सोमवार, 26 अप्रैल 2010

राष्ट्र लिपि के विकास में नागरी लिपि का योगदान

आचार्य विनोबा भावे जी ने देवनागरी लिपि के बारे में कहा है कि “ हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है।“
देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कुछ विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, नेपाली, तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में सिंधि, गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।

अधिकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर रेखा नहीं होती है)इसे शिरोरेखा कहते हैं। इसका विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और व्यापक लिपि शायद केवल आइपीए लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है।सी-डैक पुणे के अनुसंधान के अनुसार देवनागरी लिपि का मूल आधार ब्राह्मी लिपि है। आजकल कंप्यूटर पर इनस्क्रिप्ट की बोर्ड सबसे लोकप्रिय की बोर्ड है जिसका आधार भी ब्राह्मी लिपि है। सभी भारतीय भाषाओं का जन्म ब्राह्मी लिपि से हुआ है। इसलिए इनस्क्रिप्ट की बोर्ड की सहायता से किसी भी भारतीय भाषा को एक ही की बोर्ड द्वारा टंकित किया जा सकता है। सभी भारतीय भाषाएँ स्वराधारित है।
भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नहीं है।

इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) मे प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा।

भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं (उर्दू को छोडकर), पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं -- क्योंकि वो सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।
देवनागरी लिपि को सूचना प्रौद्योगिकी में स्थापित करने के लिए भारत सरकार ने देवनागरी लिपि को तकनीकी रुप में विश्वस्तरिय बनाया है। अब देवनागरी के अक्षर यूनिकोड में परिवर्तित
किए गए है। सूचना विनिमय के मानक के रूप में यूनिकोड की स्वीकृति संपूर्ण विश्व में बढ़ती जा रही है । सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की अधिकांश कंपनियों ने इसके पक्ष में अपने सहयोग की घोषणा कर दी है । भारतीय भाषाओं के लिए यूनिकोड 'आइस्की 91' का प्रयोग न करके 'इस्की 88' का प्रयोग करता है जो अद्यतन सरकारी मानक है । यह आवश्यक समझा गया कि भारत सरकार, भारतीय भाषाओं के लिए कोड में आवश्यक संशोधन के लिए यूनिकोड कंसोर्टियम के समक्ष अपना पक्ष रखे । इस उद्देश्य से सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय यूनिकोड कंसोर्टियम का मताधिकार के साथ पूर्ण सदस्य बन गया है ।

