tag:blogger.com,1999:blog-1007901583121834601.post1885765969900118123..comments2023-09-06T19:40:14.499+05:30Comments on राजभाषामानस Rajbhashamanas: सरकारी कार्यालयों में हिंदी पदों नियुक्तिविजय नगरकरhttp://www.blogger.com/profile/01027898030678292010noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-1007901583121834601.post-76289494566252589512013-01-23T14:27:34.188+05:302013-01-23T14:27:34.188+05:30भाई विजय जी,
अंधेर नगरी चौपट राजा है,
समझ में नही...भाई विजय जी,<br />अंधेर नगरी चौपट राजा है, <br />समझ में नहीं आता क्या करें, जब वाढ़ ही खेत खाने लगे तो क्या कर लेगे।<br /><br />रोते हुए परिंदों ने दरख्तों से कहा,<br />क्या करें खुद बागवां शिकारी हो गया ।<br /><br />यही हमारा हाल है- जिस संविधान, संसद, सरकार, समितियों के आदेशों का पालन करने के लिए हम हैं<br />उनमें ही किसी में हिन्दी के प्रति कोई रत्ती भर भी ईमानदारी नहीं है।<br />निरीक्षण समितियां कितनी औपचारिकताओं और आराम सम्मान भैंट की भैंट चढ़ गई हैं हम सब <br />जानते हैं। सब मंत्रालय मात्र एक रस्मी पत्र भेज कर अपने दायित्व की पूर्ति मान लेते हैं।<br />अब कोई बताए हम क्या करें। अनशन, आंदोलन, सत्याग्रह,<br />झगड़ा, चार्जशीट, क्या करें। कागज ही दे सकते हैं न<br /><br />रंज हुक्काम को बहुत हैं , पर हैं बहुत आराम के साथ<br /><br />क्रिकेट के नशे में डूब<br />सकते हैं, कहीं कोई मोमबत्ती नही जली. कहीं कोई आंदोलन विरोध प्रदर्शन कुछ नहीं, मैं बहुत निराश हूं, देने को तो लंबे लंबेभाषण कार्यशालाओं में मैं भी देता हूं और बहुत सराहना मिलती है कभी कभी उसका भी नशा हो जाता है,पर अपनों से क्या छिपाना दर्द बहुत है- कि हिन्दी की तकदीर अच्छी नहीं है और हिन्दी की आवाज में दमनहीं है, हमारी शराफत हमारी कायरता से भी आगे चली गई है। और आक्रामकता से भी कुछ हासिल नहींकिया जा सकता । <br /><br />साथियो कुछ सार्थक चिंतन करके विचार करो. कोई कार्यपद्धति ऐसी विकसित करो वरना यह जो षणयंत्र<br />चल रहा है कि हिन्दी अधिकारी हिन्दी अनुवादक आदि हिन्दी का नाश कर रहे हैं- धीरे धीरे ये हिन्दी के सारे<br />पद खत्म कर देंगे और संसद में पास हो जाएगा कि पिछले 100 वर्षों से हिन्दी के कार्य में कुछ प्रगति नही<br />हुई है अतः इन अनावश्यक खर्चाले पदों को मितव्ययता को ध्यान में रखते हुए समाप्त किया जा रहा है।<br />जय हिन्द<br />सत्यमेव जयते<br />संसद महान है, स्तुत्य है, उसकी निंदा नहीं की जा सकती , और हमारे देश में ब्रिटेन के लोगों की तरह<br />राष्ट्रभक्ति है नहीं कि सरकार को मजबूर कर सके और फ्रेंच को हटाकर अंग्रेजी को राजभाषा बना सके।