शुक्रवार, 3 जून 2016

भारत वाणी

भारतवाणी : भारतीय भाषाओं द्वारा ज्ञान प्रसार का एक अभि‍नव प्रयास
(http://bharatavani.in वेबसाइट से साभार प्राप्‍त)

भारतवाणी एक परियोजना है, जिसका उद्देश्य मल्टीमीडिया (पाठ, श्रव्य, दृश्य एवं छवि) का उपयोग करते हुए भारत की समस्त भाषाओं के बारे में एवं भारतीय भाषाओं में उपलब्ध ज्ञान को एक पोर्टल (वेबसाइट) पर उपलब्ध कराना है। यह पोर्टल समावेशी,संवादात्मक और गतिशीलहोगा। इसकामूल उद्देश्य है डिजिटल भारत के इस युग में भारत को “मुक्त ज्ञान” समाज बनाना।

भारतवाणी ज्ञान पोर्टल के लाभार्थी कौन होंगे?
भारतवाणी का उपयोग विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक (औपचारिक एवं अनौपचारिक) पृष्ठभूमि तथा सभी आयु वर्ग के लोग कर सकते हैं।

भारतवाणी के लिए सामग्री का संकलन कैसे किया जायेगा?
भारतवाणी भारत के समस्त सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं, शैक्षणिक संस्थानों, शैक्षणिक बोर्ड, पाठ्य-पुस्तकों से संबंधित निदेशालयों, विश्वविद्यालयों, आकादमी एवं प्रकाशन गृहों आदि से ज्ञान सामग्री का संकलन मल्टीमीडिया के रूप में समस्त सूचीबद्ध भाषाओं में करेगी।भारतवाणी व्यक्तिगत संस्थाओं से भी आग्रह करेगी कि अनवरत ऑनलाइन उपयोग के लिए वे अपने सामग्री को साझा करें। सामग्री संकलन और प्राथमिकता निर्धारण को अनुमोदनार्थ प्रस्तुत किया जाएगा। संपादकीय समिति द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों पर सलाहकार समिति द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाएगा। भारतवाणी का ध्येय ज्ञान सामग्री प्रकाशित करना है। साथ ही सलाहकार समिति द्वारा विशिष्ट मापदंडों के आधार पर निर्धारित कथेतर साहित्य को भी प्रकाशित करेगी।

भारतवाणीसामग्री की गुणवत्ता कैसे सुनिश्चित करेगी?
भारतवाणी सामग्री प्रकाशन की शुरुआत विषय विशेषज्ञों द्वारा निर्मित सामग्री तथा प्रतिष्ठित संस्थानों द्वारा प्रकाशित सामग्री से करेगी। इस क्रम में सर्वप्रथम भारतीय भाषा संस्थान द्वारा प्रकाशित सामग्रियों को लिया जाएगा। नव सृजित सामग्री के प्रकाशन के संदर्भ में भारतवाणी द्वारा प्रत्येक भाषा के लिए सृजित संपादकीय समिति द्वारा निर्णय लिया जाएगा। त्रुटि रहित सामग्री के प्रकाशनहेतुएक व्यवस्थित तंत्र स्थापित किया जाएगा।

क्या भारतवाणी भाषा से संबंधित सूचना प्रौद्योगिकी उपकरणों को सार्वजनिक करेगी?
भारतवाणी, भारतीय भाषाओं के लिए उपलब्ध एवं अद्यतित आईटी उपकरणों को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच प्रदान करेगी जो संचार मंत्रालय और सूचना प्रौद्योगिकी (एमसीआईटी)के साथ समन्वय स्थापित करेगी, जो अपनी विभिन्न एजेंसियों यथा- टीडीआईएल आदि के माध्यम से ऐसे उपकरणों के विकास में संलग्न हैं। भाषा से संबंधित विभिन्न उपकरणों यथा- फॉन्ट, सॉफ्टवेयर, टंकण उपकरण, मोबाइल एप्स, बहुभाषी अनुवाद उपकरण, पाठ से वाक् एवं वाक् से पाठ आदि उपलब्ध कराए जाएँगे।