16 बिट (2 बाइट) यूनिकोड - यूनिकोड मानक कंप्यूटर संसाधन के उद्देश्य से पाठ निरूपण के लिए एक सार्वदेशिक वर्ण कोडांतरण मानक है । यूनिकोड मानक विश्व कीलिखित भाषाओं के लिए प्रयुक्त सभी वर्णों के कोडांतरण की क्षमता रखता है । यूनिकोड मानक वर्ण तथा उसके प्रयोग के संबंध में सूचना प्रदान करता है । बहुभाषी पाठों से संबंध रखने वाले व्यापारिक लोगों, भाषाविदों, शोधकर्ताओं, विज्ञानियों, गणितज्ञों तथा तकनीकज्ञों जैसे कंप्यूटर प्रयोक्ताओं के लिए यूनिकोड मानक बहुत ही उपयोगी है । यूनिकोड 16 बिट कोडांतरण का उपयोग करता है जिसमें 65000 वर्णों (65536) से भी अधिक के लिए कोड बिंदु उपलब्ध कराता है । यूनिकोड मानक प्रत्येक वर्ण को एक निश्चत संख्यात्मक मूल्य तथा नाम निर्धारित करता है ।
यूनिकोड
यूनिकोड, प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष संख्या प्रदान करता है, चाहे कोई भी कम्प्यूटर प्लेटफॉर्म, प्रोग्राम अथवा कोई भी भाषा हो। यूनिकोड स्टैंडर्ड को एपल, एच.पी., आई.बी.एम., जस्ट सिस्टम, माइक्रोसॉफ्ट, ऑरेकल, सैप, सन, साईबेस, यूनिसिस जैसी उद्योग की प्रमुख कम्पनियों और कई अन्य ने अपनाया है। यूनिकोड की आवश्यकता आधुनिक मानदंडों, जैसे एक्स.एम.एल, जावा, एकमा स्क्रिप्ट (जावास्क्रिप्ट), एल.डी.ए.पी., कोर्बा 3.0, डब्ल्यू.एम.एल के लिए होती है और यह आई.एस.ओ/आई.ई.सी. 10646 को लागू करने का अधिकारिक तरीका है। यह कई संचालन प्रणालियों, सभी आधुनिक ब्राउजरों और कई अन्य उत्पादों में होता है। यूनिकोड स्टैंडर्ड की उत्पति और इसके सहायक उपकरणों की उपलब्धता, हाल ही के अति महत्वपूर्ण विश्वव्यापी सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी रुझानों में से हैं।
यूनिकोड को ग्राहक-सर्वर अथवा बहु-आयामी उपकरणों और वेबसाइटों में शामिल करने से, परंपरागत उपकरणों के प्रयोग की अपेक्षा खर्च में अत्यधिक बचत होती है। यूनिकोड से एक ऐसा अकेला सॉफ्टवेयर उत्पाद अथवा अकेला वेबसाइट मिल जाता है, जिसे री-इंजीनियरिंग के बिना विभिन्न प्लेटफॉर्मों, भाषाओं और देशों में उपयोग किया जा सकता है। इससे आँकड़ों को बिना किसी बाधा के विभिन्न प्रणालियों से होकर ले जाया जा सकता है।
यूनिकोड क्या है?
यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नम्बर प्रदान करता है,
• चाहे कोई भी प्लैटफॉर्म हो,
• चाहे कोई भी प्रोग्राम हो,
• चाहे कोई भी भाषा हो।
कम्प्यूटर, मूल रूप से, नंबरों से सम्बंध रखते हैं। ये प्रत्येक अक्षर और वर्ण के लिए एक नंबर निर्धारित करके अक्षर और वर्ण संग्रहित करते हैं। यूनिकोड का आविष्कार होने से पहले, ऐसे नंबर देने के लिए सैंकडों विभिन्न संकेत लिपि प्रणालियां थीं। किसी एक संकेत लिपि में पर्याप्त अक्षर नहीं हो सकते हैं : उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ को अकेले ही, अपनी सभी भाषाओं को कवर करने के लिए अनेक विभिन्न संकेत लिपियों की आवश्यकता होती है। अंग्रेजी जैसी भाषा के लिए भी, सभी अक्षरों, विरामचिन्हों और सामान्य प्रयोग के तकनीकी प्रतीकों हेतु एक ही संकेत लिपि पर्याप्त नहीं थी।
ये संकेत लिपि प्रणालियां परस्पर विरोधी भी हैं। इसीलिए, दो संकेत लिपियां दो विभिन्न अक्षरों के लिए, एक ही नंबर प्रयोग कर सकती हैं, अथवा समान अक्षर के लिए विभिन्न नम्बरों का प्रयोग कर सकती हैं। किसी भी कम्प्यूटर (विशेष रूप से सर्वर) को विभिन्न संकेत लिपियां संभालनी पड़ती है; फिर भी जब दो विभिन्न संकेत लिपियों अथवा प्लेटफॉर्मों के बीच डाटा भेजा जाता है तो उस डाटा के हमेशा खराब होने का जोखिम रहता है।
यूनिकोड से यह सब कुछ बदल रहा है!

