रविवार, 7 दिसंबर 2014

सोमवार, 24 नवंबर 2014

सी डैक के हिंदी उत्पाद


सी-डैक ने भारतीय भाषाओं को कंप्यूटर पर विकसित करने के लिए अनेक सॉफ्टवेयर बनाएं है। कुछ सॉफ्टेवेयरों की संक्षिप्त जानकारी निम्नानुसार है-

जिस्ट कार्ड: -
            जिस्ट कार्ड को किसी  भी पीसी में लगाकर सभी डॉस बेस अनु प्रयोग और कस्टम सॉफ़्टवेअरों में हिंदी के साथ साथ सभी भारतीय भाषाओं में कार्य किया जा सकता है।

जिस्ट शैल: -
            जिस्ट शैल एक सॉफ़्टवेअर समाधान है जिसके माध्यम से डॉस बेस अनुप्रयोग और कस्टम सॉफ़्टवेअरों में हिंदी के साथ साथ सभी भारतीय भाषाओं में कार्य किया जा सकता है।

जिस्ट टर्मिनल: -
            जिस्ट टर्मिनल के माध्यम से हिंदी-अंग्रेजी के लिए तैयार किया गया शब्द संसाधक सॉफ़्टबेअर है। इस सॉफ़्टवेअर कि सहायता से विंड़ोज़ आधारित अनु प्रयोगों में कार्य किया जा सकता है। सॉफ़्टवेअर के द्वारा हिंदी-अंग्रेजी के अतिरिक्त 11 भारतीय भाषाओं जैसे असामी, बांग्ला, गुजराती, कन्नड, मलयालम, मराठी, उड़ीसा, पंजाबी, तमिल, तेलगु और संस्कृत में कार्य कर सकते है। पैकेज कि मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार है।

1. भारतीय भाषाओं में टाइपिंग करने कि सुविधा।
2. डॉक्यूमेंट को भारतीय भाषा में तैयार करना।
3. अंग्रेजी से भारतीय भाषाओं में शब्दों और फ़्रेजेस को रुपांतरित करना।
4. भारतीय भाषाओं में बनाए गए डॉक्यूमेंट को एच टी एम एल फ़ॉरमॅट में सेव कर इंटरनेट पर डाला जा सकता है।
5. भारतीय भाषाओं के लिए स्पैल चेक सुविधा भी सॉफ़्टवेअर में दि गई है।
6. भारतीय भाषाओं के लिए समान इंस्क्रिप्ट कुंजीपटल दिया गया है।
7. आर टी एफ़, एच टी एम एल, बी एम पी, जे पी जी फ़ॉरमॅट को सपोर्ट करता है।

आई एस एम-2000 ऑफ़िस: -
            यह विंड़ोज़ आधारित फ़ाँट्स बेस पैकेज है। इस सॉफ़्टवेअर के माध्यम से हिंदी के अतिरिक्त 11 भारतीय भाषाओं जैसे असामी, बांग्ला, गुजराती, कन्नड, मलयालम, मराठी, उड़ीसा, पंजाबी, तमिल, तेलगु और संस्कृत में कार्य किया जा सकता है। आई एस एम-2000 ऑफ़िस सॉफ़्टवेअर विदेशी भाषाओं तिब्बती, भूतानी और सिंहली भाषाओं में भी उपलब्ध है। सॉफ़्टवेअर प्रशासनिक शब्दावली, भारतीय भाषाओं के लिए स्पैल चेक भी दिए गए है। सॉफ़्टवेअर में दि गई "एन्ट्रान' यूटीलिटी के माध्यम से अंग्रेजी के सर्वनाम  को भारतीय भाषाओं में और इसके विपरीत भारतीय भारतीय भारतीय भाषाओं से अंग्रेजी में अनुवाद पाया जा सकता है। आई एस एम-2000 ऑफ़ीस के वेब द्वारा वेबसाइट का निर्माण भी किया जा सकता है। सॉफ़्टवेअर में दी गई "फ़ाईल कन्वेर्टर' सुविधा के माध्यम से अन्य भारतीय भाषाओं के सॉफ़्टवेअरों कि फ़ाईलों को आई एस एम में लाकर काम किया जा सकता है।

