादक 50से 50 अनुसचिवीय कर्मचारियों पर 2 कनिष्ठ अनुवादक
101 से 150 अनुसचिवीय कर्मचारियों पर 3 अनुवादक 151 या इससे अधिक अनुसचिवीय कर्मचारी होने पर 3 कनिष्ठ
अनुवादक तथा एक वरिष्ठ अनुवादक।

ख) संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालयों के लिए
1) 100 या 100 से अधिक अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले प्रत्येक संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालय में एक हिंदी अधिकारी या सहायक निदेशक (राजभाषा
2) (क) ‘क क्षेत्र में स्थित कार्यालयों के लिए (रक्षा सेनाओं और अर्ध सैनिक बलों कार्यालयों को छोड़कर)μ18 से 125
अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले कार्यालय में एक कनिष्ठ अनुवादक 126 से अधिक अनुसचिवीय कर्मचारियों के लिए दो -कनिष्ठ
अनुवादक।
(ख) ‘ख तथा ग क्षेत्र में स्थित कार्यालयों के लिए
18 से 75 तक अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले कार्यालय में एक कनिष्ठ अनुवादक। 76 से 125 अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले
कार्यालयों के लिए दो कनिष्ठ अनुवादक। 126 से 175 अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले कार्यालय के लिए तीन कनिष्ठ अनुवादक।
175 से अधिक अनुसचिवीय कर्मचारियों वाले कार्यालय के लिए तीन कनिष्ठ अनुवादक तथा एक वरिष्ठ अनुवादक।

ग) रक्षा सेनाओं और अर्ध सैनिक बलों के ‘क क्षेत्र में स्थित कार्यालयों पर भी जो एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में स्थानांतरित होते रहते
है यही मानक लागू होंगे।
(घ) ‘ख व ‘ग क्षेत्र में स्थित केंद्रीय सरकार के ऐसे सभी कार्यालयों में जहां कम से कम 25 अनुसचिवीय कर्मचारी हों एक ¯हिंदी
टाइपिस्ट का पद दिया जाए। ‘क क्षेत्र में नए खोले जाने वाले कार्यालयों में भी यदि कम से कम 25 अनुसचिवीय कर्मचारी हों
तो एक हिंदी टाइपिस्ट पद दिया जाए। ‘क क्षेत्र में स्थित रक्षा सेनाओं और अर्धसैनिक बलों के कार्यालयों जो एक क्षेत्र से दूसरे
क्षेत्र में स्थानांतरित होते रहते है उनमें भी वही मानक लागू होंगे।
च) मंत्रालयों/विभागों और संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालयों में राजभाषा नीति के अनुपालन के लिए अन्य पदः-
(प) अनुवाद के अलावा अन्य कई प्रकार का कार्य ऐसा है जो राजभाषा नीति का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है, जैसे आदेशों का परिचालन करना, प्रगति रिपोर्ट बनाना ,हिंदी सलाहकार समिति, राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों की कार्यसूची व कार्यवृत्त तैयार करना कर्मचारियों को हिंदी सीखने के लिए नामित करना, कार्यशालाओं का आयोजन करना आदि। मंत्रालयों/विभागों
और संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालयों में इस कार्य के लिए निम्नलिखित पदों की अनुशंसा की जाती हैः-
(क) अवर श्रेणी लिपिक (हिंदी टाइपिस्ट) का एक पद यह पद पहले से अस्तित्व में है जैसाकि राजभाषा विभाग के दिनांक 05-04-89
के का॰ज्ञा॰ सं॰ 13035 -रा॰भा॰(ग) में उल्लिखित है।


ख) सहायक का एक पद उन मंत्रालयों/विभागों में तथा सहायक या उसके समकक्ष पद उन संबद्ध/अधीनस्थ कार्यालयों में जहां
अनुसचिवीय कर्मचारियों की संख्या (ग्रुप ‘डी को छोड़कर) कम से कम 310 है।
ग) यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि जहां उक्त कार्यों के लिए सहायक या समकक्ष पद पहले से स्वीकृत है वहां अतिरिक्त पद अनुशंसित
न किया जाए।
च) ‘अनुसचिवीय कर्मचारियों से सभी कर्मचारियों से (श्रेणी ‘घ के कर्मचारियों को छोड़कर) है जिनके पद लिपिक वर्गीय कार्यों के लिए मंजूर किए गए है भले ही वे तकनीकी या वैज्ञानिक कर्मचारी या अधिकारी हों। इसके अतिरिक्त जिन तकनीकी और वैज्ञानिक कर्मचारियों/अधिकारियों को अनुसचिवीय कार्य (जैसे टिप्पण, प्रारूपण, पत्र लेखन, लेखाकरण आदि) सौंपा गया है उनको भी हिंदी पदों की गणना में शामिल किया जाए।
इन मार्गदर्शी सिद्धांतों में ¯हिंदी पदों की जो संख्या निर्धारित की गई है वह न्यूनतम है ताकि इनकी व्यवस्था, बिना कार्य अध्ययन के केवल
कार्यालय के कर्मचारियों की संख्या और कार्यालय किस क्षेत्र में स्थित है के आधार पर की जाए ताकि राजभाषा नीति के कार्यान्वयन पर प्रतिकूल असर
न पड़े। काम की मात्रा और स्वरूप को ध्यान में रखते हुए किसी भी कार्यालय में इससे अधिक पदों का यदि औचित्य हो तो उनका सृजन कार्य अध्ययन के आधार पर किया जा सकता है।
कार्य अध्ययन करते समय उसी कार्य को ही ध्यान में न लिया जाए जो इस समय किया जा रहा है बल्कि वे कार्य की सारी मदें हिसाब में ली जाएं जो राजभाषा अधिनियम, नियम, वार्षिक कार्यक्रम आदि की अपेक्षाओं के अनुसार हिंदी में या दोनों भाषाओं (¯हिंदी और अंग्रेजी) में किए जाने जरूरी है। कहना न होगा कि कार्य अध्ययन कार्यभार की मात्रा का ध्यानपूर्वक मूल्यांकन करके ही किया जाना चाहिए न कि तदर्थ आधार पर।
यह स्पष्ट किया जाता है कि जिन कार्यालयों में अनुवादक आदि के पद पूर्व के मानकों के आधार पर पहले से सृजित किए जा चुके है उन्हे इस आधार पर समाप्त नहीं किया जाएगा कि संशोधित मार्गदर्शी सिद्धांतों के अनुसार निर्धारित संख्या से वे अधिक है। तथापि, कोई भी अतिरिक्त मांग मंत्रालय/विभाग तथा उसके संबद्ध और अधीनस्थ कार्यालय में समग्र रूप से फालतू पाए जाने वाले पदों से समायोजित की जाएं।
केंद्रीय सरकार के प्रशिक्षण संस्थानों में ¯हिंदी के माध्यम से प्रशिक्षण देने के लिए प्रशिक्षण सामग्री का अनुवाद करने के लिए अनुवाद कार्य की मात्रा के आधार पर आवश्यक पदों का सृजन किया जाना चाहिए और इसके लिए न्यूनतम पदों का कोई मानदंड बनाने की आवश्यकता नहीं है।
यह कार्यालय ज्ञापन निदेशक कर्मचारी निरीक्षण एकक) वित्त मंत्रालय द्वारा उनकी दिनांक 26-12-2003 की अन्तर्विभागीय टिप्पणी
सं॰ 526 एस॰आई॰यू॰/2003 में दिए गए अनुमोदन से जारी किया जाता है।

इतने स्पष्ट आदेश होने के बावज़ूद अकेला हिंदी अधिकारी या अनुवादक हिंदी कार्य में कितना न्याय दे सकता है ।

विजय प्रभाकर कांबले
राजभाषा अधिकारी भारत संचार निगम लि. अहमदनगर महाराष्ट्र भारत. मोबाईल-०९४२२७२६४०० Email- viprakamble@gmail.com
http://rajbhashamanas.blogspot.com htttp://groupus.goo

बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

प्रगति - हिंदी ब्राउजर

सी-डैक बेंगलुरु ने भारतीय भाषाओं के लिए भारतीय ओपन ऑफिस जारी किया है। इस योजना के अंतर्गत इंटेलीबँश.टचफॉक्स,प्रगति,इंडिक फॉक्स,हिंदी थेसारस,पाथ फाईन्डर तथा WiRWiB का विकास किया जा रहा है। क्या आप ऐसे ब्राउजर के साथ काम करना चाहते है जिसमें संपूर्ण हिंदी सहायता उपलब्ध है ? फिर आपको प्रगति हिंदी ब्राउजर अजमाना चाहिए। प्रगति मेँ इनबिल्ट अँग्रेजी – हिंदी शब्दकोश उपलब्ध है । जिसकी सहायता से आप किसी भी अँग्रेजी वेब पेज के किसी भी शब्द पर क्लिक करते ही आपको ऑनलाईन अँग्रेजी शब्द के लिए हिंदी अर्थ दिखाई देगा ।

प्रगति बनाने वालोँ का दावा है कि वह विश्व का प्रथम फायरफॉक्स ब्राउजर है जिसमेँ ऑंनलाईन अँग्रेजी – हिंदी सहायता मौजुद है ।
इस प्रगति ब्राउजर की महत्वपूर्ण विशेषताऍ - 1. सँपूर्ण स्थानीय हिंदी इँटरफेस सुविधा
2. अँग्रेजी – हिंदी शब्दकोश की सहायता से ऑनलाईन क्लिक करते ही किसी अँग्रेजी शब्द का हिंदी अर्थ प्रस्तुत होगा ।
3. बिल्टइन शब्दकोश डिक्शनरी से खोज ।
4. अँबटु के लिए इँडिक भाषाओँ को सक्षम करना आसान