यूनिकोड कन्सॉर्शियम के बारे में यूनिकोड कन्सॉर्शियम, एक लाभ न कमाने वाला एक संगठन है जिसकी स्थापना यूनिकोड स्टैंडर्ड, जो आधुनिक सॉफ्टवेयर उत्पादों और मानकों में पाठ की प्रस्तुति को निर्दिष्ट करता है, के विकास, विस्तार और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इस कन्सॉर्शियम के सदस्यों में, कम्प्यूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न निगम और संगठन शामिल हैं। इस कन्सॉर्शियम का वित्तपोषण पूर्णतः सदस्यों के शुल्क से किया जाता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम में सदस्यता, विश्व में कहीं भी स्थित उन संगठनों और व्यक्तियों के लिए खुली है जो यूनिकोड का समर्थन करते हैं और जो इसके विस्तार और कार्यान्वयन में सहायता करना चाहते हैं।

यूनिकोड कन्सॉर्शियम के अनुसार इण्डिक यूनिकोड यूनिकोड के भारतीय लिपियों से सम्बंधित सॅक्शन को कहा जाता है। यूनिकोड के नवीनतम संस्करण ५.१.० में विविध भारतीय लिपियों को मानकीकृत किया गया है जिनमें देवनागरी भी शामिल है।
यूनिकोड ५.१.० में निम्नलिखित भारतीय लिपियों को कूटबद्ध किया गया है:
• देवनागरी
• बंगाली लिपि
• गुजराती लिपि
• गुरुमुखी
• कन्नड़ लिपि
• लिम्बू लिपि (enLimbu script)
• मलयालम लिपि
• उड़िया लिपि
• सिंहल लिपि
• स्यलोटी नागरी (enSyloti Nagri)
• तमिल लिपि
• तेलुगु लिपि
यूनिकोड कॉन्सोर्टियम द्वारा अब तक निर्धारित देवनागरी यूनिकोड ५.१.० में कुल १०९ वर्णों/चिह्नों का मानकीकरण किया गया है अभी देवनागरी के बहुत से वर्ण जिनमें शुद्ध व्यंजन (हलन्त व्यंजन - आधे अक्षर) तथा कई वैदिक ध्वनि चिह्न एवं अन्य चिह्न यथा स्वस्तिक आदि, यूनिकोड में शामिल नहीं हैं। शुद्द व्यंजनों के यूनिकोडित न होने के कारण वर्तमान में उन्हें सामान्य व्यंजन के साथ अलग से हलन्त लगाकर प्रकट किया जाता है जिससे कि टैक्स्ट का साइज बढ़ने के अतिरिक्त कम्प्यूटिंग सम्बंधी कई समस्याएँ आती हैं।

यूनिकोड 16 बिट कोडिंग का प्रयोग करते हुए 65000 से अधिक वर्णों (65536) के लिए कोड-बिंदु निश्चत करता है । यूनिकोड मानक प्रत्येक वर्ण को एक विशिष्ट संख्यात्मक मूल्य तथा नाम प्रदान करता है । यूनिकोड मानक विश्व की सभी लिखित भाषाओं में प्रयुक्त सभी वर्णों की कोडिंग के लिए क्षमता प्रदान करता है । 'इस्की' 8बिट कोड है जो 'एकी' के 7बिट कोड का विस्तृत रूप है जिसके अनुसार ब्राह्मी लिपि से उद्भूत 10 भारतीय लिपियों के लिए मूलभूत वर्ण सम्मिलित हैं । भारत में 15 मान्यता प्राप्त भाषाएँ हैं । फारसी-अरबी लिपियों के अतिरिक्त, भारतीय भाषाओं के लिए प्रयुक्त अन्य सभी 10 लिपियाँ प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई हैं तथा इसकी ध्वन्यात्मक संरचना में समानता पाई जाती है जिससे समान वर्ण सैट संभव हो सकता । 'आज इस्की' कोड सारणी ब्राह्मी आधारित भारतीय लिपियों के लिए आवश्यक एक प्रकार का सुपर सैट है । सुविधा के लिए मान्यता प्राप्त देवनागरी लिपि के वर्णों को मानक में प्रयोग किया गया है ।