आई एस एम-2000 पब्लिशर: -
            आई एस एम-2000 पब्लिशर मुख्य अनु प्रयोग जैसे पेज मेकर, फ़ोटोशॉप, कोरेल ड्रा, पावर प्वाइंट, फ़्रंट पेज,
वर्ड के अनुकूल है। इस सॉफ़्टवेअर के माध्यम से मैनुअल, न्यूज़ लैटर्स, विज्ञापन, वेब पेज  डिज़ाइनिंग, ब्राउशर, इनविटेशन कार्ड, ग्रिटींग कार्ड आदि बनाए जा सकते है। सॉफ़्टवेअर में भारतीय संस्कृती से संबंधीत क्लिप आर्ट, प्रतिक और सजावटी बॉर्डर उपलब्ध है। इन्स्क्रिप्ट टाइपराइटर, फ़ोनेटीक इंग्लिश कि-बोर्ड ले आऊट, स्पैल चेक, अन्य सॉफ़्टवेअर से फ़ाइलों को लाने और इस्की में सेव करने की सुविधाएँ भी सॉफ़्टवेअर में उपलब्ध है।
लीप मेल: -
            लीप मेल की सहायता से हिंदी के अतिरिक्त भारत की सभी प्रमुख भाषाओं में ई-मेल की जा सकती है। सॉफ़्टवेअर में ऑनस्क्रिन टाइपिंग दि गई है। जिससे बिना कि-बोर्ड का प्रयोग किए माऊस कि सहायता से टाइपिंग कि जा सकती है। लीप मेल को दुरेडा, आऊटलुक एक्सप्रेस, नेटस्केप मैसेंजर इत्यादी में कन्फ़िगर किया जा सकता है। इस्की और युनीकोड को सपोर्ट करता है।

आई लीप: -
            यह भारतीय भाषाओं के लिए शब्द संसाधक सॉफ़्टवेअर है। आई लीप सॉफ़्टवेअर में हिंदी के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं के लिए ऑन स्क्रिन कि-बोर्ड दिया गया है। इसमें इनस्क्रिप्ट, फ़ोनेटीक इंग्लिश और टाईपराईटर कि-बोर्ड उपलब्ध है। सर्च एंड रिप्लेस, मल्टीलिंग्यूअल स्पैलचेक, इन्सर्ट, डिलीट और टेक्स्ट को सिलेक्ट करने कि सुविधा भी सॉफ़्टवेअर में दि गई है। भारतीय भाषाओं में तैयार किए गए टàक्स्टा को आर टी एफ़ फ़ॉरमॅट में सेव किया जा सकता है।

चित्रांकन: -
            सी-डैक द्वारा भारतीय भाषाओं के लिए "चित्रांकन' नामक ऑप्टिकल करेक्शन रिकोगनाइजेशन (ग्र्क्ङ) तैयार किया गया है। इसकी  सहायता से भारतीय भाषाओं के टàक्स्ट को स्कैन कर बिना टाइपिंग किए कंप्यूटर में डाला जा सकता है। स्कैन टàक्स्ट और टàक्स्ट जोडा/काटा जा सकता है। बदले गए टàक्स्ट को सेव किया जा सकता है। इनबिल्ट स्पैलचेक भी उपलब्ध है।

मल्टीलिंग्यूअल सॉफ़्टवेअर डेवलपमेंट टूल: -
            सी-डैक द्वारा भाषाओं के लिए सॉफ़्टवेअर डेवलपमेंट आदि का विकास भारतीय भाषाओं में किया जा सकता है। जिसकी सहायता सें हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं में डाटा संसाधन के सभी अनुप्रयोग सॉफ़्टवेअर जैसे वेतन पर्ची, पतों के लेबल, डायरी डीस्पैच, फ़ाईल मुवमेंट आदि का विकास भारतीय भाषाओं में किया जा सकता है