टचस्क्रीन की विशेषताऍ उपलब्ध जैसे –
• स्पर्श करके प्रयोग करना है ।
• फूलस्क्रीन व नॉर्मल कोड के बीच उडान
• वेब पेज के पर्याप्त प्रयोग हेतु PIE- मेनु का उपयोग
• ऑंनस्क्रीन हिंदी – अँग्रेजी की बोर्ड की सुविधा जिससे आप फॉर्म डाटा भर सकते है ।

प्रगति ब्राउजर मोजिला पब्लिक लायसेँस के अँतर्गत जारी किया गया है । आप प्रगति विँडोज , उबंटु – पाँगो , XFT एनेबल , फेडोरा के लिए डाउनलोड कर सकते है ।



Download Pragati for
• Windows http://www.ncb.ernet.in/bharateeyaoo/downloads/pragati/PragatiSetup.exe
• Ubuntu - Pango-XFT Enabled http://www.ncb.ernet.in/bharateeyaoo/downloads/pragati/pragati_ubuntu.tar.gz
• Fedora http://www.ncb.ernet.in/bharateeyaoo/downloads/pragati/pragati_fedora.tar.gz

इसे ममता अच्युतन तथा वैभव अग्रवाल ने विकसित किया है ।





विजय प्रभाकर नगरकर
राजभाषा अधिकारी भारत संचार निगम लि. अहमदनगर महाराष्ट्र भारत. मोबाईल-०९४२२७२६४०० Email- viprakamble@gmail.com
http://rajbhashamanas.blogspot.com htttp://groupus.goo

शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

ई-महाशब्दकोश


राजभाषा विभाग,गृह मंत्रालय,भारत सरकार ने सी-डैक पुणे के तकनीकी सहयोग से ई-महाशब्दकोश का निर्माण किया है। इस योजना के अंतर्गत शुरुआती दौर में प्रशासनिक शब्द संग्रह को देवनागरी यूनिकोड में प्रस्तुत किया गया है। इसमें आप अँग्रेजी का हिंदी पर्याय तथा हिंदी शब्दों का वाक्य में अतिरिक्त प्रयोग देख सकते है। इसकी विशेषता यह भी है कि आप हिंदी शब्दों का उच्चारण भी सुन सकते है। यह एक बहुउपयोगी शब्दकोश है। इसमें आप अन्य शब्द जोड सकते है। इसे अधिक उन्नत करने में आपका सहयोग अपेक्षित है।
इस ई-महाशब्दकोश की मुख्य विशेषताएँ - देवनागरी लिपि के लिए यूनीकोड फॉन्ट ,खोजे गये शब्द का उच्चारण,स्पष्ट लेआउट / जी. यू. आई. प्रयोग में आसान ,तीन अक्षरों पर शब्द सूची,पूर्ण शब्द खोज,द्विआयामी खोज,शब्दों की सूची में से खोजने की सुविधा ,सही मौखिक उच्चारण और संबंधित जानकारी,अर्थ एवं संबंधित जानकारी,शब्द / प्रदबंध का प्रयोग,शब्द / प्रदबंध का सचित्र चित्रण (जहॉं उचित हो) है।
श्रीमती पी.वी. वल्‍सला जी. कुट्टी ,संयुक्‍त सचिव, भारत सरकार ,राजभाषा विभाग,गृह मंत्रालय के अनुसार काफी समय से केन्‍द्र सरकार के कर्मचारियों के कार्य में हिंदी प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु प्रयास किए गए हैं । अनुभव बताता है कि केन्‍द्र सरकार के कार्यालयों और संगठनों में बड़ी संख्‍या में कर्मचारी अपने क्रियाकलापों में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग करने के इच्‍छुक हैं परंतु पर्याप्‍त तकनीकी सुविधाओं के अभाव में हिंदी भाषा का प्रयोग प्रभावशाली ढंग से नहीं कर पाते हैं । सरकार द्वारा हिंदी में सहजता से कार्य करने के लिए प्रभावी साधनों को मुहैया कराने पर विचार किया गया है । हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु इलैक्‍ट्रॉनिक मीडिया के माध्‍यम से आधुनिक तकनीक के समावेश के विचार ने उन लोगों की समस्‍या के समाधान के रूप में जन्‍म लिया जो हिंदी में कार्य करने के इच्‍छुक हैं परंतु पर्याप्‍त सुविधा के अभाव में ऐसा करने से झिझक रहे हैं । सरकारी कार्यालयों में सरल व प्रभावी तरीके से हिंदी में कार्य करने के लिए उपयुक्‍त सॉफ्टवेयरों के विकास हेतु राजभाषा विभाग ने सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की कंप्‍यूटिंग कंपनी, नामत:, सी-डैक, पुणे के साथ एक समझौता किया है । पिछले कुछ वर्षों में विकसित सॉफ्टवेयरों में हिंदी भाषा का स्‍वयं शिक्षण (लीला-श्रृंखला), मंत्रा श्रृंखला द्वारा चुने गए कार्यक्षेत्रों में अंग्रेजी से हिंदी तुरंत अनुवाद, हिंदी डिक्‍टेशन के लिए श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर, अंग्रेजी स्‍पीच की पहचान कर उसे हिंदी में अनुवाद के लिए वाचांतर सॉफ्टवेयर शामिल है । सॉफ्टवेयरों के विकास की इस श्रृंखला में नवीनतम विकास राजभाषा विभाग द्वारा सी-डैक के माध्‍यम से ई-महाशब्दकोश का विकास है, जो कि एक द्विभाषी-द्विआयामी उच्‍चारण शब्दकोश है । प्रौद्योगिकी को हिंदी के प्रयोग से जोड़कर राजभाषा के प्रयोग को बढ़ाने के इरादे से हिंदी प्रेमियों के लिए ई-महाशब्दकोश को प्रस्‍तुत करना मेरे लिए हर्ष और गर्व की बात है । ई-महाशब्दकोश के वर्तमान शुरूआती संस्‍करण में प्रशासनिक कार्यक्षेत्र में प्रयुक्‍त होने वाले शब्‍दों को शामिल किया गया है । मुझे विश्‍वास है कि ई-महाशब्दकोश प्रयोगकर्ताओं में बहुत लोकप्रिय होगा क्‍योंकि यह केन्‍द्र सरकार के कार्यालयों में हिंदी में सामान्‍य कार्य करने में आने वाली अनेक बाधाओं को दूर करने में सहायक होगा । वास्‍तव में यह केवल सीमित अर्थों में एक शब्दकोश ही नहीं वरन् इससे आगे अपनी पहुंच को ले जाते हुए यह शुद्ध उच्‍चारण, विशेष प्रयोगकर्ताओं के लिए विशिष्‍ट अर्थ देना, शब्‍दों और मुहावरों को प्रयोग करने का विवरण आदि सुविधाओं को देने में सहायक है । यह कहने की आवश्‍यकता नहीं है कि यह शब्दकोश मुहावरों को प्रयोग करने में आने वाली दिक्‍कतों को दूर करने तथा उनको ठीक से दिखाने में प्रयोगकर्ता के लिए लाभकारी होगा । ई-महाशब्दकोश उनके लिए बहुत उपयोगी होगा जो वास्‍तव में हिंदी में काम करना चाहते हैं । सी-डैक, पुणे के सहयोग से राजभाषा विभाग द्वारा विकसित कराए गए सॉफ्टवेयरों में यह एक उल्‍लेखनीय उत्‍पाद होगा । ई-महाशब्दकोश की सूची में आगे सुधार के लिए यह आवश्‍यक होगा कि अधिक से अधिक लोग इसका प्रयोग करके अपना अमूल्‍य फीड-बैक राजभाषा विभाग या सी-डैक को भेजें ताकि ई-महाशब्दकोश की सक्षमता और दक्षता को अति उच्‍च स्‍तर तक ले जाया जा सके ।
राजभाषा विभाग के कार्यविधि की अधिक जानकारी के लिए, कृपया इन वैबसाईट पर संपर्क करे. http://rajbhasha.gov.in.
अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें-
• राजभाषा विभाग (डी.ओ.एल),तकनीकी कक्ष, गृह मंत्रालय
दूसरा माला, लोक नायक भवन,खान मार्केट, नई दिल्ली - 110 003
टेली : (o11) 2461 7695 / 2461 9860
फैक्स : (011) 2461 1031 / 2461 7809
ई-मेल : techcell-ol@nic.in
वेबसाईट : http://rajbhasha.nic.in

• प्रगत संगणन विकास केन्द्र (सी-डैक), एप्लाइड आर्टिफिशियल इंटैलीजेंस ग्रुप,
6वी मंजिल, एन.एस.जी. आय.टी. पार्क,स. नं. - 127/2B/2A, औंध, पुणे - 411 007,महाराष्ट्र (भारत)
टेली : (020) 25503314/15 फैक्स : (020) 25503334
ई-मेल: darbari@cdac.in वेबसाईट : http://cdac.in