बहुभाषी साफ़्टवेयर के विकास के लिए यूनीकोड मानकों का उद्योग जगत द्वारा व्यापक प्रयोग किया जा रहा है। भारतीय लिपियों के लिये यूनीकोड मानक ISCII-1988 पर आधारित हैं। सूचना आदान-प्रदान के लिये वर्तमान मानक ISCII - IS13194:1991(Indian Script Code for Information Interchange- IS13194:1991) है। भारतीय लिपियों की विशिष्ताओं के पर्याप्त निरूपण के लिए यूनीकोड मानकों में कुछ रूपांतरण शामिल किए जाने जरूरी हैं। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय यूनीकोड कंसार्टियम का मताधिकार सदस्य है। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने संबंधित राज्य सरकारों, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग और भाषाविदों के परामर्श से वर्तमान यूनीकोड मानकों में प्रस्तावित परिवर्तनों को अंतिम रूप दिया गया है। इन्हें TDIL समाचार पत्रिका विश्वभारत@tdil के अंक 4 (देवनागरी आधारित भाषाएं संस्कृत, हिन्दी, मराठी, नेपाली, कोंकणी, सिन्धी), अंक 5 (गुजराती, मलयालम तेलगू, गुरूमुखी, उड़िया), अंक 6 (बंगला, मनीपुरी और असमी), अंक 7 (तमिल, कन्नड़, उर्दू, सिन्धी, कश्मीरी) में प्रकाशित किया गया था। प्रस्तावित परिवर्तनों को यूनीकोड कंसार्टियम में प्रस्तुत किया गया था। यूनीकोड तकनीकी समिति ने प्रस्तावित परिवर्तनों में से कुछ परिवर्तन स्वीकार कर लिये हैं एवं अद्यतन यूनीकोड मानकों में इनका समावेश किया जा चुका है ।


भारतीय मानक ब्यूरो ने इस्की (सूचना विनिमय के लिए भारतीय मानक कोड) नाम से एक मानक निर्मित किया है जिसे 7 या 8 बिट वर्णों का प्रयोग करते हुए सभी कंप्यूटरों तथा संचार माध्यमों में प्रयोग किया जा सकता है । 8 बिट परिवेश में निचले 128 वर्ण वही हैं जो सूचना विनिमय के लिए IS10315:1982 (ISO 646 IRV)7-बिट वर्ण सैट द्वारा परिभाषित हैं, जिन्हें एस्की वर्ण सैट के रूप में भी जाना जाता है । ऊपर के 128 वर्ण सैट प्राचीन ब्राह्मी लिपि पर आधारित भारतीय लिपियों की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं ।

7 -बिट परिवेश में, नियंत्रक कोड एस.आई. को आस्की कोड के आह्वान के लिए प्रयोग किया जा सकता है तथा नियंत्रक कोड एस.ओ. को एस्की कोड सैट के पुनर्चयन के लिए प्रयोग किया जा सकता है । भारत में 15 मान्यता प्राप्त भाषाएँ हैं । फारसी-अरबी लिपियों के अतिरिक्त, भारतीय भाषाओं के लिए प्रयुक्त अन्य 10 लिपियाँ प्राचीन ब्राह्मी लिपि से उद्भूत हैं और इस्की कोड के अतिरिक्त वर्णों का प्रयोग किया जा सकता है । इस्की कोड सारणी ब्राह्मी आधारित भारतीय लिपियों में आवश्यक सभी वर्णों का एक सुपर सैट है । सुविधा के लिए, मान्यता प्राप्त देवनागरी लिपि के वर्णों को मानक में प्रयुक्त किया गया है । भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा जारी मानक संख्या IS1319 :1991 सूचना विनिमय के लिए नवीनतम भारतीय मानक है । इसे भारतीय भाषाओं में सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों के विकास के लिए व्यापक रूप से प्रयोग किया जा रहा है ।