शैली : -
            शैली सॉफ़्टवेअर में भारतीय पारंपारीक संस्कृति से संबंधीत क्पिप आट्र्स दिए गए है। जो वेब डिजाइनरों और प्रकाशकों के लिए बहुत उपयोगी है।
           
            मुख्य कार्यालय (पूणे)
            सी-डैक
            पुणे विश्वविद्यालय कैंपस,
            गणेशखिंड, पुणे - 411007.
            दूरभाष: - 020-5694000
            फ़ैक्स : - 020-5694059.
www.cdac.in

(संदर्भग्रंथ: -  देवनागरी में यांत्रिक और इलेक्ट्रानिक सुविधाएँ।)

ज्योतिबा

समाज सुधारक और देश में नारी को शिक्षा देने के लिए पहला स्कूल पुणे में खोलने वाले ज्योतिबा फुले पर लिखी गयी मराठी कविता का हिंदी अनुवाद  ----

ज्योतिबा

ज्योतिबा
धन्यवाद।
आप  उसे
दहलीज के
बाहर ले आये,
क ख ग घ
त थ द ध
पढ़ाया
और
कितना बदलाव आया है ,
अब उसे
दस्तख़त के लिए
बायी अंगुली पर
स्याही लगानी नहीं पड़ती ,
अब वह स्वयं
लिख सकती है .........
मिटटी का तेल स्वयं पर
फैलाने से पहले
( उसके पीछे रहनेवाले बच्चों को ध्यान में रखकर)
" मैं अपनी मर्जी से
जल कर ख़ाक हो रही हूँ "
------------------------------------------------------------------
(मराठी कवि - अशोक नायगांवकर )
हिंदी अनुवाद- विजय नगरकर

शुक्रवार, 1 मार्च 2013

गूगल हिन्दी इनपुट

सर्वश्रेष्ठ हिंदी टंकण अनुप्रयोग अब प्ले स्टोर में आप के लिए उपलब्ध है. गूगल ने अंततः एंड्रोइडके लिए सबसे अच्छे हिन्दी इनपुट अनुप्रयोग की शुरूआत कर दी है . यह अनुप्रयोग किसी भी एंड्रोइड फोन पर चलाया जा सकता है. अनुप्रयोग [app] सक्रिय करने के लिए आपको बस नीचे वर्णित  कदम का पालन करने की जरूरत है.आप हमेशा अंग्रेजी पर  लौट सकते हैं. हिंदी के लिए बस एक क्लिक का  समाधान.

गूगल हिन्दी इनपुट आपको संदेशों को टाइप करनेसामाजिक नेटवर्क पर अद्यतन रहने या अपने एंड्रोइड फोन पर हिन्दी में ईमेल की रचना करने की अनुमति देता है. यदि आप अपने फोन पर "नमस्ते" को सही ढंग से पढ़ सकते हैंतो आप गूगल हिन्दी इनपुट स्थापित करके उस का उपयोग कर सकते हैंअन्यथा आपका फोन हिन्दी का समर्थन नहीं कर सकता है.

हिंदी लिप्यंतरण
अंग्रेजी कीबोर्ड पर "a -> अ"  बटन को टॉगल करके  लिप्यंतरण मोड को आरंभ अथवा बंद कर सकते हैं . 
-  लिप्यंतरण मोड मेंआप अंग्रेजी अक्षरों में हिन्दी शब्द लिखें और अनुप्रयोग [app] उन्हें हिन्दी में परिवर्तित कर देगा. 
उदाहरण के लिए, "Hindi" टाइप करें और आपको सूची से शब्द "हिंदी" मिल जाएगा.

हिन्दी
अंग्रेजी कीबोर्ड पर लिप्यंतरण मोड को चालू करकेआप अंग्रेजी में टाइप कर सकते हैं.