बृहद पैमाने पर समाज के लिए भारतवाणी के क्या लाभ हैं?
भारतवाणी, भारतीय भाषाओं/मातृभाषाओं को बृहद पैमाने पर उपलब्ध कराएगी, जिसके परिणाम स्वरूप युवा पीढ़ी अपनी सभी ऑनलाइन गतिविधियों यथा- ब्लागिंग, सामाजिक मीडिया और अध्ययन आदि के लिए मातृभाषा का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित होगी। भारतवाणी, लुप्तप्राय भाषाओं, अल्पसंख्यक भाषाओं एवं जनजातीय भाषाओं/मातृभाषाओं को साइबर स्पेस में महत्वपूर्ण स्थान दिलाएगी। भारतवाणी, भारत की लगभग सभी भाषाओं/मातृभाषाओं के साथ-साथ भारत के सभी समुदायों के साथ संपर्क स्थापित करने, दूर-दराज़ के क्षेत्रों तक पहुँचने और सांस्कृतिक जागरूकता और समझ को बढ़ावा देने का कार्य करेगी।

क्या भारतवाणी सरकारी सूचनाओं को प्रकाशित करेगी?
भारतवाणी परियोजना का, कृषि, व्यापार, शिक्षा, सामाजिक क्षेत्र, समय पर सेवाएँ प्रदान करने वाले एवं अन्य महत्वपूर्ण/आवश्यक पोर्टल से संबंध होगा, जिससे सभी नागरिकों को एक ही पोर्टल पर ज्ञान और सूचना की प्राप्ति होगी।

भारतवाणी में किन भाषाओं को सम्मिलित किया गया है?
प्रथम वर्ष में, 22 अनुसूचित भाषाओं अर्थात असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मैथिली, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संताली, संस्कृत, तमिल, तेलुगु और उर्दू को सम्मिलित किया जाएगा। तदोपरांत अन्य भाषाओं को चरणबद्ध रूप से शामिल किया जाएगा।

भारतवाणी का ठोस लक्ष्य क्या है? भारतवाणीमें प्रकाशित सामग्री किस प्रकार की होगी?
भारतवाणी अपने परिचालन के पहले और दूसरे वर्ष में प्राथमिकता के आधार पर निर्धारित विषय से संबंधित ज्ञान सामग्री का सृजन करेगी। तदोपरांत अगले पाँच वर्षों के लिए प्रत्येक भाषा/मातृभाषा से संबंधित विशिष्ट सामग्री के निर्माण का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रारंभ में विभिन्न भाषाओं में सहजतासे उपलब्ध सामग्रियोंको प्रकाशित करने का प्रयास किया जाएगा।
भारतवाणी निम्नांकित कार्यों का निर्वहन करेगी
भाषा और साहित्य का प्रलेखन डिजिटल और इलेक्ट्रानिक स्वरूप में तैयार करना।
लिपि और उसका नामांकन तथा टाइपोग्राफी कोड तैयार करना।
शब्दकोशों और शब्दावलियों का निर्माण करना।
मौखिक एवं लिखित साहित्य तथा ज्ञान ग्रंथों का आधुनिक और शास्त्रीय भाषाओं में अनुवाद करना।
ऑनलाइन भाषा शिक्षण, अधिगमएवं भाषा शिक्षक हेतु प्रशिक्षण प्रदान करना, प्रमाणपत्र देगा तथा सतत, व्यापक मूल्यांकन सहित ऑनलाइन भाषा परीक्षण और मूल्यांकन पर ध्यान देगा।

क्या भारतवाणी में प्रकाशित सामग्री का निःशुल्क उपयोग किया जा सकता है? भारतवाणी में सामग्री का कॉपीराइट कैसे सुरक्षित किया जाएगा?
भारतवाणी, आम नागरिक, विशेष रूप से भारतीय नागरिकों के साथ ज्ञान साझा करने के उद्देश्य से निर्मित आधुनिक युग का एक पोर्टल है, अतः भारतवाणी पोर्टल पर उपलब्ध समस्त सामग्री को शैक्षणिक और अनुसंधान प्रयोजनों के लिए निःशुल्क उपयोग में लाया जा सकता है। पोर्टल, भारतीय कॉपीराइट अधिनियम 1957 के अनुसार केवल ऐसी गतिविधियों की अनुमति देता है जो धारा 52 के तहत कॉपीराइट उल्लंघन के अंतर्गत नहीं आते हैं।