लिपि वर्ण सैट यह प्रमुख वर्ण सैट होता है जिसमें बहुधा प्रयुक्त अधिकांश भाषाएं वर्ण, चिह्न, संख्याएँ आदि सम्मिलित होती हैं । कुछ अपवादों को छोड़कर चिह्नों का यह सैट सभी 'इस्फोक' वर्ण सैट में समान होगा । मैचिंग अंग्रेजी वर्ण सैट नीचे के आधे भाग में 'एस्की' वर्णों से युक्त मैचिंग अंग्रेजी फोंट के लिए सहयोगी वर्ण सैट होते हैं तथा उपर के आधे भाग में रोमन लिप्याँतरण के लिए बलाघात वर्ण होते हैं । अनुपूरक वर्ण सैट अनुपूरक वर्ण सैट मूलभूत लिपि वर्णों के सेट का एक विस्तृत सेट है जिसमें ऐसे संयुक्ताक्षर तथा चिह्न सम्मिलित होते हैं जिनका प्रयोग सामान्यतया नहीं होता ।
देवनागरी से अन्य लिपियों में रूपान्तरण
• ITRANS (iTrans) निरूपण , देवनागरी को लैटिन (रोमन) में परिवर्तित करने का आधुनिकतम और अक्षत (lossless) तरीका है। ( Online Interface to iTrans )
• आजकल अनेक कम्प्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को किसी भी भारतीय लिपि में बदला जा सकता है। ( भोमियो क्रास_लिटरेशन )
• कुछ ऐसे भी कम्प्यूटर प्रोग्राम हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को लैटिन, अरबी, चीनी, क्रिलिक, आईपीए (IPA) आदि में बदला जा सकता है। (ICU Transform Demo)
• यूनिकोड के पदार्पण के बाद देवनागरी का रोमनीकरण (romanization) अब अनावश्यक होता जा रहा है। क्योंकि धीरे-धीरे कम्प्यूटर पर देवनागरी को (और अन्य लिपियों को भी) पूर्ण समर्थन मिलने लगा है।



देवनागरी लिपि को कंप्यूटर पर टंकित करने के लिए ३ विकल्प है।
तीन कुंजीपटल विन्यास हैं -

1. रोमनीकृत विन्यास :रोमनीकृत विन्यासों में, हिंदी पाठ के टंकण में अंग्रेजी ध्वन्यात्मक मैपिंग का प्रयोग किया है । उदाहरण के लिए 'राम' टंकित करने के लिए raamaa (या rAmA) का प्रयोग किया जा सकता है ।

2.टाइपराइटर विन्यास : यह विन्यास हिंदी टाइपराइटर विन्यास के समान है तथा यह विन्यास हिंदी टंककों तथा हिंदी टाइपराइटर विन्यास तथा कुंजीक्रम चार्ट के जानकार लोगों के लिए उपयोगी है ।

3. इलेक्ट्रॉनिकी विभाग ध्वन्यात्मक : यह विन्यास इलेक्ट्रॉनिकी विभाग, भारत सरकार के द्वारा मानकीकृत किया गया है । इस विन्यास का लाभ यह है कि यह सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान है । उदाहरण के लिए 'k' कुंजी का प्रयोग सभी भारतीय भाषाओं में 'क' वर्ण के कुंजीयन के लिए किया जाता है । कुंजीपटल विन्यास तथा कुंजीक्रम चार्ट का प्रयोग सही कुंजी संयोजकों के लिए किया जाता है ।