हिन्दी कीबोर्ड
ग्लोब बटन को टॉगल करके अंग्रेजी और हिन्दी कीबोर्ड के बीच स्विच कर सकते हैं.
-व्यंजन वर्णानुक्रम के आधार पर पृष्ठों में दिए गए हैं. p बटन "1/2" "2/2को दबाकर आप पृष्ठों के बीच नेविगेट कर सकते हैं. लांग पॉपअप में विभिन्न रूपों का चयन करने के लिए कैरेक्टर कुंजी दबाएँ.


google-hindi-input-complete-solution-for-android-hindi-typing

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

सिंपल डिक्शनरी एप्लिकेशन



सिंपल डिक्शनरी एप्लिकेशन सॉफ्टवेयर में हम अनेक शब्दकोश जोड़ सकते है। िहिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में शब्दकोश की अपनी एक विशेष भूमिका है। मुफ्त शब्दकोश की उपलब्धता हमारी भाषा को संजीवनी प्रदान करती है। 
इस हिंदी शब्दकोश में अंग्रेजी-हिंदी, हिंदी-हिंदी,मराठी-हिंदी,बांग्ला-हिंदी, तेलुगु-हिंदी, कन्नड-हिंदी,पंजाबी-हिंदी शब्दकोश उपलब्ध है। यह कोश विभिन्न वेब साइट पर उपलब्ध थे जो अन्य फॉंट में थें जिसको मा. अनुनाद जी ने मेहनत और लगन से यूनिकोड में परिवर्तित करके मुझे भेज दिया था। यह कोश हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के प्रचार में मददगार साबित होगा। भाषा के प्रचार में मुफ्त शब्दकोश उपलब्ध होना जरुरी है। आज अँग्रेजी भाषा में करीब बीस लाख शब्दों का संग्रह मुफ्त वितरित किया जा रहा है। हमें यह सोचना होगा कि शब्दकोश के निर्माण में जो भारतीय काम कर रहे है वे यूनिकोड के सहारे अपनी भाषा का प्रचार करें और भाषा को इस डिजिटल विश्व मे जिवंत रखें.।
यह कोश नोटपैड में उपलब्ध है जिसे आप एस.डी.ए. (Simple Dictionary Application) सॉफ्टवेयर के डेटा फोल्डर मे पेस्ट करके काम में ला सकते है। एस.डी.ए. डाउनलोड करें- http://download.cnet.com/Simple-dictionary-application/3000-2279_4-10396727.html
 

शब्दकोश Hindi Dictionary - https://docs.google.com/folder/d/0B0UjY_0cWa2KRFc3N0RTM1UzdnM/edit
 

सरकारी कार्यालयों में हिंदी पदों नियुक्ति


गृह मंत्रालय  राजभाषा विभाग ने पत्र सं. 15/4/2005-रा.भा.(सेवा) दि. 17-02-2005 के द्वारा मंत्रालयों,विभागों,कार्यालयों  के न्यूनतम हिंदी पदों के बारे में मार्ग दर्शक सूचना जारी की है। विडंबना यह है कि हिंदी के रिक्त पद कई वर्षों से भरे नहीं जाते उपर से वर्तमान पदों में कटौती की जाती है। आदेश तो यह भी है कि किसी हिंदी के पदों को हटाते समय संबंधित विभाग,मंत्रालय द्वारा संबंधित कटौति का प्रस्ताव राजभाषा विभाग के पास भेजना चाहिए। यह समझने में नहीं आता कि आखिर  हिंदी के पद भरते ही क्यों है अगर इसी तरह हिंदी के पदों को हटाया जाएगा तो वर्तमान हिंदी पदों पर कार्यरत हिंदी कर्मियों को न  पदोन्नति के अवसर मिल पाएंगे न वे सरकारी कार्यालयों में ठिक तरह से काम कर पाएंगे। हमें इसके लिए कोई ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। 



सोमवार, 2 अप्रैल 2012

हिन्दी बोले तो...