क्या निजी संस्थानों और व्यक्तियों द्वारा भारतवाणी के लिए योगदान किया जा सकता है? क्या भारतवाणी द्वारा सामग्री के लिए मानदेय का भुगतान किया जायेगा?
हाँ। मौलिक कथेतर साहित्य/ज्ञान सामग्री के निःशुल्क सार्वजनिक उपयोग के लिए योगदान किया जा सकता है। लेखकों के योगदान के लिए उन्हें श्रेय दिया जाएगा। इस प्रकार की सामग्री की स्वीकृति संपादकीय समिति के अनुमोदनाधीन होगी। भारतवाणी मातृभाषा में सामग्री प्रस्तुत करने के लिए ऑनलाइन उपकरण उपलब्ध करायेगी। सामग्री के सतत उपयोग के लिए मानदेय के दरों का निर्धारण सलाहकार समिति द्वारा किया जाएगा, जो मौलिक सामग्री के लिए निर्धारित वित्त, सामग्री की मौलिकता और उसकी विशिष्टता पर निर्भर करेगा।

शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के लिए भारतवाणी कैसे सुलभ होगी?
भारतवाणी, पोर्टल विकसित करने में भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत मापदंड़ों का भी अनुपालन करेगी। भारतवाणी, निःशुल्क रूप में पाठ से वाक् की सुविधा को उपलब्ध भाषाओं में प्रदान कराएगी ताकि नेत्रहीन लोगों द्वारा भी वेबसाइट सामग्री का उपयोग किया जा सके।

यदि कोई भारतवाणी पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी/सूचना का दुरुपयोग कर रहा है, तो क्या होगा?
भारतवाणी साधारणतः नागरिकों पर विश्वास करती है। इस पर उपलब्ध सामग्री की यदि कोई नकल करता है या सामग्री का दुरुपयोग करता है तो उसे तुरंत हमारे ध्यान में लाया जा सकता है। भारतवाणी, भाषाओं को सीखने और प्रसारित करने के लिए, जो भारतीय समाज की समृद्ध विरासत के संरक्षण में सहयोगी होगा, प्रोत्साहित करती है।

भारतवाणी की प्रशासनिक संरचना क्या है?
भारतवाणी का परिचालनः
प्रख्यात भाषावैज्ञानिकों एवं विषय विशेषज्ञों की एक राष्ट्रीय सलाहकार समिति के द्वारा होता है।पोर्टल और भाषा उपकरणों के तकनीकी पहलुओं पर मार्गदर्शन प्रौद्योगिकी सलाहकार समिति के द्वारा प्रदान किया जाएगा।   भारतवाणी हेतु सामग्री संकलन के लिए भाषावार संपादकीयसमितियों का गठन किया गया है।

भारतवाणीका परिचालन कहाँ से होता है?
भारतवाणी का परिचालन भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर (कर्नाटक) के परिसर से होता है।
पत्र–व्यवहार का पता
भारतवाणी परियोजना
भारतीय भाषा संस्थान
मानसगंगोत्री, हुणसूर मार्ग, मैसूरू –570006
दूरवाणी:+91-821-2515820 (निदेशक)
स्वागत-कक्ष/PABX : +91-821-2345000
फ़ैक्स:+91-821-2515032 (कार्यालय)
परियोजना का ई-मेल:info@bharatavani.in