भारतीय भाषाओं में टाइप करने की सुविधा वाले माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस सुइट 2003 के आगमन से उस हर भारतीय भाषा में आप टाइप कर सकते हैं जिसे ऑफ़िस 2003 में समर्थन प्राप्त है। फिलहाल जिन भारतीय भाषाओं में आप ऑफ़िस 2003 में काम कर सकते हैं वे हैं- गुजराती, हिंदी, कन्नड, मलयालम, तमिल और बांग्ला। किसी भी भारतीय लिपि की वर्णॅमाला के जटिल अक्षरों और चिह्नों को आप ऑफ़िस 2003 में इंडिक आई एम ई या इनपुट मेथड एडिटर (कह लीजिए भाषा संपादक) की मदद से आप टाइप कर सकते हैं। भाषा संपादक या आई एम ई एक प्रोग्राम या ऑपरेटिंग सिस्टम का हिस्सा है जो कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों को मानक पश्चिमी की बोर्ड के जरिए जटिल वर्णॅ और चिह्नों (जैसे कि जापानी, तिब्बती, कोरियाई और भारतीय वर्णमालाओं) को टाइप करने की सुविधा देता है। अगर आप माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस के किसी प्रोग्राम में भारतीय भाषाओं, जैसे कि हिंदी, कन्नड, मलयालम, तमिल, गुजराती या बांग्ला में टाइप करना चाहते हैं तो आपको आई एम ई की ज़रूरत होगी। यह आई एम ई या आपके लिए माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस की सी डी में या माइक्रोसॉफ़्ट भाषाइंडिया वेबसाइट के Downloads लिंक पर उपलब्ध है। भारतीय लोगों के लिए हिंदी का अत्यधिक महत्व है। देश भर में 50 करोड़ से अधिक हिंदी भाषियों के होते हुए हिंदी वास्तव में प्रशासन और बहुसंख्यकों की भाषा है। कंप्यूटर पर माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस आधारित कार्य हिंदी में करने के लिए एक सरल, 5 चरणों की प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
1. आई एम ई में कार्य करने की संभावना के लिए कंप्यूटर में हिंदी आई एम ई स्थापित करना आवश्यक है। इसे bhashaindia.com के मुख्पृष्ट से डाउनलोड किया जा सकता है।
 अगर कंप्यूटर पर Windows 2000 स्थापित है और हिंदी के लिए सपोर्ट भी सक्रिय है तो उपभोक्ता कंट्रोल पैनल पर जा कर रीजनल ऑप्शन पर जाएं, यहां पर "सेटिंग फॉर द सिस्टम" में " इंडिक बॉक्स" को सेलेक्ट करें। इसके बाद Windows 2000 की सी डी कंप्यूटर के सी डी रॉम ड्राइव में लगाएं और प्रोग्राम स्थापित करने के लिए निर्देश पूरे करें।
 अगर कंप्यूटर में Windows XP स्थापित है तो कंट्रोल पैनल पर जा कर "रीजनल एंड लैंगुएजेस" ऑप्शन पर जाएं। यहां आपको तीन विकल्प मिलेंगे; रीजनल ऑप्शन, लैंगुएजेस और एडवांस्ड। यहां पर एक बॉक्स होगा " जटिल लिपियों और बाएं से दाएं भाषाओं के लिए ( थाई भाषा समेत) फ़ाइल स्थापित करें। इस बॉक्स को सेलेक्ट करें और फिर "अप्लाई" बटन पर क्लिक करें।
2. हिंदी आई एम ई की "सेट अप" फ़ाइल चलाएं (रन करें) और कंप्यूटर पुन: आरंभ करें।
3. अब अगला कदम होगा कंप्यूटर द्वारा की-बोर्ड ले-आउट पहचानने की व्यवस्था करने का। इसके लिए भाषा में परिवर्तन ज़रूरी होगा।