सोमवार, 15 दिसंबर 2008

राजभाषा कर्मियों की वेतन में बढोतरी

राजभाषा कर्मियों की वेतन में बढोतरी
छठे वेतन आयोग ने सिफारिश की थी कि केंद्र सरकार के विभिन्न अधिनस्थ कार्यालयों में कार्यरत राजभाषा कर्मियों का वेतनमान केंद्रीय सचिवालय राजभाषा केडर के समान रखा जाए लेकिन इस सिफारिश पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी थी। अब वित्त मंत्रालय,भारत सरकार के दिनांक 24 नवंबर,2008 के आदेशानुसार वेतनमान की इस विसंगति को हटा दिया गया है। जिला स्तर पर कार्यरत हिंदी अनुवादक,हिंदी अधिकारी को अब दिल्ली स्थित राजभाषा विभाग के समकक्ष वेतनमान दिया जाएगा। इस वेतन असंगति को लेकर अनेक न्यायालयीन मामले दर्ज किए गए थें।
अब आशा की जा सकती है कि केंद्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों में रिक्त राजभाषा से जुडे हजारों पदों की भरती की जाएगी। संविधान में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राजभाषा नियमों के अनुसार हर जिला स्तर पर हिंदी केडर के पद सृजित किए जाने चाहिए। सरकारी कार्योलयों में हिंदी पदों की कमी हर जगह समस्या बन कर रह गयी है। संसदीय राजभाषा समिति के राजभाषा निरीक्षण के बाद रिक्त पदों को भरने का आश्वासन हर विभाग द्वारा दिया जाता है लेकिन स्थिति फिर वही रह जाती है। हिंदी को बढाने की बात होती है लेकिन हिंदी पदों की भरती दूर का सपना हो जाता है। विडंबना यह है कि इन पदों को भरने के लिए सरकार की ओर से कोई वित्तिय आपत्ति नहीं है लेकिन हर विभाग का प्रशासन अभी तक इतना चुस्त नहीं है कि हिंदी पदों का औचित्य तयार करके पदों का निर्माण एवं भरती की जाए। इस देश में हिंदी में स्नातकोत्तर प्रशिक्षित छात्रों की बडी तादाद बेकार है। उनको इन पदों पर नियुक्त किया जा सकता है। इससे दक्षिण भारत में रोजगार प्राप्त हो सकता है। हिंदी प्रचार प्रसार में हिंदी केडर महत्वपूर्ण भूमिका अदा हो सकती है। हिंदी के द्वारा देश को जोडने की बात की जाती है। फिर सरकार हिंदी के हजारों रिक्त पदों पर भरती कब करेगी यह सवाल हमेशा हर विभाग में लंबित रहता है।
देश के विभिन्न कार्यालयों में कार्यरत हिंदी कर्मियों का राष्ट्रीय स्तर पर सर्वेक्षण करते हुए उनका एक ही संवर्ग बनाने की जरुरत महसुस की जा रही है। इस बारे में संसदीय राजभाषा समिति तथा राजभाषा विभाग ने सूझाव दिया था लेकिन इस दिशा में अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है।

निम्नलिखित आदेश के अनुसार अधिनस्थ कार्यालयों में कार्यरत हिंदी केडर के वेतनमान में संशोधन किए गए है।









( Copy of letter No. F.No.1/1/2008-IC dated 24/11/2008 from Alok Saxena, Director (IC), Implementation Cell, Dept. of Expenditure, Ministry of Finance, Govt. of India addressed to all Ministries / Departments of Govt. of India )

Subject- Revised pay scales for Official Language posts in various subordinate
offices of the Central Government.

Consequent upon the implementation of the recommendations of Sixth Central Pay Commission, this Department has received queries from many Ministries/ Departments regarding the revised pay structure applicable in the case of Official Language posts existing in the subordinate offices of the Central Government. In this connection, it is clarified that in accordance with the recommendations of the Sixth Central Pay Commission as accepted by the Govt., similarly designated posts existing outside the Central Secretariat Official Language Service (CSOLS) cadre in various subordinate offices of the Central Govt. have been granted the same scale as those granted to CSOLS. The Government has notified the following revised pay structures for the Official Language cadre belonging to CSOLS.

(in Rs.)

Designation
Recommended
pay
scale
Corresponding Pay Band & Grade pay
Pay Band
Grade Pay
Jr. Translator
6500-10500
PB-2
4200

Sr. Translator
7450-11500
PB-2
4600

Asstt. Director (OL)
8000-13500
PB-3
5400

Dy. Director (OL)
10000-13500
PB-3
6100

Jt. Director (OL)
12000-16500
PB-3
6600

Director (OL)
14300-18300
PB-3
7600






2. Accordingly, w.e.f. 1.1.2006, all Ministries/ Departments etc. are required to grant the revised pay scales approved for various posts in the CSOLS to similarly designated Official Language posts existing in their subordinate offices.
-------------------------------------------------------------------------------------------------------



विजय प्रभाकर कांबले
राजभाषा अधिकारी भारत संचार निगम लि. अहमदनगर महाराष्ट्र भारत. मोबाईल-०९४२२७२६४०० Email- viprakamble@gmail.com
http://viprakamble.blogspot.com htttp://groupus.goo

बुधवार, 21 मई 2008

अब उर्दू भी नागरी लिपि में पढ़े।

“नहीं खेल ऐ ”द़ाग” यारों से कह दो
कि आती है उर्दू ज़बाँ आते आते।“
द़ाग की कुछ रचनाएँ पढ़ने के लिए मुझे उर्दू - हिंदी शब्दकोश का सहारा लेना पड़ा। डॉ.बशीर बद्र की उर्दू रचनाओं का नागरी लिप्यतंरण एवं संपादन भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी श्री. बसंत प्रताप सिंह ने कल्चर यकसाँ में किया है जो वाणी प्रकाशन नई दिल्ली ने प्रकाशित किया है। इसीतरह डॉ.बशीर बद्र की रचनाएँ उजाले अपनी यादों के संग्रह में नागरी लिपि में विजय वाते ने संपादित की है। दोनों ने उर्दू को नागरी लिपि में लिप्यतंरित करके हिंदी साहित्य की बड़ी सेवा की है। उर्दू रजनाओं को समझने में मुझे स्व.आचार्य रामचंद्र वर्मा द्वारा संपादित उर्दू हिंदी कोश मददगार साबित हुआ। यह कोश शब्दलोक प्रकाशन,वाराणसी ने प्रकाशित तथा लोकभारती प्रकाशन इलाहाबाद ने वितरित किया है। इसके अलावा महाराष्ट्र के श्रीपाद जोशी जी द्वारा संपादित उर्दू-मराठी-हिंदी शब्दकोश भी अत्यंत उपयोगी साबित हुआ।
यह बात हुई साहित्य की लेकिन भाषा विज्ञान की दृष्टी से उर्दू से नागरी लिप्यतंरण का एक विशेष महत्व है। हिंदी उर्दू के कुछ शब्दसंग्रह को छोड दे तो दोनों की बनावट एवं क्रियापद समान है। भिन्न लिपि के कारण यह दोनों भारतीय भाषा भगिनियाँ एक ही परिवार में अलग अलग पेहराव पहन कर दूरियाँ बनाकर रह रही है। इस दूरी को अब आधूनिक सूचना प्रौद्योगिकी के कारण हटाया जा सकता है। मैंने कुछ दिन पहले गुगल ग्रुप के चिट्ठाकार वेब पर चर्चा की कि क्या उर्दू रचनाओं को नागरी लिपि में लिप्यंतरित करके पढा जा सकता है। तब मुझे उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हुई। संबंधित चर्चा के बिंदू पाठकों की जानकारी के लिए सीधे चिट्ठाकार की सौजन्य से निचे दे रहा हूँ।