डॉ. रामवृक्ष सिंह

       बहुत दिनों बाद ससुराल पहुँचे। सास-ससुर ने खूब आवभगत की। साली ने पूछ-पूछकर और सच कहें तो ठूंस-ठूंसकर खिलाया-पिलाया। लेकिन मुँहलगे साले ने मुँह का सारा जायका खराब कर दिया। पूछ बैठा- "जीजाजी, आप तो बैंक में हिन्दी अधिकारी हैं न?" हमें लगा,  साला सच्ची बात हमारे मुँह से सुनकर न जाने क्या मजे लूटना चाहता है? जिस रहस्य को हम बरसों से अपनी आबरू की तरह दबाए-छिपाए और दुनिया की नज़रों से बचाए-बचाए घूम रहे थे, वही ये साला आज सरे आम उजागर किए दे रहा है। अब क्या है! कुछ दिन बाद ससुराल के सभी संबंधियों, फिर उनके अड़ोसियों-पड़ोसियों और फिर सारे शहर को पता चल जाएगा कि हमारी औकात तो कुछ भी नहीं है, कि हम तो अदना से हिन्दी अधिकारी हैं। अरे राम! कितना अनर्थ हो जाएगा! सोच-सोचकर साले पर बड़ा गुस्सा आ रहा था। लेकिन करते क्या? गुस्सा तो हिन्दी की दुर्दशा से जुड़ी तमाम बातों पर आता है, लेकिन हम क्या कर लेते हैं? सच कहें तो गुस्से को पी जाना और अपनी लाचारगी को शाश्वत मानकर स्वीकार कर लेना ही हिन्दी अधिकारी का परम कर्तव्य और परम प्राप्य है। हम चुप रह गये। बड़े-बड़े मंसूबे बनाकर ससुराल गए थे, लेकिन कोई भी पूरे न हुए। जितने समय रुकने की सोचकर गए थे, उससे भी पहले ही चले आए। बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले। बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। चचा ग़ालिब ने शायद हमारे लिए ही यह शेर लिखा था।

       घर आए तो ससुराल का संक्रमण यहाँ भी पहुँच गया था। इतनी तेजी से कोई व्याधि नहीं फैलती, जितनी तेजी से प्रवाद। वैसे तो यह बीमारी मानव-सभ्यता के आरंभिक दिनों से ही बदस्तूर कायम है। लेकिन इसकी हालिया तेजी निश्चित रूप से सूचना क्रांति की मेहरबानी है। अभी घर के अहाते में पूरी तरह फिट भी नहीं हो पाए थे कि बड़े बेटे साहब ने हमसे पूछ लिया- "क्यों डैड! आप बैंक में हिन्दी अधिकारी हैं?" उसके प्रश्न में हमें जिज्ञासा कम, तंज अधिक दिखा। हमने बड़ी लाचारी से उसकी ओर देखा, जैसे बकरा कसाई को देखता है। बोले कुछ नहीं। अलबत्ता मन ने कहा- "मान लो बेटा, हम हिन्दी अधिकारी न होते, कहीं के कलट्टर, मजिस्टेट होते तो क्या तुम कुछ दूसरी तरह से पैदा हुए होते? या तुम्हारी अम्मा, जिनसे हमारी शादी तभी हो गई थी, जब हमें और उनको भी सुथने का नाड़ा बाँधने का भी सलीका नहीं था, कुछ और हो गई होतीं?"  बेटे की बात अनसुनी करके हम चुपचाप बैठ गए।
      