**** साभार    भारत वाणी

मंगलवार, 24 मई 2016

हिंदी के प्रकार

साथियो...
पहले एक कोशिश की थी सभी को साथ लेकर चलने की, परंतु गर्व के साथ कहना पड़ रहा है कि उस कोशिश के परिणामस्वरुप पूरे भारतवर्ष से मात्र 7 साथियों का विवरण मेरे मेल में आया था।..
हम लोग जो हिंदी अनुवादक, हिंदी अधिकारी टाइप के लोग हैं सारी जिंदगी इसी दुविधा में नौकरी कर रिटायर होते हैं कि हम हैं क्या....
मैं कुछ कोशिश कर रहा हूं....
एक वर्ग तो वह है जो इस नौकरी में अपने पद, विभाग, अंधों में काना राजा अथवा व्यक्तिगत संपर्कों के बल पर वेतन से ज्यादा कार्यशालाओँ एवं व्याख्यानों से कमा लेता है और विल्कुल आयकर से मुक्त...वह इस नौकरी में बहुत मस्त है...क्योंकि उसकी जिंदगी सैट है और अच्छी आमदनी है...ऐसे अनेक मित्र हैं जिनका धंधा बहुत अच्छा चल रहा है...इसलिए उन्हें सरकार से न प्रमोशन चाहिए, न सम्मान, न अधिकार, न कैडर और न उसे नियमों की कोई जानकारी है और न वह करना चाहता..और न किसी संगठन अथवा संस्था का सदस्य बनना चाहता...। वह हिंदी की इस यथास्थिति को भी बनाए रखने का प्रबल समर्थक है क्योंकि यह उसके धंधे के लिए उपयुक्त है। मैं और आप ऐसे अनेकों को जानते हैं....।
दूसरा वर्ग वह है जो हिंदी का कवि, लेखक, साहित्यकार बनने की प्रक्रिया में शिद्दत से लगा है, राजभाषा विभाग में उसके पास एक दो अनुवादक अथवा स्टाफ है जो सरकारी चिट्ठियों का जवाब, कार्यशालाएं, रिपोर्ट आदि कर्मकांडों का निर्वाह करता रहता है..और उसकी नौकरी चलती रहती है....उसे भी कोई दिक्कत नहीं है और् अगर उसकी नौकरी भी अपने शहर में है तो फिर तो वह जीवन का स्वर्ग मानता है...कवि सम्मेलन आदि के निमंत्रण आते रहते हैं...शॉल पुष्पमालाएं बुके घर लाकर वह ऐसे सोचता है जैसे जंगल से चीते की खाल लेके आया है.. .पर पत्नी पूछती है कि नकद कितना मिला.....।
तीसरा वर्ग वह है जो एम ए अंग्रेजी, हिंदी, पीएच डी आदि पढ़ के राजभाषा में आया है और काफी समय भी हो गया है परंतु उसे आज भी समझ नहीं आया है कि वह इस नौकरी में कर क्या रहा है और उसके आगे कौंन सा रास्ता है..... अन्य सेवाओं में जाने की कोशिश में लगा रहता है.....वह बड़े दिल से पहले एवं दूसरे वर्ग में घुसने की कोशिश मे लगा रहता है...और उसे भी संगठन एवं संघर्ष से कुछ खास मतलब नहीं है।
चौथा वर्ग वह है जो हिंदी नीतियों के अति उत्साह में सिस्टम से पंगे लेता रहता है और मुंह की खाता है, जलालत झेलता है और उपेक्षित रहता है अपने कार्यालय में....सब उससे पूछते हैं तुम्हें काम ही क्या है.....और वास्तव में काम के नाम पर वह यह दिखा ही नहीं सकता कि यह परिणाम है....क्योंकि हिंदी में सरकारी काम हो ..यह वह करा नहीं सकता...लिहाजा वह इल्ले पिल्ले टाइप के कामों में ही फिर लगा रह जाता है.. बोर्ड हिंदी के कर लो .. मुहर बनवालो..लैटर हैड बनालो....यूनीकोड करलो.. गूगल डॉक्स कर लो....आदि आदि......उसकी हालत खूबसूरत पत्नी के अशक्त पति की सी होती है कि सारी दुनिया उसे अपनी दुश्मन लगती है..पर वह किसी का कुछ बिगाड़ नहीं सकता... सारी दुनिया उसके सामने ही उसकी पत्नी से भाभी कह कर मजाक करती है...और होली खेलती है.....याद करिए प्रेमचंद के उपन्यासों में गरीब की जोरु........