मित्रों
क्या उर्दू से अन्य भारतीय भाषाओं के लिए लिप्यतंरण सुविधा उपलब्ध है?
क्योंकि उर्दू का साहित्य लिपि के कारण हम पढ नहीं सकते. रोमन से अन्य
भारतीय भाषाओं में गिरगीट तथा इंडिक ट्रांसलिटरेशन की सुविधा है लेकिन
क्या कोई मुझे उर्दू को नागरी लिपि में बदलने की तरकीब बता सकता है।
-विजय प्रभाकर कांबले
……………………………
भोमियो में हिंदी उर्दू लिप्यांतर मौजूद था। गिरगिट से भी मैं अनुरोध करुंगा कि वे उर्दू हिंदी लिप्यांतर इसमें शामिल करें। - जगदीश भाटिया
……………………………
भोमियो की उस सुविधा से मैने शुऐब के ऊर्दू चिट्ठे को देखा था, बहुत बढ़िया लिप्यांतरण करता था, शायद चिट्ठाजगत ( गिरगिट) भी इस तरफ ध्यान दे।
--
सागर चन्द नाहर
www.nahar.wordpress.com ॥दस्तक॥
www.techchittha.blogspot.com तकनीक
www.mahaphil.blogspot.com गीतों की महफिल
…………………………………..
यदि थोड़ा प्रयत्न किया जाय तो उर्दू-देवनागरी लिप्यन्तरण औजार बनाया जा
सकता है। यह किसी फाण्ट परिवर्तक जैसा ही होगा। बस समस्या है कि हममे से अधिकांश को उर्दू पढ़ना-लिखना नहीं आता है (और इसीलिये यह उपकरण महत्वपूर्ण है) इसलिये लिप्यन्तरण के अल्गोरिद्म को बनाना मुझे कठिन लग रहा है।
यदि अपने में से कोई बन्धु उर्दू के उच्चारण के नियमों पर प्रकाश डालें
और बतायें कि ऊर्दू के कौन से अक्षर/अक्षर-समूह देवनागरी के किस अक्षर/ अक्षर-समूह के तुल्य होते हैं तो इस पर काम आरम्भ किया जा सकता है। मैंने सुना है कि बहुत से उच्चारण स्थिति/प्रसंग के अनुसार बदलते रहते हैं -- अत: कृपया अपवादों के बारे में भी बतायें। कोई जालस्थल इस तरह की जानकारी देता हो तो उसे बतायें।
यदि उर्दू-देवनागरी लिप्यन्तरण का कार्य ९०% भी सफल होता है तो मेरे
हिसाब से पर्याप्त है। आदमी की बुद्धि बहुत तेज काम करती है; बाकी १०%
की समस्या का हल बुद्धि से हो जायेगा। - अनुनाद
……………………………
मान्यवर आप का यह काम बड़ा अहम् होगा वैसे तो मैं भी आप की मदद कर सकता हूँ,
लेकिन मैं आप को एक मित्र का नाम और मेल दे रहा हूँ. अमरीका के कॅलेफोर्निया में उर्दू और हिन्दी पढाते हैं , आप अपनी ज़रूरतों को लिखिए.
- नाम आफताब अहमद mail - aftab...@gmail.com
please visit
http://samaysrijan.blogspot.com/
आप का- - मेराज अहमद
………………………………
भोमियो एक अच्छा औजार था और उसमें बेहतरी हो सकती थी. एक ऐसा ही ऑनलाइन औजार अभी भी काम कर रहा है, परंतु उसकी उपयोगिता अत्यंत सीमित है. बीबीसी उर्दू को हिन्दी में यहाँ देखें -
http://ltrc.iiit.net/~anusaaraka/cgi-bin/urdu-hindi/urdu-hindi.cgi?ur...
वैसे, उर्दू वेबसाइट को बोलकर पढ़ने वाला औजार जरूर काम का हो सकता है. यहाँ से डाउनलोड करें -
http://www.crulp.org/Downloads/langproc/TextToSpeech/UrduWebpageReade...
पर, रमण कौल ने इस पर विस्तृत लेख लिखा है कि हिन्दी से उर्दू तो संभव है (कई औजार हैं,) परंतु उर्दू से हिन्दी लगभग असंभव. यहाँ पढ़ें -
http://kaulonline.com/chittha/2007/07/urdu-devanagari-comparison/
रविशंकर श्रीवास्तव
………………….
सागर जी
सी-डैक पुणे के फारसी अरबी यूनिट ने लिप्यतंरण की सुविधा दी है लेकिन
हिंदी से उर्दू के लिए। क्या इससे आगे उर्दू से हिंदी सुविधा मिल सकती
है .
http://parc.cdac.in
- विजय प्रभाकर कांबले
……………………………..
हो सकता है कि ये नीचे कडियाँ मदद रुप हो. मै हिन्दी और उर्दू दोनों पढ सकती हुँ.
भावना
http://aspspider.info/hindi2urdu/Abt.aspx
http://www.apniurdu.com/
…………………………………
भावना जी द्वारा दिये गये लिंक उपयोगी हैं किन्तु अपनी उर्दू से हिन्दी
लिप्यन्तरण की समस्या का उनके पास भी कोई समाधान नहीं दिखा। यहाँ तक कि हिन्दी से उर्दू के लिप्यन्तरण का प्रतिचित्रण (मैपिंग) तक उन्होने कहीं नहीं दिया है। उर्दू से देवनागरी लिप्यन्तरण के लिये मेरे मन में एक और विचार आया है। यदि उर्दू से देवनागरी में बदलने का प्रतिचित्रण (mapping) का नियम बताना कठिन है तो इसका समाधान एक उर्दू-देवनागरी शब्दकोश की सहायता से किया जा सकता है। विचार यह है कि लिप्यन्तरण का कार्य शब्दों के स्तर पर किया जाय। उर्दू का एक शब्द लिया जाय और उसके संगत शब्दकोश में पहले से संचित देवनागरी वर्तनी ढ़ूढ़ ली जाय।
और जो शब्द इस शब्दकोश में विद्यमान न हों उनका लिपयन्तरण एक पूर्व निर्धारित लिप्यन्तरण के नियम का अनुसरण करते हुए किया जाय। इससे यह होगा कि कुछ शब्दों का लिप्यन्तरण बिल्कुल सही होगा। (और कुछ का अपूर्ण) लिप्यन्तरण में यदि सही शब्दों की मात्रा अधिक होगी तो गलत लिप्यन्तरित कुछ शब्दों के होते हुए भी अर्थ निकालना सम्भव हो सकेगा।
इसके लिये एक हजार से पांच हजार शब्दों का उर्दू-देवनागरी शब्दकोश का प्रबन्ध करना पड़ेगा। - अनुनाद सिंह
…………………………………
The followingg link gives the keyboard layours of Hindi and urdu
Will this help?
http://aspspider.info/hindi2urdu/Transh2u.aspx
Bhavna
……………………………………….
अनुनाद जी
उर्द नागरी शब्दकोश उपलब्ध हो जाएगा। पुणे के श्रीपाद जोशी जी ने उर्दू का नागरी कोष बनाया है, आप चाहे तो मैं भेज सकता हूँ।
विजय प्रभाकर कांबले
…………………………………

very good solution
if a good urdu hindi dictionary exists (must be existing already .. only soft copy is needed)
then only taking the words ..Urdu to hind .. then reversing the list .. Hindi to Urdu ..
and while converting, checking the Urdu words found against the Urdu word in the bare Urdu-Hindi list will give 100% accurate transliteration .. verbatim.. and..
like it has been said before .. human mind is a super computer .. it WILL be able to 'translate' .. understand .. and it will be easy for Hindi writing guys to 'increase' their knowledge of the sister language go for it guys .. in this initiative, i can surely take quite some responsibilities
who wants to be the Team Leader (to get the brickbats from time to time ;-) .. they are just a natural thingy)
..peekay
----------------------------------
विजय प्रभाकर जी,
उर्दू-हिन्दी शब्दकोश जरूर भेजिये।
किन्तु शर्त यह है कि उसमें उर्दू लिपि में शब्द दिये हों, फिर देवनागरी में
उनका उच्चारण दिया हो - तभी यह उपयोगी होगा। हमको हिन्दी अर्थ से मतलब नहीं है ,बल्कि उर्दू में लिखे का उच्चारण क्या होगा -- इससे मतलब है। वैसे मैने इस तरह की एक छोटे से उर्दू-देवनागरी उच्चारण कोश का जुगाड़ कर लिया है। दस-पन्द्रह दिनों में उर्दू-देवनागरी लिपि परिवर्तक का पहला संस्करण आप सबके सामने प्रस्तुत करने की कोशिश करूंगा। - अनुनाद सिंह
………………………….
Agar Urdu ke shabdon ki devnagarin mein dictionary chahiye to yahan par
maujood hai
http://urdu2hindi.wordpress.com
http://urdu2hindi.blogspot.com/
Is sabdhkosh se help mil sakti hai, lekin isme udru lipi nahi hai.
-Jitu
……………………….
One more dictionary is available at the following link
http://l10n.urduweb.org/dictionary/
Bhavna
…………………………………….
उर्दू से हिन्दी लिप्यन्तरण में सबसे बड़ी कठिनाई
साधारणतः लिखित उर्दू में ह्रस्व इकार और उकार की मात्राएँ छोड़ दी जाती हैं । यदि पाठक उस विशिष्ट शब्द से परिचित है तब तो ठीक है, अन्यथा पढ़ते समय स्वयं ही अकार, इकार या उकार मात्रा की कल्पना करनी पड़ती है । उदाहरण के लिए -
"सिलसिला" (سلسلھ) शब्द लें । उर्दू में इसकी वर्तनी (दायें से बायें) इस
प्रकार है -
सिन, लाम, सिन, लाम, (छोटी) हे
मोतीलाल बनारसीदास द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी-उर्दू शब्दकोश' (संकलनकर्ता -
मुहम्मद मुस्तफ़ा ख़ाँ 'मद्दाह') में इस शब्द का लिप्यन्तरण "सिल्सिलः" दिया है। उर्दू सीखने के लिए जून 1977 में मैंने यही कोश खरीदा था ।
'सिलसिला' शब्द यदि पूर्व-परिचित नहीं है, तो 27 तरह से इस शब्द का उच्चारण किया जा सकता है ।
(१)पहले अक्षर सिन का लिप्यन्तरण स, सि, सु में से कुछ भी हो सकता है ।
(२)दूसरे अक्षर लाम का लिप्यन्तरण ल, लि, लु में से कुछ भी हो सकता है ।
(३)तीसरे अक्षर सिन का लिप्यन्तरण स, सि, सु में से कुछ भी हो सकता है ।
Permutation से उच्चारण की कुल संख्या 3 x 3 x 3 = 27
अतः उर्दू से हिन्दी में लिप्यन्तरण बनाते समय इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है ।
---नारायण प्रसाद
………………………………
उर्दू से देवनागरी में बदलने वाले उपकरण का पहला संस्करण प्रस्तुत है। ये
फायरफाक्स में बिल्कुल ठीक काम कर रहा है किन्तु आई ई में अभी कुछ समस्या है।
Urdu to Devanagari script
converter_04.htm
http://groups.google.com/group/technical-hindi/web/Urdu%20to%20Devana...
जहाँ तक उर्दू का देवनागरी में परिवर्ततन का सवाल है अभी इसके कोश में जो शब्द हैं यदि उसके बाहर का शब्द उसे मिलता है तो उसके जगह पर स्टार रख देता है। संगत उर्दू शब्द में जितने वर्ण हैं उतने स्टार।
अत: इसकी कार्यक्षमता उतना ही अच्छा होगा जितना इसका शब्दकोश।
इसके बाद मै यह करने जा रहा हूँ कि जो शब्द, शब्दकोश में नहीं हैं उन्हे जो कुछ भी टेढ़े-मढ़े और अपूर्ण नियम हैं उनके सहारे उस शब्द को देवनागरी में बदलना। देखते हैं यह कितना सफल होता है।
- अनुनाद सिंह
http://groups.google.com/groups/profile?enc_user=aovIMhAAAADRqA4SBtD7RahSTpzCBpcS

अंतत इस चर्चा का अच्छा फल हमारे ऑनलाईन मित्रों से संपन्न हुआ जो भाषा प्रेमी भी है साथ साथ आई.टी. के क्षेत्र में काम भी कर रहे हैं। भारतीय भाषाओं को जोड़ने का पवित्र कार्य सूचना प्रौद्योगिकी के उपकरणों से सफल हो सकता है।ब्लॉगिंग करते समय मुझे अनेक मित्र सहयोगी संपर्क में आ गए जिनका मैं अत्यंत आभारी हूँ। मैं भाई अनुनाद सिंह जी का विशेष आभारी हूँ जिन्होंने चर्चा शुरु होते ही केवल १५ दिनों में नागरी लिप्यंतरण का कार्य संपन्न किया। इसमें परिवर्तन एवं सुधार की गुंजाईश है लेकिन एक दिशा मिल गई। ज्ञान अनंत है,जीवन सीमित है लेकिन मित्रों का नि:स्वार्थ प्रेम ही अत्यंत उपयोगी एवं मार्गदर्शक है।चिट्ठाकार के निम्नलिखित पते पर आप यह पूरा संवाद पढ सकते है।
http://groups.google.com/group/Chithakar?hl=hi