       हिन्दी अधिकारी बने हमें एक चौथाई सेंचुरी हो चुकी है। और इस दौरान हमने सबसे बड़ा सबक यही सीखा है। कोई कुछ भी बोले, कुछ भी कहे.. चुपचाप सुनते रहो। अपनी पगार का स्मरण करो, उसी में मन लगाओ। जैसे सच्चा भक्त संसार की दूसरी बातों पर ध्यान न देकर अपने आराध्य का ध्यान लगाए रहता है, उसी प्रकार सच्चा हिन्दी अधिकारी और सारी बातों, यहाँ तक कि हिन्दी कार्यान्वयन पर भी ध्यान न देकर, बस महीने के अंत में मिलने वाली अपनी तनख्वाह पर ध्यान लगाता है। उससे भी ऊँचा संत वह है जो निरीक्षण, कार्यशाला, सम्मेलन आदि के बहाने अपनी कमाई बढ़ाने के दूसरे स्रोतों पर ध्यान लगाए। सच्चा राजभाषा अधिकारी निरपवाद रूप से ऐसा ही करता है।  कई बार तो वह अपने कपड़े -लत्ते पर भी ध्यान नहीं देता। बहुत से हिन्दी अधिकारी ऐसे मिल जाएँगे जो बीस रुपये वाली रबड़ की शानदार हवाई चप्पल और ठेले पर बिकने वाली बिना प्रेस की हुई, स्थायी रिंकल-युक्त पैंट-कमीज पहनकर ही दफ्तर चले आते हैं। सर्दियों में अस्पताल की बेडशीट जैसी हरी-हरी चद्दरें और खेस ओढ़कर दफ्तर आनेवाले हिन्दी अधिकारी भी हमने देखे हैं। एक बार पहनने के बाद फटने तक शरीर से चिपकी रहने वाली जीन्स और कई-कई हफ्ते से बह रहे तरह-तरह के श्रम-वारि से सुवसित टी-शर्ट पहनकर निरीक्षण करने वाले कर्मवीर उप निदेशक (कार्यान्वयन) से भी अपना साबका पड़ चुका है।

       अब हम बेटे को कैसे समझाते कि उसके बाप की प्रोफेशनल बिरादरी में कैसे-कैसे अघोरी शामिल हैं!  उसका कोमल मन, जो पहले ही अपने बाप को राजभाषा के अभिधान से विभूषित, किन्तु वस्तुतः गाय-गोरू चरानेवाले अथवा ईंटा-गारा ढोने वाले लतमरुआ लोगों की भाषा यानी हिन्दी के सेवक के रूप में देखकर विचलित हो चुका है, इस कठोर सच्चाई का सदमा कैसे झेलेगा? यह सोचकर हम उस मुद्दे पर चुप रह गए। अलबत्ता दूसरे मुद्दे पर हमने बच्चे की क्लास ले ली और डपटते हुए उससे कहा- "यार, जबसे तुम पैदा हुए हो तब से तुम्हें समझाते चले आ रहे हैं कि हमें डैड-वैड मत बुलाया करो। बुलाना है तो सीधे-सीधे पिताजी या बाबूजी कहो। यही अपनी परंपरा है। लेकिन तुम हो कि कुछ समझते ही नहीं।"