इस वर्ग के सामने ही हिंदी की धज्जियां उड़ती रहती हैं पर यह कुछ नहीं कह पाया न कर पाता है..आखिर एक छाते के बलबूते आंधी तूफान से लड़ने का हौसला कहां से लाए....लिहाजा सारी जिंदगी छाते को बचाने की ही जद्दोजहत लगी रहती है..कि बस किसी तरह इज्जत बची रहे.......इस वर्ग की कोई सहायता राजभाषा विभाग का भारी भरकम अमला भी नहीं कर पाता है.....। और सारी संवैधानिक समितियां दुर्वासा की तरह मान सम्मान उपहार लेकर उसके विरोधियों के कंधे पर हाथ रखकर पुचकार कर चली जाती हैं....अगले दिन से वह और अपमान झेलता है...क्या कर लिया...आ गए न औकात में...।
पांचवा वर्ग वह है जो किसी न किसी सहारे से यहां पहुंचा है और नौकरी पाया है...और उसे बस नौकरी चाहिए थी ...आगे जो सरकार करे- उसे स्वीकार है...यह परमानंद और परमहंस प्रजाति का जीव जीवन में सब आनंद लेता है, न उसे कोई अफसोस न कोई अपेक्षा...।
छठा वर्ग वह है जिसे घर से निकलकर कार्यालय की दुनिया में बहुत अच्छा लगता है, पति/पत्नी, सास ननद घर बाल बच्चों की चखचख से अलग..एक आनंद की दुनिया है.. फेस बुक पर फोटो डालने के लिए नैट आफिस में मिल जाता है..इसके आगे उन्हें कुछ नहीं चाहिए...कार्यक्रमों का संचालन करना और अगले दिन अखवार में फोटो और नाम देखने का सुख जीवनीय सुखों के तुंग शिखर का सा आनंद देते हैं।
सातवां वर्ग ऐसा भी है जो कि यह सब लिख के अपनी योग्यता महानता विद्वता सिद्ध करने का सफल प्रयास करता है और सफल हो भी जाता है। न वह पूरा हिंदी का आदमी है न अंग्रेजी का न कवि है न लेखक है न बुरा आदमी है न भला आदमी है... किसी से लड़ने की हिम्मत उसमें उसकी बेसिक शराफत मिलमा कायरता पैदा नहीं होने देती और उसे भलमनसाहत का बहुत भयंकर प्रेत सदैव अपने शिकंजे में कसे रहता है.....वह सोचता है और गदगद रहता है कि वह बहुत भला आदमी है..... फेस बुक पर उसे कुछ लाइक या कमेंट मिल जाते हैं। बुरा बनने को, अहंकारी अथवा अपनी ठसक दिखाने के अवसर उसके पास इतने भी नहीं होते जितने कि एलटीसी डील करने वाले बाबू के होते हैं...यह खरगोश और सियार के बीच का जीव किसी का नुकसान करने की सोच भी नहीं सकता और न उसके पास ऐसे कोई मौके हैं कि वह किसी का बुरा सोचे तो कर दे .....करना भी चाहे तो उसके वही भलमनसाहतीय प्लास्टिक के अजर अमर कीटाणु उसे इतना नीचे गिरने नहीं देते कि वह किसी का अहित करे....इस चक्कर में उसकी हालत कभी राहुल गांधी, कभी स्वामी, कभी रामदेव, कभी लालू कभी आजम खां, कभी जयललिता कभी ममता, कभी मोदी, कभी जेटली, कभी शत्रुघ्न सिन्हा, कभी कांग्रेस कभी भाजपा जैसी बदलती रहती है.... आडवाड़ी की तरह नराकास के सदस्य सचिव के रुप में यत्र तत्र सर्वत्र पुजता भी रहता है। विदवान जिसे विद्वान, साहित्यकार जिसे साहित्यकार, कवि जिसे कवि और अन्य वर्ग के लोग उसे उसकी हरकतों तथा गतिविधियों से अपने ही वर्ग का अभिन्न अंग मानते हैं....परंतु यह कुछ भी संपूर्ण नहीं होता...सब कुछ थोड़ा-थोड़ा होता है...जैसे कि एक ही रात में किसी को 8 शादियों का निमंत्रण होता है और वह सब जगह जाता है...अब बताएं कि उसने भोजन कहां किया...पर पेट भर जाता है.....और इसी भ्रमगंगा में गुड़ुप-गुड़ुप करते-करते जीवन सुविधापूर्वक चलने लगता है...