अब इस उपकरण को और अधिक परिष्कृत करके वैज्ञानिक एवं तकनीकी हिन्दी
चर्चा-समूह नें डाल दिया गया है।

Urdu to Devanagari script converter_09.htm
http://groups.google.com/group/technical-hindi/web/Urdu%20to%20Devanagari%20script%20converter_09.htm


अब यह लगभग समझने लायक आउटपुट दे रहा है। इसका परिणाम देखकर मुझे पूरा
विश्वास हो गया है कि अगले संस्करण में यह ९०% सही परिणाम देगा जो कि
समझने के लिये पर्याप्त होगा।

इस कार्य के लिये मुझे उर्दू शब्दों की सूची चाहिये जो उर्दू के साथ-
साथ देवनागरी लिपि में भी हो। अच्छा परिणाम आने के लिये इसमें कम से कम
पांच हजार शब्द होने चाहिये।

ऊर्दू में अनेक स्वरों एवं मात्राओं के लिये एक ही संकेत के प्रयोग की
समस्या बहुत ही दोषपूर्ण है। अपने में से जो बन्धु उर्दू लिपि की थोड़ी-
बहुत जानकारी रखते हैं वे कृपया बतायें कि मात्राओं की समस्या से कैसे
प्रभावी ढ़ंग से निपटा जाय।
- अनुनाद सिंह
------------------------------------------

विनोबा भावे जी कहते थे मैं चाहता हूँ कि अन्य लिपियों के साथ साथ नागरी लिपि में भी सभी भारतीय भाषाएँ पढी जाए इससे एकता बढेगी। उनका यह सपना अब पुरा होगा यही कामना करते है।
- विजय प्रभाकर कांबले

बुधवार, 23 अप्रैल 2008

लाहोर बस

जब बस गुजरती है
बंदुकों की नोक की सुरक्षा में
तब बंटवारे की बहती जख्म
भरने लगती है अश्वत्थामा की जख्म की तरह,

रिश्तों का खुन अपनों को चुबंक की तरह खींच लेता है
बनावटी दीवार ढह जाती है,
मिलन की खुशी में
सरहदें गीली हो जाती है,

मुझे अब नजर आ रही है वाघा सरहद पर
जर्मन में ढह चुके दीवारों की ईटें
बस की चाकों तले
खत्म हो जाएगी नक्शे की कागजी रेखाएँ,

दो क्षितिजो को जोडने वाली बस
जब पूल बनकर गुजरती है
तब उसके नीचे बह जाता है
खुनी हुक्मशाह का इतिहास
आखिर देश बनता है
तलवार की धार के बदले
खून के रिश्तो से ..................


(मुल मराठी कविता - लाहोर बस
मराठी के यूवा कवि - श्री. हेरंब कुलकर्णी ( मोबाईल- 09890748580)
चिरे बंदी, मु.पो.ता. अकोले जि.अहमदनगर, महाराष्ट्र

हिंदी अनुवाद - श्री.विजय प्रभाकर कांबले (मोबाईल- 09422726400 )
प्रभात काँलनी, कलानगर,गुलमोहर रोड
अहमदनगर - 414003 महाराष्ट्र

कॉमन मैन

कॉमन मैन
तुम ने वोट पर ठप्पा लगाया और ‘संसद’ का जन्म हुआ
तुम ने उनको राजा मान लिया,वे विधायक,सांसद बन गए,
तुम ने क़ानुन के आगे सिर झुकाया,संसद सार्वभौम हो गई।
तुम ने दफ्तर के चक्कर काट-काट कर लाल फीताशाही से फाँसी लगवा ली,
तुम ने सपनों को पुकारा,उनके एजेंडा ने जन्म लिया
तुम लोकतंत्र के पालनहार,माता-पिता सब कुछ घोषित हो गए ।
उन्होंने तुम्हारा सम्मान किया,तुम वोटर राजा बन गए
वे सभा में भाषण देने लगे,तुम आज्ञापालक श्रोता बन गए
वे कानून बनाने लगे,तुम कोल्हु के बैल बन गए
वे नोटों पर नचवाने लगे,तुम उन के प्रचार में बंदर बन गए।
बम-विस्फोट के ठीकरों में तुम
निर्वासन की भीड में तुम
भुखमरी,कुपोषण की मौत में तुम
उन की घोषणा की ओर ताकने वालों में तुम
आत्महत्या करने वाले किसानों में तुम
बाँध बनने पर सब कुछ खोने वालों में तुम
हर्जाना पाने के लिए चक्कर काटने वालों में तुम
फुटपाथ पर रह कर ‘मेरा भारत महान’ घोषणा देने वालों में तुम
तुम नजर आते हो हमेशा राशन की कतार से मतदान की कतार तक
कभी कर अदा करते हुए,कभी लाल फीताशाही के चर्खे में घुटते हुए
लोकल में टंगे हुए, भीड में तितर-बितर बिन चेहरा
तुम बगुलों के बँगलों पर याचना करते हो,वे मस्ती में तुम्हें छेडते हैं
तुम्हारे ‘विश्व दर्शन’ से मेरा अर्जुन करने वाले
हे असाधारण “साधारण” मानव!
झोपडपट्टी के नरक से दूर जंगल में रहते हुए
तुमने अपने दिल का आक्रोश,बगावत किस खाई में फेंक दी है?
”सिसीफस” के समान बदन पर पत्थर उठा कर
चुप चाप तुम्हारा पहाड की चोटी की ओर जाना बार-बार
क्या तुम्हारे इस मौन,सहनशीलता को संत करार दूं?
या तुम्हें डरपोक करार करके तुम्हें फटकार दूं?
तुम्हारे स्थितप्रज्ञ की गीता लोकतंत्र के करुण पराजय की
ध्वजा बनकर लहरा रही है लाल किले पर
तुम स्वयं लक्ष्मण-रेखा खिंच कर मतों की भीख डालते गए
वे रावण बनकर तुम्हारा हरण करके
तुम्हें स्वप्न कांचन मृग दिखाते रहे।
तुम्हारे साधारण रहने पर ही असाधारण लोकतंत्र का सिंहासन आबाद है।
अपनी सहनशीलता को अब मिटा दो।
संसद के सामने वह “महात्मा” आँखें बंद करके बैठा है
और यहाँ तुम पुतला बनकर शरारती नजरों से
सब कुछ बरदाश्त करते जा रहो हो।
पुतला होना तुम्हारी सामर्थ्य है या तुम्हारी सिमा?
यह सोच कर मैं पुतला बन रहा हूँ,
हे कॉमन मैन !

(मूल मराठी कविता- हेरंब कुलकर्णी
हिंदी अनुवाद- विजय प्रभाकर कांबले) साभार-समकालीन भारतीय साहित्य, साहित्य अकादमी के अंक ११० (नवबंर-दिसंबर २००३) में प्रकाशित।
हमारे मित्र हेरंब जी ने सिंबॉयसिस पुणे स्थित कैंपस में स्थापित भारत का प्रथम कॉमन मैन के पुतले को देख कर यह कविता बनायी।

हिंदी के प्रसार में सहायक मुफ्त सॉफ्टवेअर

हिंदी के प्रसार में सहायक मुफ्त सॉफ्टवेअर

विज्ञान ने आज सभी जगह प्रगति दर्ज की हैं। कंप्यूटर के आगमन से कार्यालयीन कामकाज में बड़ी सहायता प्राप्त हुई हैं। भारत में कंप्यूटर के आगमन के साथ हिंदी भाषा भी तेजी से बढने लगी। सी.डैक पुणे ने कुछ बेहतरीन साँफ्टवेअर विकसित किए जिससे कप्यूटर पर भारतीय भाषाओं का प्रयोग होने लगा। लेकिन हिंदी के साँफ्टवेअर काफ़ी महंगे थे। हर कार्यालय की अपनी वित्तिय सीमा होती हैं। शुरुवाती के दौर में कंप्यूटर की कीमत में सॉफ्टवेअर खरीदने पडते थे। भारतीय भाषाओं का कारोबार धीरे धीरे बढने लगा। भारतीय भाषाओं के सॉफ्टवेअर अब सस्ते में प्राप्त हो रहे हैं।
विश्वस्तर पर भाषाओं के विकास में कंप्यूटर ने अहम भूमिका निभाई हैं। अँग्रेजी भाषाके फाँट यूनिकोड में परिवर्तित हुए हैं। अनेक सॉफ्टवेअर मुफ्त में वितरित हो रहे है। कंप्यूटर की दुनिया में शेरवेअर, फ्रिवेअर सॉफ्टवेयरों का बोलबोला हैं। इस बदलते परिवेा में हम कितने दिनों तक विदेशों का मुँह ताकते रहेंगे? भारत सरकार ने भारतीय भाषाओं के लिए प्रौधोगिकी का विकास किया हैं। सूचना प्रौधोगिकी एवं संचार मंत्रालय ने www.ildc.gov.in वेब साईट जारी की हैं। इस साईट पर भारतीय भाषाओं के विकास कार्यक्रमों की जानकरी दी गई हैं। कार्यक्रम के अंतर्गत अनेक भारतीय भाषाओं के सॉफ्टवेअर इंटरनेट के माध्यम से मुफ्त डाऊनलोड किए जा सकते हैं। मुफ्त सॉफ्टवेअर डाऊनलोड करने से पहले आपका नाम पंजीकृत किया जाता है।पंजीकरण के बाद आपको यूजरनेम (प्रयोगकर्ता नाम) और पासवर्ड (कुट संकेत) दिया जाता है। इसके बाद आपकी कप्यूटर की आवयकताओं के अनुसार आप संबंधित सॉफ्टवेअर डाऊनलोड कर सकते है।
कृपया ध्यान रखें कि डाऊनलोड करने से पहले आपके कंप्यूटर पर डी.ए.पी.(डाऊनलोड एक्सलेंटर प्रोटोकॉल) अथवा फ्लैागेट सॉफ्टवेअर अवय स्थापित किया गया है। किसी सॉफ्टवेअर को इंटरनेट पर डाऊनलोड करने में यह सॉफ्टवेअर मदद करता है। इससे कम समय में डाऊनलोड प्रकिया तेजी से संपन्न होती है। www.tdil.mit.gov.in पर निम्नलिखित सॉफ्टवेअर मुफ्त डाऊनलोड हेतु उपलब्ध है।