       बच्चा अब बच्चा नहीं रहा है। कुछ-कुछ मुँहजोर भी हो चला है। कुछ दोष तो उसकी उम्र का है और कुछ अपना भी दुर्भाग्य। सच कहें तो हर कोई हिन्दी अधिकारी से जुबान तराशी करता है, चाहे वह चपरासी हो या टाइपिस्ट। हर किसी को मालूम है कि हिन्दी अधिकारी की लानत-मलानत करने का उसे जन्मसिद्ध अधिकार है। हर कोई जानता है कि सरकारी संस्थाओं के राजभाषा-कर्मी की भर्ती ही इसलिए होती है कि उसपर सब अपना फ्रस्ट्रेशन निकालें। हिन्दी विभाग वाला जो अनुवाद करे, उसमें कोई भी अपनी लंगड़ी टाँग घुसा सकता है। अनूदित सामग्री को कठिन बताकर हिन्दी पाठ को और उसके माध्यम से हिन्दी अधिकारी को कभी भी ठेंगा दिखाया जा सकता है। बस यह सोचकर दिल को बहला लेते हैं कि वे सब पराए लोग हैं। उनका क्या? किन्तु बुरा तो तब लगता है जब अपने सगे ही अपना अपमान करने लगें। बच्चे की भी क्या कहें! सयाना हो चुकने के कारण कभी-कभी अपनी इयत्ता और अस्मिता को लेकर संजीदा हो जाता है। विडंबना यह है कि उसकी इस नई -नवेली अदा के पहले शिकार हम ही बनते हैं। लिहाजा इस बार भी बच्चे ने तड़ाक से टीप दिया- "क्या डैड!  हमें ही क्यों, आप और आप जैसे हजारों लोग हमारे जन्म लेने से भी कई दशक पहले से, बल्कि सच कहें तो सन उन्नीस सौ उनचास से ही पूरे देश को समझाते चले आ रहे हैं कि हिन्दी हमारी राजभाषा है, कि उसमें काम करना आसान है। समझा ही नहीं रहे हैं, सबको ट्रेनिंग भी देते आ रहे हैं। कार्यशाला कराते हैं। सम्मेलन कराते हैं। यहाँ तक कि मॉरीशस, इंग्लैंड, सूरीनाम और न्यूयॉर्क जैसी विदेशी जगहों पर भी जा-जाकर हिन्दी का नगाड़ा पीटते चले आ रहे हैं। कुछ फर्क पड़ा उससे? सारी कसरत बेकार ही तो साबित हुई है।"

       हम टुकुर-टुकुर उसके मुँह की ओर देखते रह गए। आजकल के बच्चे कितने समझदार हो गए हैं! इनको समझाना आसान काम है क्या! कोरी भावुकता भरी बातों से इनके दिल को नहीं जीता जा सकता। और सिर्फ इसलिए तो ये कतई हमारी बात नहीं मान लेंगे कि हम इनके डैड हैं। जब तक कारण-कार्य संबंध न दिखाई पड़ता हो, बात पूरे तर्क के साथ न कही गई हो, ये आज की पीढ़ी आपको भाव नहीं देने वाली। अब हम कैसे इसे समझाएँ? यही सोच रहे थे कि बच्चे ने निर्णयात्मक लहजे में कहा- "डैड, आप हिन्दी अधिकारी हैं। लेकिन अंग्रेजी के बिना आपका भी काम नहीं चलता। अगर अंग्रेजी नहीं होती तो आपको कौन पूछता? अंग्रेजी है, इसलिए आप हैं। और एक बात। यदि आप केवल हिन्दी जानते तो भी आपको कोई घास नहीं डालता। क्योंकि आप अंग्रेजी भी जानते हैं और अंग्रेजी से हिन्दी तथा हिन्दी से अंग्रेजी में अनुवाद करने में सक्षम हैं, इसीलिए आप हिन्दी अधिकारी हैं। अंग्रेजी ज्ञान के बिना तो डैड आप अपना काम ही नहीं कर पाते।"

       बच्चे की इस युक्ति पर हमारी बाँछें खिल आईं- "अरे हाँ! यार! तैने ये अच्छा रास्ता निकाला।" हमारा मन भर आया। हम गदगद हो आए। बेटे ने क्या बात बताई है! लेकिन फिर कुछ सोचकर मन का हैलोजन अचानक बुझ-सा गया। इसका अभिप्राय तो यह हुआ कि बेटे के मन में भी हमारे लिए यदि कुछ सम्मान है तो केवल इसलिए कि हमें हिन्दी ही नहीं, अंग्रेजी का भी ज्ञान है। यानी हमारे सम्मान का अवलंब ये निगोड़ी अंग्रेजी ही है, न कि हिन्दी। यह विचार मन में आते ही हमारे मन पर पड़ा सदियों का कुहासा अचानक छंट गया। हमें कुछ-कुछ वैसा ही तत्व-बोध हुआ, जैसा पीपल के पेड़ के नीचे बैठे, गृह-त्यागी सिद्धार्थ को भिक्षाटन से मिली खीर खाने के बाद हुआ था। अरे यार! अब समझ आया कि हर हिन्दी अधिकारी बात-बात पर अंग्रेजी क्यों झाड़ने लगता है। सच तो यही है कि यदि हिन्दी अधिकारी अंग्रेजी न झाड़े तो उसकी कोई इज्जत ही न करे।