न तेज धार में बहने की इच्छा रहती है और न किनारे पर पड़े रहने की... जब धूप लगी तो एक डुबकी मार आए....। इस प्रजाति के लोगों को सभी वर्ग आकर्षित करते हैं और ये सारे जीवन सभी वर्गों के टैंटों में चौधरी अजीत सिंह या सुनील शास्त्री जी की तरह आते जाते रहते हैं। इसी वर्ग में से कुछ लोग राजनारायण, सुव्रामन्यम स्वामी या राम जेठमलानी की भूमिका भी अख्तियार कर लेते हैं....चिढाऊ बातें करना..सुई चुभोना..आदि विशिष्ट अवगुण इनमें पाए जाते हैं.. पर इन्हें अपना सगा कोई नहीं मानता...और ये अपने स्वभाव वश किसी के पालतू हो भी नहीं सकते...जो कि सिस्टम वालों को स्वीकार नहीं होता...आखिर चमचागीरी तो सबको अच्छी लगती है ..और एक सीमा से ज्यादा ये कर नहीं सकते.....। सिस्टम चलाने वाले शक्ति एवं अर्थ संपन्न लोग अक्सर इनसे दूर रहते हैं और इन्हें मुंह नहीं लगाते..पर काम के टाइम पर इन्हें जिम्मेदारी सौंप कर शादी में विधवा बड़ी बुआ की सी जिम्मेदारी सौंप देते हैं जिसे ये प्राण पण से निभाते हैं... और फिर सिस्टम अपने चाटुकारों में घिर जाता है और इनके....पिछवाड़े पर लात मार दी जाती है.......। इस सिस्टम में इनमें थोड़ा सा ईमान बचा होता है और सिस्टम की मांग पर यह आंकड़ों में फेर बदल नहीं करते... जो हो सो हो..पर होता कुछ नहीं है... मंत्रालय से एक सत्यनारायण की कथा के सारांश का सा पत्र सुझावात्मक आ जाता है....। पर फिर यही.. कोई नृप होइ हमें का हानि..का बाबा भारती.... दुर्वासा समितियों के मान-सम्मान सेवा में जी जान लगा के कागजी शेरों के प्रकोप से बचाने का उपकरण बन कर गर्व महसूस करता है ...कि कुछ बड़ों का हाथ पीठ पर फिर जाता है......और खड़ग सिंह अगली रात को फिर घोड़ा इनके सामने ही खोल के ले जाता है।
एक वर्ग आठवां है जो हिंदी की नौकरी में होता है परंतु उसे हिंदी के अलावा सब कुछ आता है और वह केटरिंग का, कार्यक्रमों के आयोजन का, व्यवस्थापन का , गैस्ट हाउस का, ट्रांसपोर्ट का विशेषज्ञ होता है...इसके पास समस्त चकल्लसी जानकारियों का जखीरा होता है.....इसे प्रमोशन सुविधाएं इत्यादि भी समय से मिलती हैं...यह कभी भी हिंदी की बात करता हुआ नहीं मिलता है.....परंतु सभी रिपोर्टें टाइम से जाती हैं ... और विल्कुल झूंठी... और क्षेत्रीय राष्ट्रीय पुरस्कारों से नाम रोशन करता है और बड़े साब की आंखों का पतंजलि काजल होता है.....यह हिंदी नहीं बोलता.अंग्रेजी बोलता है ..खाता है पीता है ओढता बिछाता है.....बल्कि इसे हिंदी की बात करने में शर्म आती है...हिंदी भाषी एवं हिंदी की नौकरी में होते हुए भी यह द हिन्दू पढ़ते हुए अपनी अंग्रेजी अच्छी करने में लगा रहता है और अंग्रेजी ही जीता है..इंगलिश ही पीता है..क्योंकि इनकी अपनी नौकरी सारी अंग्रेजों की ही होती है....। यह वर्ग अच्छा आयोजक होता है।
वीरवल की तरह शीर्ष पर रहने वाला एक नौवा रत्न है वह वर्ग जो हिंदी का नौकर नहीं है, राजभाषा नीति का ककहरा भी जिसे नहीं आता .. परंतु उसे हिंदी का अतिरिक्त चार्ज दिया गया है... वह प्रोफेसर है, वैज्ञानिक है....उच्च पदधारी प्रबंधक है....। वह देश विदेश में हिंदी के सम्मेलनों में शिरकत करता है और हिंदी को आगे बढ़ाते हुए खूब आगे जाता है...पर सरकार का काम हिंदी में हो ...इससे उसका कोई प्रयोजन नहीं है....। संस्थानों के, कार्यक्रमों के, सेमिनारों, संगोष्ठियों, समितियों के अध्यक्ष आदि बनना इस वर्ग में रहने की अंतिम सुखद परिणित होती है और सभी इन्हें ही अपने कार्यक्रमों में बुलाकर हिंदी की सेवा का स्वर्णिम प्रमाण पत्र पाने के लिए दामादी खातिर करते रहते हैं। हिंदी वालों के प्रस्तावों पर अनुमोदन अथवा टांग लगाना इसका कार्य होता है...।