· देसिका (भाषा आकलन की सहज प्रणाली)
यह 693 के.बी.साईज का विंडो 95 प्लैटफॉर्म पर चलनेवाला सॉफ्टवेअर सी डैक बेंगलुर ने विकसित किया है।
· गीता रिडर
धर्मग्रंथ गीता पढने के लिए यह सॉफ्टवेअर सी.डैक बेंगलुर ने बनाया है। यह विंडो-95 प्लैटफॉर्म पर चलता है। इसका आकारमान 3.29 एमबी है।
· ए एल पी पर्सनल (भाषा संसाधन प्रणाली) -
सी डैक पुणे द्वारा विकसित सॉफ्टवेअर 3.5 एमबी आकारमान का है जो डॉस 3.0 अथवा उससे उन्नत डॉस प्लैटफार्म पर चलाया जा सकता है।
· कॉरपोरा (भारतीय भाषाओं का ाब्द संसार) -
सी डैंक पुणे द्वारा विकसित इस सॉफ्टवेअर का आकारमान 176 एमबी है। इसमें हिंदी के सभी अपरिष्कृत शब्दों को पी सी आई एस सी आई आई में संग्रहित किया गया है।
· शब्दबोध (वाक्य विलेषण) -
संस्कृत शब्दों का अर्थगत व वाक्यगत विलेषण कंप्यूटर की सहायता से पारस्परिक अनुप्रयोग द्वारा किया जा सकता है।
· श्री लिपि भारती -
यह एक देवनागरी की बोर्ड ड्रायवर और ट्रू टाईप फाँटस है। इसका प्रयोग पेजमेकर,कोरलड्रा,व्हेंचुरा,अडोब इल्यूट्रेटर,एम एस ऑफिस 97/98/2000 एक्सपी आदी प्लॅटफॉर्म पर किया जा सकता है। यह फाँटस मुफ्त डाऊनलोड करके कही भी प्रयोग में लाए जा सकते है। इसका आकार 1.28 एम बी है तथा एम सी आई टी भारत सरकारने प्रदान किया है। माडयूलर कंपनी द्वारा निर्मित यह सॉफ्टवेअर एक उपयोगी की बोर्ड ड्रायव्हर है।
· बहुभाषिक ई मेल क्लाएंट -
सी डैक पुणे निर्मित यह सॉफ्टवेअर 2.12 एम बी आकारमान का विंडो 95/98 प्रणाली पर कार्य करता है। इसमें आप दस भारतीय भाषाओं में ई मेल भेज सकते है।
· आई लिप -
सी डैक पुणे द्वारा निर्मित यह सॉफ्टवेअर 4.00 एम बी आकारमान का विंडो 95/98 एन टी पर चलाया जा सकता है। इससे वर्तनी सुधार,ई मेल भेजना,पर्दे पर की बोर्ड सुविधा,क्ष्च्क्क्ष्क्ष् डेटा आयात करना,बहुभाषिक एच टी एम एल,बनाना ,शब्द संशोधक आदी कार्य किया जा सकता है। इस पुरस्कृत सॉफ्टवेअर द्वारा भारतीय भाषाओं में फाईल मेनू से एच ए टी एम एल रुप में भेजा जा सकता है।
· अक्षर -
अँग्रेजी हिदी में काम करने में सहायक सॉफ्टवेअर सॉफ्टटेक लि.नई दिल्ली ने बनाया है। विंडो 95 प्लॅटफॉर्म पर चलनेवाला यह सॉफ्टवेअर 3.5 एम बी आकारमान का है। यह सॉफ्टवर्ड तथा वर्डस्टार की तरह कार्य करता है। इसमें वर्तनी संशोधक, शब्दकोष, मेलमर्ज .टाइपराइटर ,की बोर्ड आदी सुविधा उपलब्ध है।
· सुरभी प्रोफेशनल -
अपल सॉफ्ट बेंगलुर द्वारा निर्मित यह की बोर्ड इंटरफेस सॉफ्टवेअर विंडो आधारित सभी प्लॅटफॉर्म जैसे एम एस वर्ड,एम एस एक्सेल,पेजमेकर आदी में कार्य करता है। इसमें अटो फाँट सिलेक्न,फाइंड अँड रिपलेस,अटोकरेक्ट तथा इंटेलिजेंट की बोर्ड मॅनेजर सुविधा उपलब्ध है।
श्व् बुध्दीमान कुंजीपटल प्रबंधक (इटेलिजंट की बोर्ड मॅनेजर) -
अपल सॉफ्ट बैंगलुर द्वारा निर्मित यह सॉफटवेअर विंडो 95/98 प्लॅटफॉर्म पर काम करता है। फाईल नाम,फॉट नाम हिंदी में टाइप करते समय प्राय हिंदी अक्षरों की जगह मशीनी अपाठ भाषा दिखायी देती है। इस समस्या का हल इस सॉफ्टवेअर द्वारा निकाला जा सकता है।
श्व् शब्दिका -
यह एक लेखा परीक्षा,लेखा बँकिंग प्राासन,सूचना प्रौद्योगिकी संबंधित शब्द संग्रह है। सी डैक नोएडा व वैज्ञानिक तथा तकनिकी शब्दावली आयोग द्वारा निर्मित यह सॉफ्टवेअर विंडो की सभी प्रणाली में कार्य करता है।यह एक मानक, प्रामाणिक द्विभाषी शब्द संग्रह है। कार्यालय में हिंदी पत्राचार करते समय आप बँकिग प्रशासकिय,लेखा तथा लेखा परीक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी के कठिन शब्दों का अर्थ आसानी से देख सकते है।
· एच वर्ड -
विंडो आधारित प्लैटफॉर्म पर कार्य करने वाला यह हिंदी का शब्दसंसाधक सी डैक नोएडा ने निर्माण किया है। हिंदी भाषा पर केंद्रित इस सॉफ्टवेअर में इन्स्क्रीपट, टाइपरायटर तथा रोमन की बोर्ड की खुबीयाँ मौजुद है। रोमन की बोर्ड भारतीय लिपि को रोमन लिप्यतंरण तालिका पर ( क्ष्ग़्च्ङग्र्च्र्) मौजुद सहज सुलभ बनाया है। फाईल बनाते समय पत्र में तिथि व समय डालना, पर्दे पर दिखायी देनेवाला की बोर्ड, फाँट परिवर्तन
( डी वी टी टी फाँट से लेखिका फाँट में परिवर्तन ) आदि सुविधाओं का लाभ ले सकते है।
· इंडिक्स -
भारतीय भाषाओं के लिए लाईनेक्स प्रणाली पर आधारित यह सॉफ्टवेअर एन सी एस टी ने प्रदान किया है। बहुभाषिक आधार, वेब ब्राऊजर, मेन्यू लेबल , मेसेज आदि जी यू आई ( ग्राफिकल यूजर इंटरफेस ) स्थानिक भाषा में प्रदर्शित होते है। यूनिकोड प्रणाली, ओपन टाईप फाँट विंडाज प्रणाली में सहायक, क्लायंट लाईब्रोरी से भारतीय भाषाओं में विकास, इनस्क्रीप्ट की बोर्ड, इस्की से यूनिकोड परिवर्तन, उच्च गुणता की छपवाई आदि सुविधाएँ है।

उपर्युक्त मुफ्त सॉफ्टवेअरों को संकलित करके कुछ अन्य फाँट की बोर्ड ड्राईवर, हिंदी ओ सी आर, फाँट परिवर्तन, शब्दसंसाधक आदि सुविधाओं को भारत सरकार ने स्वतंत्र वेबसाईट पर www.tdil.mit.gov.in पर भी रखा है। हिंदी सॉफ्टवेअर उपकरण की सी डी सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार ने नि:शुल्क सॉफ्टवेअर वैबसाईट www.ildc.in पर उपलब्ध कर दिए है। इस सॉफ्टवेअर का विमोचन मा. श्रीमती सोनियाजी गांधी के कर कमलों द्वारा तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री दयनिधि मारन जी की उपस्थिति में नई दिल्ली में दिनांक 20.06.2005 को विज्ञान भवन में किया गया। इस योजना के अंतर्गत सभी भारतीय भाषाओं को क्रम बध्द रिति से विकसित किया जा रहा है । अबतक तमिल व हिंदी भाषा की स्वयंपूर्ण सीडी का मुफ्त वितरण किया गया है ।इस मुफ्त सीडी के सहारे अब कोई भी व्यक्ति,संस्था,कार्यालय में अपने कंप्यूटर पर हिंदी भाषा का प्रयोग आसानी से कर सकता है ।
इस मुफ्त सॉफ्टवेयर में उपर्युक्त शब्दसंसाधक (वर्ड प्रोसेसर) विभिन्न प्रकार के पाचसौ फाँट, शब्दकोष, वर्तनी संशोधक, अक्षर से ध्वनी( टेक्स्ट टू स्पीच ) प्रकाशकीय अक्षर पहचान तंत्र ( ओ.सी.आर)मशीनी अनुवाद आदि सुविधाएँ उपलब्ध है।
इस मुफ्त सॉफ्टवेअर में कुछ कमियाँ भी पायी गई है। लेकिन कंप्यूटर पर हिंदी भाषा का प्रसार करने की दिशा में भारत सरकार का यह महत्वपूर्ण कदम है। इस सॉफ्टवेअर को उन्नत करने की काफी गुंजाईश है।सॉफ्टवेअर के पंडितों ने अपने सूझाव सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार को भेजने चाहिए। हम आशा कर सकते है कि सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारतीय भाषाओं का अस्तित्व निरंतर बढता रहेगा। कंप्यूटर के बिना भाषा पीछे रहना खतरे की निशानी है।