 अगर कंप्यूटर पर Windows 2002 स्थापित है तो कंट्रोल पैनल पर जाएं, फिर "टेक्स्ट सर्विस" खंड में। इसमें "इंस्टाल्ड सर्विस" खंड में एक ऑप्शन होगा HI का। इसमें दिखाई देने वाला की- बोर्ड सेलेक्ट करिए और "add" बटन क्लिक करिए। इसके बाद Input Language खंड में हिंदी का विकल्प चुनिए और Keyboard Layout / IME बॉक्स को सेलेक्ट करिए। अब जो विकल्प आप्को उपलब्ध नज़र आएं उनमें से इंडिक आई एम ई विकल्प सेलेक्ट कर लीजिए।
 अगर कंप्यूटर में Windows XP स्थापित है तो कंट्रोल पैनल पर जा कर "रीजनल एंड लैंगुएजेस" ऑप्शन बटन पर जाएं। यहां उपलब्ध तीन विकल्पों में से लैंगुएजेस ऑप्शन चुनिए। फिर "Text services and input languages" खंड में "Details…" पर क्लिक करिए। क्लिक करने पर हिंदी को इनपुट भाषा के रूप में चुनिए और की बोर्ड के रूप में ट्रेडीशनल हिंदी को चुनिए। इसके आगे Windows 2000 में स्थापना के कदम वैसे ही रहेंगे और ऑप्शन में इंडिक आई एम ई 1 को चुन लीजिए।
4. प्रोग्राम की इस स्थापना पूरी हो जाए फिर ऑफ़िस का कोई भी कार्यक्रम शुरू करिए, नोटपैड और वर्डपैड सहित। Windows के दाईं ओर, नीचे की तरफ़ आपको विभिन्न कार्यक्रमों के चिह्न दिखाई देंगे; उसी में आपको भाषा संकेतक भी दिखाई देगा। इसे क्लिक करिए और फिर जो छोटा मेन्यू नज़र आएगा उसमें " इंडिक आई एम ई" को सेलेक्ट करिए।
5. अब आपका कंप्यूटर हिंदी में टाइप करने के लिए तैयार है।
हिंदी के लिए इंडिक आई एम ई 1 में छ्ह प्रकार के की-बोर्ड आते हैं।
1. हिंदी ट्रांसलिटेरशन (हू-ब-हू लेखन) :
यह फ़ोनेटिक टाइपिंग पर आधारित होता है। यानी आप मानक अंग्रेजी की-बोर्ड पर रोमन लिपि में शब्द टाइप करेंगे तो वह इस्तेमाल किए गए अक्षरों के मुताबिक हिंदी अक्षर टाइप करेगा। उदाहरण के लिए आप को " क" टाइप करना है तो आप अंग्रेज़ी का " के" अक्षर दबाएं और वह हिंदी का "क" अक्षर बन कर टाइप होगा। यह फ़ोनेटिक के सिद्धांत पर कार्य करता है और उन स्थितियों में सबसे अधिक उपयोगी है जहां आप शब्दों को ठीक उसी प्रकार लिखते हैं जैसा उनका उच्चारण होता है। 2. हिंदी रेमिंगटन :
हिंदी रेमिंगटन सामन्य रेमिंगटन हिंदी टाइपराइटर है। इसमें रेमिंगटन की- बोर्ड के आधार पर टाइपिंग की जा सकती है।
3. हिंदी टाइपराइटर :
एक और ऎसा की-बोर्ड जो आम तौर पर टाइपिंग में इस्तेमाल होता है। इसमें हिंदी टाइपराइटर की- बोर्ड के आधार पर टाइपिंग की जा सकती है।
4. इंस्क्रिप्ट की-बोर्ड :
एक ऎसा हिंदी की-बोर्ड जहां लेखक मूल वर्णों को क्रमबद्ध तरीके से लिखता है और एक अंर्तनिहित "लॉजिक" यह तय करता है कि इनमें से किन वर्णों को जोड़ा जाए या निकाला जाए और वाक्य बनाया जाए।
5. वेबदुनिया की-बोर्ड :
एक हिंदी की-बोर्ड जो वेबदुनिया की-बोर्ड के क्रमानुसार हिंदी टाइप करता है।
6. हिंदी विशेष वर्ण :