<br />राष्ट्रभाषा का प्रश्न उठाना लुटेरों से अस्मत ढ़कने को कपड़ा मांगना है और वो एकाध<br />कपड़े का टुकड़ा फैंक भी दें तो उनकी शराफत का गीत गाना हमारे राष्ट्रीय स्वभाव में हैं। <br /><br />हमें इस मंच से यह विचार करना है कि हम हिन्दी कर्मी क्या करें कि अब हिन्दी के प्रति अन्याय करने<br />वाले बेनकाब हो सकें-पर उससे होगा क्या जितने आज तक और बेनकाब हुए हैं उनका क्या हुआ है।<br /><br />हमें एक जांच सीबीआई की करवाने की मांग करनी चाहिए कि आज तक कितने करोडों की संख्या<br />का हेरफेर हिन्दी पत्राचार की संख्या में हुआ है- आखिर जब और जगह जहां रुपया फंसा होता है, आंकलन<br />के आधार पर कोयला घोटाला. स्पेक्ट्रम घोटाला आदि की जांच हो सकती है तो इन आंकड़ों की जांच क्यों<br />नहीं हो सकती और दोषियों को सजा होनी चाहिए।<br /><br />डॉ. राजीव कुमार रावत,हिंदी अधिकारी<br />भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान खड़गपुर-721302<br />09641049944,09564156315<br />विजय नगरकरhttps://www.blogger.com/profile/01027898030678292010noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1007901583121834601.post-1640730239367796582013-01-23T14:15:18.250+05:302013-01-23T14:15:18.250+05:30मेरी जानकारी में कुछ ऐसे भी कार्यालय/विभाग हैं ज...मेरी जानकारी में कुछ ऐसे भी कार्यालय/विभाग हैं जहां पर कि विगत 4-5 वषों के दौरान हुई रिक्तियों को अभी भर नही पाए हैं,ऐसा <br />प्रतीत होता है कि वे भरना भी नही चाहते, इतना ही नही अभी तक राजभाषा कैडर भी नही बन सका है, उनके मंत्रालय,व राजभाषा विभाग,<br />क्षेत्रीय कार्यांवयन कार्यालय, विभिन्न स्तर पर निरीक्षण दल सहीत संसदीय राजभाषा समिति आंख कान पर पट्टी बांधे हुए हैं.,जिस भी हिंदी<br />अधिकारी ने प्रयास किए उसे कोप का भाजन बनना पड़ा. ऐसी परिस्थितियों में विभाग द्वारा जारी आदेश हों या फिर संसदीय राजभाषा समिति<br />की संस्तुति कोई मायने रखती. उक्त सभी आदेश राजभाषा कर्मीयों को खुश करने, फाइलों की शोभा बढाने, उच्च अधिकारियों की रद्दी की टोकरी को<br />वजनदार करने के कारगर उपाए हैं. प्रसंवश उल्ल्लेख करना चाहुंगा कि 6ठे वेतन आयोग की संस्तुतियों को ही न केवल नजरंदाज किया गया<br />अपितु क.हिंदी अनुवादक,वरि.हिंदी अनुवादक एवं हिंदी अधिकारियों को (जोकि कि अपने पद पर 19-20वर्ष पूरे कर चुके थे) सभी को पीबी2में ग्रेडपे रु.4200/-<br />देते हुए आदेश जारी किए गए थे. उस विभाग में ऐसे भी महामुर्ख तथाकथित उच्चअधिकारीकार्यरत हैं. अंत में जब हम लोगों ने जद्दोजहद की और सूचना का अधिकार के अंतर्गत प्राप्त वित्तमंत्रालय/व्ययविभाग के आदेशों के सहारे अपना हक प्राप्त करने में लग्भग 6 माह लग गए. मेरे संज्ञान अब भी बहुत से विभाग हैं जहां पर उक्त वेतनमान और<br />पदस्थिति देने में आनाकानी की जा रही है. आप सभी इन मुद्दों पर विचार करें,<br /><br />आर के शर्मा<br />rk.sharma03sept@gmail.comविजय नगरकरhttps://www.blogger.com/profile/01027898030678292010noreply@blogger.com