-- विजय प्रभाकर कांबळे,

सोमवार, 21 अप्रैल 2008

छलावा

छलावा

आप अकेले हैं
और भीड जुटानी हैं
दाने फेंक दो
मुर्गियों की भीड
आपके दरवाजे पर हाजिर होगी।
मालूम नहीं दुनिया का दस्तुर
दाने फेंकना कला है
या दाने चुगना कला हैं,
यह मत सोचों दाने किसके हैं?
चुगनेवाले कौन है?
या आँगन किसका है?
इश्तहार की दुनिया में
बाजार लगा है बिकनेवालों का,
कितनी मुर्गियाँ
कौनसे आँगन में किसके दाने चुग रही हैं?
वैसे दाने और मुर्गी की
उमर बहुत छोटी हैं
छलावा एक कला है,
छल करनेवालों की उमर बहुत लंबी होती हैं।

- विजय प्रभाकर नगरकर

रविवार, 20 अप्रैल 2008

मोबाईल में हिंदी

मोबाइल में हिंदी
विजय प्रभाकर नगरकर 


विश्व की अस्सी प्रतिशत जनसंख्या अब मोबाइल नेटवर्क से जुड़ गई है। 2010 तक यह नेटवर्क नब्बे प्रतिशत जनसंख्या तक पहुँच जाएगा। दूरसंचार क्षेत्र में मोबाइल सेवा के आगमन से सुविधाएँ बढ़ गई हैं। लैंडलाईन टेलिफ़ोन स्थिर और वायर से जुड़ा रहता है। संपर्क के लिए व्यक़्ति टेलिफ़ोन के पास उपलब्ध होना आवश्यक है।

व्यक़्ति चंचल और अस्थिर प्राणी है। वह किसी एक स्थान पर ज़्यादा देर टिका नहीं पा सकता है। वह अपने कामकाज के लिए स्थान बदलता रहता है। दूरसंचार के आधुनिक तकनीक की उत्क्रांती से मोबाइल धारकों की संख्या बढ़ रही है। लैंडलाईन टेलिफ़ोन की तुलना में मोबाइल फ़ोन में अनेक सुविधाएँ प्रदान की गई हैं। लैंडलाईन टेलिफ़ोन सेवा के अंतर्गत आप डायल करके बात कर सकते हैं। लैंडलाईन उपकरण का उपयोग सिर्फ़ बात करने के लिए हो रहा था। लेकिन मोबाइल एक सुविधा संपन्न संचार उपकरण है। मोबाइल फ़ोन द्वारा संक्षिप्त संदेश सेवा(एस.एम.एस.) का प्रचलन बढ़ गया है। आधुनिक विंडो आधारित मोबाइल उपकरणों में वर्ड, एक्सेल, पॉवर पॉइंट आदि सुविधाएँ प्रदान की गई है।

संचार माध्यमों में भाषा का प्रवाह गतिमान रहता है। कोई भी नई तकनीक युरोप से बाज़ार में उतारी जाती है। इसलिए मोबाइल हैंडसेट में भी प्रथमतः अंग्रेज़ी भाषा का एकाधिकार रहा। लेकिन भारतीय परिवेश में भारतीय भाषाओं की सुविधा प्रदान करना अनेक देशी-विदेशी कंपनियों को व्यापारनीति के लिए बाध्य रहा। भारतीय बाज़ार में मोबाइल क्रांति लाने के लिए भारतीय भाषाओं की सहायता ली गई। आखिर हम कब तक अपने परिवार सदस्यों को किसी विशेष प्रसंग पर अंग्रेज़ी में एस.एम.एस. करते रहते?

आज कल मोबाइल हैंडसेट पर हिंदी-मराठी में एस.एम.एस. तथा शब्द संसाधनों को प्रचलन बढ़ गया है। मोबाइल धारकों में संवाद के लिए बातचीत के अलावा एस.एम.एस. का प्रयोग बढ़ रहा है। सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के आँकड़ों के अनुसार मोबाइल धारकों की संख्या वर्ष 2007 के मई माह में 13,06,07955 है जो अब काफ़ी आगे निकल जाएगी। इसमें भेजे गए एस.एम.एस. की संख्या 2003 में 11 दशलक्ष्य रही।

मोबाइल उपकरणों का बाज़ार तेज़ी से बढ़ रहा है। भारतीय ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए नोकिया कंपनी ने अपने मोबाइल उपकरणों (मॉडेल 1100, 1160, 6030) में देवनागरी लिपि का प्रयोग एस.एम.एस. के लिए उपलब्ध किया है। मोबाइल उपकरणों में हैंड-हेल्ड, वायरलेस, पॉकेट पी.सी, पामटॉप, पामसाईज़, आई-फ़ोन उपकरणों की नयी शृंखला बाज़ार में उतारी गई है। इनकी ऑपरेटिंग सिस्टम भी अलग-अलग है। फ़ोटो पाम, ओ.एस., पॉकेट पी.सी. विंडो, सिंबीएन (Symbian), इसमें भारतीय भाषाओं का स्थानीयीकरण करना एक जटील प्रक्रिया है। सिबिएन नोकिया में एस.डी. के तीन विभिन्न सिरीज़ जैसे सिरीज-60, सिरीज-80, तथा सिरीज-90 मोबाइल उपकरण में अनेक एप्लीकेशन का डिज़ाईन करने के लिए विजूअल स्टूडिओ, विजूअल स्टुडिओ नेट, नेट, जे-बिल्डर, डेल्फि, सी++ तथा कोड वारीअर के टूल्स का प्रयोग किया जाता है। मोबाइल एप्लिकेशन के विभिन्न प्लेटफ़ार्म्स जैसे विंडो- विन-32 तथा डॉट नेट, जावा तथा नेट एम-ई, सिंबिएन के लिए नोकिया ने अनेक थर्ड पार्टी टूल्स जैसे क्रास फ़ायर का प्रयोग किया गया है।

ग्राफ़िक्स युजर इंटरफेस(GUI) मोबाइल स्क्रीन के अनुरूप डिज़ाईन करना, भाषा प्रदर्शित करने के लिए समास चिन्हों के नियमों का विकास, अलग-अलग स्क्रीन, की-बोर्ड अथवा स्टाइलस द्वारा शब्द टाईप करने की प्रक्रिया, ऑपरेटींग सिस्टम में यूनिकोड की सहायता, अनुवाद शैली, स्क्रीन लै-आउट, आयकॉन का प्रयोग आदि बातों पर विशेष ध्यान दिया जाता है ताकि मोबाइल हैंडसेट में भाषा का प्रयोग किया जा सके।

भाषा को मोबाइल में स्थापित करने में कुछ समस्याएँ सामने आ रही हैं। भाषा के विशेष प्रतीक चिन्हों का प्रयोग, अनुवाद में संक्षिप्त अक्षरों की रचना आदि समस्याओं का निराकरण किया जाता है। मोबाइल में भारतीय भाषाओं को पूर्णतः विकसित करने के लिए कुछ बातों की ओर विशेष ध्यान देना होगा। मोबाइल उपकरण के लिए, भारतीय भाषाओं के अनेक फाँट विकसित करने होंगे। भारतीय भाषाओं को सुव्यवस्थित चलाने के लिए ब्राउज़र को विकसित करना होगा। भारतीय भाषाओं की वेबसाईट का स्थानियीकरण हेतु मार्गदर्शक तत्वों का विकास करना होगा। मोबाइल पर भारतीय भाषाओं के शब्दकोष विकसित करने होंगे। मोबाइल उपकरण से भारतीय भाषाओं की वेबसाईट देखने की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। भारतीय भाषाओं का डेटाबेस खोजने के लिए अनुक्रमणिका(indexing) विकसित करनी होगी।

कनाडा की जी-कॉर्पोरेशन (Zi Corporation) कंपनी ने भविष्यसूचक पाठ (predictiive text) संक्षिप्त संदेश सेवा में हिंदी को विकसित किया। इस कंपनी ने हिंदी तथा देवनागरी लिपि की व्यवस्था मोबाइल उपकरण में विकसित की है। ezi text हिंदी के माध्यम से नूतन की-बोर्ड लेआऊट की सहायता से टंकन का काम आसान हो गया है। मोबाइल पर टंकलेखन के लिए अब अनेक की टैप करने की ज़रूरत नहीं है। इस प्रणाली में प्रयोग में लाए गए शब्दों का शब्दकोष (Used word dictionary) की सहायता से मोबाइल धारकों की सुविधा के लिए भविष्य सूचक पाठ तथा शब्दों को तुरंत प्रदर्शित किया जाता है। जिसके कारण टंकलेखन आसान तथा जल्द हो जाता है।