दशम् अवतार है एक संस्था वर्ग का... जिसकी दुकान हिंदी कार्यशालाएं एवं सम्मेलन आयोजित करने से चल रही है और इस काम में पूरी की पूरी मंडली लगी हुई हैं...किन्ही माननीयों के पैड पर निरंतर भयादोहन भाषा में त्रिशूल छाप कर वे बरातियों से बसूली करते रहते हैं..... हिंदी और संविधान, संसद का सबसे धनाढ्य एवं शक्तिसंपन्न वर्ग यही है..इस संत कर्म में अनेक सेवारत एवं सेवानिवृत्त अधिकारियों का प्राण पण से सहयोग रहता है.....हिंदी सेवा में इस वर्ग में शामिल होना उच्च गर्व का भाव भर देता है और सबकी अंतिम इच्छा इस वर्ग में शामिल होने की और अगली पंक्तियों में विराजमान होने की रहती है...इनकी कुछ किताबें, कुछ ब्लाग, कुछ वेवसाइटें होती हैं.. जहां वे बहुत ही विश्वप्रसिद्ध पदवी पाए हुए होते हैं...। इन कार्यक्रमों से आज तक कुछ भी हासिल नहीं हुआ परंतु कुछ प्रकोपों से बचने के लिए बरातियों को नामित करना और विज्ञापन देने का चक्र निरंतर चलता रहता है। कुछ पत्र पत्रिकाओं को सम्मानित करने के नाम पर ये लोमड़ीनुमा संस्थाएं कौए के मुंह का कौर गिरवाने में माहिर हैं।
एक वर्ग है जो टैक्नीकली हिंदी और कंप्यूटर को जोड़ने में लगा है और इसे हिंदी कार्मिकों की सेवा शर्तों तथा परिस्थितियों से कोई सरोकार नहीं है...और यह ईमानदारी से अपना कार्य कर रहा है...इसमें सरकारी और प्राइवेट दोनों तरह के लोग हैं.. सरकारी जो हैं वे कुछ कम असरकारी सिद्ध होते हैं और गैर सरकारी सर्वोच्च पदों से पुरस्कार प्रमाण पत्र पाकर संतुष्टि पाते हैं...और उनके निजी व्यवसाय बढ़ते हैं....निमंत्रण बढ़ते हैं.....मैं इस वर्ग के दोनों उपवर्गों का सम्मान करता हूं।
बात शुरु हुई थी...मन की उस खीज के साथ.. कि हम हिंदी वालों में संघर्ष का जज्बा क्यों नहीं हैं और हम सरकार से कुछ क्यों नहीं करा पाते हैं..न हमारे प्रमोशन हैं...न हिंदी में कहीं काम हो रहा है..न दासमलूका वंश के हरामखोरों की सी संतुष्टि है और न भगत सिंह की क्रांति ज्वाला....। आप को समझ में आए तो बताएं...मैं तो तीन पेज काले करके भी नहीं समझ पाया..कि हम लोग क्या हैं... हम सब थोड़ा थोड़ा सभी वर्गों में हैं......मैं अभी और दस बीस पेज बकवास कर सकता हूं पर नतीजा ढाक के तीन पात ही रहेगा...साढे तीन नहीं....।
जय हिंद जय हिंदी...
आप लोग भी अपने आप को और आस पास को देखिए और बताएं कि आप किस वर्ग में हैं...और भी कुछ नए वर्ग परिभाषित किए जा सकते हैं...यह बकवास परंपरा खुली हुई है...आप इसकी और श्रीवृद्धि कर सकते हैं। यह उपसंहार नहीं प्रस्तावना है, मत कहो आकाश में कोहरा घना है।
जय हिंद जय हिंदी।
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डॉ राजीव रावत
हिंदी अधिकारी
आई आई टी खरगपुर

पीठापुरम यात्रा

 आंध्र प्रदेश के पीठापुरम यात्रा के दौरान कुछ धार्मिक स्थलों का सहपरिवार भ्रमण किया। पीठापुरम श्रीपाद वल्लभ पादुका मंदिर परिसर में महाराष्ट्...