       एक दिन बेटा हमारे दफ्तर आ धमका। उसने हमारे चारों ओर निगाह दौड़ाई। कुल मिलाकर सब कुछ ठीक ही ठाक था। फिर अचानक उसने कुछ देखा और प्रश्न दागा-  "डैड, आपकी सीट शौचालय के एकदम पास क्यों है?" सच कहें तो बहुत दिनों से हमारे अंतर्मन में कहीं यह खटका लगा हुआ था कि बेटे या कोई अन्य प्रबुद्ध महाशय ज़रूर एक न एक दिन ऐसा ही कोई सवाल दागेंगे। इसलिए उत्तर की तैयारी पहले से ही कर रखी थी। कॉलेज के दिनों से ही हम इसी तरह दस संभावित प्रश्न तैयार करके जाते रहे हैं और उनमें से दो-चार के फिट हो जाने पर बाइज्जत परीक्षाएं उत्तीर्ण करते रहे हैं। सो हमने बेटे के उक्त प्रश्न का समाधान प्रस्तुत किया- "बेटा, तुम तो जानते हो कि दफ्तर के लोग चाहे दिन भर अपनी सीट पर न जाएँ और इधर-उधर घूम-फिरकर टाइम पास करके घर चले जाएँ, किन्तु दिन में तीन-चार बार शौचालय तो वे अनिवार्य रूप से जाते ही हैं। इसलिए हमारी सीट शौचालय के बगल में रखी गई है, ताकि हर आते-जाते को हम गाहे--गाहे राजभाषा कार्यान्वयन की जानकारी देते रहें। बल्कि सरापा हिन्दी की प्रतिमूर्ति बने रहनेवाले तुम्हारे इस अभागे बाप को देखकर उन्हें दिन में तीन-चार बार तो ऐसा लगे कि इस देश के केन्द्र सरकार के दफ्तरों की राजभाषा हिन्दी है। लिहाजा शौचालय के बगल में बैठने से राजभाषा कार्यान्वयन के प्रचार-प्रसार और अनुश्रवण में बहुत सुविधा हो जाती है।" बेटा हमारी बात से कन्विन्स हो गया। हमें खुशी हुई। अंदर की जो बात हम उसे नहीं बता पाए, वह यह है कि शौचालय के पास बैठने से हमें भी कितनी सहूलियत है! आशा है बेटा जब थोड़ा और सयाना व दुनियादार हो जाएगा तो खुद ब खुद समझ जाएगा कि हिन्दी अधिकारी होना कितने जीवट का काम है। यों भी बाप के प्रति बेटों के मन में श्रद्धा तभी जगती है, जब वे खुद बाप बनकर अधेड़ हो रहे होते हैं और उनके खुद के बेटों की रेखें फूट रही होती हैं। रही साले की बात, तो उससे क्या फ़र्क पड़ता है?  साले और साले के जैसी अन्य प्रजातियों के जीवों से निबटने के नए-नए तरीके तो हिन्दी अधिकारी ताज़िन्दगी ईज़ाद करता ही रहता है।
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आर.वी.सिंह/R.V. Singh
मोबाइल/Mob-9454712299
ईमेल/email-rvsi...@sidbi.in 


पीठापुरम यात्रा

 आंध्र प्रदेश के पीठापुरम यात्रा के दौरान कुछ धार्मिक स्थलों का सहपरिवार भ्रमण किया। पीठापुरम श्रीपाद वल्लभ पादुका मंदिर परिसर में महाराष्ट्...