मोबाइल उपकरणों में बहुभाषिक सुविधा उपलब्ध होने के कारण नोकिया कंपनी ने अपने हैंडसेट नंबर - 1100, 1110, 1112, 1600, 1800, 2310, 6030, 6070 आदि हैंडसेट में हिंदी भाषा को शामिल किया गया है। यह हैंडसेट हिंदी में संदेश भेजने और पाने में सक्षम है। यह एक नेटवर्क आधारित सुविधा है। अपने नेटवर्क ऑपरेटर से इस सुविधा की उपलब्धता की जानकारी मोबाइल धारक को होनी चाहिए। हिंदी भाषा में 42 व्यंजन और 11 स्वर होते है। इन अक्षरों को टाइपरायटर तथा कंप्यूटर पर टाइप करने के लिए विस्तृत की-बोर्ड उपलब्ध रहता है लेकिन मोबाइल हैंडसेट में सीमित की-बोर्ड उपलब्ध होता है। इसलिए सीमित की-बोर्ड की सहायता से व्यंजनों के मिश्रण, किसी व्यंजन के बाद स्वतंत्र स्वर तथा विशिष्ट अक्षरों का सूचिपत्र खोल के पाठ का टंकन किया जाता है। हिंदी पाठ्यलेखन की विधि नोकिया कंपनी ने प्रयोक्ता मार्गदर्शिका में हिंदी भाषा में प्रस्तुत की है। हैंडसेट के कुल 12 कुंजी दबाने पर हिंदी पाठ टंकित किया जाता है। इसके लिए हिंदी कुंजीपटल की संरचना ध्यान से पढ़नी चाहिए। नोकिया कंपनी ने लेखन भाषा सेटिंग, हिंदी कुंजीपटल, अक्षर-लेखन, अक्षर हटाना साधारण शब्द, व्यंजनों का मिश्रण, व्यंजन के बाद स्वतंत्र स्वर लगाना, विशिष्ट अक्षरों के सूचिपत्र को खोलना, रेफा अक्षर लिखना, हलंत अक्षर लिखना, रकार अक्षर लिखना, टी-9 शब्दकोश का प्रयोग, हिंदी पाठ्यलेखन को अन्य फीचरों के साथ इस्तेमाल करना आदि संबंधित विस्तृत मार्गदर्शन नोकिया 2310 प्रयोक्ता मार्गदर्शिका में दिया है।

हिंदी भाषा के साथ-साथ अंग्रेज़ी भाषा के वाक्यों का मिश्रण एस.एम.एस. में किया जा सकता है। क्षेत्रीय भाषाओं का पाठ हैंडसेट द्वारा टाईप करने की सुविधा प्रदान की जाती है। हैंडसेट उत्पाद करते समय क्षेत्रीय भाषाओं को स्थापित करना चाहिए। मोबाइल के आधुनिक उपकरणों में भाषा के बंधन टूटने चाहिए। भारतीय बाज़ार में स्थापित नोकिया, मोटोरोला, सोनी एरिक्सन आदि मोबाइल हैंडसेट निर्माताओं ने चेन्नई, दिल्ली में फैक्टरी खोल दी है। विदेशी कंपनियाँ भारतीय बाज़ार की माँग ध्यान में रखते हुए मोबाइल हैंडसेट में भारतीय लिपि का प्रयोग बढ़ाने के लिए तैयार है। ज़रूरत इस बात की है कि हम आधुनिक उपकरण तथा उसके भारतीय भाषाओं में प्रयोग में लाने के लिए कितने सतर्क है।

AOL की कंपनी हेजीक कम्युनिकेशन ने मोबाइल हैंडसेट में टाईपिंग सुविधा हेतु T9 सिंगल टैब तकनीक का विकास किया है। मोबाइल फ़ोन हैंडसेट पर T9 ने अब तक चालीस भाषाओं को विकसित किया है। नोकिया ने Made For India Model 1100 में देवनागरी लिपि का प्रयोग किया है। मोटोरोला कंपनी ने अपनी व्यवस्था के अनुसार iTAP की सुविधा प्रदान की है।

C-DAC पुणे ने लीला प्रबोध कोर्स अब मोबाइल हैंडसेट पर उपलब्ध किया है। कृत्रिम बुद्धि तकनीक पर आधारित लीला सॉफ्टवेअर अब कंप्यूटर के साथ मोबाइल पर उपलब्ध हो गया है। ध्वनि और चित्र के साथ हिंदी सीखना अब आसान हो गया है। यह सुविधा मल्टी मीडिया कार्ड MMC द्वारा उपलब्ध हो गई है। इस मोबाइल पॅकेज की सहायता से देवनागरी अक्षरों की पहचान, पढ़ना, सुनना, हिंदी शब्दों का उच्चारण, व्याकरण, व्हिडीओ क्लिप, हिंदी अनुवाद, हिंदी-अंग्रेज़ी शब्दकोष आदि सुविधाएँ मोबाइलधारक को मैत्रीपूर्ण शैली में प्राप्त हो गई है। यह मोबाइल प्रबोध मल्टिमीडिया कार्ड सी-डैक से प्राप्त किया जा सकता है।

सी-डैक के जिस्ट लैब ने सेल्यूलर फ़ोन्स में भारतीय भाषाओं के लिए तकनीक का विकास किया है। मोबाइल हैंडसेट द्वारा भारतीय भाषाओं में एस.एम.एस. तथा ई-मेल, भेजा जा सकता है। सभी भारतीय भाषाओं की लिपि ब्राह्मी लिपि पर आधारित है। सभी भारतीय भाषाएँ स्वराधित होने के कारण मोबाइल हैंडसेट के की-बोर्ड द्वारा किसी भी भारतीय भाषाओं में एस.एम.एस. भेजा जा सकता है। इस्की (ISCII) मानक के अनुरूप फाँट्स का निर्माण किया गया है। यूनिकोड के मुकाबले इस्की पर आधारित पाठ्य संकलन के लिए बहुत कम जगह लगती है। अंतर्राष्ट्रीय मानक यू.टी.एफ., यूनिकोड के अनुरूप मोबाइल सॉफ्टवेअर बनाया गया है। सैमसंग, मोटोरोला, सोनी हरीक्सन आदि कंपनियों ने सी-डैक जिस्ट के साथ करार किया है। सैमसन के सी.डी.एम.ए. आधारित भारतीय भाषाओं से संपन्न मोबाइल हैंडसेट बाज़ार में उपलब्ध हो गए।

मोबाइल पर विदेशी पर्यटकों के लिए अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश, अनुवाद, विडियो आदि सुविधा उपलब्ध हो गई है। इसमें पर्यटन, बाज़ार, सामाजिक प्रसंग पर अनेक हिंदी के विकल्प उपलब्ध किए गए हैं।

मोबाइल सेवा के अंतर्गत WAP 07, 3-जी तकनीक पर आधारित मल्टीमीडिया सेवाएँ जैसे मल्टीमीडिया मैसेजींग सर्विस (MMS), व्हिडियो मैसेजिंग, संगीत, गेम, समाचार, चित्रपट, मनोरंजन आदि सेवाओं का आस्वाद मोबाइल इंटरनेट द्वारा किया जा रहा है। मोबाइल के क्षेत्र में संचार, मीडिया तथा मनोरंजन व्यवसायों का मिलाप हो गया है। इसलिए अब संबंधित सॉफ़्टवेअर कंटेंट डेवलपर्स, उपकरण निर्माता, विपणन तथा विज्ञापन का क्षेत्र बहुत तेज़ी से विकसित हो रहा है। भारत में हिंदी फ़िल्मों तथा हिंदी गीतों ने हिंदी भाषा का प्रसार आम आदमी तक किया है। विश्व में बॉलीवुड की फ़िल्मों की लोकप्रियता बढ़ रही है। भारतीय संगीत तथा चित्रपट व्यवसाय के लिए अब मोबाइल फ़ोन धारक महत्वपूर्ण घटक बन गया है। ध्वनि, चित्र के साथ-साथ भारतीय भाषाओं की लिपि का भी विकास बाज़ार की माँग के अनुरूप मोबाइल सेवा में धीरे-धीरे बढ़ जाएगा। मोबाइल हैंडसेट के लिए अब भारतीय भाषाओं में ई-बुक, ई-समाचार, ई-बैंकिंग, ई-कॉमर्स आदि सेवाएँ उपलब्ध होने के आसार दिखाई देने लगे हैं।

GSM Association ने मोबाइल उत्पादकों के लिए बहुभाषिक सुविधाएँ प्रदान करने के लिए विश्वस्तर पर कुछ तकनीकी बाध्यता घोषित की है। विश्व स्तर पर किसी भी मोबाइल उत्पादक कंपनी को बहुभाषा सहायता के लिए सिफ़ारिश ड्राफ्ट-TN (TWG 130/01), बहुभाषी सहायक मोबाइल उपकरण निर्माण करने के लिए (TWG 133/01r1) का अनुपालन करना होगा। जीएसंएम असोसिएशन ने जीएसएम ऑपरेटर्स तथा जीएसएम मोबाइल उपकरण उत्पादकों के लिए एक नियम प्रणाली PRD TW.12तैयार की है। हमें यह देखना होगा कि भारतीय भाषाओं के अनुरूप इन मोबाइल उपकरण की तकनीकी बाध्यता पूरी हो रही है या नहीं। यूनिवर्सल सर्विस फंड के प्रावधान के अनुसार ग्रामिण क्षेत्र के नेटवर्क का विकास किया जाएगा। इस फंड में अमेरिकन डॉलर 1.12 मिलियन की राशि उपलब्ध है। जिसमें अबतक 73 प्रतिशत राशि का वितरण होने बाकी है। भारत में अनेक विदेशी मोबाइल कंपनियाँ अपना नेटवर्क बढ़ा रही है। इस यूनिवर्सल सर्विस फंड के प्रावधान का उचित फ़ायदा भारत सरकार ने उठा कर मोबाइल सेवा में भारतीय भाषाओं को उचित सम्मान करना चाहिए।

24 जुलाई 2007

पीठापुरम यात्रा

 आंध्र प्रदेश के पीठापुरम यात्रा के दौरान कुछ धार्मिक स्थलों का सहपरिवार भ्रमण किया। पीठापुरम श्रीपाद वल्लभ पादुका मंदिर परिसर में महाराष्ट्...