एक ऎसा की-बोर्ड जिसमें हिंदी के सभी संभाव्य विशेष वर्ण होते हैं।
7. एंग्लो नागरी की-बोर्ड :
एक और हिंदी की-बोर्ड जो टाइपिंग में इस्तेमाल होता है। इसमें भी टाइपिंग वेबदुनिया की-बोर्ड के क्रमानुसार होती है। हिंदी आई एम ई में इतनी अलग-अलग विशेषताओं के होते हुए लेखक सरलता से माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस में हिंदी में किसी भी प्रकार का दस्तावेज़ टाइप कर सकता है।
हिंदी आई एम ई के इस्तेमाल में कुछ खास बातें ध्यान् रखने योग्य हैं। भारतीय लिपियों की जटिलता और उनके बारे में चल रहे अनुसंधान देखते हुए हिंदी में टाइपिंग करते समय कुछ बातें याद रखें।
1. अगर आप माइक्रोसॉफ़्ट एक्सेल में टाइप कर रहे हैं तो टाइप किए हुए शब्द स्पेस, एंटर या टैब बटन दबाने से पहले नहीं दिखेंगे।
2. जब शब्दसूची की कस्टमाइज़ विंडो बंद कर दी जाती है तो कंप्यूटर की स्क्रीन पर एक छोटी विंडो खुली रहेगी।
3. यदि माइक्रोसॉफ़्ट फ्रंट पेज़ या माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक के HTML कंपोज़ ऑप्शन में हिंदी बहुत तेजी से टाइप की जाती है तो प्रोग्राम अचानक बंद हो सकता है। इसलिए मध्यम गति की टाइपिंग अपनाएं।
4. माइक्रोसॉफ़्ट एक्सेल में हिंदी लिपि की टाइपिंग के दौरान बिना कारण प्रोग्राम बंद हो जाने की उच्च संभावना होती है, अत: समय-समय पर अपना कार्य "save" करते रहें।
5. माइक्रोसॉफ़्ट फ्रंट पेज़ या माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक के HTML Mail ऑप्शन में हिंदी लिपि लिखते समय कार्य थोड़ा धीमा हो जाता है।
6. अंग्रेज़ी की- बोर्ड ऑप्शन या स्थापित किए गए किसी भी आई एम ई के बीच अदला-बदली के दौरान यदि आखिरी शब्द के बाद जगह नहीं दी गयी तो वह मिट जाता है।
7. माइक्रोसॉफ़्ट फ्रंट पेज़ या माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक के HTML कंपोज़ ऑप्शन में नई पंक्ति पाने के लिए दो बार "Enter" बटन दबाना ज़रूरी है।
8. यदि कोई शब्द/ अक्षर टाइप करने के बाद बिना कोई जगह दिए हुए ( जैसे कि स्पेस, एंटर या टैब दबाए हुए) तीर के निशान वाले बटन दबाए गए तो उसके काम करने के लिए उस बटन को दो बार दबाना होगा। अगर शब्दों के बाद जगह है तो बटन एक बार में काम करेंगे।


भाषा के विकास में लिपि का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। भारत में राष्ट्रभाषा के नाम पर विरोध हो सकता है। राष्ट्रलिपि का सम्मान नागरी लिपि को मिलना चाहिए। राष्ट्रलिपि नागरी लिपि के विकास में सभी की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए।
जय नागरी, जय विनोबा जी।

(संदर्भ- हिंदी विकिपीडिया,भाषा इंडिया, नागरी लिपि परिषद,यूनिकोड.ओरजी )

पीठापुरम यात्रा

 आंध्र प्रदेश के पीठापुरम यात्रा के दौरान कुछ धार्मिक स्थलों का सहपरिवार भ्रमण किया। पीठापुरम श्रीपाद वल्लभ पादुका मंदिर परिसर में महाराष्ट्...